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गुरुवार, 29 दिसंबर 2022

संवेग

 



धुंधली दृष्टि,आंसुओं से।

उबलता खून ,धमनियों में।

अभी तरलता, कभी विरलता,

अभी डूबता,कभी उबरता।

अभी कठोर,कभी आक्रांत,

अभी कोलाहल,कभी एकांत।

अन्तस् ,अनंत सा।

विचार,शून्य सा।।

उंगलियों के पोरों से ,

छिटकते कई भाव।

प्रवाह है निरंतर,

हाँ पर रुके हैं ,

भावों के प्रमाद।।

#डॉ_मधूलिका_मिश्रा_त्रिपाठी

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