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शनिवार, 31 दिसंबर 2022

#चरैवेति

 



लीजिये ,ये भी चला ही जा रहा। रोके कब रुकता है.....ये पल,ये जीवन,और ये आवगमन चक्र ही संसार की निरंतरता का पर्याय। आज हम जिसका इंतज़ार कर रहे,वो पल आएगा और पलक झपकते ही वो #गत भी घोषित हो जाएगा। और इन्हीं में हम उत्सवों के अवसर तलाशते। किसी का जाना भी उत्सव का कारण!!!!!!! जैसे मृत्यु आत्मा का अवसान नहीं ,बल्कि जीवन का सतत अंग है। ये निशानी है ,ना ठहरने की.....चलते जाने की..... गुजरते हर पल में गुज़र जाने की......।

अगले पल या पीढ़ी को अपना स्थान देने के लिए खुद से रिताने की प्रक्रिया का माध्यम ......उत्सवों के आह्वान ।
विगत को याद रखने ,आगत के स्वागत के लिए, निरन्तरता के औदार्य प्रश्रय की प्रक्रिया ........ उत्सवों का भान।

जो जा रहा वो दीर्घ जीवनाक्रान्त #महीनों के बंधनों का अंत है। बिना किसी भूमिकाओं के जिज्ञासाओं का अंत है। कई प्रतीक्षाओं के अधूरे होने पर भी एक निश्चित अवधि का अंत है। किंतु जो समाप्त हो रही वो सिर्फ अवधि ,समय निरन्तर है। नवीनीकृत पुरातनता का मापक - समय ।

ये आपके लिए नवीन हो सकता, किन्तु ये सर्वमान्य नवीन नहीं। कोई अभी इसे रुका मान रहा,तो किसी की चेतना में इसकी अनुभूति नवीन नहीं। कोई व्यवहारिक दृष्टि से अपने संस्करण में इसे नवीन नहीं पाता तो कोई इसे सिर्फ काल  गणना समझता .....।

जो बीत रहा ,वो सिर्फ एक दृश्य है, दृश्य की सत्यता स्थायी नहीं। स्वयं को दृष्टा के रूप में विलय कर सिर्फ उसकी अनुभूति ही सत्य है और वही जीवन की वास्तविकता और विशेषता। तो प्रतिपल के पुनर्जन्म के साक्षी होकर स्वयं में प्रतिपल नवीन अनुभूति को पुनर्जीवित करते रहिये। आलोकित रखिये जीवन के अनंतपथ को स्वयंप्रभा से। भले ही वो  तिमिर पथ पर आपके चरणों के आगे ही एक मद्धम से प्रकाश से पथ का आभाष प्रस्तुत करे... पर निरन्तर रखिये  ,तरल रखिये ,सरल रखिये। जीवन को बढ़ने दीजिये ....उस पथ पर जो अनंत है। शिव ,शिवकारी हों।
गत  से उत्तरोत्तर आगत की ओर कदम बढ़ाने की शुभकामनाएं 🙏🙏🙏

#डॉ_मधूलिका_मिश्रा_त्रिपाठी

#ब्रह्मनाद 


गुरुवार, 29 दिसंबर 2022

संवेग

 



धुंधली दृष्टि,आंसुओं से।

उबलता खून ,धमनियों में।

अभी तरलता, कभी विरलता,

अभी डूबता,कभी उबरता।

अभी कठोर,कभी आक्रांत,

अभी कोलाहल,कभी एकांत।

अन्तस् ,अनंत सा।

विचार,शून्य सा।।

उंगलियों के पोरों से ,

छिटकते कई भाव।

प्रवाह है निरंतर,

हाँ पर रुके हैं ,

भावों के प्रमाद।।

#डॉ_मधूलिका_मिश्रा_त्रिपाठी

सोमवार, 26 दिसंबर 2022

#तुम_जैसा_सोचोगे_मुझको___मैं_वैसी_हो_जाऊंगी




मैं मरुथल में मृगतृष्णा सी हूँ,

जिसमे तुम्हारे ही ख्यालों की मछलियां उछलती हैं।

परिणामतः लोग मुझे मत्स्यगंधा की पालक मान लेते।


मैं एक वन सी हूँ गहन हूँ,

जिसमे तुम्हारी ही गम्भीरता की गहनता है,

परिणामतः लोग मुझे मलय पवन की सृजक मान लेते।


मैं एक अस्थिर प्राणी सी हूँ,

जिसमे तुम्हारे कोमल भाव महकते हैं,

परिणामतः लोग मुझे कस्तूरी -कुंडली  बसाए एक मृग मान लेते।


मैं एक असीम अनंत रहस्य सी हूँ,

जिसमे तुम्हारे चित्त का ठहराव है,

परिणामतः लोग मुझे जलनिधि मान लेते।


मैं  एक  तप्त गलित लौह सी हूँ,

जिसमे तुम्हारे पौरुष का ओज ढलता है,

परिणामतः लोग मुझे अयस्क पिंड सी कठोर मान लेते।


मैं धवल प्रकाश सी हूँ,

जिसमे तुम्हारे ज्ञान की शुभ्र रश्मियां प्रकाशित है,

परिणामतः लोग मुझे ज्ञान सलिला मान लेते।


तुम समझ गए ना ???

मेरा अस्तित्व प्रवंचना है..

मेरा मूल बस,

तुम्हारी वैचारिक रचना है।।

मैं ना हूँ सत्य, 

ना सत्य सम ,

जब तक ना रहें ,

तुम्हारे पूरक हम।।

सुनो गर देना हो ,

मेरे आभास को ,

एक आकाश सा,

अविराम ,निश्चल आह्वान,

तुम्हें ,रचना होगा ,

पल - प्रतिपल एक ,

उदीप्त विचार,

तुम जो सोचोगे ,

मैं वैसी ही हो जाऊंगी,

तुम्हारे ख्यालों की अनुपस्थिति में,

मैं बस ख्याल ही रह जाऊंगी।

तो देने मुझको पूर्णता,

तुम रचना एक,

 अनवरत  विचार श्रृंखला ,

जिसके सृजित विचारों से ,

मैं प्रतिपल जीवन पाऊंगी।

तुम जैसा सोचोगे मुझको,

मैं वैसी हो जाऊंगी .....

सुनो मैं निःशब्दता ,

तुम्हारे  स्वर में स्वर पाऊंगी,

जब जब तुम सोचोगे मुझको,

मौन का निनाद बन जाऊंगी,

तुम जैसा सोचोगे मुझको,

मैं वैसी हो जाऊंगी.....


#डॉ_मधूलिका_मिश्रा_त्रिपाठी

#ब्रह्मनाद 


संस्मरण - वायलिन की धुन

 




बात पुरानी हो चुकी पर जब जब वायलिन की धुन सुनती ,वो स्मृति चंदन कि तरह भीनी भीनी महक उठती। वर्ष 2001 ठंड शुरू हो चुकी थी। हम सभी परास्नातक की छात्राएं सेमिनार और सेमेस्टर एग्जाम की तैयारी में जुटे थे। 

होस्टल में खाना मिलने का वक़्त शाम 6 से 7.30 तक था ....लगभग सभी खाना खाकर शाम की प्रार्थना के बाद पढ़ने से पहले कुछ मौज मस्ती की तैयारी में थे। अचानक होस्टल के स्पीकर में कॉल हुआ सभी छात्राएं कॉलेज ऑडिटोरियम में इकट्ठी हो। 

लीजिये हम सबके चेहरे में 8 बजे ही 12 बज गए ,पूरे दिन में सहेजा गया ये समय न जाने किस मोटिवेशनल स्पीच या संगीत कार्यक्रम की भेंट चढ़ने वाला था।

दरअसल कॉलेज बन्द होने के बाद हम होस्टल की गाय भेड़ बना कर हांक ली जाती थी 😂😷... 

खैर आदेश था तो पालन भी किया। प्रस्तुत आगत को लगभग कोसते हुए हम सब लड़कियां ऑडिटोरियम में इकट्ठे हुए। वाईए इस वक़्त कॉलेज में प्रवेश एक अलग सुकून भी दे रहा था,क्यों????? अरे ना प्रेक्टिकल का टेंशन ,ना कोई लेक्चर क्लास।

जाकर ऊँघते हुए हम सब कुर्सियों में जम गए, कुछ को चुहल सूझ रही थी,कुछ नाक चढ़ाए बिसूर रही थी। 

लीजिये हमारी होस्टल की वॉर्डन मैडम ने स्टेज से घोषणा की कि अभी आपको श्री .......जी का वायलन वादन सुनने को मिलेगा। 

सबने माथे पे हाँथ रख मुँह में कुछ बुदबुदाया सा, हे राम किसी गायक को भी बुला लेती  जो ख्याल ,भैरवी ,यमन ,दीपक राग से हम सबके सब्र का इम्तेहान ले सके 😥 😠 और कुछ चमची टाइप कन्याओं ने वाओ मैम कह कर गुड गर्ल लिस्ट में  अपनी रैंकिंग ऊपर की। 😇


अब ओखली में सर गया तो मूसल पड़ना ही था।

सभी कलाकारों ने मंच पर जगह लेकर ,अपना परिचय दिया। अफसोस मुझे नाम याद नही अब :( .....

उन्होंने शुरुआत की" ऐसी लागि लगन" भजन की स्वर लहरी से।

ये क्या हम सब चुपचाप ,एकटक मुग्ध से उनके वाद्य यंत्र के स्वर और नाद को सुनने लगे।

लय बढते हुए "जादूगर सैंया,छोड़ मोरी बैय्यां" ,

"ओ बसंती पवन पागल"  जैसे कई गीतों की स्वर लहरी से होते हुए सफर थमा 

" वंदे मातरम " पर।

बिना बोले हम सब अपनी सीट छोड़ खड़े हो गए। 

पता नही क्यों मेरे सहित बहुत सी लड़कियां भाव विभोर थी। भावातिरेक में मेरे रोंगटे खड़े हो गए थे ,और आंखों की दृष्टि आसुओं की वजह से धुंधली हो गई थी। 

आते वक्त जिन पर हमारा गुस्सा अप्रत्यक्ष रूप से बरस रहा था ,जाते वक्त हम सब नत थे उनकी प्रतिभा के सम्मुख। 

कहाँ हम सोच कर आए थे कि ये संगीत हम सबके  पल्ले नही पड़ने वाला ,कहाँउस रात से लेकर कई दिन तक वो हमारे दिमाग मे गूंजता रहा। आज भी जादूगर सैंया ,और वन्दे मातरम मुझे कानों में बजता सा सुनाई दे रहा।

सच में संगीत वो नहीं जो आपको किसी विशेष ज्ञान से ही महसूस हो,,, संगीत तो वो जो सहज ही आपकी आत्मा,हृदय और जेहन में प्रवेश कर जाए। वो आपको यूँ आत्मसात कर ले,जैसे जीवन आपको महसूस होता। 

वाकई जीवन भी एक संगीत है ,आत्मा का ,सांसों को ,उसको समझने के लिए दिमाग मत लगाइए,मन को मुक्त कर दीजिए उसे ग्रहण करने के लिए।

ये बात मैंने उस दिन महसूस की, आप आज महसूस करिये। 

सुनिए सासों के मधुरतम संगीत को ........

रविवार, 11 दिसंबर 2022

मां की पाती

 






मेरी प्यारी सी गुड़िया अन्वू,

कभी लगता  हर दिन बहुत लम्बा अंतराल लेकर गुजरा और कभी लगता यह (12/12/12)कल की है बात है ,जब बेहद खूबसूरत सी एक नाजुक सी गुड़िया अपनी चिबुक पर हाथ टिकाए मेरे बगल में लेटी हुई थी।तुम्हारे आने से पहले एक लम्बा दौर जिया था मैंने इंतजार का ...अवसादों का .... आशाओं और निराशाओं के उतार चढ़ाव का....। अंततः तुमने आकर उस दौर को खतम किया।

 मां बनना सुख और संघर्ष के सिक्के के दो पहलू हैं। एक ओर तुम मेरी ताकत हो...मेरी खुशी हो....तो दूसरी ओर मुझे कमजोरी और दुख भी तुमसे ही जुड़े हुए हैं। तुम्हारी हर असफलता या कमजोरी या व्यवहारगत परेशानी जहां मुझे निराशा के गहरे भंवर में धकेल देती है तो तुम्हारी मुस्कान ,शरारतें , छोटी से छोटी उपलब्धि  और तुम्हारी खुद की  समस्याओं से धीरे - धीरे लड़ना , उबरना ;खुशियों  के सतरंगे इंद्रधनुष की दुनिया में पहुंचा देती हैं। 

 कई बार मुझे लगता ,मुझसे ज्यादा समझदार तुम हो,मुझसे कहीं ज्यादा उदार। तुम पर कई बार अपना गुस्सा उतार कर ,तुमसे कभी घृणा नहीं पाई मैंने। तुमने अपनी नन्हीं बाहें फैलाकर हमेशा मुझ पर स्नेह ही बरसाया। कई अवसरों पर मेरी ढाल बनाकर खड़ी भी हो जाती । उस वक्त लगता जैसे मैं नहीं ,तुम मेरी मां हो। 

 जब  मेरी अपेक्षाऐं या आशाएं टूटती तो लंबे समय अवसाद से घिरी होती हूं। पर तुम गिर कर उठने और सम्हलकर फिर हंस कर जुट जाने में माहिर हो। वास्तव में तुम जैसी पावन और सच्ची आत्मा ही जीवन को सिर्फ उसी पल और आज में जीने की क्षमता रखती। कभी - कभी लगता तुम नहीं ,बल्कि ये संसार तुम जैसे सीरत के लोगों के लायक नहीं है। ये झूठ ,दिखावे,छल और मतलबपरस्त लोगों से भरा हुआ है...जहां तुम जैसे लोग अनफिट माने जाते। पर ईश्वर इस दुनिया में अब भी कुछ पवित्रता बचाए रखना चाहता ,इसलिए तुम और तुम जैसे लोग धरती पर भेजता। ये हमारी कमजोरी की हम जैसे लोग तुम जैसों के लायक ये दुनिया में बना पाते। 

 तुम्हारे आने के बाद ही कोशिश कर पा रही हूं हर दिन संघर्ष करके जीना। एक उद्देश्य के साथ आगे बढ़ना। 

 मेरी बच्ची मैं जानती हूं एक मां होने के नाते मैं तुम्हें कई बार बहुत कुछ करने से रोक देती हूं ,जो तुम चाहती हो। क्योंकि कहीं ना कहीं तुमको लेकर सुरक्षा की भावना हावी हो जाती है। पर यकीन मानो तुम्हारी मां कभी तुम्हारे रास्ते की बाधा नहीं बनेगी....मैं वो रोशनी बनकर हमेशा तुम्हारे साथ रहूंगी जो तुम्हें आगे तक का रास्ता साफ देखने में मदद करेगी। 

 तुम अपने पंख खोलो... उड़ो ... और अपने जीवन की परवाज को पूरा करो...मैं बेड़ी नहीं तुम्हारा आकाश बनूंगी,तुम्हारा हौसला रहूंगी। आज के इस विशेष दिन में तुमको अनन्त शुभकामना और स्नेह मेरी राजकुमारी। बस यही कामना रहेगी की अपने जीवन को स्वतंत्र रूप से और भरपूर जियो। इस तारीख को तुमसे एक विशेष पहचान मिले..... हैप्पी बर्थडे मेरी लड्डू।

 

 #अन्वेषा_की_मम्मा 

शनिवार, 10 दिसंबर 2022

लv जिhaद

 "दुनिया की नजरों में तुम भले ही मेरी पत्नी बन गई हो किन्तु मेरे लिए तुम तब तक मेरी बीवी नहीं, जब तक तुम 3 बार ‘मुझे कबूल है, कबूल है, कबूल है’ नहीं कह देती।’’ हिन्दू रीति-रिवाज से एक हिन्दू लड़की विवाह कर जब पहली बार ससुराल पहुंचे और उसे पता चले कि जिस लड़के ने खुद को हिन्दू बताकर उससे शादी की है, वह वास्तव में मुसलमान है तो उस पर क्या बीती होगी? झूठे प्रेमजाल में फंस वैवाहिक जीवन के हसीन सपने लिए जिसे वह अपने जीवन की डोर थमा बैठी हो, वही उसे सुहागरात के दिन इस्लाम में मतांतरण के लिए प्रताडि़त करे, इससे बड़ी त्रासदी और क्या होगी?


लव जिहाद कैसे होता है इसका कोई वजूद है या नही इसपे बहस करने वाले बहोत लोग है आपको सोसल मीडिया पे इसके बहोत से सामग्री उपलब्ध मिलेंगे जिनमे इससे बचाव इनकी पहचान और अन्य बाते रोज कोई न कोई लिखता ही रहता है ।। लेकिन आज भी कुछ बाते ऐसी है जो आपको नही पता है , लव जिहाद करने के लिए एक पैटर्न काम करता है वो पैटर्न समझ लीजिए आपको लव जिहाद समझ मे आ जायेगा और इससे आप बच भी सकते है --

लव जिहाद के कुल 4 चरण है 

1- आयु 

2 - पैसा 

3- शिक्षा

4 - सौंदर्य 


आयु -- लव जिहाद की शिकार सबसे ज्यादा 15 से 25 साल और फिर 35 से 45 साल के बीच की हिन्दू स्त्रियों को टारगेट किया जाता है ।।


पैसा - गरीब घर की लड़कियों और जरूरतमंद हिन्दू घरो में इसी के माध्यम से पैठ बनाई जाती है एक बार घर मे इंटर हुए तो शिकार शुरू


शिक्षा -- पढ़े लिखे घर की लड़कियां आफिस क्लास और जो धर्म कर्म में ज्यादा विश्वास रखे उसके लिए पहले उसके रीतियों के लिए उसके मन मे द्वेष पैदा कर दो फिर इस्लाम की तारीफ और शिकार हाजिर 


सौंदय - स्मार्ट लड़के कॉलेज , ब्यूटी पार्लर आफिस के बाहर आपका ही इंतज़ार कर रहे है ।। हर लड़की चाहती है कि उसका bf या पति स्मार्ट हो और ये कमी वो पूरी करता है और लड़की शिकार बन जाती है ।।


पैटर्न -- सर्च + स्टाल्क+हेल्प + इम्प्रेस+ अप्प्रोच 


इसमे सर्च का काम लोकल मुस्लिम जैसे रिचार्ज वाला किराने वाला कंबल बेचने वाला और मुस्लिम मित्र स्कूल की 

टाइप कन्फर्म होने पे उसी कि पसन्द के मिलने वाले लड़के से उसका पीछा करवाना ।

हेल्पफुल लड़का आपकी हर जरूरत पे आपके लिए खड़ा होता है ।

आपको इम्प्रेस करता है और आपकी तारीफ में कसीदे आपको गुड मॉर्निंग गुड नाईट का कंटीन्यू संदेश आप उसके केअर और हेल्पफुल नेचर से खुस 

सही समय पे जब आप कभी कमजोर हो भावनात्मक रूप से आपको अप्प्रोच (प्रोपोज़) करना लड़की कभी मन नही कर पाती ।।


बचाव -- बस अपने बच्चो को समय दीजिये अपने घर की औरतों को समय दीजिये , बस इतना ध्यान रहे कि लव जिहाद तभी हो सकता है जब लव की जरूरत महसूस हो । ये याद रहे कि लव ज़िहाद की शिकार सबसे ज्यादा शादीशुदा यानी 35 से 45 के बीच और बच्चियों 15 से 25 ये ही है बीच के उम्र की लड़कियां एक मुश्किल टारगेट होती है इनके लिए सेक्यूलर बिग्रेड काम करती है 


सिर्फ भारत मे ही नही विश्व के हर कोने में इसे सुनियोजित तरीके के चलाया जा रहा है बस इतना समझ लीजिए कि इस्लाम मे सिर्फ 2 चीज़े है इस्लामिक(मोमिन) गैर इस्लामिक(काफिर) और इनका काम है सिर्फ काफिरों को इस्लाम कबूल करवाना वो किसी भी तरह हो ।।

मैं कुछ दिन पहले uk में था एक न्यूज स्क्रॉल करने के दौरान मुझे ये मिला --

five men of Pakistani origin, found guilty of a series of sexual offences against girls as young as 12. They were jailed. The reason why it is in the news again is that an official inquiry into the failure of police and social services to take action has submitted its report now. Some 1,400 girls from the north England town of Rotherham were sexually exploited between 1997 and 2013, and the inquiry found “blatant’’ collective failure on the part of the police and other local authorities to stop it.


"5 पाकिस्तानी मूल के इस्लामिक लड़को ने 1400 लड़कियों का सेक्सउली हररेशमेंट किया और उन्हें ब्लैकमेल करके इस्लाम कबूल करने के लिए मजबूर किया वो पकड़े गए और सजा हुई "


सैकुलरिस्ट ‘लव जिहाद’ को स्वीकारने से इन्कार करते हैं जबकि दक्षिण भारत के केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, झारखंड, उत्तर प्रदेश में यह चरम पर है। केरल के पूर्व माक्र्सवादी मुख्यमंत्री वी.एस. अच्युतानंदन ने सार्वजनिक तौर पर कहा था कि समूचे केरल के इस्लामीकरण की साजिश चल रही है।  


दिसम्बर, 2009 में केरल उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के.टी. शंकरन ने ‘लव जिहाद’ पर कटु टिप्पणी करते हुए कहा था, ‘‘ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि प्यार की आड़ में जबरन मतांतरण की साजिश चल रही है। छल और फरेब के आधार पर इस तरह के मतांतरण को स्वीकार नहीं किया जा सकता।’’


इससे काफी पहले सन् 2006 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ ने भी तत्कालीन प्रदेश सरकार से पूछा था कि केवल हिन्दू लड़कियां ही इस्लाम क्यों कबूल रही हैं? न्यायमूर्ति राकेश शर्मा ने तब टिप्पणी की थी, ‘‘न्यायालय के सामने लगातार ऐसे मामले आ रहे हैं, जिनमें हिन्दू लड़कियों से इस्लाम कबूल करवाने के बाद उनका निकाह मुस्लिम लड़कों के साथ कर दिया जाता है। निकाह के बाद उनका पता-ठिकाना नहीं मिलता।’’ सैकुलरिस्ट अदालतों की इन टिप्पणियों को कैसे नकारेंगे?


लव जिहाद’ के अंतर्गत हिन्दू युवतियों से निकाह के बाद इन युवकों का असली चेहरा सामने आता है। ऐसी युवतियों को बाहरी दुनिया से सम्पर्क नहीं करने दिया जाता। उनका अधिकांश समय आतंक, जिहाद और अंतत: उनके द्वारा अपनाए गए नए मजहब की जीत का महिमामंडन करने वाली वीडियो या पर्चों-पुस्तकों को देखने-पढऩे में ही व्यतीत होता है। यह सब कुछ उन्हें जिहादी बनाने और आत्मघाती मानव बम बनाने की रणनीति का हिस्सा है। अभी हाल तक अधिकांश मुस्लिम युवक हिन्दू युवती से प्रेम विवाह मजहबी जुनून से प्रेरित होकर करते थे और इस ‘सवाब’ के काम में अक्सर उसके परिजन भी सहायक होते थे क्योंकि एक काफिर ‘मोमिन’ हो गई। अब इस मजहबी जुनून को जिहाद का अस्त्र बना दिया गया है।

#डॉ_मधूलिका_मिश्रा_त्रिपाठी


रविवार, 4 दिसंबर 2022

#life_is_not_a_bed_of_roses




कहते हैं ,जीवन की नींव बचपन में ही पड़ जाती।हमें  बच्चे के व्यक्तित्व को किस रूप में ढालना ये उस पर निर्भर करता कि हम उसे क्या सिखाते। हम बच्चों के लिए उस पड़ाव में हद से ज्यादा रक्षात्मक हो जाते। कोई भी नकारात्मक विचार से उसे दूर रखने का प्रयास करते। कोई भी घटना जो हमें लगता कि  बच्चों के मन में प्रश्न जगा सकती,उससे दूर रखने का प्रयास करते। शारीरिक रूप से भी उसे कोई चोट न पहुंचे इसके लिए हम जरूरत से पहले ही मौजूद रहते। भूख -प्यास महसूस न हो इसका इंतज़ाम भी यथासंभव करते। परी कथाओं को सुनाकर उसे सुनहरे सपने और एक खूबसूरत दुनिया दिखाते। अक्सर  सफलता की होड़ में अग्रणी होने पर सफल बताते,और ये प्रयास भविष्य में भी उसे आगे और सफल रखेंगे ,ये समझाते रहते। 

कुल मिलाकर एक सुनहरा सा दायरा बना देते हैं जिसमें सच्चाई कम ,अपेक्षा ज्यादा होती। पर आज अगर मैं आपको कहूँ कि आप ऐसा करके एक इंसान को कमज़ोर बना रहे तो शायद आपको मुझ पर ही हंसी आएगी। 


फर्ज़ करिये एक बच्ची थी,बेहद कुशाग्र ,हर दिल अजीज़, हर काम में बेहतरीन, हँसमुख ,हर जगह महत्व पाने वाली। उसे सिखाया गया कि जीवन ऐसा ही होगा।तुम्हारी शर्तों पर जी सकोगी। हमेशा इन खूबियों के साथ वो छाई रहेगी,अपने सुनहरे दायरों में। एक वक्त तक उसे सब सच लगा। अपनी खूबियों ,सपनों से उसे प्यार था। उसका होना उसे कुदरत का उपहार लगता।  वो बड़ी हुई ,उसका विवाह हो गया।  सुनहरी दुनिया रंग बदलने लगी थी। उसकी खूबियों में पहले जहां उसकी वाहवाही होती थी,अब वो दम तोड़ने लगी थी। उनके लिए ही उसे ताने मिलते, जो उसे उसकी ताकत लगते थे।उसके सपनों को समर्पण का जामा पहनाने की अपेक्षा और कवायद हुई। उसके होने का मतलब ,सिर्फ दूसरों की इच्छा अनुसार ढलना। उसे समझ आया कि कल जिन बातों को लेकर उसे बताया गया कि ये तुम्हारी सफलता की सीढ़ी है,वो अर्थहीन है। उसके सपने ,उसकी महत्वाकांक्षा ही आज उसका दम घोंट रहे थे। उसे अब लगने लगा कि काश उसकी आँखों में इतने बड़े सपने न डाले जाते,उसे ये न बताया जाता कि वो विशेष है। काश उसे बेहद आम बताया जाता ,उसे बोला जाता कि जीवन संघर्षों के नाम है।काश उसे  बताया जाता,की कर्म नहीं ,भाग्य ही प्रबल होता। जो उसकी विशेषता ,वो कोई गुण नहीं ,बल्कि सिर्फ विधा है। उसे ये ना बताया जाता कि तुम्हें कुछ विशेष करना है… काश उसे बताया जाता कि आम सा जीवन होना ही सच है। जिसमें कोई उद्देश्य नहीं हो सिर्फ एक नियमित दिनचर्या के अलावा। ऐसी स्थिति में वो ऐसी टूटी कि जिंदगी से ही उसका मोह भंग हो गया। 

वास्तव में जीवन का सच हमें बचपन से ही बताना चाहिए। बताना चाहिए कि हर कदम श्रेष्ठ होने पर भी जीवन मे सफल हो जाओ ये जरूरी नहीं। कोई लूज़र माना जाने वाला इंसान भी तुमसे बेहतर जिंदगी जी या साबित  हो सकता। बताना चाहिए कि तुम इतने भी विशेष नहीं ,तुम आम से इंसान हो ,जो कई अरबों में एक हो। हमेशा सपनों में मत रहो, एक आम सी दिनचर्या भी जिंदगी होती। हर वक़्त मत हाज़िर कर दीजिये उनके पंसद का खाना,तेज़ भूख महसूस होने दीजिए,प्यास महसूस होने दीजिए। उनकी मर्ज़ी मत चलने दीजिये,उन्हें  समझौते सिखाइये। रोने पर हमेशा अपना कंधा मत दीजिये ,बताइये की खुद चुप होना सीखना होगा। कहीं चोट लगने की स्थिति में आप आगे मत आइये, लगने दीजिये उसे चोट,ताकि कल वो किसी के भरोसे खुद को सम्हालने की कोशिश न करें। उसे परियों की कथाएं नहीं,असली जिंदगी की कहानियां बताइये। जिसमें दुःख हों,तकलीफ हों,बीमारी हो ,भूख हो। समाज से मिले तिरस्कार हो,जिनमें मृत्यु का भी जिक्र हो। ताकि कल जब उसे अपेक्षित कल न मिल पाए तो वो टूटे नहीं। बल्कि सहज ही असफलता को भी स्वीकार कर जीता रहे। उसे बताइये की हर कहानी का अंत सुखद नहीं होता,कुछ में त्रासदी भी होती। जिस दिन ये सब सीख लेंगे,जान जाएंगे यकीन मानिए,आतमघात की प्रवृत्ति खत्म हो जाएगी। 

क्योंकि तब उन्हें पता होगा #life_is_not_a_bed_of_roses…. तब कांटे उन्हें जीवन का अंग लगेगें। आखिर सुख से ज्यादा जीवन दुख ही देता।