पेज

शनिवार, 31 दिसंबर 2022

#चरैवेति

 



लीजिये ,ये भी चला ही जा रहा। रोके कब रुकता है.....ये पल,ये जीवन,और ये आवगमन चक्र ही संसार की निरंतरता का पर्याय। आज हम जिसका इंतज़ार कर रहे,वो पल आएगा और पलक झपकते ही वो #गत भी घोषित हो जाएगा। और इन्हीं में हम उत्सवों के अवसर तलाशते। किसी का जाना भी उत्सव का कारण!!!!!!! जैसे मृत्यु आत्मा का अवसान नहीं ,बल्कि जीवन का सतत अंग है। ये निशानी है ,ना ठहरने की.....चलते जाने की..... गुजरते हर पल में गुज़र जाने की......।

अगले पल या पीढ़ी को अपना स्थान देने के लिए खुद से रिताने की प्रक्रिया का माध्यम ......उत्सवों के आह्वान ।
विगत को याद रखने ,आगत के स्वागत के लिए, निरन्तरता के औदार्य प्रश्रय की प्रक्रिया ........ उत्सवों का भान।

जो जा रहा वो दीर्घ जीवनाक्रान्त #महीनों के बंधनों का अंत है। बिना किसी भूमिकाओं के जिज्ञासाओं का अंत है। कई प्रतीक्षाओं के अधूरे होने पर भी एक निश्चित अवधि का अंत है। किंतु जो समाप्त हो रही वो सिर्फ अवधि ,समय निरन्तर है। नवीनीकृत पुरातनता का मापक - समय ।

ये आपके लिए नवीन हो सकता, किन्तु ये सर्वमान्य नवीन नहीं। कोई अभी इसे रुका मान रहा,तो किसी की चेतना में इसकी अनुभूति नवीन नहीं। कोई व्यवहारिक दृष्टि से अपने संस्करण में इसे नवीन नहीं पाता तो कोई इसे सिर्फ काल  गणना समझता .....।

जो बीत रहा ,वो सिर्फ एक दृश्य है, दृश्य की सत्यता स्थायी नहीं। स्वयं को दृष्टा के रूप में विलय कर सिर्फ उसकी अनुभूति ही सत्य है और वही जीवन की वास्तविकता और विशेषता। तो प्रतिपल के पुनर्जन्म के साक्षी होकर स्वयं में प्रतिपल नवीन अनुभूति को पुनर्जीवित करते रहिये। आलोकित रखिये जीवन के अनंतपथ को स्वयंप्रभा से। भले ही वो  तिमिर पथ पर आपके चरणों के आगे ही एक मद्धम से प्रकाश से पथ का आभाष प्रस्तुत करे... पर निरन्तर रखिये  ,तरल रखिये ,सरल रखिये। जीवन को बढ़ने दीजिये ....उस पथ पर जो अनंत है। शिव ,शिवकारी हों।
गत  से उत्तरोत्तर आगत की ओर कदम बढ़ाने की शुभकामनाएं 🙏🙏🙏

#डॉ_मधूलिका_मिश्रा_त्रिपाठी

#ब्रह्मनाद 


गुरुवार, 29 दिसंबर 2022

संवेग

 



धुंधली दृष्टि,आंसुओं से।

उबलता खून ,धमनियों में।

अभी तरलता, कभी विरलता,

अभी डूबता,कभी उबरता।

अभी कठोर,कभी आक्रांत,

अभी कोलाहल,कभी एकांत।

अन्तस् ,अनंत सा।

विचार,शून्य सा।।

उंगलियों के पोरों से ,

छिटकते कई भाव।

प्रवाह है निरंतर,

हाँ पर रुके हैं ,

भावों के प्रमाद।।

#डॉ_मधूलिका_मिश्रा_त्रिपाठी

सोमवार, 26 दिसंबर 2022

#तुम_जैसा_सोचोगे_मुझको___मैं_वैसी_हो_जाऊंगी




मैं मरुथल में मृगतृष्णा सी हूँ,

जिसमे तुम्हारे ही ख्यालों की मछलियां उछलती हैं।

परिणामतः लोग मुझे मत्स्यगंधा की पालक मान लेते।


मैं एक वन सी हूँ गहन हूँ,

जिसमे तुम्हारी ही गम्भीरता की गहनता है,

परिणामतः लोग मुझे मलय पवन की सृजक मान लेते।


मैं एक अस्थिर प्राणी सी हूँ,

जिसमे तुम्हारे कोमल भाव महकते हैं,

परिणामतः लोग मुझे कस्तूरी -कुंडली  बसाए एक मृग मान लेते।


मैं एक असीम अनंत रहस्य सी हूँ,

जिसमे तुम्हारे चित्त का ठहराव है,

परिणामतः लोग मुझे जलनिधि मान लेते।


मैं  एक  तप्त गलित लौह सी हूँ,

जिसमे तुम्हारे पौरुष का ओज ढलता है,

परिणामतः लोग मुझे अयस्क पिंड सी कठोर मान लेते।


मैं धवल प्रकाश सी हूँ,

जिसमे तुम्हारे ज्ञान की शुभ्र रश्मियां प्रकाशित है,

परिणामतः लोग मुझे ज्ञान सलिला मान लेते।


तुम समझ गए ना ???

मेरा अस्तित्व प्रवंचना है..

मेरा मूल बस,

तुम्हारी वैचारिक रचना है।।

मैं ना हूँ सत्य, 

ना सत्य सम ,

जब तक ना रहें ,

तुम्हारे पूरक हम।।

सुनो गर देना हो ,

मेरे आभास को ,

एक आकाश सा,

अविराम ,निश्चल आह्वान,

तुम्हें ,रचना होगा ,

पल - प्रतिपल एक ,

उदीप्त विचार,

तुम जो सोचोगे ,

मैं वैसी ही हो जाऊंगी,

तुम्हारे ख्यालों की अनुपस्थिति में,

मैं बस ख्याल ही रह जाऊंगी।

तो देने मुझको पूर्णता,

तुम रचना एक,

 अनवरत  विचार श्रृंखला ,

जिसके सृजित विचारों से ,

मैं प्रतिपल जीवन पाऊंगी।

तुम जैसा सोचोगे मुझको,

मैं वैसी हो जाऊंगी .....

सुनो मैं निःशब्दता ,

तुम्हारे  स्वर में स्वर पाऊंगी,

जब जब तुम सोचोगे मुझको,

मौन का निनाद बन जाऊंगी,

तुम जैसा सोचोगे मुझको,

मैं वैसी हो जाऊंगी.....


#डॉ_मधूलिका_मिश्रा_त्रिपाठी

#ब्रह्मनाद 


संस्मरण - वायलिन की धुन

 




बात पुरानी हो चुकी पर जब जब वायलिन की धुन सुनती ,वो स्मृति चंदन कि तरह भीनी भीनी महक उठती। वर्ष 2001 ठंड शुरू हो चुकी थी। हम सभी परास्नातक की छात्राएं सेमिनार और सेमेस्टर एग्जाम की तैयारी में जुटे थे। 

होस्टल में खाना मिलने का वक़्त शाम 6 से 7.30 तक था ....लगभग सभी खाना खाकर शाम की प्रार्थना के बाद पढ़ने से पहले कुछ मौज मस्ती की तैयारी में थे। अचानक होस्टल के स्पीकर में कॉल हुआ सभी छात्राएं कॉलेज ऑडिटोरियम में इकट्ठी हो। 

लीजिये हम सबके चेहरे में 8 बजे ही 12 बज गए ,पूरे दिन में सहेजा गया ये समय न जाने किस मोटिवेशनल स्पीच या संगीत कार्यक्रम की भेंट चढ़ने वाला था।

दरअसल कॉलेज बन्द होने के बाद हम होस्टल की गाय भेड़ बना कर हांक ली जाती थी 😂😷... 

खैर आदेश था तो पालन भी किया। प्रस्तुत आगत को लगभग कोसते हुए हम सब लड़कियां ऑडिटोरियम में इकट्ठे हुए। वाईए इस वक़्त कॉलेज में प्रवेश एक अलग सुकून भी दे रहा था,क्यों????? अरे ना प्रेक्टिकल का टेंशन ,ना कोई लेक्चर क्लास।

जाकर ऊँघते हुए हम सब कुर्सियों में जम गए, कुछ को चुहल सूझ रही थी,कुछ नाक चढ़ाए बिसूर रही थी। 

लीजिये हमारी होस्टल की वॉर्डन मैडम ने स्टेज से घोषणा की कि अभी आपको श्री .......जी का वायलन वादन सुनने को मिलेगा। 

सबने माथे पे हाँथ रख मुँह में कुछ बुदबुदाया सा, हे राम किसी गायक को भी बुला लेती  जो ख्याल ,भैरवी ,यमन ,दीपक राग से हम सबके सब्र का इम्तेहान ले सके 😥 😠 और कुछ चमची टाइप कन्याओं ने वाओ मैम कह कर गुड गर्ल लिस्ट में  अपनी रैंकिंग ऊपर की। 😇


अब ओखली में सर गया तो मूसल पड़ना ही था।

सभी कलाकारों ने मंच पर जगह लेकर ,अपना परिचय दिया। अफसोस मुझे नाम याद नही अब :( .....

उन्होंने शुरुआत की" ऐसी लागि लगन" भजन की स्वर लहरी से।

ये क्या हम सब चुपचाप ,एकटक मुग्ध से उनके वाद्य यंत्र के स्वर और नाद को सुनने लगे।

लय बढते हुए "जादूगर सैंया,छोड़ मोरी बैय्यां" ,

"ओ बसंती पवन पागल"  जैसे कई गीतों की स्वर लहरी से होते हुए सफर थमा 

" वंदे मातरम " पर।

बिना बोले हम सब अपनी सीट छोड़ खड़े हो गए। 

पता नही क्यों मेरे सहित बहुत सी लड़कियां भाव विभोर थी। भावातिरेक में मेरे रोंगटे खड़े हो गए थे ,और आंखों की दृष्टि आसुओं की वजह से धुंधली हो गई थी। 

आते वक्त जिन पर हमारा गुस्सा अप्रत्यक्ष रूप से बरस रहा था ,जाते वक्त हम सब नत थे उनकी प्रतिभा के सम्मुख। 

कहाँ हम सोच कर आए थे कि ये संगीत हम सबके  पल्ले नही पड़ने वाला ,कहाँउस रात से लेकर कई दिन तक वो हमारे दिमाग मे गूंजता रहा। आज भी जादूगर सैंया ,और वन्दे मातरम मुझे कानों में बजता सा सुनाई दे रहा।

सच में संगीत वो नहीं जो आपको किसी विशेष ज्ञान से ही महसूस हो,,, संगीत तो वो जो सहज ही आपकी आत्मा,हृदय और जेहन में प्रवेश कर जाए। वो आपको यूँ आत्मसात कर ले,जैसे जीवन आपको महसूस होता। 

वाकई जीवन भी एक संगीत है ,आत्मा का ,सांसों को ,उसको समझने के लिए दिमाग मत लगाइए,मन को मुक्त कर दीजिए उसे ग्रहण करने के लिए।

ये बात मैंने उस दिन महसूस की, आप आज महसूस करिये। 

सुनिए सासों के मधुरतम संगीत को ........

रविवार, 11 दिसंबर 2022

मां की पाती

 






मेरी प्यारी सी गुड़िया अन्वू,

कभी लगता  हर दिन बहुत लम्बा अंतराल लेकर गुजरा और कभी लगता यह (12/12/12)कल की है बात है ,जब बेहद खूबसूरत सी एक नाजुक सी गुड़िया अपनी चिबुक पर हाथ टिकाए मेरे बगल में लेटी हुई थी।तुम्हारे आने से पहले एक लम्बा दौर जिया था मैंने इंतजार का ...अवसादों का .... आशाओं और निराशाओं के उतार चढ़ाव का....। अंततः तुमने आकर उस दौर को खतम किया।

 मां बनना सुख और संघर्ष के सिक्के के दो पहलू हैं। एक ओर तुम मेरी ताकत हो...मेरी खुशी हो....तो दूसरी ओर मुझे कमजोरी और दुख भी तुमसे ही जुड़े हुए हैं। तुम्हारी हर असफलता या कमजोरी या व्यवहारगत परेशानी जहां मुझे निराशा के गहरे भंवर में धकेल देती है तो तुम्हारी मुस्कान ,शरारतें , छोटी से छोटी उपलब्धि  और तुम्हारी खुद की  समस्याओं से धीरे - धीरे लड़ना , उबरना ;खुशियों  के सतरंगे इंद्रधनुष की दुनिया में पहुंचा देती हैं। 

 कई बार मुझे लगता ,मुझसे ज्यादा समझदार तुम हो,मुझसे कहीं ज्यादा उदार। तुम पर कई बार अपना गुस्सा उतार कर ,तुमसे कभी घृणा नहीं पाई मैंने। तुमने अपनी नन्हीं बाहें फैलाकर हमेशा मुझ पर स्नेह ही बरसाया। कई अवसरों पर मेरी ढाल बनाकर खड़ी भी हो जाती । उस वक्त लगता जैसे मैं नहीं ,तुम मेरी मां हो। 

 जब  मेरी अपेक्षाऐं या आशाएं टूटती तो लंबे समय अवसाद से घिरी होती हूं। पर तुम गिर कर उठने और सम्हलकर फिर हंस कर जुट जाने में माहिर हो। वास्तव में तुम जैसी पावन और सच्ची आत्मा ही जीवन को सिर्फ उसी पल और आज में जीने की क्षमता रखती। कभी - कभी लगता तुम नहीं ,बल्कि ये संसार तुम जैसे सीरत के लोगों के लायक नहीं है। ये झूठ ,दिखावे,छल और मतलबपरस्त लोगों से भरा हुआ है...जहां तुम जैसे लोग अनफिट माने जाते। पर ईश्वर इस दुनिया में अब भी कुछ पवित्रता बचाए रखना चाहता ,इसलिए तुम और तुम जैसे लोग धरती पर भेजता। ये हमारी कमजोरी की हम जैसे लोग तुम जैसों के लायक ये दुनिया में बना पाते। 

 तुम्हारे आने के बाद ही कोशिश कर पा रही हूं हर दिन संघर्ष करके जीना। एक उद्देश्य के साथ आगे बढ़ना। 

 मेरी बच्ची मैं जानती हूं एक मां होने के नाते मैं तुम्हें कई बार बहुत कुछ करने से रोक देती हूं ,जो तुम चाहती हो। क्योंकि कहीं ना कहीं तुमको लेकर सुरक्षा की भावना हावी हो जाती है। पर यकीन मानो तुम्हारी मां कभी तुम्हारे रास्ते की बाधा नहीं बनेगी....मैं वो रोशनी बनकर हमेशा तुम्हारे साथ रहूंगी जो तुम्हें आगे तक का रास्ता साफ देखने में मदद करेगी। 

 तुम अपने पंख खोलो... उड़ो ... और अपने जीवन की परवाज को पूरा करो...मैं बेड़ी नहीं तुम्हारा आकाश बनूंगी,तुम्हारा हौसला रहूंगी। आज के इस विशेष दिन में तुमको अनन्त शुभकामना और स्नेह मेरी राजकुमारी। बस यही कामना रहेगी की अपने जीवन को स्वतंत्र रूप से और भरपूर जियो। इस तारीख को तुमसे एक विशेष पहचान मिले..... हैप्पी बर्थडे मेरी लड्डू।

 

 #अन्वेषा_की_मम्मा 

शनिवार, 10 दिसंबर 2022

लv जिhaद

 "दुनिया की नजरों में तुम भले ही मेरी पत्नी बन गई हो किन्तु मेरे लिए तुम तब तक मेरी बीवी नहीं, जब तक तुम 3 बार ‘मुझे कबूल है, कबूल है, कबूल है’ नहीं कह देती।’’ हिन्दू रीति-रिवाज से एक हिन्दू लड़की विवाह कर जब पहली बार ससुराल पहुंचे और उसे पता चले कि जिस लड़के ने खुद को हिन्दू बताकर उससे शादी की है, वह वास्तव में मुसलमान है तो उस पर क्या बीती होगी? झूठे प्रेमजाल में फंस वैवाहिक जीवन के हसीन सपने लिए जिसे वह अपने जीवन की डोर थमा बैठी हो, वही उसे सुहागरात के दिन इस्लाम में मतांतरण के लिए प्रताडि़त करे, इससे बड़ी त्रासदी और क्या होगी?


लव जिहाद कैसे होता है इसका कोई वजूद है या नही इसपे बहस करने वाले बहोत लोग है आपको सोसल मीडिया पे इसके बहोत से सामग्री उपलब्ध मिलेंगे जिनमे इससे बचाव इनकी पहचान और अन्य बाते रोज कोई न कोई लिखता ही रहता है ।। लेकिन आज भी कुछ बाते ऐसी है जो आपको नही पता है , लव जिहाद करने के लिए एक पैटर्न काम करता है वो पैटर्न समझ लीजिए आपको लव जिहाद समझ मे आ जायेगा और इससे आप बच भी सकते है --

लव जिहाद के कुल 4 चरण है 

1- आयु 

2 - पैसा 

3- शिक्षा

4 - सौंदर्य 


आयु -- लव जिहाद की शिकार सबसे ज्यादा 15 से 25 साल और फिर 35 से 45 साल के बीच की हिन्दू स्त्रियों को टारगेट किया जाता है ।।


पैसा - गरीब घर की लड़कियों और जरूरतमंद हिन्दू घरो में इसी के माध्यम से पैठ बनाई जाती है एक बार घर मे इंटर हुए तो शिकार शुरू


शिक्षा -- पढ़े लिखे घर की लड़कियां आफिस क्लास और जो धर्म कर्म में ज्यादा विश्वास रखे उसके लिए पहले उसके रीतियों के लिए उसके मन मे द्वेष पैदा कर दो फिर इस्लाम की तारीफ और शिकार हाजिर 


सौंदय - स्मार्ट लड़के कॉलेज , ब्यूटी पार्लर आफिस के बाहर आपका ही इंतज़ार कर रहे है ।। हर लड़की चाहती है कि उसका bf या पति स्मार्ट हो और ये कमी वो पूरी करता है और लड़की शिकार बन जाती है ।।


पैटर्न -- सर्च + स्टाल्क+हेल्प + इम्प्रेस+ अप्प्रोच 


इसमे सर्च का काम लोकल मुस्लिम जैसे रिचार्ज वाला किराने वाला कंबल बेचने वाला और मुस्लिम मित्र स्कूल की 

टाइप कन्फर्म होने पे उसी कि पसन्द के मिलने वाले लड़के से उसका पीछा करवाना ।

हेल्पफुल लड़का आपकी हर जरूरत पे आपके लिए खड़ा होता है ।

आपको इम्प्रेस करता है और आपकी तारीफ में कसीदे आपको गुड मॉर्निंग गुड नाईट का कंटीन्यू संदेश आप उसके केअर और हेल्पफुल नेचर से खुस 

सही समय पे जब आप कभी कमजोर हो भावनात्मक रूप से आपको अप्प्रोच (प्रोपोज़) करना लड़की कभी मन नही कर पाती ।।


बचाव -- बस अपने बच्चो को समय दीजिये अपने घर की औरतों को समय दीजिये , बस इतना ध्यान रहे कि लव जिहाद तभी हो सकता है जब लव की जरूरत महसूस हो । ये याद रहे कि लव ज़िहाद की शिकार सबसे ज्यादा शादीशुदा यानी 35 से 45 के बीच और बच्चियों 15 से 25 ये ही है बीच के उम्र की लड़कियां एक मुश्किल टारगेट होती है इनके लिए सेक्यूलर बिग्रेड काम करती है 


सिर्फ भारत मे ही नही विश्व के हर कोने में इसे सुनियोजित तरीके के चलाया जा रहा है बस इतना समझ लीजिए कि इस्लाम मे सिर्फ 2 चीज़े है इस्लामिक(मोमिन) गैर इस्लामिक(काफिर) और इनका काम है सिर्फ काफिरों को इस्लाम कबूल करवाना वो किसी भी तरह हो ।।

मैं कुछ दिन पहले uk में था एक न्यूज स्क्रॉल करने के दौरान मुझे ये मिला --

five men of Pakistani origin, found guilty of a series of sexual offences against girls as young as 12. They were jailed. The reason why it is in the news again is that an official inquiry into the failure of police and social services to take action has submitted its report now. Some 1,400 girls from the north England town of Rotherham were sexually exploited between 1997 and 2013, and the inquiry found “blatant’’ collective failure on the part of the police and other local authorities to stop it.


"5 पाकिस्तानी मूल के इस्लामिक लड़को ने 1400 लड़कियों का सेक्सउली हररेशमेंट किया और उन्हें ब्लैकमेल करके इस्लाम कबूल करने के लिए मजबूर किया वो पकड़े गए और सजा हुई "


सैकुलरिस्ट ‘लव जिहाद’ को स्वीकारने से इन्कार करते हैं जबकि दक्षिण भारत के केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, झारखंड, उत्तर प्रदेश में यह चरम पर है। केरल के पूर्व माक्र्सवादी मुख्यमंत्री वी.एस. अच्युतानंदन ने सार्वजनिक तौर पर कहा था कि समूचे केरल के इस्लामीकरण की साजिश चल रही है।  


दिसम्बर, 2009 में केरल उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के.टी. शंकरन ने ‘लव जिहाद’ पर कटु टिप्पणी करते हुए कहा था, ‘‘ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि प्यार की आड़ में जबरन मतांतरण की साजिश चल रही है। छल और फरेब के आधार पर इस तरह के मतांतरण को स्वीकार नहीं किया जा सकता।’’


इससे काफी पहले सन् 2006 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ ने भी तत्कालीन प्रदेश सरकार से पूछा था कि केवल हिन्दू लड़कियां ही इस्लाम क्यों कबूल रही हैं? न्यायमूर्ति राकेश शर्मा ने तब टिप्पणी की थी, ‘‘न्यायालय के सामने लगातार ऐसे मामले आ रहे हैं, जिनमें हिन्दू लड़कियों से इस्लाम कबूल करवाने के बाद उनका निकाह मुस्लिम लड़कों के साथ कर दिया जाता है। निकाह के बाद उनका पता-ठिकाना नहीं मिलता।’’ सैकुलरिस्ट अदालतों की इन टिप्पणियों को कैसे नकारेंगे?


लव जिहाद’ के अंतर्गत हिन्दू युवतियों से निकाह के बाद इन युवकों का असली चेहरा सामने आता है। ऐसी युवतियों को बाहरी दुनिया से सम्पर्क नहीं करने दिया जाता। उनका अधिकांश समय आतंक, जिहाद और अंतत: उनके द्वारा अपनाए गए नए मजहब की जीत का महिमामंडन करने वाली वीडियो या पर्चों-पुस्तकों को देखने-पढऩे में ही व्यतीत होता है। यह सब कुछ उन्हें जिहादी बनाने और आत्मघाती मानव बम बनाने की रणनीति का हिस्सा है। अभी हाल तक अधिकांश मुस्लिम युवक हिन्दू युवती से प्रेम विवाह मजहबी जुनून से प्रेरित होकर करते थे और इस ‘सवाब’ के काम में अक्सर उसके परिजन भी सहायक होते थे क्योंकि एक काफिर ‘मोमिन’ हो गई। अब इस मजहबी जुनून को जिहाद का अस्त्र बना दिया गया है।

#डॉ_मधूलिका_मिश्रा_त्रिपाठी


रविवार, 4 दिसंबर 2022

#life_is_not_a_bed_of_roses




कहते हैं ,जीवन की नींव बचपन में ही पड़ जाती।हमें  बच्चे के व्यक्तित्व को किस रूप में ढालना ये उस पर निर्भर करता कि हम उसे क्या सिखाते। हम बच्चों के लिए उस पड़ाव में हद से ज्यादा रक्षात्मक हो जाते। कोई भी नकारात्मक विचार से उसे दूर रखने का प्रयास करते। कोई भी घटना जो हमें लगता कि  बच्चों के मन में प्रश्न जगा सकती,उससे दूर रखने का प्रयास करते। शारीरिक रूप से भी उसे कोई चोट न पहुंचे इसके लिए हम जरूरत से पहले ही मौजूद रहते। भूख -प्यास महसूस न हो इसका इंतज़ाम भी यथासंभव करते। परी कथाओं को सुनाकर उसे सुनहरे सपने और एक खूबसूरत दुनिया दिखाते। अक्सर  सफलता की होड़ में अग्रणी होने पर सफल बताते,और ये प्रयास भविष्य में भी उसे आगे और सफल रखेंगे ,ये समझाते रहते। 

कुल मिलाकर एक सुनहरा सा दायरा बना देते हैं जिसमें सच्चाई कम ,अपेक्षा ज्यादा होती। पर आज अगर मैं आपको कहूँ कि आप ऐसा करके एक इंसान को कमज़ोर बना रहे तो शायद आपको मुझ पर ही हंसी आएगी। 


फर्ज़ करिये एक बच्ची थी,बेहद कुशाग्र ,हर दिल अजीज़, हर काम में बेहतरीन, हँसमुख ,हर जगह महत्व पाने वाली। उसे सिखाया गया कि जीवन ऐसा ही होगा।तुम्हारी शर्तों पर जी सकोगी। हमेशा इन खूबियों के साथ वो छाई रहेगी,अपने सुनहरे दायरों में। एक वक्त तक उसे सब सच लगा। अपनी खूबियों ,सपनों से उसे प्यार था। उसका होना उसे कुदरत का उपहार लगता।  वो बड़ी हुई ,उसका विवाह हो गया।  सुनहरी दुनिया रंग बदलने लगी थी। उसकी खूबियों में पहले जहां उसकी वाहवाही होती थी,अब वो दम तोड़ने लगी थी। उनके लिए ही उसे ताने मिलते, जो उसे उसकी ताकत लगते थे।उसके सपनों को समर्पण का जामा पहनाने की अपेक्षा और कवायद हुई। उसके होने का मतलब ,सिर्फ दूसरों की इच्छा अनुसार ढलना। उसे समझ आया कि कल जिन बातों को लेकर उसे बताया गया कि ये तुम्हारी सफलता की सीढ़ी है,वो अर्थहीन है। उसके सपने ,उसकी महत्वाकांक्षा ही आज उसका दम घोंट रहे थे। उसे अब लगने लगा कि काश उसकी आँखों में इतने बड़े सपने न डाले जाते,उसे ये न बताया जाता कि वो विशेष है। काश उसे बेहद आम बताया जाता ,उसे बोला जाता कि जीवन संघर्षों के नाम है।काश उसे  बताया जाता,की कर्म नहीं ,भाग्य ही प्रबल होता। जो उसकी विशेषता ,वो कोई गुण नहीं ,बल्कि सिर्फ विधा है। उसे ये ना बताया जाता कि तुम्हें कुछ विशेष करना है… काश उसे बताया जाता कि आम सा जीवन होना ही सच है। जिसमें कोई उद्देश्य नहीं हो सिर्फ एक नियमित दिनचर्या के अलावा। ऐसी स्थिति में वो ऐसी टूटी कि जिंदगी से ही उसका मोह भंग हो गया। 

वास्तव में जीवन का सच हमें बचपन से ही बताना चाहिए। बताना चाहिए कि हर कदम श्रेष्ठ होने पर भी जीवन मे सफल हो जाओ ये जरूरी नहीं। कोई लूज़र माना जाने वाला इंसान भी तुमसे बेहतर जिंदगी जी या साबित  हो सकता। बताना चाहिए कि तुम इतने भी विशेष नहीं ,तुम आम से इंसान हो ,जो कई अरबों में एक हो। हमेशा सपनों में मत रहो, एक आम सी दिनचर्या भी जिंदगी होती। हर वक़्त मत हाज़िर कर दीजिये उनके पंसद का खाना,तेज़ भूख महसूस होने दीजिए,प्यास महसूस होने दीजिए। उनकी मर्ज़ी मत चलने दीजिये,उन्हें  समझौते सिखाइये। रोने पर हमेशा अपना कंधा मत दीजिये ,बताइये की खुद चुप होना सीखना होगा। कहीं चोट लगने की स्थिति में आप आगे मत आइये, लगने दीजिये उसे चोट,ताकि कल वो किसी के भरोसे खुद को सम्हालने की कोशिश न करें। उसे परियों की कथाएं नहीं,असली जिंदगी की कहानियां बताइये। जिसमें दुःख हों,तकलीफ हों,बीमारी हो ,भूख हो। समाज से मिले तिरस्कार हो,जिनमें मृत्यु का भी जिक्र हो। ताकि कल जब उसे अपेक्षित कल न मिल पाए तो वो टूटे नहीं। बल्कि सहज ही असफलता को भी स्वीकार कर जीता रहे। उसे बताइये की हर कहानी का अंत सुखद नहीं होता,कुछ में त्रासदी भी होती। जिस दिन ये सब सीख लेंगे,जान जाएंगे यकीन मानिए,आतमघात की प्रवृत्ति खत्म हो जाएगी। 

क्योंकि तब उन्हें पता होगा #life_is_not_a_bed_of_roses…. तब कांटे उन्हें जीवन का अंग लगेगें। आखिर सुख से ज्यादा जीवन दुख ही देता।

बुधवार, 30 नवंबर 2022

#रानी_चेनम्मा_महिला_सशक्तिकरण_विशेष


#सन_1824_की_लक्ष्मीबाई - #रानी_चेन्नम्मा


#देश के इतिहास में जब -जब क्रांति की शुरुआत की बात हुई ,हमने रानी लक्ष्मी बाई को ही अग्रणी माना। पर आप सबको जानकर गौरव मिश्रित आश्चर्य होगा कि ब्रिटिश हुकूमत की #डॉक्ट्रिन_ऑफ_लैप्स (हड़प नीति) के खिलाफ जाकर आज़ादी के लिए ;युद्ध का बिगुल फूंकने के लिए एक ज्वाला सन 1857 से काफी पहले ही #कर्नाटक में धधक उठी थी। इस क्रांति की शुरुआत करने वाली थीं #रानी_चेन्नम्मा । जिन्हें कित्तूर की रानी लक्ष्मीबाई भी कहा जाता है। हालांकि ये सिर्फ हमारे इतिहासकारों का गैरजिम्मेदाराना रवैय्या ही कहा जा सकता कि जो रणक्षेत्र में रानी लक्ष्मीबाई से भी पहले अपना हुनर और गौरव दिखाने वाली रानी चेन्नम्मा को कित्तूर रानी लक्ष्मीबाई की उपाधि दी जा रही,क्योंकि वो तो सन57 से काफी पहले आजादी की लड़ाई की शुरुआत कर चुकी थीं । 


#इस वीरांगना का जन्म काकती जनपद,बेलगांव -मैसूर में लिंगायत परिवार में हुआ था। पिता का नाम - धूलप्पा और माता -पद्मावती थी। राजघराने में जन्म  और अपनी विशेष रुचियों के कारण बचपन से ही घुड़सवारी, तलवारवाजी, तीरंदाजी में विशेष प्रशिक्षण के चलते अत्यंत दक्ष हो गईं थीं। उन्हें  संस्कृत, कन्नड़,मराठी और उर्दू भाषा का भी विशेष ज्ञान था। 

#इनका_विवाह_देसाई_वंश के #राजा_मल्लासर्ज  से हुआ । ऐसा ज्ञात हुआ कि एक बार राजा मल्लासर्ज को कित्तूर कर आस-पास  नरभक्षी बाघ के आतंक की सूचना मिली। जिसे खत्म करने के लिए उसकी खोज के बाद जब राजा ने उसे अपने तीर से निशाना बनाया ,तो उसकी मृत्यु के बाद जब बाघ के नजदीक गए,तब उन्हें बाघ में 2 तीर धंसे मिले। तभी उन्हें सैनिक वेशभूषा में एक लड़की  दिखी; जो कि चेन्नम्मा ही थीं। उनके कौशल और वीरता से प्रभावित होकर राजा ने उनके पिता के समक्ष चेन्नम्मा से विवाह हेतु प्रस्ताव रखा।जिसके बाद चेन्नम्मा कित्तूर की रानी बन गई। 

15 वर्ष की उम्र में इन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई ,जिसका नाम - #रुद्रसर्ज रखा। 


#भाग्य ने ज्यादा दिन तक रानी पर मेहरबानी नहीं दिखाई और 1816 में राजा की मृत्यु हो गई। और अगले कुछ ही सालों में उनके पुत्र की भी असमय मृत्यु हो गई। कित्तूर का भविष्य अंधेरे में दिखने लगा। इसके बाद उन्होंने एक अन्य बच्चे शिवलिंगप्पा को गोद ले लिया और अपनी गद्दी का वारिस घोषित किया। लेकिन ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपनी 'हड़प नीति' के तहत उसको स्वीकार नहीं किया और शिवलिंगप्पा को पद से हटाने का का आदेश दिया। यहीं से उनका अंग्रेजों से टकराव शुरू हुआ और उन्होंने अंग्रेजों का आदेश स्वीकार करने से इनकार कर दिया।उन्होंने बॉम्बे के गवर्नर #लॉर्ड_एल्फिंस्टोन को पत्र लिख कर शिवलिंगप्पा को उत्तराधिकारी मानने का अनुग्रह किया। पर उनकी प्रार्थना अस्वीकार कर दी गई। 


#अंग्रेजों की नीति 'डाक्ट्रिन ऑफ लैप्स' के तहत दत्तक पुत्रों को राज करने का अधिकार नहीं था। ऐसी स्थिति आने पर अंग्रेज उस राज्य को अपने साम्राज्य में मिला लेते थे। रानी चेन्नम्मा और अंग्रेजों के बीच हुए युद्ध में इस नीति की अहम भूमिका थी। १८५७ के आंदोलन में भी इस नीति की प्रमुख भूमिका थी और अंग्रेजों की इस नीति सहित विभिन्न नीतियों का विरोध करते हुए कई रजवाड़ों ने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया था। रानी चेन्नम्मा पहली महिलाओं में से थीं जिन्होंने अनावश्यक हस्तक्षेप और हड़प प्रणाली को लेकर अंग्रेजों का मुखर विरोध किया था।

#अक्टूबर 1824 को ब्रिटिश सेना के  400 बंदूकधारी और 20,000 सैनिक ने कित्तूर की घेराबंदी की। पर रानी चेन्नम्मा इस हमले के लिए पहले से तैयार थीं। 

अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध में रानी चेन्नम्मा ने अपूर्व शौर्य का प्रदर्शन किया फलस्वरूप ब्रिटिश सेना की करारी हार हुई और उन्हें  युद्ध छोड़कर भागना पड़ा। इसमें 2 अंग्रेज अधिकारियों को रानी ने  बंदी बना लिया था। बाद में अंग्रेजी हुकूमत को इस शर्त पर दोनों अधिकारी सौंपे गए कि वो अब कित्तूर पर आक्रमण नहीं करेंगे और न ही अधिकार में लेने की चेष्टा। 


#हालांकि ब्रिटिश हुकूमत ने वादाखिलाफी करते हुए कुछ समय बाद  दोबारा आधुनिक हथियारों और सैंकड़ों तोपों के साथ कित्तूर पर दोबारा चढ़ाई की। ये युद्ध कुछ महीनों तक खिंचा। किले के अंदर हर तरह के साधनों की आपूर्ति खत्म होने लगी थी।  इस बार रानी लंबे समय तक अंग्रेजी सेना का मुकाबला नहीं कर सकी। और रानी युद्ध हार गईं। उन्हें कैद कर 5 वर्ष तक #बेलहोंगल किले में रखा गया जहां उनकी 21फरवरी 1829  को उनकी मृत्यु हो गई।

इस तरह भारत के गौरवशाली इतिहास की एक महान सेनानी के जीवन का अंत हुआ। 

 

#रानी चेन्नम्मा के जीवन का अंत भले ही हो गया पर उनके आदर्श और इतिहास को जीवंत रखने के लिए #कर्नाटक के #कित्तूर तालुका में प्रतिवर्ष #कित्तूर_उत्सव मनाया जाता है। जो कि ब्रिटिश सेना से हुए पहली युद्ध में जीत प्राप्त करने के बाद से ही मनाने की परंपरा थी।  ★11सितम्बर 2007 को तत्कालीन राष्ट्रपति माननीय प्रतिभा पाटिल जी ने संसद परिसर में इनकी मूर्ति का अनावरण भी किया था। इस पर भारतीय डाक विभाग ने एक डाकटिकट भी जारी किया था। बैंगलोर से कोल्हापुर जाने वाली एक ट्रेन का नाम भी #चेन्नम्मा एक्सप्रेस रखा गया। इसके अलावा इनकी जीवनी पर बी. आर. पुन्ठुलू द्वारा निर्देशित एक #मूवी #कित्तूर_चेन्नमा भी आ चुकी है। 


#अफ़सोस होता है कि हमारे इतिहासकारों अपने पूर्वाग्रहों के चलते हम तक इन महान क्रान्ति वीरों /वीरांगनाओं के नाम तक भी न पहुंचने दिए। कुछ गलती हमारी भी कि हमने अपने इतिहास को सिर्फ पास होने के लिए एक विषय तक ही सीमित कर दिया। कभी खोज की होती तो शायद पहले जान जाते कि सिर्फ रानी लक्ष्मीबाई नहीं ,बल्कि उनसे पहले,और कई सामयिक वीरांगनाओं ने आजादी की लड़ाई में खुद को समर्पित कर हमारे लिए नींव बनाई।

गुरुवार, 17 नवंबर 2022

#गड़िया_लोहार

 



#समय प्रतिपल चल रहा है। इसका पहिया लगातार घूमता रहता। और इस पहिये के साथ हमारा जीवन भी गतिमान है। पर कुछ ऐसे भी है ,जिनका जीवन भी पहिये के साथ ही चलता,और चलते-चलते अपनी अंतिम परिणीति पाता। सिर्फ समय नहीं,भौतिक रूप से उनका जीवन पहिये के साथ चलता। ऐसे ही एक समुदाय का नाम है : #गड़िया_लोहार ।


#इनका जीवन ही यायावरी है। बैलगाड़ी ही जिनका घर हो, और ये यायावरी ,इनकी अपनी मातृभूमि के प्रति समर्पण और वचनबद्धता का द्योतक। इस समुदाय ने भूतकाल में जो वचन अपने राजा को दिया,उसे इनकी पीढ़ियां आज भी अनवरत जीती चली जा रही हैं। एक जगह न रुकने की प्रतिबध्दता लिए इनको हम अपने शहरों के आस -पास सड़क किनारे, या किसी मैदान में तम्बू के रूपमे आसरा लिए ,लोहे का पारंपरिक समान;बनाते और बेचते देखे ही होंगे। गाड़ियों (बैल) में लगातार चलते रहने के कारण ही इन्हें गढ़िया /गड़िया लोहार कहा जाने लगा । 


#इनके इतिहास की ओर नज़र डालें तो पता चलेगा ये भी क्षत्रिय हैं।मुग़ल शासन के दौरान जब अकबर के समक्ष कई रजवाड़े झुक चुके थे ,तब #महाराणा_प्रताप ने उनको चुनौती दी। #हल्दीघाटी  के युद्ध के बाद चित्तौड़ को हड़प लिटा गया । उस संघर्ष में में महाराणा के साथ एक निष्ठावान समुदाय ने दिया था,यही थे गड़िया लोहार। उन्होंने महाराणा को #वचन दिया था कि जब तक अपनी मातृभूमि को मुक्त नहीं करा लेंगे ,तब तक अपना स्थायी निवास नहीं बनाएंगे न ही मेवाड़ वापस लौटेंगे। हालांकि महाराणा प्रताप के पुत्र ने खुद अकबर की दासता स्वीकार कर ली,पर ये निष्ठावान समुदाय अपने संकल्पित इतिहास के चलते चलायमान रहे।

-------------------------------------------------------------------

#वेशभूषा एवं #रीतिरिवाज  :

पुरुष धोती व बंडी पहनते हैं,हालांकि वक़्त के साथ चलन अनुरूप कपड़े पहनने लगे हैं।  जबकि महिलाएं अब भी परम्परागत वेशभूषा में दिखती हैं। गले में चांदी का कड़ा, हाथों में भुजाओं तक कांच, लाख, सीप व तांबे की चूडि़यां, नाक में बड़ी सी नथ, कोई -कोई #बुलाक (नाक के बीच मे पहने जाने वाला आभूषण ) पहने हुए भी दिखती हैं। पांव में भारी-भारी चांदी के कड़े, कानों में पीतल या सीप की बड़ी-बड़ी बालियां पहनती हैं। 


सिर पर आठ-दस तरह की #चोटियां गूंथती हैं। जिसे #मिढियाँ  गुथना कहते  हैं ,इसे कौडि़यों,छोटे घुंघरूओं से सजाती हैं। महिलाएं घुटनों से नीचे तक का छींटदार  और बहुत घरवाले लहंगे पहनती हैं। कमर में कांचली पहनती हैं। ये अपने बदन पर प्राकृतिक फूल-पत्तियों ,और जानवरों की आकृतियों की चित्रकारी, विविध रंगों से  गोदना भी गुदवाती हैं। दरअसल, #गोदना इस जाति की पहचान का विशेष चिन्ह भी माना जाता है।


#इस जाति में कई अनोखी दृढ़ प्रतिज्ञाएं हैं, जैसे सिर पर टोपी नहीं पहनना, पलंग पर नहीं सोना, घर का मकान नहीं बनाना, चिराग नहीं जलाना, कुएं से पानी नहीं भरना, अंतर्जातीय विवाह नहीं करना, मृत्यु पर ज्यादा विलाप नहीं करना आदि।


 #इनके कबीले के मुखिया के हुक्म के कारण ये एक से अधिक कंघा नहीं रखते। कंघा टूटने पर उसे जमीन में दफन कर नया कंघा खरीदते हैं। नए कंघे को पहले कुलदेवी की तस्वीर के समक्ष रख पवित्र किया जाता है।

 

#इन लोगों में जब शादी होती है तो पति-पत्नी अपनी पहली मधुर रात गाड़ी में ही हंसी-खुशी गुजारते हैं तथा यह भी तय करते हैं कि वे अपनी भावी संतान को चलती बैलगाड़ी में ही जन्म देंगे, ताकि उसमें भी घुमक्कड़ संस्कार समा सकें।  इनके विवाह में मयूर पंख का बड़ा महत्व है। अग्नि के फेरे के उपरांत दुल्हन दूल्हे को एक मयूर पंख भेंट करती है। जिसका मतलब होता है- ‘इस सुंदर पंख की तरह अपनी नई जिंदगी का सफर प्रकृति के सुंदर स्थलों पर भ्रमण कर बिताएं।’


#ये लोग माचिस से कभी आग नहीं जलाते, बल्कि इनकी अंगीठी में सुलगते कोयले के कुछ टुकड़े हमेशा पड़े रहते हैं, ये उसी अंगीठी में नए कोयले झोंककर आग सुलगाते हैं। ऐसी लोक मान्यता है, नई आग जलाने से पुरखों की आत्माएं परेशान करने लगती हैं।  इनके परिवार में जब किसी शिशु का जन्म होता है तो उसके 21 दिन उपरांत अनोखी रस्म अदा की जाती है। उसकी पीठ पर लोहे की गर्म छड़ दागी जाती है, ताकि वह गाड़िया लोहार की संतान कहला सके ।

-----------------------------------------------–-----–-------------

#युद्ध के बाद भी अपनी वचन परम्परा को निभाते हुए इस समुदाय को उस वक़्त #युद्ध_अपराधी घोषित कर दिए थे। इसके कारण इन्हें हमेशा ऐसे स्थानों में रहने का आदेश दिया गया जो खुले हुए हों या कोतवाली के आस पास हों ,जहां से ये प्रशासन की नज़र में बने रहें और विरोध में किसी गतिविधि को अंजाम न दें सकें। 

#मध्यकाल के बाद अंग्रजों ने भी इनके प्रति यही सोच अपना ली।इस कारण इनमें रोष जन्मा ,और कुछ ने अपराध की राह पकड़ ली। दुर्भाग्यवश वश इस समुदाय को अपराधी भी मान लिया गया। और ये काल चक्र इनके जीवन की खुशियों और स्थायित्व के लिए काल बन गया। 


#बैलगाड़ी को ही घर बना कर चलते रहने वाले इस समाज की स्वतंत्रता को लेकर वचनबद्धता और समर्पण को हम सब ,ये समाज ,शासन ,प्रशासन कबका भुला चुका। लोहे की कारीगरी से अपनी आजीविका चलाने वाले इस समुदाय के हस्तकौशल को मशीनी क्षमता के कारण आज अपने जीवन निर्वाहन के लिए भी सँघर्ष करना पड़ रहा है। मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा कर पाने जितनी आय भी इनके लिए चुनौती बन गई है। चूंकि इनका स्थायी निवास नहीं है,इसलिए इनके पास न तो आधार कार्ड न ही वोटर आई डी है, इसके  कारण हमारे इतिहास के गौरव से जुड़े ये लोग एक तरह से हमारे देश के संवैधानिक नागरिक भी नहीं,जिसके चलते मूलभूत सुविधाओं से भी वंचित। 


#विडम्बना है ,स्वतंत्रता के लिए अपना जीवन ,अपना आसरा तक खो देने वाले लोग आज समाज से कट कर ,बेहद अभावों में अपना जीवन काटने को मजबूर। क्या ये परम्परा जो कभी इनका गौरव थी,आज उनका पेट पाल सकती। हमारी सरकार को चाहिए कि इनके पुनर्वास और भविष्य  के लिए  योजनाएं बनाए और लागू करें। ताकि जो गौरव इनके पुर्वजों ने इन्हें वचन के रूप में सौंपा ,वो इनके दिलों में अभिशाप बनकर न धधके। 

✍️#डॉ_मधूलिका_मिश्रा_त्रिपाठी

#ब्रह्मनाद

सबसे खूबसूरत प्रेम पत्र


 दुनिया के सबसे खूबसूरत प्रेम पत्रों में एक वो होता जो कभी पूरे तरह से लिखा ही न जा सका। ना वो उनको मिले ,जिनके लिए लिखे गए। मिले भी तो बिना इबारत के ......कुछ लिख कर मिटाई गई पंक्तियां , कुछ आसुओं से गीले हुए कागज के उभार..... और अन्य में सिर्फ तुम्हारी। 


नाम लिखने की भी कोशिश न की गई। क्योंकि जिसके लिए लिखा गया वो समझ जाता होगा कि ये सिर्फ तुम्हारी कौन है,जिसे अपने बारे में कुछ बोलने की भी जरूरत न पड़ी। 


लिखने वाली ने बहुत कोशिश की होगी ,बहुत कुछ लिखने की....बहुत कुछ बताने की.... बहुत कुछ पूछने की। पर अंत मे कुछ भी उसे ऐसा न लगा जो उसके मन को उस कागज में उतार सके। बहुत कुछ लिख कर सब कुछ मिटा दिया उसने और प्रेम के बस कुछ बेबस सी होकर आंसू की एक धार उस कागज तक पहुंच गई। हाँथ और अपने आँचल से पोछकर सुखाने पर भी अपने निशान उसी तरह छोड़ गई जैसे नदी के सूखने पर भी उसके होने के निशान बाकी रह जाते। 


कितना कुछ समाए रहते हैं ये बिना शब्दों के पत्र। जैसे सामने बैठ कर किसी को किताब की तरह पढ़ लेना।ऐसे ही अपने प्रिय के लिए उस पत्र में असीम भावनाएं सिमट जाती, बहुत सा अबोला......जो सामने वाला मन से पढ़ लेता।आंखों को बन्द करके उसकी एक एक इबारत को आत्मा में उतारते चला जाता।उस आसूं के सूखे निशान को अपनी उंगली के पोरों से सहलाकर जैसे अपनी प्रियतमा के आंसुओं को पोंछकर छूकर उन्हें मोती से भी कीमती बना देना..... और कुछ चंचलता महसूस कर कागज के मुडे किनारे को छूकर मुस्कुरा देना। सीने में रखा वो कोरा सा कागज जाने क्या कुछ न बयां कर जाता जो असीम प्रेम करने वाले जोड़े एक दूसरे से सुनना -बोलना चाहते। अकसर जब ये सामने होते तब भी इन्हें बोलने सुनने की जरूरत नहीं पड़ती।एक बंद होंठों से बोलता ,दूसरा उन होंठों की थिरकन और उन आंखों से मूक संवाद में रत रहता।


कभी कभी सोचती इन पत्र से मिटाए गए शब्द कहाँ गए होंगे.....? सम्भवतः वो तारे बन गए होंगे जो रात के मौन में अपने साथी की बातें नीरवता में भी सुनाने के लिए लगातार टिमटिमाते रहते..... जितना गहरा अंधकार , ये तारे रूपी शब्द उतनी ही चमक से बिखरने लगते आकाश के विस्तृत पट में। 

वास्तव में प्रेम में मौन ही मुखर होता..... बस समझे जाने की प्रत्याशा में।

#डॉ_मधूलिका_मिश्रा_त्रिपाठी

#ब्रह्मनाद 

#ज़िद्दी_ख़्वाहिशें

 


बूढ़े होते शरीर की ख़्वाहिशें बूढ़ी नहीं होती, उनमें और रवानी आ जाती है। उन तरसती चाहतों को जीने की एक ऐसी चाह ,जैसे सागर में उठती ऊंची लहर। उम्र का हवाला देकर शांत करने की कोशिश उसे स्प्रिंग जैसे उछाल देती। और वो फिर एक जिद्दी बच्चे सी आंख में आंख डाल उन्हें पूरा करने की चुनौती देने लगती। 


इन्हें उम्र समझ नहीं आती, इसने तो जैसे अब तक हुई सभी क्रांतियों का झंडा मिलाकर अपना नया झंडा बना लिया ,और उसे आसमान की ऊंचाई में खड़ा करा दिया।ताकि मैं देखना भी चाहूं तो धूप से मेरी आँखें बन्द ही रहें और ये अपनी मनमानियों को शरारत में बदलती रहे। 


रोकने पर .... एक रटा रटाया फिल्मी डायलॉग चिपका देती मुझे ही..... उम्र महज एक आंकड़ा है। जब तक दिल से महसूस न हो ,बुढापा नहीं आता। अब इसे कौन समझाए ,की दिल लाख जवान रहे ,शरीर अपना होना जता जाता है। 

आंखों के नीचे आते गहरी लकीरें, बालों में झांकती सफेदी, दौड़ने पर हांफ जाना , देर तक हील में चलने से पैरों का सूज जाना, सुई में धागा डालने के लिए देर तक प्रयास करना, अनियमित होती महावारी, यदा -कदा या अक्सर होने वाला मूड स्विंग , लड़कियों जैसे कपड़े पहनने पर बेडौल होकर उभरने वाले शरीर के हिस्से ,पीठ के ऊपरी हिस्से में आने वाली मोटी सलवटें, और अंत मे परिस्थितियों से हार मान कर उदासी में सिमट जाने वाला एक मन.....।


ख़्वाहिशें कभी नहीं समझ पाती एक 40 पार की औरत को। एक रस्साकसी सी चलती । शरारतों और समझदारी के बीच। एक बचपना जो सदा बंधन में रहा ,वो आवाज़ देता रहता को तू बड़ी है अब अपने लिए फैसले ले........ एक उम्र जो कहती है सुन बचपना मत करना कोई वरना लोग तुझ पर हंसेंगे। 


इस बीच ये बेपरवाह ,जिद्दी ख़्वाहिशें फिर जोर लेती ,छिप कर ही जी लेने को ढकेलती ये मनमर्जियां। 

मेरे कान में धीरे से फुसफुसाती हैं-------- #सुनो_दिया_बुझने_से_पहले एक बार जरूर शबाब में आकर जलता है।बुझने से पहले जी ले जरा......

बुधवार, 16 नवंबर 2022

क्षणिका


 

जिंदगी अपनी कटी

 





जिन्दगी अपनी कटी ,अक्सर तनावों में,

बोझ लगते हर दिन ,चुभन सी सांसों में।


आसमां मिला नहीं, ज़मीन भी तले नहीं,

ख़्वाब मुझको सालते,टूटन की आहों में।


घाव रहते हैं हरे, हर ज़ख्म बीबादी है,

ख़ामोशी चीखती रही,जिस्मों की बाज़ी में।


दामन में कांटे भरे मिले,चिथड़े अरमानों के,

रास्ते सब खो गए,खुद खड़े चौराहे में,


नजरों में सब धुंधला सा,बस आंसू है आंखों में,

कतरों में कटती जिंदगी,अब बिखरी है राखों में।


गिला किसी से है नहीं, बस एक टीस बाकी है,

क्यों मिली ये जिंदगी, जो खुशियों से बागी है।


#डॉ_मधूलिका

 #ब्रह्मनाद

रविवार, 6 नवंबर 2022

मैं_तुम्हारी_ख़्वाहिश_की_तारा




सुनो हर दीवाली जब तुम मुझे करीब पाना चाहते हो। मेरे नाम का एक दिया जला लिया करना। यकीन मानो मैं बुझते बुझते भी तुम्हारे आस पास रोशनी रखूंगी। और एक दिया और जलाना मेरे ही नाम का।उसको आकाशदीप बना कर छोड़ देना दूर गगन की यात्रा में। जीवन की ज्योत खत्म होने के बाद मैं किसी सितारे का रूप लेकर उसमे जगमगाऊंगी। हर रात मैं तुम्हें देखा करूँगी,और कभी किसी रोज जब दुनियावी रोशनी तुम्हें उकताने लगे तो कहीं किसी नदी या तालाब के किनारे चले आना। मैं झिलमिलाती हुई तुमसे खामोशी से बातें करूँगी। और इन अनगिनत तारों की छांव में दूंगी तुम्हें हर रात एक पुरसुकून नींद का वादा और जब वो पूरा होगा तो सुबह तुम्हें सूरज की सुनहरी किरण हल्के से छूकर तुम्हें जगाएँगी।हां तब मैं तुम्हें नजर न आऊंगी, पर मैं इस उजली रोशनी के घूंघट तले तब भी तुम्हें देखती रहूँगी,अनवरत,अनंत तक,मेरे अंत तक।
🌠#मैं_तुम्हारी_ख़्वाहिश_की_तारा

©®डॉ. मधूलिका मिश्रा त्रिपाठी
#ब्रह्मनाद


 

सोमवार, 24 अक्तूबर 2022

स्वीकार करो माँ


 #पापियों के रक्त की अनन्त क्षुधा,

सम्मुख प्रस्तुत है ,एक जीव धरा,

देह है मेरी पाप से खण्डित ,

आत्मा बोध; निर्लज्ज और गलित।


हर एक बूंद में कई रक्तबीज है,

एक मरे तो उगते कई भीत से,

मैं अपने कर्म से हारी हूँ,

जग में मैं बोझ एक भारी हूँ।


ये कराल खप्पर मुंड धारी,

भक्षण हेतु त्वम आह्वायामि,

रक्त से मेरे पात्र भरो ,

क्षुधा को अपनी शांत करो तुम।


कर मुझ पापन के,

  रक्त के स्न्नान,

कर दो मेरी देह,

 धूनी समान।


दूर करो इस देह धर्म से,

जीवन को इस कर्म खण्ड से,

संग लो अपने ,देह तत्व में ,

ले लो आत्मा ,आत्म शरण में।


🙏🏻🙏🏻🚩🚩🙏🏻🙏🏻


स्वीकार करो माँ ....

#डॉ_मधूलिका_मिश्रा_त्रिपाठी

#ब्रह्मनाद

शुक्रवार, 21 अक्तूबर 2022

तेरा तुझको अर्पण


 कितनी व्याकुल हूँ , क्या आप अनुभव कर पाए हो। संभवत: हां, तब भी इतनी निःशब्दता ???? 

जानती हूँ ; बहुत मज़बूत हो । यूँ ही कृष्ण नहीं बोलती आपको। वो छलिया जो सबमें मोह जगाकर खुद योगीश्वर हो गया। 

पर उनका क्या दोष ना जो उससे प्रेम किये, उसके नेह बन्धन में रहे। उन्हें क्यों रुलाया ,खुद का समीप्य देकर।  यही सत्य है की ईश्वर सदा ईश्वर ही होता। वो मानवीय भाव जगाता ,ताकि मानव ;मानव रह सके, पर उन्हें योगी होना नहीं सिखाता ,ताकि वो बंधे रहें संसार से। 

प्रेम मार्ग कठिन है ,शायद इसीलिए कोई स्री राधा नहीं होना चाहती। सब खुद को मीरा बनाती ,क्योंकि मीरा बस बिना अपेक्षा के समर्पण का नाम है। मीरा तो मूर्ति में कृष्ण को जी ली। राधा साथ होकर तड़पी। 

अच्छा तो हम  उपालंभ क्यों दे रहे । अगर अपेक्षा हीन हुए तो ,तो निःशब्द सब क्यों नहीं देखते और स्वीकार करते।

क्योंकि भक्ति एकतरफा मार्ग है , एकात्म कर्म। भगवान भक्त की सुध रखे न रखे ,भक्त तो अपनी साधना करता। ठीक वैसे ही जैसे घर के मंदिर में रखी बाल गोपाल की मूर्ति की भूख , शयन ,शीत की फिक्र एक मातृभाव से करते हैं भक्त । जबकि ये भी ज्ञात कि अगर वो ईश्वर तो इनकी फिकर करने की जरूरत हम क्षुद्र मानवों के बस की बात नहीं। पर भक्ति ऐसी ही होगी ।

स्वयं की अनुभूति और विवेक अनुसार।

 प्रभु आप ईश्वर रहें। मैं मीरा का प्रारब्ध जी लूंगी। अपेक्षा रहित भक्ति कर सकूंगी तो सम्भवत: आपका देवत्व भी संतुष्ट रहेगा और उसकी सीमाओं का अतिक्रमण भी बच जाएगा। पर अपनी भक्ति से मुझे रोकने का प्रयास ना करियेगा। क्योंकि ये मेरी आत्मिक कमज़ोरी पर ,मेरी क्षुद्र अपेक्षाओं पर, मेरे जीर्ण इंसानी भाव पर मुझे विजय दिलाती है , भगवान के प्रति मेरा समर्पण ,और समरूप संघर्ष । जिसके साक्षी सिर्फ आप हो मेरे कृष्ण ।

क्षमा करना ,ये अपेक्षा नहीं ,बस समर्पित भाव था। जो आपको मानव रूप में बांध रहा था। मेरी सोच का स्तर संकीर्ण ही सही पर उसमे सिर्फ आपके ही भाव प्रवाह में होते। 

बोलना जरूरी था क्योंकि भाव ही तो निर्माल्य है और निर्मल भी।

तेरा तुझको अर्पण।

सोमवार, 3 अक्तूबर 2022

प्रेम से अपेक्षा की उपेक्षा करो

 

उम्मीद का जन्म प्रेम से होता है, जबकि प्रेम की मृत्यु का कारण अधिकांशत : उम्मीद ही होती है। 


अक्सर हम जब जीवन में हर तरफ से निराश होते हैं ,अपना जीवन व्यर्थ लगता ,कोई अपना महसूस नहीं होता,हर कदम असफलता ....और हम स्वयं को इस असफलता से उबार नहीं पाते। इस स्थिति में अगर प्रेम एक इंसान के रूप में आकर हमें थाम लेता। जो जीवन व्यर्थ लगता था ,अब उससे मोह हो जाता। वो हमें अपनी असफलता को पचा कर सफलता के लिए विश्वास दिलाने लगता। हम उत्साह से भर जाते हैं।लगता है कोई है जिसे हमारे होने ,न होने,दुखी होने,खुश होने का फर्क पड़ता है। 

मीलों दूर होने पर भी हमारे दिलों दिमाग मे उसकी ही सोच हर वक़्त चलती। यहां तक तो सब ठीक होता...... पर जिस प्रेम ने हमें वापस उम्मीद दी थी,अब हम उस प्रेम से उम्मीद लगाने लगते हैं। ये उम्मीदें अपेक्षाओं को जन्म देती, अपेक्षा अधिकार की मांग रखती। और यहीं से हम प्रेम को बंधन देने लगते। कल तक जो मुक्त रूप से अबाध हमारे साथ था ,धीरे धीरे हम उसे कैद करने लगते अपेक्षा में,उम्मीदों के साथ। और तब शुरू  होता वो दौर जब हम हमारे प्रेम से टूटने लगते। क्योंकि जब शुरुआत थी ,तब सिर्फ प्रेम था ,सब खूबसूरत था। पर ज्यों ज्यों हम अपेक्षाएं करते ,उनके पूर्ण होने और टूटने की संभावना लगभग बराबर होती। 

जब अपेक्षा टूटती तब हम सोचने लगते की शायद सामने वाले का प्रेम कम हो गया। हम तब उसकी परिस्थितियों की बजाय अपनी अपेक्षाओं के वश हो जाते। 

रूठना मानने जैसे प्यारे एहसास से अधिक शंका घर करने लगती, मान मनउअल का दौर खत्म होने लगता और और दर्प सरल भाषा मे ईगो बीच आने लगता। प्रेम के बीच खाइयां पड़ने लगती, और धीरे धीरे विवाद और अबोला और अंत मे दो दिल प्रेम को कोसते हुए अलग हो जाते....।


वास्तव में अपेक्षा किसी के लिए बेड़ी बन सकता। हम प्रेम को बदल देते हैं पारस्परिक व्यवहार में । अपने अधिकार को एकाधिकार बना लेने की जद्दोजहद न फिर प्रेम बाकी रहने देता न ही उम्मीद।और अंततः प्रेम दम तोड़ देता।


अगर वाकई हमें अपने प्रेम को प्रेम रहने देना है तो कोशिश यही रहनी चाहिए कि जिस प्रेम ने आपको उम्मीद दी थी, आप उससे उम्मीद रूपी अपेक्षा से मुक्त रखें। 

अगर प्रेम विशुद्ध है  तो हर स्थिति में आपके साथ होगा ,और अगर नहीं तो अपेक्षा की बेड़ी उसे और तेज़ी से आपसे दूर कर देती।

परखने से अक्सर रिश्ते कमजोर होते हैं। तो बिना उम्मीद के प्रेम को जियें। 

#ब्रह्मनाद

लेखन प्रकृति है

 #लेखन_प्रकृति_है 

लेखन एक ऐसा सृजन है ,जो विशुद्ध रूप से प्रकृति होता है। इसे मूल प्रवृत्ति भी मान सकते और रूपक भी। जो वास्तविक लेखक होता उसे सिर्फ लिखने की भावना होती।जब भावना अपने प्रमाद में हों। जब कलम खुद ब खुद थिरकने लगे, तब शब्द जेहन से सीधे कागज़ में उतरने को मचलने लगते। लेखन का मूल भावना होती। जो लोगों के कहने पर ,लोकप्रियता के लिए ,पसन्द किये जाने के लिए ,लाइक या कमेंट की भूख के लिए लिखते वो वास्तव में लेखक नहीं होते..... वो तो व्यापारी होते। जो डिमांड ,सप्लाई और प्रॉफिट के सिद्धांत पर कलम का व्यापार करते। 

इस व्यापार से हटकर कुछ लिखते स्वान्त्य सुखाय। जब तक उनके अंदर का ज्वार उन्हें मजबूर न करे ,तब तक वो कमल नहीं उठाते। उठाते भी तो जरूरी नहीं व्व अपना लेखन दूसरों के सामने रखें। वो तो अपने लेखन को वैसे ही पोषते जैसे किसी नवजात शिशु को काला टीका लगा कर खुद निहारकर मुस्कुराना। उस शिशु को हम लोगों को दिखाने का प्रयास नहीं करते। पर उस पर कैसी नजर पड़ रही उसका प्रभाव हमारे मन पर भी पड़ता।

लेखन एक चांद की तरह भी है, जो आकाश में अपनी ज्योत्स्ना के लिए उगता। क्या फर्क पड़ता कोई उसे पूरे वक़्त निहार रहा ,या कोई उसकी पूजा कर रहा ,या कोई उसे रात्रि का संकेत मानकर सोने चला जाता। कोई उसे प्रेमिका या प्रेमी के रूपक में निहारता। किसी के लिए विरह ,किसी के लिए मिलन का साक्षी बनाया जाता। कुछ गुनाह भी उसी के तले होते। 

चांद तो बस चांद है।कोई उसे क्या समझे, क्या माने,कोई देखे न देखे , इससे चांद फर्क नहीं पड़ता। इस चांद के उजले और स्याह पक्ष भी होते। उजले में जहां लोग उसे देखते ,पूजते,वहीं स्याह पक्ष में उससे पूरे बेखबर हो जाते। जैसे एक लेखक की ऐसी भावना जो वो लोगों के सामने कभी नहीं लाना चाहता।तब अपने ही एक सुरक्षित दायरे में बस खुद के प्रमाद को अभिव्यक्ति देता। उसके दुख ,तकलीफ बस अपने तक सीमित रख। 

ठीक वैसे जैसे चांद की रोशनी में दुनिया खिल जाती,पर अंधेरा सिर्फ व्व अपने पास रखता। उसकी रोशनी सर किसे क्या महसूस हो रहा ,क्या उपयोग हो रहा ,इससे भी चांद निर्लिप्त रहता है।।


लेखन को मिट्टी भी समझ सकते।जिसमें भावनाओं की फसलें बोई जाती हैं। हर मौसम की अलग फसल ,वैसे ही मनोस्थिति अनुसार भाव अनुरूप लेखन भी भिन्न। 


किसी अन्य उदाहरण की बात करें तो लेखन फूल की खुश्बू की तरह भी है। हर एक फूल की एक अलग खुश्बू.... किसी को मादक अच्छी लगती,किसी को सात्विक ,किसी को तीखी ,किसी को हल्की। पर पसन्द करने वाले के लिए फूल अपनी ख़ुशबू नहीं बदल देते।लेखन का कलेवर भी वही होता। असली लेखक पसन्द करने वालों के हिसाब से नहीं बल्कि अपनी नैसर्गिकता से खुश्बू लिए लिखता। किसी को क्या पसंद इससे उसे फर्क नहीं। 


लेखक अपने आप में एक स्वतंत्रता को जीता। जैसे प्रकृति स्वयं में पूर्ण और स्वतंत्र होती। उसके संसाधन को कौन किस तरफ से उपभोग करता इससे उसे फर्क नहीं पड़ता। उसका तो उद्देश्य परिपूर्ण रहना है। 

लेखन अपनी सहज स्थिति में  उत्कृष्ट सृजन होता है। जैसे स्वयं में एक ब्रम्हांड रच देना। जिसमे जीवन भी होता,मृत्यु भी, भय भी, भूख भी ,खुशी भी। अपेक्षा के बोझ तले हुए लेखन की यही सम्पूर्णता खत्म हो जाती ,क्योंकि उसे विशिष्ट भाव मे ढाला जाता। ऐसे में उसका विस्तार सिमट जाता ,सृजन तब व्यापार बन अपनी मूल प्रकृति को ही खो देता।और इस स्थिति में लेखक का लेखन -लेखन न होकर मजदूरी और मजबूरी बन जाता। 

और प्रकृति कभी मजबूर नहीं होती।उसकी ताकत उसकी नैसर्गिकता ही होती। और जो नैसर्गिक नहीं  वो बदलाव के साथ धीरे धीरे खत्म हो जाती।


गुरुवार, 28 जुलाई 2022

कुछ छोटी सी..... पर बहुत बड़ी खुशियां

 


PTM इसकी नोटिस आते ही मेरा दिमाग खराब हो जाता था। हर बार स्कूल जा कर बच्चे के लिए अपेक्षानुरूप परिणाम ना पाना कितना तकलीफ दे होता है, इस बार भी कहीं बेटी ने एग्जाम में कम मार्क्स ना लाएं हों; इस सोच में डूबी सुबह से थोड़ा चिड़चिड़ी सी हो चली थी ।यूं तो बाकी एक्टिविटीज में अच्छी है पर स्कूल में लिखने में थोड़ा गड़बड़ी करती है। थोड़ा विचलित मनोस्थिति से मैं स्कूल पहुंची ,,अपेक्षा के उलट रिजल्ट काफी अच्छा था ।खुशी मेरे चेहरे पर पसरी हुई थी।
लौटते वक्त सीढ़ियों पर एक मां अपने बच्चे को बेतहाशा प्यार जताते हुए दिखे बेहद खुश थी ।मुझे लगा शायद इस एग्जाम में टॉप किया होगा इनका बेटा। मैंने यूं ही हाथ बढ़ा दिया और उसे कांग्रेचुलेशन बोल दिया उसकी आंखों और मुस्कान में गर्व और संतुष्टि दिख रही थी ।मैंने कहा शायद आपके बच्चे ने टॉप किया है ,मेरी ओर से बहुत-बहुत बधाई
उसका जवाब था - नो मैम क्लास में तो नहीं किया पर अपनी कमजोरियों को अब वह जीत रहा है ।मैं हैरान सी हो गई ;मैंने पूछा इसका मतलब !!!!!!जवाब में उसने रिजल्ट आगे कर दिया ।यह क्या औसत दर्जे का रिजल्ट किसी में   B1, किसी  में B2, किसी में  B1 ,मुश्किल से किसी में A1 ग्रेड .......... मुझे थोड़ा अजीब लगा कि इस रिजल्ट के साथ इतनी खुशी । पर मैंने खुद को शिष्टाचार याद दिलाए रखते हुए कहा ; आप जैसे पेरेंट आजकल कम ही मिलते हैं जो बच्चे पर किसी भी बात का बोझ नहीं डालते और उसकी छोटी सी छोटी सफलता को भी बहुत बड़ी उपलब्धि मानकर खुश होते हैं ।
बदले में उसने जो जवाब दिया उसे सुनकर मैं स्तब्ध हो गई थी। उसने कहा मैम.... मेरे बच्चे का हर एक कदम ,हर एक नया शब्द मेरे लिए माइलस्टोन है ।मेरे चेहरे पर अब प्रश्न का भाव और गहरा हो गया था ,उसे देखकर उसने मुस्कुराते हुए बताया मैं मेरे बेटे को ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर है। यह बोलता नहीं था...... सोशल भी नहीं था....... कमांड को सिर्फ कभी-कभी ही समझता था या विजुअल समझाने पर ही कमांड लेता था ।शुरुआत में इसके 2 साल की एक्टिविटी शीट में सिर्फ नेवर  या कुछ कॉलम में सम -टाइम भी लिखे रहते थे । असिसमेन्ट के नाम पर मुझे यही दो शब्द मिलते थे ।आज वह बच्चा किसी में भी B वन या टू, कुछ में A ला रहा है तो मेरे लिए तो वह दुनिया का टॉपर बच्चा है। उसने लगातार अपनी अक्षमता को हराया है ,वह खुद से लड़कर जीतना सीख रहा मैम । मेरे बेटे ने नेवर से ....ऑलवेज और .........मोस्ट ऑफ द टाइम तक का जो सफर किया है ,वह मेरे लिए दुनिया का सबसे बड़ा अचीवमेंट है । यह शायद आप नहीं समझेंगी कि मैं  क्यों इतनी खुश???????? क्योंकि आप तो ऐसे ग्रेड की दौड़ में आगे लाकर भी संतुष्ट नहीं होंगी । अब नॉर्मल लोग बच्चों को सिर्फ मार्क्स और एक्टिविटी की मशीन बनाते हैं..... अंधी दौड़ में रखते हैं और उसके बाद भी आपको संतुष्टि नहीं होती।  सोचिए जरा जब मेरा बच्चा बोलता नहीं था ,तब उसका पहला शब्द क्या मेरे लिए दुनिया के अनमोल खजाने से  क्या कम रहा होगा????????  एक नॉर्मल ना माने जाने वाले बच्चे का यह सफर मुझे किस हद तक संतुष्टि देता रहा होगा .......आपको लगता होगा सिर्फ एक शब्द ही तो बोला पर मेरे लिए वह उसकी बोल ना सकने की क्षमता और उसके एक्सप्रेस न कर पाने की क्षमता पर जीत थी ।

हर एक नया शब्द मुझे शब्दकोश से भी बड़ा लगता था..... उसकी एक चीज, की गई हर एक्टिविटी मेरे लिए किसी मैडल से कम नहीं थी । उसने खुद के अब नॉर्मल या स्पेशल चाइल्ड के लेवल के हर्डल को हराने के लिए जो भी कदम बढ़ाए वह मेरे लिए इस दुनिया की सबसे बड़ी खुशी है । वह दौड़ में पहला ना आए मुझे चलेगा पर उसे बस खुद पर यकीन तो रहे कि उसे चलते बनता है।  वह भाषण या वाद-विवाद में भाग ना ले चलेगा ......पर अपनी भूख, अपना दर्द, अपनी चोट मुझे बोलकर तो समझा पाए ।
मैम मेरे बेटे ने जीरो से शुरुआत की है वह किसी और के टेस्ट पेपर को नहीं ,पर अपनी जिंदगी बिना किसी मदद के जी सके ......यही सबसे ऊंचा शिखर होगा और यही उसका लाइफ़ मोटिव  भी।  खैर मैम आप नहीं समझोगे थैंक यू फ़ॉर   फोर योर विशेस एंड ब्लेसिंग कहकर  वह अपने बच्चे को गोद में लेकर उसी मुस्कान के साथ लाड़ जताते हुए चली गई। ना जाने कितनी बार यह बोलकर कि आप नहीं समझोगी .........वह मुझे सब समझा  गई।
मुझे याद आ गया मेरी बेटी का बचपन जब उसने पहली बार मुझे पहचाना था ,जब उसने पहली बार मुझे देख कर मुस्कुराया था, जबकि हम बड़े तो झूठी मुस्कान में माहिर होते हैं ,पहली बार उसका बोला गया शब्द ,पहली बार उसका किया गया मां का संबोधन ,पहली बार उसके बैठने का प्रयास, पहली बार उसका कदम बढ़ाना और डगमगा कर गिर जाना ,पहला निवाला जो उसने अपने हाथों से खाया, वह पहली बार स्कूल में मेरे बिना रोते हुए बिताना वह भी अपरिचित चेहरों के बीच में। पहली बार स्कूल ड्रेस और स्कूल बैग का थामना ,पहली बार पेंसिल से कुछ बनाने की कोशिश करना, मेरे बिना स्कूल पिकनिक जाना ,यहां तक कि मेरी मदद के बिना मेरे बिना किसी इंस्ट्रक्शन के पोटी शुशु जाना ......यह हंसी का विषय नहीं है ।महसूस करने का विषय है कि हमारे बच्चे की छोटी-छोटी बातें हमें कितनी खुशी दे जाते हैं ।वह सारे प्रयास जो उसने अपने जीवन क्रम में अपने पहले माइलस्टोन के रूप में शुरू किए और स्थापित किए वाकई उस पहले की खुशी....सफलता के सर्वोच्च शिखर और चरम सुख- अनुभूति से कम नहीं होते।
  खुशियां वाकई प्रतियोगिता में सफलता हासिल करने से नहीं मिलती है ,बल्कि खुद से खुद को जीतने के एहसास में महसूस की जा सकती है। आत्म संतुष्टि की संतृप्ति क्या होती है , वह मां मुझे समझा गई.... जिसके बेटे का हर एक कदम उसके लिए एक प्रतिमान था। अब अगली बार किसी की छोटी खुशियों में खुश होते देखिएगा तो उसकी तुलना मत करिएगा ........ उसके संतुष्टि को समझने की कोशिश करिएगा।
  #डॉ_मधूलिका
  #ब्रह्मनाद

गुरुवार, 21 जुलाई 2022

प्रेम :शब्द या अनुभूति

 



प्रेम शब्द एक ,किन्तु कितनी भिन्न भिन्न अनुभूतियां । अभी इस शब्द को पढ़ने वाले प्रत्येक जेहन में इसको पढ़ते ही एक अलग भाव उत्पन्न हुआ होगा। आश्चर्य तो यह है कि; किसी एक कि परिभाषा,दूसरे के लिए सटीक ना होगी। समस्त चर- अचर जगत में जितने जीव, उतनी परिभाषाएं ,उतने अनुभव ....।


प्रश्न आता है,प्रेम है क्या???? किसी को पाना,खुद को खो देना,कोई प्यारा सा रूमानी एहसास, कोई टीस,कोई खुशनुमा या कोई कड़वी चुभती याद, कोई एक रिश्ता.....या रिश्ते का एहसास....। इतना आसान नहीं है,प्रेम को परिभाषित करना .... सूक्ष्म भावों का अपरिमित विस्तार ;प्रेम।

कितना अलग सा शब्द है,...जिसमें तरंग है ,उमंग है, एक मदहोशी ,और कभी-कभी कोई दुखद प्रसंग भी है। क्या है प्रेम...... जिसने इतने सारे कवियों को , इतने सारे लेखकों को , प्रबुद्ध जनों ...सामान्य साधारण जनों को खुद से बांध लिया । कई फकीरों ने प्रेम में ही अपनी जिंदगी समर्पित कर दी। 


कभी सोचा है .....वाकई यह एक प्रेम कितना विशाल भाव है । लगभग हर धर्म में प्रेम के लिए कई परिभाषाएं हैं, कितने प्रतिमान तय किये गए।  मान्यता भी यही है की ;प्रेम सर्वोत्तम, सर्वोत्कृष्ट सत्ता है । जो प्रेम करता है ,वह परमात्मा पा लेता है । 

मीरा ने जहर पिया, राधा ने खुद में कृष्ण को जिया, सूर ने बिन देखे ही उसका स्वरूप रच लिया ।तुलसी ने अपना जीवन ही उसको दे दिया।  रहीम या कबीर या खुसरो को भी क्यों छोड़ रहे हैं ....उन्होंने भी तो कहा था कि प्रभु संसार के हर प्राणी से प्रेम करता है,उसके लिए आडम्बर की जरूरत नही। 


 प्रेम कहते ही ,आपके दिमाग में पहला शब्द क्या आता है ???पहली छवि ????शायद बहुत सारी छवियां उभरेंगी... आपकी मां - पिता ,आपका परिवार ,आपके दोस्त ,आपकी कला/विधा, और एक कोई खास चेहरा... जो कईयों के लिए अब भी अपना होगा ,कइयों ने उसे खो ही दिया होगा । 

प्रेम के संबंध में जो भी हम सुनते हैं वो सिर्फ किस्से कहानियां तो नहीं होती है ना । इसका एक पहलू वह होता है जो सत्य ही होता है हां यह अलग बात है कि प्रेम को लेकर कल्पनाएं गढी जाती हैं ,और जब तक हम प्रेम की वास्तविक परिभाषा से परिचित नहीं होते हैं ,तब तक  हम महसूस  भी नही करते हैं ;कि प्रेम जैसी कोई चीज होती है या नहीं । 


प्रेम को समझना जितना आसान है ,उतना ही कठिन है। इसे हम सिर्फ एक भाव में नहीं बन सकते । वास्तव में प्रेम की अनुभूति हमें हमारे जन्म के पूर्व ही हो जाती हैं । जब हमारी मां हमें बिन देखे  स्वयं में महसूस कर हम से प्रेम करने लगती हैं  ,खुद से कहीं ज्यादा........ उसे हमें देखने की जरूरत नहीं होती है ,उसे हमें सुनने की जरूरत नहीं होती है ।वह सिर्फ अनुभूति करती है ।  जन्म लेते ही हमें प्रेम मिलता है हमारी मां का निश्छल प्रेम ,उसके बाद हमारे परिवार का ,जो कुछ हद तक अपेक्षाओं से होकर गुजरता है ,उसके बाद हमारे दोस्त जो हमारी समान मानसिकता के साथ हमें प्रेम करते हैं, हमारा कला का प्रेम ,प्रकृति का प्रेम ,यह भी तो प्रेम का ही एक रूप है । और इनसे अलग एक और प्रेम ,ईश्वर से। जिसके लिए भौतिक साधनों की ,उपस्थित होने की जरूरत नही। क्योंकि वो तर्क नही विश्वास से पनपता ,आस्था से फलता- फूलता। 


 अगर आपसे पूछा जाए कि आपके जीवन की सबसे सुंदरतम क्षण क्या थे???? तो निश्चित तौर पर आप कहोगे, वह क्षण जिसमें हम प्रेम में थे .....। प्रेम में तो आप सैद्धांतिक रूप से हर वक्त  होते हो । #थे जैसा शब्द यहां पर अप्रासंगिक है ....।

आप खुद से भी प्रेम कर सकते हो ,आप दूसरों से भी प्रेम कर सकते हो ....वास्तव में जब हम प्रेम में होते हैं तो हम सभी से प्रेम करते हैं   । प्रेम के ही कुछ रुप हमें इश्क ,प्यार ,मोहब्बत के रूप में मिलते हैं ।हो सकता है उनका साथ हमें नसीब ना हो ,पर साथ ना होने का मतलब इस भावना के खत्म हो जाने से तो नहीं होता ना .... उसकी अनुभूति तो मिट नहीं जाती ना,भले ही वो क्षणिक रहा हो। पर हमारे जिंदगी के एक वक्त में उसके हस्ताक्षर दर्ज होते हैं ना.....।


प्रेम की अनुभूति की बात करेंगे तो ,वास्तव में प्रेम #एकत्व/#एकात्म का भाव है ।आपने कभी महसूस किया है जिसे आप प्रेम करते हैं ...यदि वह आपकी भौतिक या मानसिक पहुंच से दूर हो तो आप की स्थिति क्या होती है ??जी हम विचार शून्य हो जाते हैं। स्वयं की परिस्थितियों से परे हो जाते हैं ,हमारी मानसिकता, हमारे कार्यकलाप उस वक्त हमारे सापेक्ष सिर्फ  शून्य रहते हैं । एक यंत्रवत काम करने वाला शरीर बन जाते हैं हम ।दिमाग में एक अनंत शून्य का घूर्णन केंद्र होता है । 


वास्तव में प्रेम का उत्तर इसी में छुपा हुआ है । जब आप प्रेम महसूस करते हो ,जब आप किसी विधा से प्रेम करते हो, किसी व्यक्ति से प्रेम करते हो ,अपने परिवेश से प्रेम करते हो तो, उस समय उस विशेष "#संज्ञा को खुद से ज्यादा महत्व देने लगते हो।  आप अपने #स्व को खत्म कर लेते हो ,आप अपने में से  #अहम् को खत्म कर लेते हो । यहां अहम्  का मतलब घमंड नहीं है , इसका मतलब है ,खुद की अनुभूति को स्वाहा करना। स्व का महात्म्य त्याग।  जब आप प्रेम में होते हो ,तब आप आप नहीं होते हो ,धीरे धीरे आप पर वह व्यक्तित्व हावी होने लगता है ,वह विधा हावी होने लगती है ,जिससे आप प्रेम करते हो।  इसीलिए इसे एकात्म का भाव बोलते हैं ...क्योंकि इसमें अंत में सिर्फ एक ही बचता है ....यदि आप हो तो प्रेम नहीं है ,यदि आप प्रेम में हो तो आप नहीं हो ।

 प्रेम करने वाला व्यक्ति हमेशा एक स्रोत की तरह होता है ,जिससे एक ऊर्जा का प्रवाह होता है । उसके आसपास के परिवेश में ,उसके आसपास के लोगों में । यदि आप प्रेम कर रहे हो तो, वास्तव में आप सब से प्रेम कर सकने की विशालता है। प्रेम ,आप में सार्वभौमिक अर्थ को लेकर आता है । यदि आप सिर्फ एक के लिए प्रेम महसूस करते हो तो आप केंद्रित हो जाते हो और इसका अर्थ होता है ,स्वयं को परस्पर भाव मे स्थानांतरित कर जाना। पर जब यही प्रेम व्यापक अर्थों में बदलता तो सर्वजन हिताय का भाव उपजता।  बिल्कुल शून्य हो जाना, बिल्कुल भावनात्मक मौन हो जाना सिर्फ इसी क्षण में होता है ........।

प्रेम का आत्मिक भाव का ही क्षण वह होता है ,जब आप में अहंकार बिल्कुल नहीं होता है ।जब आप उस व्यक्ति ,व्यक्तित्व या विधा के समक्ष बिल्कुल नत होते हुए ;स्वयं को भूल कर आप प्रेम को पाते हो ।और यही प्रेम होता जब वैचारिक शून्यता की स्थिति में हम अपने अहम को पार कर जाते.....अपने हमसे बढ़कर... मैं से  हम हो जाते। 


प्रेम वास्तव में एक साधना का रूप है ,प्रेम तपस्या है।  खुद से बढ़कर ,खुद को त्याग कर जीना ही प्रेम है ,और जब तक हम एकात्म और शून्यता को आत्मसात नहीं करते ;प्रेम हमारे लिए पीड़ा  रहेगा।  जब तक हम खुद को भूलेंगे नहीं ,हम अहंकारी रहेंगे और ,अहंकार से प्रेम नहीं पाया जा सकता है। 

 प्रेम का उदाहरण समझना हो कृष्ण से बेहतर कौन होगा?? उन्होंने हर रूप का प्रेम जिया है ,नंदबाबा का प्रेम ....जिन्होंने अपनी पुत्री का त्याग किया । कृष्ण के प्रेम के लिए यशोदा का प्रेम जिसने उसका पालन पोषण किया अपना ही पुत्र माना। उसके लिए प्रेम की परिभाषाएं ;स्वयं से ऊपर थी । स्वयं की संतान ना होते हुए भी स्वयं की संतान से भी ज्यादा मान्यता ,ज्यादा प्रेम उसने कृष्ण को दिया है । सुदामा का प्रेम हो ,या फिर उद्धव का, या फिर राधा या ,और  उस काल का सार ही अगर निकाला जाए तो वह सिर्फ प्रेम पर ही आधारित होगा क्योंकि वहां पर कृष्ण के अलावा आपको कोई नहीं मिलेगा । कृष्ण ने खुद को सबमे अवस्थित कर सम्पूर्ण अर्थों को खुद में ढाल दिया था। 

किसी सूफी फकीर ने कहा है "तुझे हरजाई की बाहों में और प्रेम पर ईद की राहों में मैं सब कुछ हार बैठी हूं "  .....हारने का अर्थ यहां पर स्वार्थ की सत्ता को मात देने से हैं ,हारने का अर्थ भौतिक चीजों से नहीं है ,एक वैराग्य है । जो आप स्वयं से त्याग करते हो।   अपने अंदर की स्व की पहचान  का ,अपने दुर्गुणों का, अपने अहंकार का त्याग करना प्रेम है।  यह साधारण व्यक्ति नहीं जान पाता ,क्योंकि वह प्रेम को सिर्फ एक ही भाव में जीता है ...वह स्व तत्व याद नहीं कर पाता ,जिसकी वजह से उसको पीड़ा की अनुभूति होती है ,यहां पर वह प्रेम नहीं करता है ,वह व्यापार करता है । 

एक गाना सुना है ना #रांझा_रांझा करदी वे मैं आपे रांझा होई * ,

 यह है प्रेम की अनुभूति । जिससे आप प्रेम करो उसमें खो जाओ, उसमें डूब जाओ ,खुद को भूल जाओ ,बदले में आप उससे कुछ नहीं चाहोगे । जब तक कृष्ण मीरा ना हुए ,जब तक कृष्ण राधा ना हुए, जब तक कृष्ण कुब्जा ना हुए ,तब तक प्रेम की अनुभूति ना हुई।  जिस दिन यह सब धारा में समा गए, प्रेमधारा में समा गए, उस दिन से प्रेम की शुरुआत हुई । तो प्रेम का अर्थ है स्वयं को खोकर शून्य हो जाना... और शून्य की अनंतता में खो जाना । 

जो सदैव आप में होता है ,जिससे आप भी परे नहीं जा पाते । जिसकी भौतिक उपस्थिति -अनुपस्थिति आपके एकात्म भाव से अलग नहीं कर पाती है । 

ऐसा है प्रेम का स्वरूप ....उतना ही विशाल ......उतना ही निर्मल ,उतना ही स्थायी  ......और उतना विराट जितना कि यह ब्रम्हाण्ड, एकात्म के शून्य से पूर्ण अनंत। 


ॐ पूर्णमद: पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्येत 

#डॉ_मधूलिका 

#ब्रह्मनाद

गुरुवार, 14 जुलाई 2022

नीलकण्ठ


 #तुम्हारे_लिए - #नीलकंठ


पूर्ण मौन को समझना सरल है। क्योंकि तब हमें शब्दों के अर्थों को समझने का प्रयास नहीं कर पड़ता। पर जब शब्दों के बीच मौन जगह बनाए,तो मस्तिष्क अक्सर उलझ कर रह जाता। कहे गए शब्द को सही माने...... या उसके बीच जो अनकहा रह गए ,उसके अर्थ निकाले। 

कठिन होता है ना जब उजाला दिखे,पर प्रकाश की अनुभूति न महसूस कर पाएं। दुष्कर होता है.... फूल में ख़ुशबू न महसूस कर पाना। कठिन होता है.....  इंद्रधनुष के रंगों के मध्य उस रंगहीन अंतर को नकारना..... । 

हाँ ,जीवन में होते हुए भी ,जिंदगी की अनुभूति को तरसना। कभी- कभी कह जाना उतना कष्टप्रद नहीं बचता,जितना कुछ बोल कर चुप सा होना। जैसे शिव ने विष धारण किया... न उगल सकते,न पी सकते। एक सन्तुलन की स्थिति पर जीवन सरल नहीं.... हर वक़्त दोहरे आयामों के मध्य और दोनों ओर बराबर रहना...... । 

वही स्थिति जैसे बोल कर भी चुप रह जाना, हाँ किसी का शब्द के मध्य मौन धारण करना.....नीलकंठ हो जाना है।

#डॉ_मधूलिका

#ब्रह्मनाद

शनिवार, 9 जुलाई 2022

जो_बाकी_रह_जाएगा

 







बाकी ना रहे जो ,

इस दुनिया मे ,

कोई निशां हमारा...


देखना पलट कर कभी ,

यादों के सफ़हों पर हमें,

कुछ तो बाकी होगा,

जो सुपुर्दे ख़ाक ना होगा।


एक ठहरी हुई नज़र,

एक घुलती हुई मुस्कान,

एक साथ देने का वादा,

और एक कभी ना ख़त्म,

होने वाली शाम ....


एक बारिश की ,

भीगी हुई सी याद,

एक अब तक ना,

जिया गया ,

लम्हों में सदियों सा साथ....


एक ख़ामोश सी सुबह,

एक कोलाहल भरी शाम,

एक संग ;जप्त दो सांसें,

एक कदम पर पड़ते,

दूसरे कदमों के निशान....


एक बदन पर उगता

एक इंतज़ार का जंगल,

एक हर पल,

सीली सी,

दरके ख्वाबों की ज़मीं....


एक राह को तकती,

एक जोड़ी, जमी आंखें,

एक उम्र से इंतज़ार में ,

तकती ;जिंदगी,

जीने को नयी सांसें .....


हां ,बहुत कुछ,

 बाकी रह जाएगा ,

जो सुपुर्दे ख़ाक,

 ना हो पाएगा,

वो जो कुछ अनकहा,

अनसुना रह जाएगा,

ढूंढ लेना खुद में ही कहीं,

एक जिंदगी का इंतजार,

एक आत्मा का दर्ज बयां.....


#डॉ_मधूलिका

#ब्रह्मनाद

बुधवार, 22 जून 2022

अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम थे

 #अपनी_मर्ज़ी_से_कहाँ_अपने_सफर_के_हम_थे


जीवन एक लंबा सफर है। जन्म से मृत्य तक का। और इसमें आते हर उम्र के पड़ाव आपको एक अलग सोच ,अलग नज़रिए में ढालते जाते। कुछ के लिए जीवन इतना स्वछन्द होता कि उन्हें  अपने स्वायत्त से ऊब होने लगती,और कुछ के लिए ,उनके हर फैसले दूसरों के नज़रिए और सोच से चलते। उदाहरण के लिए :अगर उनके नज़रिए में सोशल मीडिया गलत है ,तो आपकी जिंदगी की हर कठिन परिस्थिति और तकलीफ काI जिम्मेदार सोशल मीडिया है। 

अब अगर आपको उनके अनुसार सुखी रहना है तो सोशल मीडिया छोड़ने पर आपका जीवन परम् सुख से भर जाएगा। 

दुनिया मे सिर्फ धोखेबाज हैं......हर व्यक्ति जो आपको सोशल मीडिया में मिला बस वो आपको यूज़ करने के लिए ही आपसे जुड़ा। मतलब अब अगर आपको जीना है तो टेढ़ी नज़र करके हर किसी को दोषी मानते हुए ,खुद में घुटते हुए जीवन काटिये,तभी आप सुरक्षित रह सकते हैं। 


क्यों लोगों को हमेशा सामने वाले बुरे, धोखेबाज़ ही दिखाई देते। अपने तक तो ठीक है,पर अपने नज़रिऐ से दूसरे की जिंदगी के फैसले लेने वाले आप लोग कौन .....हां आप अपने हो,इसका मतलब ये की हमारी जिंदगी के फैसले हम सिर्फ आपकी खुशी, आपके नज़रिए से ही तय करते रहें,मुख्य भूमिका में  पुरुष हो या महिला फर्क नहीं पड़ता ,पर इस समाज में एक बेटी की स्वायत्तता सदा घेरे में रहती। आप हंसों पर जैसे आपके #अपनों की सोच है ,उसके अनुसार। आप कैसे जियोगे, ये #अपने निर्धारित करेंगे, आप किसी के साथ रहना चाहते या एकाकी ,ये हक भी आपका नहीं ;#अपनों की सोच ही सही। फर्क नहीं पड़ता कि आप किसी के साथ जीना चाहते,किसी के साथ खुश रहना चाहते ,फर्क पड़ता है कि आपके #अपने क्या चाहते हैं । जिंदगी आपकी, जीना अपने सिवा बाकी सबकी मर्ज़ी की। जिसकी जहां मर्ज़ी बहा दिया, जिसकी जहां मर्ज़ी हटा दिया, जिसका जब मन निकाल दिया ,जब मन हुआ बुला लिया।मानो इंसान इंसान नहीं कोई सामान हो गया,जिसे अपनी मर्ज़ी मुताबिक प्रयोग किया जाए। 

आपकी अपनी कोई सोच नहीं, आपका अपना कोई वजूद नहीं ,आपका अपना कोई निर्णय नहीं ,जो है बस आप पर शासन करने वालों को। सफर हमारा ,मर्ज़ियाँ बाकी सबकी। इस सफर के दृश्य तक हम नहीं देख सकते ,हम वही देखें जो हमें दिखाया जाता। ना जन्म लिया जाता अपनी मर्जी से ,न ही मार दिया जाता .....जीते जी,अपनी मर्जी से........ न ही मौत आती,अपनी मर्जी से। सच मे अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफर के हम थे.......…!!!!!

©®#ब्रह्मनाद

#डॉ_मधूलिका

हां वो लफ्ज़ ही थे

 


हां वो लफ्ज़ ही थे,

रुई से हल्के ,

पर सुई से तेज़,

जैसे रूह पर हर बार ,

दर्ज करते  ,कई;

नश्तर के घाव थे।


बेहद बारीक ,

रूह के हर जर्रे पर ,

चुभते बेहद तेज़,

लाल  घाव से खुद को ,

बनाते रँगरेज,

कहीं धंस से जाते थे । 


बेहद गंभीर ,

जेहन के हर हिस्से को,

करते लहूलुहान,

मुझे टुकड़ों में तोड़ते,

बनते खुद मूर्तिकार,

तोड़ के बिखरा जाते थे।


बेहद चोटिल,

शख्शियत का हर एक पहलू,

रोता था ज़ार - जार,

फिर जिस्म औ जेहन  अब,

ख़ाक में हर पल,

 बदल से जाते थे।


हां वो इबारत ही थे ,

जो झंझोड़ जाते थे ,

मेरी पहचान,

खण्डर की तरह,

 तोड़ जाते थे।


मेरे हर एक ख़्वाब

 और अरमानों के,

थिरते घावों से ,

आती रहती थी,

बस एक ही आवाज़ ,

जिंदगी को बख्श भी दो ,

जिंदा ,होने की ,

कहीं एक छोटी सी आस।

पर वो लफ्ज़ थे,

जो हल्के थे, 

रुई से,

और तेज़ थे ,

सुई से....

©®#ब्रह्मनाद 

#डॉ_मधूलिका

सोमवार, 13 जून 2022

 #ये_बारिशें_तुम_जैसी_हैं 



बारिश और तुम्हारा ना जाने क्या रिश्ता है,हर  साल मौसम  की पहली बारिश तुम्हारे नाम होती है।दो साल पहले जब डॉ के क्लिनिक से भीगते हुए सेंटर वापस लौटी ,तुम्हारा मैसेज ब्लिंक हुआ..... कहाँ हो आप??? जवाब दिया ,बारिश में भीगते हुए लौटी अभी ,पूरी तर हूँ..... । स्क्रीन पर दोबारा आपका जवाब ...अहा बारिश ...पर कैसे मानूं आप भीगे हो,सेल्फी भेजिए।

और मैं ना जाने क्यों सारी झिझक छोड़कर, आपको साड़ी में भीगी हुई ...खुद की सेल्फी भेज दी। आपका जवाब आ गया,प्रकृति खुद में सराबोर ..भीगी, कितनी प्यारी लगती है। कोई बनावट नही,कोई आभूषण नहीं ,फिर भी बेहद प्यारी। 


आपका जवाब पढ़कर एकबारगी खुद से प्यार हो गया(हालांकि खुद को मैं कभी नही भायी) .... रियर व्यू मिरर में खुद को देखकर मुस्कुरा उठी.... । यूँ तो बारिश में अकेले ,खाली सड़कों पर घूमते हुए भीगना बड़ा पसन्द था,पर आज बारिश कुछ खुमारी सी बरसा गई। पता नहीं क्यों पलकें कुछ बेझिल सी थी,हया का बोझ था उनमे। लगा ये बादल नहीं ,तुम ही हो ,जो मुझे सराबोर कर गए। 

पिछली बार भी कुछ ऐसा हुआ कि जिस दिन पहली बारिश थी,कुछ दिनों की व्यस्तता में गुम आप उसी दिन लौटे। कभी कभी लगता ये मेघ आपके ही दूत....#मेघदूतम की कृति आपकी अपनी है। जब जब आप आते ,ये पहले सन्देशा ले आते...***सुनो भद्रे,हिय में बसने वाले पिय आ गए** .... और मन उन्मत्त हो उठता उस मोर की तरह जो बादल देखकर नाचने लगता। तुम्हारे आने की वो खुशबू,जो धरती खुद के सौंधेपन से मुझमें समा देती...,।


मेरे सूखे ,झुलसे अतृप्त मन को सदा ही अपने नेह से यूँ ही लहलहा देते हो,जैसे पहली बारिश से धरती....हां एक उमस सी भी महसूस होती, जो प्रतीक्षा की आतुरता सी बढ़ती ही जाती....पर बारिश के साथ तुम्हारा आना ही मुझे संतृप्त कर जाता..... आजकल पहली बारिश में भीगना मुझे तुम्हारा एहसास करा जाता। जहाँ मैं रोते रोते हंसने लगती...जहाँ अंदर का दाह शांत हो जाता, जहाँ कोर कोर सीज जाता,तुम्हारे  होने के एहसास है.....जिसमें मैं दोनो हांथो को खोलकर समेट लेना चाहती,तुम्हारे प्यार का एक एक कतरा... और तुमने ही तो कहा था ना...बारिश पड़े तो भीगिये। तो भीग रही हूँ ,आज फिर तुममे ,तुम्हारे एहसासों की बारिश में......हां, पहले मुझे बारिश पसन्द थी;पर अब बारिश से प्यार है। हां ये बारिश जब जब आएगी, मुझे तुममें भिगो के जाएगी,तुम कहीं भी रहो, ये मुझे तुम्हारे बेहद करीब होने का एहसास दिला ही जाएगी.....। 

ये बादल भी तो देखो ना आज फिर तुम्हारे ही प्यार की बूंदे बरसा गया....हां मैं आज फिर भीगी हूँ......

 💭✍️⛈️⛈️⛈️⛈️⛈️🌈☔🌧️🌨️


#ब्रह्मनाद 

#डॉ. मधूलिका

रविवार, 12 जून 2022

आदी_से_अनंत

 #आदी_से_अनंत





अनकही पर कई बार सुनी हुई है ,

मेरी कहानी प्रेम की....

वो शुरू तो होती है अक्सर,

सप्त स्वरों के लयकारे सी,

कई रागों और रागनियों से सजी,

जिसका मुझे कोई ज्ञान भी नहीं,

कई आरोह - अवरोह से गुंजायमान ,

किसी वीणा के तारों से उठते,

मृदुल टँकार से झंकृत,

निनाद में परिवर्तित आरोह में....

एक गूंज में बदलकर ..

जो स्थायी का परावर्तन है...

जैसे किसी मंदिर के घण्टे की ध्वनि,

गूंजती रहती है ,

उसके दोलन के खत्म होने के बाद भी।

गूंज वो जो अनन्त का हिस्सा है।

जो निरन्तर समाती रहती ,

कानों, हृदय और मस्तिष्क के,

कृष्ण विवर में,

वो खोती नहीं ,

समा जाती है,

मेरे सर्वांग कण -कण में,

मैं चलायमान भी ,

और स्थायी भी हूँ,

उस प्रेम के ज्ञात ,

हर भाव मे हूँ। 


ये प्रेम पैदा नहीं किया,

इसे तो तुमने ही जगाया है,

चिरकाल,चिरनिद्रा में लीन,

योगनिद्रा और समाधिस्थ की दशा से। 

तुमने प्रवाहित किया एक अनन्त सा,

जीवन स्रोत...

जिसका आदि तो है...किन्तु अंत अज्ञात।

हां तुमने ही गढ़ी, 

मेरे प्रेम घट की अनन्त गहराइयाँ।

जिसमें देव-सरिता ,

प्रवाहित हुई,लेकर सहस्त्र धाराएं,

समाहित हुई ,

कई महाकाव्यों की,

लिखित गद्य रचनाएं,

कोटि-कोटि यज्ञों की,

संचित पुण्य सर्जनाएँ। 


जिसमे कई बार समा चुका ,

अनन्त गीताओं का सार,

असंख्य क्षीरसागरों की ,

नील आद्रताऐं,

अंतरिक्ष के तारों की ,

अनगिनत संख्याएँ,

उपनिषद के मूल भाव की,

तत्व सहित व्याख्याएं,

ज्ञात - अज्ञात जीवन की,

सत्य या सोची गई अभिकल्पनाएँ।

हाँ मेरे प्रेम को तुमने विस्तार दे दिया,

कई कल्पों में भी जो ना लिखा जा पाए,

एक ऐसा विचार दे दिया।

मेरा प्रेम सिर्फ प्रेम नहीं, 

प्रकृति का अपररूप है,

जब जब जीवन हंसेगा इसमें,

 प्रेम की ही स्वर लहरी होगा। 


हमारा प्रेम  शिव का,

शाश्वत अवतार है.

समय से परे,

और तम के पार है,

जिसका प्रारम्भ तो ज्ञात ..

किन्तु अन्त नहीं, 

जो भी उसकी सीमाएं हैं,

वो बस अनन्त रही.....

बस अनंत रही..।

#ब्रह्मनाद 

#डॉ. मधूलिका 

मैं तुम्हारी ख्वाहिश का तारा

मैं_तुम्हारी_ख़्वाहिश_की_तारा









 सुनो हर दीवाली जब तुम मुझे करीब पाना चाहते हो। मेरे नाम का एक दिया जला लिया करना। यकीन मानो मैं बुझते बुझते भी तुम्हारे आस पास रोशनी रखूंगी। और एक दिया और जलाना मेरे ही नाम का।उसको आकाशदीप बना कर छोड़ देना दूर गगन की यात्रा में। जीवन की ज्योत खत्म होने के बाद मैं किसी सितारे का रूप लेकर उसमे जगमगाऊंगी। हर रात मैं तुम्हें देखा करूँगी,और कभी किसी रोज जब दुनियावी रोशनी तुम्हें उकताने लगे तो कहीं किसी नदी या तालाब के किनारे चले आना। मैं झिलमिलाती हुई तुमसे खामोशी से बातें करूँगी। और इन अनगिनत तारों की छांव में दूंगी तुम्हें हर रात एक पुरसुकून नींद का वादा और जब वो पूरा होगा तो सुबह तुम्हें सूरज की सुनहरी किरण हल्के से छूकर तुम्हें जगाएँगी।हां तब मैं तुम्हें नजर न आऊंगी, पर मैं इस उजली रोशनी के घूंघट तले तब भी तुम्हें देखती रहूँगी,अनवरत,अनंत तक,मेरे अंत तक।

🌠#ब्रह्मनाद 

#डॉ. मधूलिका 

                                         घनीभूत पीड़ाओं के विषम ज्वार




घनीभूत पीड़ाओं के विषम ज्वार..... 

नहीं होते नियंत्रित ,चांद की कलाओं से।

जीवन के उतार-चढ़ाव,

अक्सर दोहराए जाते,

शापित हो अनुप्रासों में।


अनचाहे ही अक्सर ये डुबो जाते,

काली पुतलियों से सजे ,

एक जोड़ी सफेद कटोरों को,

एक नमक से भरे ,खारे एहसासों में।।


कई अनमनी अभिव्यक्तियां सहसा,

रोक ली जाती हैं ,होंठों के कोरो पर आकर,

बहुत कुछ छुपा कर ,

दर्द झलक ही जाता,बदनुमा से दागों में।।


चीत्कार कर उठती जब आत्मा,

कई मूक यंत्रणाओं में,छलक ही उठता प्रमाद,

लाल डोरों से चमकती ,

आंखों की चिंगारियों में।।


संघनित, ऊष्मित ...

आत्मिक घावों से रिसती मवाद,

थिरने लगी है अब ,कही गहरे , 

किसी तलहटी को तलाशते ,

जहां ना शेष हो कोई अवसाद,

बैचेनियों को मिले, 

सासों का अंतिम ग्रास ,

क्या सांसों संग ही अब पूरा होगा,

जीवन के खुशियों का खग्रास ।

#ब्रह्मनाद 

#डॉ. मधूलिका 


 #चुम्बन 


हां ,कह सकते हैं इसे दैहिक अनुरक्तियाँ,

एक जोड़ी रक्ताभ मृदुल पंखुड़ी....

और कोमल भावों से सजी, 

कुछ स्वैच्छिक अभिव्यक्तियाँ।।


ना ही भौतिक सीमाओं के अतिक्रमण के उपालम्भ,

ना ही वांछना, ना ही अनिवार्यता के निर्मम दम्भ,

ना अनुस्वारों के प्रयोग  ,ना ही कोई अभिव्यंजना,

बस भाव प्रवणता और  प्रबल आवेगों की व्यंजना,

हृदय के अवगुंठनों को प्रकट करती वैचारिक गतियां।।


हां, नहीं आवश्यक होती इसमें कई मर्तबा, 

भाव अनुसार देह की संकल्पना ,

पर सम्मिलित रहती हैं.. 

हृदय के रक्त के नियमित घुलती ,

श्वासों के  आरोह- अवरोह की विलम्बित गतियां।।


एक जोड़ी अनिमेष दृगों से भी,प्रकट हो जाती है ,

चुम्बन की  आनुषंगिक,

 व्यवहारिक विभक्तियाँ,

आत्मिक सहजता से ही गढ़ पाते हैं,

ये अलौकिक भावनात्मक कृतियाँ।।


किसी नैसर्गिक ,किसी मान्य,

और किसी आत्मिक सम्बन्ध के ,

क्रमशः मस्तक ,कपोल,और स्मित पर,

प्रारब्ध के अमिट लेख की तरह दर्ज होते,

बिना स्पर्श की चुंबन सदृश्य ,

स्नेहिल अनिमेष दृष्टियां।।


भावों में कई दफा गुथी,

कई अवलंबित सम्बन्धों की,

कुछ अनगढ़ भ्रांतियां,

चुंबन सदा नहीं करता व्यक्त ,

कुछ सीमित दैहिक अभिव्यक्तियाँ,

देह के पार भी जब ,

आत्मा में  अंकित करता,

नेह ,एक समर्पित सर्जना,

तब इसे मिल ही जाती,

देव् निर्माल्य की सी अनुरक्तियाँ।।


#ब्रह्मनाद 

#डॉ. मधूलिका 

सोमवार, 16 मई 2022

#अप्प_दीपो_भव


 

भगवान बुद्ध के अनुसार धम्म यानी धर्म वही है जो सबके लिए ज्ञान के द्वार खोल दे और ज्ञानी वही है जो अपने ज्ञान की रोशनी से सबको रोशन करे। 

जब बुद्ध से उनके  शिष्य आनन्द ने पूछा कि जब  जब आप या कोई आप जैसा पृथ्वी पर नहीं होगा तब हम कैसे अपने जीवन को दिशा दे सकेंगे ....कैसे सत्य की ओर बढ़ेंगे? 


भगवान बुद्ध ने असीम शांति समेटे हुए जवाब दिया – “अप्प दीपो भव” अर्थात अपना दीपक स्वयं बनो खुद भी प्रकाशवान हों और , दूसरों को भी उस प्रकाश में सच दिखाएं। 


परन्तु क्या दीपक बनना सरल  है? स्वयं को हर पल मिटाते हुए अंधेरे से लड़ते रहने को कृतसंकल्पित .....अधिकांशतः  लोग सूरज को नमन करते... परन्तु बिरले होते जो सूरज के सामने भी दीपक जलाकर श्रद्धा दिखाते ।इसलिए नहीं कि सूरज के सामने दिए को कमतर साबित करें....बल्कि इस लिए की दोनों खुद में सुलगते हुए दूसरे को प्रकाशित करते... और दीपक जला कर हम सूर्य और दीप दोनों को यह जताते की सूर्य हमने अंधेरे से लड़ने के लिए तुम तो नहीं पर तुम्हारे प्रेरक भाव से एक दीपक बना लिया ।जब तुम हमारे पक्ष में नहीं होते, यही दीपक हमें सहारा देता अंधेरे के खिलाफ । सूर्य एक ही होता....पर दीपक हर वो इंसान हो सकता जिसने ज्ञान को आत्मसात कर लिया। खुद को स्थिति के अनुसार तान कर ,समस्त अशुद्धताओं से संयत बाती बना लिया।

आत्मा को निचोड़ कर स्व और जन कल्याण के तेल में खुद को भिगो लिया।फिर वो स्थिति और कुप्रथाओं ,से संघर्ष करता । अंधेरे में दृष्टि की जद तक प्रकाश देने की जद्दोजहद में आशाओं को बनाए रखने टिमटिमाता रहता।

झंझावातों में कभी बुझते बुझते और तेज़ी से प्रकाशित होने लगना।वास्तव में ये अब बहुत प्रासंगिक हो रहा।

फेक स्माइल, फ़िल्टर और सेल्फी की दुनिया मे सिमटे लोग अब सिर्फ तस्वीरों में मुस्कुराते दिखते।

उन्हें  सीखना चाहिए इस दिए से वास्तविक संघर्ष । लाख आंधी हों, बारिश हो ,अंधेरा हो,वो स्वयं के प्रकाश को बनाए रखने के लिए संकल्प ले रखता। जब तक सांस है तब तक आस है .....जैसा हर पल खुद के अस्तित्व को बाती की अंतिम बिंदु और तेल की अंतिम बूंद तक पूर्ण करने की जिद......।स्वयं के जीवन में दूसरों को निराशा ,क्षोभ ,स्वप्रवंचना के अंधियारे से बाहर निकालने के लिए तत्पर एक छोटा सा दीपक। जिसे पता वो बस कुछ क्षण ही अपनी महत्ता साबित कर पाएगा...बावजूद उसके वो अपना कर्म नहीं छोड़ता। उसे पता वो जाएगा पर एक नई लौ सौंप कर।याद है ना दीवाली में हम कैसे एक लौ से दूसरे को जलाते ,भले  हवा उन्हें बुझाने की कोशिश करती....एक दीपक दूसरे को प्रकाशित कर जाता।


 इन महान सीखों के बाद तकलीफ इस बात की बचती की सनातनी बुद्ध ने बौद्ध बनाया ,दीपक बनने का संदेश दिया।खुद को माध्यम बनाकर दूसरों के लिए मार्ग प्रकाशित करने का संदेश दिया.... पर उनके अनुयायी ही ये दीपक दूसरों के जीवन ,शान्ति को ध्वस्त करने के उपयोग में ला रहे। सम्प्रदाय का ये जहर क्या रंग लेगा अगर बुद्ध को इसका जरा भी अंदाज़ हुआ होता,तो निश्चित रूप से वो यही कहते कि जो दीपक बन तुम खुद तक ही सीमित रखना। दूसरों को प्रकाशित करना तुम्हारे बस का नहीं,बस खुद के अंधेरे को ही खत्म करने का प्रयास करना।बुद्ध सम्भवतः भूल गए थे....चिराग तले अंधेरा.... वो प्रकाश देकर गए....हमने उसके तले अंधेरा चुना। 

🙏

#डॉ मधूलिका मिश्रा त्रिपाठी

#ब्रह्मनाद