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शनिवार, 31 दिसंबर 2022

#चरैवेति

 



लीजिये ,ये भी चला ही जा रहा। रोके कब रुकता है.....ये पल,ये जीवन,और ये आवगमन चक्र ही संसार की निरंतरता का पर्याय। आज हम जिसका इंतज़ार कर रहे,वो पल आएगा और पलक झपकते ही वो #गत भी घोषित हो जाएगा। और इन्हीं में हम उत्सवों के अवसर तलाशते। किसी का जाना भी उत्सव का कारण!!!!!!! जैसे मृत्यु आत्मा का अवसान नहीं ,बल्कि जीवन का सतत अंग है। ये निशानी है ,ना ठहरने की.....चलते जाने की..... गुजरते हर पल में गुज़र जाने की......।

अगले पल या पीढ़ी को अपना स्थान देने के लिए खुद से रिताने की प्रक्रिया का माध्यम ......उत्सवों के आह्वान ।
विगत को याद रखने ,आगत के स्वागत के लिए, निरन्तरता के औदार्य प्रश्रय की प्रक्रिया ........ उत्सवों का भान।

जो जा रहा वो दीर्घ जीवनाक्रान्त #महीनों के बंधनों का अंत है। बिना किसी भूमिकाओं के जिज्ञासाओं का अंत है। कई प्रतीक्षाओं के अधूरे होने पर भी एक निश्चित अवधि का अंत है। किंतु जो समाप्त हो रही वो सिर्फ अवधि ,समय निरन्तर है। नवीनीकृत पुरातनता का मापक - समय ।

ये आपके लिए नवीन हो सकता, किन्तु ये सर्वमान्य नवीन नहीं। कोई अभी इसे रुका मान रहा,तो किसी की चेतना में इसकी अनुभूति नवीन नहीं। कोई व्यवहारिक दृष्टि से अपने संस्करण में इसे नवीन नहीं पाता तो कोई इसे सिर्फ काल  गणना समझता .....।

जो बीत रहा ,वो सिर्फ एक दृश्य है, दृश्य की सत्यता स्थायी नहीं। स्वयं को दृष्टा के रूप में विलय कर सिर्फ उसकी अनुभूति ही सत्य है और वही जीवन की वास्तविकता और विशेषता। तो प्रतिपल के पुनर्जन्म के साक्षी होकर स्वयं में प्रतिपल नवीन अनुभूति को पुनर्जीवित करते रहिये। आलोकित रखिये जीवन के अनंतपथ को स्वयंप्रभा से। भले ही वो  तिमिर पथ पर आपके चरणों के आगे ही एक मद्धम से प्रकाश से पथ का आभाष प्रस्तुत करे... पर निरन्तर रखिये  ,तरल रखिये ,सरल रखिये। जीवन को बढ़ने दीजिये ....उस पथ पर जो अनंत है। शिव ,शिवकारी हों।
गत  से उत्तरोत्तर आगत की ओर कदम बढ़ाने की शुभकामनाएं 🙏🙏🙏

#डॉ_मधूलिका_मिश्रा_त्रिपाठी

#ब्रह्मनाद 


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