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बुधवार, 30 नवंबर 2022

#रानी_चेनम्मा_महिला_सशक्तिकरण_विशेष


#सन_1824_की_लक्ष्मीबाई - #रानी_चेन्नम्मा


#देश के इतिहास में जब -जब क्रांति की शुरुआत की बात हुई ,हमने रानी लक्ष्मी बाई को ही अग्रणी माना। पर आप सबको जानकर गौरव मिश्रित आश्चर्य होगा कि ब्रिटिश हुकूमत की #डॉक्ट्रिन_ऑफ_लैप्स (हड़प नीति) के खिलाफ जाकर आज़ादी के लिए ;युद्ध का बिगुल फूंकने के लिए एक ज्वाला सन 1857 से काफी पहले ही #कर्नाटक में धधक उठी थी। इस क्रांति की शुरुआत करने वाली थीं #रानी_चेन्नम्मा । जिन्हें कित्तूर की रानी लक्ष्मीबाई भी कहा जाता है। हालांकि ये सिर्फ हमारे इतिहासकारों का गैरजिम्मेदाराना रवैय्या ही कहा जा सकता कि जो रणक्षेत्र में रानी लक्ष्मीबाई से भी पहले अपना हुनर और गौरव दिखाने वाली रानी चेन्नम्मा को कित्तूर रानी लक्ष्मीबाई की उपाधि दी जा रही,क्योंकि वो तो सन57 से काफी पहले आजादी की लड़ाई की शुरुआत कर चुकी थीं । 


#इस वीरांगना का जन्म काकती जनपद,बेलगांव -मैसूर में लिंगायत परिवार में हुआ था। पिता का नाम - धूलप्पा और माता -पद्मावती थी। राजघराने में जन्म  और अपनी विशेष रुचियों के कारण बचपन से ही घुड़सवारी, तलवारवाजी, तीरंदाजी में विशेष प्रशिक्षण के चलते अत्यंत दक्ष हो गईं थीं। उन्हें  संस्कृत, कन्नड़,मराठी और उर्दू भाषा का भी विशेष ज्ञान था। 

#इनका_विवाह_देसाई_वंश के #राजा_मल्लासर्ज  से हुआ । ऐसा ज्ञात हुआ कि एक बार राजा मल्लासर्ज को कित्तूर कर आस-पास  नरभक्षी बाघ के आतंक की सूचना मिली। जिसे खत्म करने के लिए उसकी खोज के बाद जब राजा ने उसे अपने तीर से निशाना बनाया ,तो उसकी मृत्यु के बाद जब बाघ के नजदीक गए,तब उन्हें बाघ में 2 तीर धंसे मिले। तभी उन्हें सैनिक वेशभूषा में एक लड़की  दिखी; जो कि चेन्नम्मा ही थीं। उनके कौशल और वीरता से प्रभावित होकर राजा ने उनके पिता के समक्ष चेन्नम्मा से विवाह हेतु प्रस्ताव रखा।जिसके बाद चेन्नम्मा कित्तूर की रानी बन गई। 

15 वर्ष की उम्र में इन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई ,जिसका नाम - #रुद्रसर्ज रखा। 


#भाग्य ने ज्यादा दिन तक रानी पर मेहरबानी नहीं दिखाई और 1816 में राजा की मृत्यु हो गई। और अगले कुछ ही सालों में उनके पुत्र की भी असमय मृत्यु हो गई। कित्तूर का भविष्य अंधेरे में दिखने लगा। इसके बाद उन्होंने एक अन्य बच्चे शिवलिंगप्पा को गोद ले लिया और अपनी गद्दी का वारिस घोषित किया। लेकिन ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपनी 'हड़प नीति' के तहत उसको स्वीकार नहीं किया और शिवलिंगप्पा को पद से हटाने का का आदेश दिया। यहीं से उनका अंग्रेजों से टकराव शुरू हुआ और उन्होंने अंग्रेजों का आदेश स्वीकार करने से इनकार कर दिया।उन्होंने बॉम्बे के गवर्नर #लॉर्ड_एल्फिंस्टोन को पत्र लिख कर शिवलिंगप्पा को उत्तराधिकारी मानने का अनुग्रह किया। पर उनकी प्रार्थना अस्वीकार कर दी गई। 


#अंग्रेजों की नीति 'डाक्ट्रिन ऑफ लैप्स' के तहत दत्तक पुत्रों को राज करने का अधिकार नहीं था। ऐसी स्थिति आने पर अंग्रेज उस राज्य को अपने साम्राज्य में मिला लेते थे। रानी चेन्नम्मा और अंग्रेजों के बीच हुए युद्ध में इस नीति की अहम भूमिका थी। १८५७ के आंदोलन में भी इस नीति की प्रमुख भूमिका थी और अंग्रेजों की इस नीति सहित विभिन्न नीतियों का विरोध करते हुए कई रजवाड़ों ने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया था। रानी चेन्नम्मा पहली महिलाओं में से थीं जिन्होंने अनावश्यक हस्तक्षेप और हड़प प्रणाली को लेकर अंग्रेजों का मुखर विरोध किया था।

#अक्टूबर 1824 को ब्रिटिश सेना के  400 बंदूकधारी और 20,000 सैनिक ने कित्तूर की घेराबंदी की। पर रानी चेन्नम्मा इस हमले के लिए पहले से तैयार थीं। 

अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध में रानी चेन्नम्मा ने अपूर्व शौर्य का प्रदर्शन किया फलस्वरूप ब्रिटिश सेना की करारी हार हुई और उन्हें  युद्ध छोड़कर भागना पड़ा। इसमें 2 अंग्रेज अधिकारियों को रानी ने  बंदी बना लिया था। बाद में अंग्रेजी हुकूमत को इस शर्त पर दोनों अधिकारी सौंपे गए कि वो अब कित्तूर पर आक्रमण नहीं करेंगे और न ही अधिकार में लेने की चेष्टा। 


#हालांकि ब्रिटिश हुकूमत ने वादाखिलाफी करते हुए कुछ समय बाद  दोबारा आधुनिक हथियारों और सैंकड़ों तोपों के साथ कित्तूर पर दोबारा चढ़ाई की। ये युद्ध कुछ महीनों तक खिंचा। किले के अंदर हर तरह के साधनों की आपूर्ति खत्म होने लगी थी।  इस बार रानी लंबे समय तक अंग्रेजी सेना का मुकाबला नहीं कर सकी। और रानी युद्ध हार गईं। उन्हें कैद कर 5 वर्ष तक #बेलहोंगल किले में रखा गया जहां उनकी 21फरवरी 1829  को उनकी मृत्यु हो गई।

इस तरह भारत के गौरवशाली इतिहास की एक महान सेनानी के जीवन का अंत हुआ। 

 

#रानी चेन्नम्मा के जीवन का अंत भले ही हो गया पर उनके आदर्श और इतिहास को जीवंत रखने के लिए #कर्नाटक के #कित्तूर तालुका में प्रतिवर्ष #कित्तूर_उत्सव मनाया जाता है। जो कि ब्रिटिश सेना से हुए पहली युद्ध में जीत प्राप्त करने के बाद से ही मनाने की परंपरा थी।  ★11सितम्बर 2007 को तत्कालीन राष्ट्रपति माननीय प्रतिभा पाटिल जी ने संसद परिसर में इनकी मूर्ति का अनावरण भी किया था। इस पर भारतीय डाक विभाग ने एक डाकटिकट भी जारी किया था। बैंगलोर से कोल्हापुर जाने वाली एक ट्रेन का नाम भी #चेन्नम्मा एक्सप्रेस रखा गया। इसके अलावा इनकी जीवनी पर बी. आर. पुन्ठुलू द्वारा निर्देशित एक #मूवी #कित्तूर_चेन्नमा भी आ चुकी है। 


#अफ़सोस होता है कि हमारे इतिहासकारों अपने पूर्वाग्रहों के चलते हम तक इन महान क्रान्ति वीरों /वीरांगनाओं के नाम तक भी न पहुंचने दिए। कुछ गलती हमारी भी कि हमने अपने इतिहास को सिर्फ पास होने के लिए एक विषय तक ही सीमित कर दिया। कभी खोज की होती तो शायद पहले जान जाते कि सिर्फ रानी लक्ष्मीबाई नहीं ,बल्कि उनसे पहले,और कई सामयिक वीरांगनाओं ने आजादी की लड़ाई में खुद को समर्पित कर हमारे लिए नींव बनाई।

गुरुवार, 17 नवंबर 2022

#गड़िया_लोहार

 



#समय प्रतिपल चल रहा है। इसका पहिया लगातार घूमता रहता। और इस पहिये के साथ हमारा जीवन भी गतिमान है। पर कुछ ऐसे भी है ,जिनका जीवन भी पहिये के साथ ही चलता,और चलते-चलते अपनी अंतिम परिणीति पाता। सिर्फ समय नहीं,भौतिक रूप से उनका जीवन पहिये के साथ चलता। ऐसे ही एक समुदाय का नाम है : #गड़िया_लोहार ।


#इनका जीवन ही यायावरी है। बैलगाड़ी ही जिनका घर हो, और ये यायावरी ,इनकी अपनी मातृभूमि के प्रति समर्पण और वचनबद्धता का द्योतक। इस समुदाय ने भूतकाल में जो वचन अपने राजा को दिया,उसे इनकी पीढ़ियां आज भी अनवरत जीती चली जा रही हैं। एक जगह न रुकने की प्रतिबध्दता लिए इनको हम अपने शहरों के आस -पास सड़क किनारे, या किसी मैदान में तम्बू के रूपमे आसरा लिए ,लोहे का पारंपरिक समान;बनाते और बेचते देखे ही होंगे। गाड़ियों (बैल) में लगातार चलते रहने के कारण ही इन्हें गढ़िया /गड़िया लोहार कहा जाने लगा । 


#इनके इतिहास की ओर नज़र डालें तो पता चलेगा ये भी क्षत्रिय हैं।मुग़ल शासन के दौरान जब अकबर के समक्ष कई रजवाड़े झुक चुके थे ,तब #महाराणा_प्रताप ने उनको चुनौती दी। #हल्दीघाटी  के युद्ध के बाद चित्तौड़ को हड़प लिटा गया । उस संघर्ष में में महाराणा के साथ एक निष्ठावान समुदाय ने दिया था,यही थे गड़िया लोहार। उन्होंने महाराणा को #वचन दिया था कि जब तक अपनी मातृभूमि को मुक्त नहीं करा लेंगे ,तब तक अपना स्थायी निवास नहीं बनाएंगे न ही मेवाड़ वापस लौटेंगे। हालांकि महाराणा प्रताप के पुत्र ने खुद अकबर की दासता स्वीकार कर ली,पर ये निष्ठावान समुदाय अपने संकल्पित इतिहास के चलते चलायमान रहे।

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#वेशभूषा एवं #रीतिरिवाज  :

पुरुष धोती व बंडी पहनते हैं,हालांकि वक़्त के साथ चलन अनुरूप कपड़े पहनने लगे हैं।  जबकि महिलाएं अब भी परम्परागत वेशभूषा में दिखती हैं। गले में चांदी का कड़ा, हाथों में भुजाओं तक कांच, लाख, सीप व तांबे की चूडि़यां, नाक में बड़ी सी नथ, कोई -कोई #बुलाक (नाक के बीच मे पहने जाने वाला आभूषण ) पहने हुए भी दिखती हैं। पांव में भारी-भारी चांदी के कड़े, कानों में पीतल या सीप की बड़ी-बड़ी बालियां पहनती हैं। 


सिर पर आठ-दस तरह की #चोटियां गूंथती हैं। जिसे #मिढियाँ  गुथना कहते  हैं ,इसे कौडि़यों,छोटे घुंघरूओं से सजाती हैं। महिलाएं घुटनों से नीचे तक का छींटदार  और बहुत घरवाले लहंगे पहनती हैं। कमर में कांचली पहनती हैं। ये अपने बदन पर प्राकृतिक फूल-पत्तियों ,और जानवरों की आकृतियों की चित्रकारी, विविध रंगों से  गोदना भी गुदवाती हैं। दरअसल, #गोदना इस जाति की पहचान का विशेष चिन्ह भी माना जाता है।


#इस जाति में कई अनोखी दृढ़ प्रतिज्ञाएं हैं, जैसे सिर पर टोपी नहीं पहनना, पलंग पर नहीं सोना, घर का मकान नहीं बनाना, चिराग नहीं जलाना, कुएं से पानी नहीं भरना, अंतर्जातीय विवाह नहीं करना, मृत्यु पर ज्यादा विलाप नहीं करना आदि।


 #इनके कबीले के मुखिया के हुक्म के कारण ये एक से अधिक कंघा नहीं रखते। कंघा टूटने पर उसे जमीन में दफन कर नया कंघा खरीदते हैं। नए कंघे को पहले कुलदेवी की तस्वीर के समक्ष रख पवित्र किया जाता है।

 

#इन लोगों में जब शादी होती है तो पति-पत्नी अपनी पहली मधुर रात गाड़ी में ही हंसी-खुशी गुजारते हैं तथा यह भी तय करते हैं कि वे अपनी भावी संतान को चलती बैलगाड़ी में ही जन्म देंगे, ताकि उसमें भी घुमक्कड़ संस्कार समा सकें।  इनके विवाह में मयूर पंख का बड़ा महत्व है। अग्नि के फेरे के उपरांत दुल्हन दूल्हे को एक मयूर पंख भेंट करती है। जिसका मतलब होता है- ‘इस सुंदर पंख की तरह अपनी नई जिंदगी का सफर प्रकृति के सुंदर स्थलों पर भ्रमण कर बिताएं।’


#ये लोग माचिस से कभी आग नहीं जलाते, बल्कि इनकी अंगीठी में सुलगते कोयले के कुछ टुकड़े हमेशा पड़े रहते हैं, ये उसी अंगीठी में नए कोयले झोंककर आग सुलगाते हैं। ऐसी लोक मान्यता है, नई आग जलाने से पुरखों की आत्माएं परेशान करने लगती हैं।  इनके परिवार में जब किसी शिशु का जन्म होता है तो उसके 21 दिन उपरांत अनोखी रस्म अदा की जाती है। उसकी पीठ पर लोहे की गर्म छड़ दागी जाती है, ताकि वह गाड़िया लोहार की संतान कहला सके ।

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#युद्ध के बाद भी अपनी वचन परम्परा को निभाते हुए इस समुदाय को उस वक़्त #युद्ध_अपराधी घोषित कर दिए थे। इसके कारण इन्हें हमेशा ऐसे स्थानों में रहने का आदेश दिया गया जो खुले हुए हों या कोतवाली के आस पास हों ,जहां से ये प्रशासन की नज़र में बने रहें और विरोध में किसी गतिविधि को अंजाम न दें सकें। 

#मध्यकाल के बाद अंग्रजों ने भी इनके प्रति यही सोच अपना ली।इस कारण इनमें रोष जन्मा ,और कुछ ने अपराध की राह पकड़ ली। दुर्भाग्यवश वश इस समुदाय को अपराधी भी मान लिया गया। और ये काल चक्र इनके जीवन की खुशियों और स्थायित्व के लिए काल बन गया। 


#बैलगाड़ी को ही घर बना कर चलते रहने वाले इस समाज की स्वतंत्रता को लेकर वचनबद्धता और समर्पण को हम सब ,ये समाज ,शासन ,प्रशासन कबका भुला चुका। लोहे की कारीगरी से अपनी आजीविका चलाने वाले इस समुदाय के हस्तकौशल को मशीनी क्षमता के कारण आज अपने जीवन निर्वाहन के लिए भी सँघर्ष करना पड़ रहा है। मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा कर पाने जितनी आय भी इनके लिए चुनौती बन गई है। चूंकि इनका स्थायी निवास नहीं है,इसलिए इनके पास न तो आधार कार्ड न ही वोटर आई डी है, इसके  कारण हमारे इतिहास के गौरव से जुड़े ये लोग एक तरह से हमारे देश के संवैधानिक नागरिक भी नहीं,जिसके चलते मूलभूत सुविधाओं से भी वंचित। 


#विडम्बना है ,स्वतंत्रता के लिए अपना जीवन ,अपना आसरा तक खो देने वाले लोग आज समाज से कट कर ,बेहद अभावों में अपना जीवन काटने को मजबूर। क्या ये परम्परा जो कभी इनका गौरव थी,आज उनका पेट पाल सकती। हमारी सरकार को चाहिए कि इनके पुनर्वास और भविष्य  के लिए  योजनाएं बनाए और लागू करें। ताकि जो गौरव इनके पुर्वजों ने इन्हें वचन के रूप में सौंपा ,वो इनके दिलों में अभिशाप बनकर न धधके। 

✍️#डॉ_मधूलिका_मिश्रा_त्रिपाठी

#ब्रह्मनाद

सबसे खूबसूरत प्रेम पत्र


 दुनिया के सबसे खूबसूरत प्रेम पत्रों में एक वो होता जो कभी पूरे तरह से लिखा ही न जा सका। ना वो उनको मिले ,जिनके लिए लिखे गए। मिले भी तो बिना इबारत के ......कुछ लिख कर मिटाई गई पंक्तियां , कुछ आसुओं से गीले हुए कागज के उभार..... और अन्य में सिर्फ तुम्हारी। 


नाम लिखने की भी कोशिश न की गई। क्योंकि जिसके लिए लिखा गया वो समझ जाता होगा कि ये सिर्फ तुम्हारी कौन है,जिसे अपने बारे में कुछ बोलने की भी जरूरत न पड़ी। 


लिखने वाली ने बहुत कोशिश की होगी ,बहुत कुछ लिखने की....बहुत कुछ बताने की.... बहुत कुछ पूछने की। पर अंत मे कुछ भी उसे ऐसा न लगा जो उसके मन को उस कागज में उतार सके। बहुत कुछ लिख कर सब कुछ मिटा दिया उसने और प्रेम के बस कुछ बेबस सी होकर आंसू की एक धार उस कागज तक पहुंच गई। हाँथ और अपने आँचल से पोछकर सुखाने पर भी अपने निशान उसी तरह छोड़ गई जैसे नदी के सूखने पर भी उसके होने के निशान बाकी रह जाते। 


कितना कुछ समाए रहते हैं ये बिना शब्दों के पत्र। जैसे सामने बैठ कर किसी को किताब की तरह पढ़ लेना।ऐसे ही अपने प्रिय के लिए उस पत्र में असीम भावनाएं सिमट जाती, बहुत सा अबोला......जो सामने वाला मन से पढ़ लेता।आंखों को बन्द करके उसकी एक एक इबारत को आत्मा में उतारते चला जाता।उस आसूं के सूखे निशान को अपनी उंगली के पोरों से सहलाकर जैसे अपनी प्रियतमा के आंसुओं को पोंछकर छूकर उन्हें मोती से भी कीमती बना देना..... और कुछ चंचलता महसूस कर कागज के मुडे किनारे को छूकर मुस्कुरा देना। सीने में रखा वो कोरा सा कागज जाने क्या कुछ न बयां कर जाता जो असीम प्रेम करने वाले जोड़े एक दूसरे से सुनना -बोलना चाहते। अकसर जब ये सामने होते तब भी इन्हें बोलने सुनने की जरूरत नहीं पड़ती।एक बंद होंठों से बोलता ,दूसरा उन होंठों की थिरकन और उन आंखों से मूक संवाद में रत रहता।


कभी कभी सोचती इन पत्र से मिटाए गए शब्द कहाँ गए होंगे.....? सम्भवतः वो तारे बन गए होंगे जो रात के मौन में अपने साथी की बातें नीरवता में भी सुनाने के लिए लगातार टिमटिमाते रहते..... जितना गहरा अंधकार , ये तारे रूपी शब्द उतनी ही चमक से बिखरने लगते आकाश के विस्तृत पट में। 

वास्तव में प्रेम में मौन ही मुखर होता..... बस समझे जाने की प्रत्याशा में।

#डॉ_मधूलिका_मिश्रा_त्रिपाठी

#ब्रह्मनाद 

#ज़िद्दी_ख़्वाहिशें

 


बूढ़े होते शरीर की ख़्वाहिशें बूढ़ी नहीं होती, उनमें और रवानी आ जाती है। उन तरसती चाहतों को जीने की एक ऐसी चाह ,जैसे सागर में उठती ऊंची लहर। उम्र का हवाला देकर शांत करने की कोशिश उसे स्प्रिंग जैसे उछाल देती। और वो फिर एक जिद्दी बच्चे सी आंख में आंख डाल उन्हें पूरा करने की चुनौती देने लगती। 


इन्हें उम्र समझ नहीं आती, इसने तो जैसे अब तक हुई सभी क्रांतियों का झंडा मिलाकर अपना नया झंडा बना लिया ,और उसे आसमान की ऊंचाई में खड़ा करा दिया।ताकि मैं देखना भी चाहूं तो धूप से मेरी आँखें बन्द ही रहें और ये अपनी मनमानियों को शरारत में बदलती रहे। 


रोकने पर .... एक रटा रटाया फिल्मी डायलॉग चिपका देती मुझे ही..... उम्र महज एक आंकड़ा है। जब तक दिल से महसूस न हो ,बुढापा नहीं आता। अब इसे कौन समझाए ,की दिल लाख जवान रहे ,शरीर अपना होना जता जाता है। 

आंखों के नीचे आते गहरी लकीरें, बालों में झांकती सफेदी, दौड़ने पर हांफ जाना , देर तक हील में चलने से पैरों का सूज जाना, सुई में धागा डालने के लिए देर तक प्रयास करना, अनियमित होती महावारी, यदा -कदा या अक्सर होने वाला मूड स्विंग , लड़कियों जैसे कपड़े पहनने पर बेडौल होकर उभरने वाले शरीर के हिस्से ,पीठ के ऊपरी हिस्से में आने वाली मोटी सलवटें, और अंत मे परिस्थितियों से हार मान कर उदासी में सिमट जाने वाला एक मन.....।


ख़्वाहिशें कभी नहीं समझ पाती एक 40 पार की औरत को। एक रस्साकसी सी चलती । शरारतों और समझदारी के बीच। एक बचपना जो सदा बंधन में रहा ,वो आवाज़ देता रहता को तू बड़ी है अब अपने लिए फैसले ले........ एक उम्र जो कहती है सुन बचपना मत करना कोई वरना लोग तुझ पर हंसेंगे। 


इस बीच ये बेपरवाह ,जिद्दी ख़्वाहिशें फिर जोर लेती ,छिप कर ही जी लेने को ढकेलती ये मनमर्जियां। 

मेरे कान में धीरे से फुसफुसाती हैं-------- #सुनो_दिया_बुझने_से_पहले एक बार जरूर शबाब में आकर जलता है।बुझने से पहले जी ले जरा......

बुधवार, 16 नवंबर 2022

क्षणिका


 

जिंदगी अपनी कटी

 





जिन्दगी अपनी कटी ,अक्सर तनावों में,

बोझ लगते हर दिन ,चुभन सी सांसों में।


आसमां मिला नहीं, ज़मीन भी तले नहीं,

ख़्वाब मुझको सालते,टूटन की आहों में।


घाव रहते हैं हरे, हर ज़ख्म बीबादी है,

ख़ामोशी चीखती रही,जिस्मों की बाज़ी में।


दामन में कांटे भरे मिले,चिथड़े अरमानों के,

रास्ते सब खो गए,खुद खड़े चौराहे में,


नजरों में सब धुंधला सा,बस आंसू है आंखों में,

कतरों में कटती जिंदगी,अब बिखरी है राखों में।


गिला किसी से है नहीं, बस एक टीस बाकी है,

क्यों मिली ये जिंदगी, जो खुशियों से बागी है।


#डॉ_मधूलिका

 #ब्रह्मनाद

रविवार, 6 नवंबर 2022

मैं_तुम्हारी_ख़्वाहिश_की_तारा




सुनो हर दीवाली जब तुम मुझे करीब पाना चाहते हो। मेरे नाम का एक दिया जला लिया करना। यकीन मानो मैं बुझते बुझते भी तुम्हारे आस पास रोशनी रखूंगी। और एक दिया और जलाना मेरे ही नाम का।उसको आकाशदीप बना कर छोड़ देना दूर गगन की यात्रा में। जीवन की ज्योत खत्म होने के बाद मैं किसी सितारे का रूप लेकर उसमे जगमगाऊंगी। हर रात मैं तुम्हें देखा करूँगी,और कभी किसी रोज जब दुनियावी रोशनी तुम्हें उकताने लगे तो कहीं किसी नदी या तालाब के किनारे चले आना। मैं झिलमिलाती हुई तुमसे खामोशी से बातें करूँगी। और इन अनगिनत तारों की छांव में दूंगी तुम्हें हर रात एक पुरसुकून नींद का वादा और जब वो पूरा होगा तो सुबह तुम्हें सूरज की सुनहरी किरण हल्के से छूकर तुम्हें जगाएँगी।हां तब मैं तुम्हें नजर न आऊंगी, पर मैं इस उजली रोशनी के घूंघट तले तब भी तुम्हें देखती रहूँगी,अनवरत,अनंत तक,मेरे अंत तक।
🌠#मैं_तुम्हारी_ख़्वाहिश_की_तारा

©®डॉ. मधूलिका मिश्रा त्रिपाठी
#ब्रह्मनाद