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सोमवार, 26 दिसंबर 2022

#तुम_जैसा_सोचोगे_मुझको___मैं_वैसी_हो_जाऊंगी




मैं मरुथल में मृगतृष्णा सी हूँ,

जिसमे तुम्हारे ही ख्यालों की मछलियां उछलती हैं।

परिणामतः लोग मुझे मत्स्यगंधा की पालक मान लेते।


मैं एक वन सी हूँ गहन हूँ,

जिसमे तुम्हारी ही गम्भीरता की गहनता है,

परिणामतः लोग मुझे मलय पवन की सृजक मान लेते।


मैं एक अस्थिर प्राणी सी हूँ,

जिसमे तुम्हारे कोमल भाव महकते हैं,

परिणामतः लोग मुझे कस्तूरी -कुंडली  बसाए एक मृग मान लेते।


मैं एक असीम अनंत रहस्य सी हूँ,

जिसमे तुम्हारे चित्त का ठहराव है,

परिणामतः लोग मुझे जलनिधि मान लेते।


मैं  एक  तप्त गलित लौह सी हूँ,

जिसमे तुम्हारे पौरुष का ओज ढलता है,

परिणामतः लोग मुझे अयस्क पिंड सी कठोर मान लेते।


मैं धवल प्रकाश सी हूँ,

जिसमे तुम्हारे ज्ञान की शुभ्र रश्मियां प्रकाशित है,

परिणामतः लोग मुझे ज्ञान सलिला मान लेते।


तुम समझ गए ना ???

मेरा अस्तित्व प्रवंचना है..

मेरा मूल बस,

तुम्हारी वैचारिक रचना है।।

मैं ना हूँ सत्य, 

ना सत्य सम ,

जब तक ना रहें ,

तुम्हारे पूरक हम।।

सुनो गर देना हो ,

मेरे आभास को ,

एक आकाश सा,

अविराम ,निश्चल आह्वान,

तुम्हें ,रचना होगा ,

पल - प्रतिपल एक ,

उदीप्त विचार,

तुम जो सोचोगे ,

मैं वैसी ही हो जाऊंगी,

तुम्हारे ख्यालों की अनुपस्थिति में,

मैं बस ख्याल ही रह जाऊंगी।

तो देने मुझको पूर्णता,

तुम रचना एक,

 अनवरत  विचार श्रृंखला ,

जिसके सृजित विचारों से ,

मैं प्रतिपल जीवन पाऊंगी।

तुम जैसा सोचोगे मुझको,

मैं वैसी हो जाऊंगी .....

सुनो मैं निःशब्दता ,

तुम्हारे  स्वर में स्वर पाऊंगी,

जब जब तुम सोचोगे मुझको,

मौन का निनाद बन जाऊंगी,

तुम जैसा सोचोगे मुझको,

मैं वैसी हो जाऊंगी.....


#डॉ_मधूलिका_मिश्रा_त्रिपाठी

#ब्रह्मनाद 


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