पता नही क्यों पर मैं अपनी सेल्फ़ी लेने के बाद संतुष्ट नही होती। कुछ ना कुछ कमियां हमेशा ही दिखती हैं। सैकड़ों में एक भी तस्वीर नही भाती हमको। शायद इसलिए क्योंकि उस वक़्त हम खुद को अपने नज़रिये से देखते हैं और कभी आत्म मुग्ध नही हो पाते। बिलकुल वैसा ही गणित जिंदगी में भी लागू कर पाएं तो कितना अच्छा होगा। सैकड़ों जनहित/परोपकारी कार्यों को करने के बाद भी हम संतुष्ट और संतृप्त ना हो। जैसे ढेर सारी सेल्फ़ी डिलीट कर देते हैं वैसे ही अपने अच्छे कर्मो का लेखा जोखा भुला कर और बेहतर करने का प्रयास करें ।नेकी कर दरिया में डाल टाइप फीलिंग।
दोनों स्थिति में आत्म मुग्धता स्व प्रवंचना है। काश की मेरे सत्कर्मों की सेल्फ़ी में संतुष्ट रहूँ पर कभी संतृप्त ना होऊं ।