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सोमवार, 26 दिसंबर 2022

संस्मरण - वायलिन की धुन

 




बात पुरानी हो चुकी पर जब जब वायलिन की धुन सुनती ,वो स्मृति चंदन कि तरह भीनी भीनी महक उठती। वर्ष 2001 ठंड शुरू हो चुकी थी। हम सभी परास्नातक की छात्राएं सेमिनार और सेमेस्टर एग्जाम की तैयारी में जुटे थे। 

होस्टल में खाना मिलने का वक़्त शाम 6 से 7.30 तक था ....लगभग सभी खाना खाकर शाम की प्रार्थना के बाद पढ़ने से पहले कुछ मौज मस्ती की तैयारी में थे। अचानक होस्टल के स्पीकर में कॉल हुआ सभी छात्राएं कॉलेज ऑडिटोरियम में इकट्ठी हो। 

लीजिये हम सबके चेहरे में 8 बजे ही 12 बज गए ,पूरे दिन में सहेजा गया ये समय न जाने किस मोटिवेशनल स्पीच या संगीत कार्यक्रम की भेंट चढ़ने वाला था।

दरअसल कॉलेज बन्द होने के बाद हम होस्टल की गाय भेड़ बना कर हांक ली जाती थी 😂😷... 

खैर आदेश था तो पालन भी किया। प्रस्तुत आगत को लगभग कोसते हुए हम सब लड़कियां ऑडिटोरियम में इकट्ठे हुए। वाईए इस वक़्त कॉलेज में प्रवेश एक अलग सुकून भी दे रहा था,क्यों????? अरे ना प्रेक्टिकल का टेंशन ,ना कोई लेक्चर क्लास।

जाकर ऊँघते हुए हम सब कुर्सियों में जम गए, कुछ को चुहल सूझ रही थी,कुछ नाक चढ़ाए बिसूर रही थी। 

लीजिये हमारी होस्टल की वॉर्डन मैडम ने स्टेज से घोषणा की कि अभी आपको श्री .......जी का वायलन वादन सुनने को मिलेगा। 

सबने माथे पे हाँथ रख मुँह में कुछ बुदबुदाया सा, हे राम किसी गायक को भी बुला लेती  जो ख्याल ,भैरवी ,यमन ,दीपक राग से हम सबके सब्र का इम्तेहान ले सके 😥 😠 और कुछ चमची टाइप कन्याओं ने वाओ मैम कह कर गुड गर्ल लिस्ट में  अपनी रैंकिंग ऊपर की। 😇


अब ओखली में सर गया तो मूसल पड़ना ही था।

सभी कलाकारों ने मंच पर जगह लेकर ,अपना परिचय दिया। अफसोस मुझे नाम याद नही अब :( .....

उन्होंने शुरुआत की" ऐसी लागि लगन" भजन की स्वर लहरी से।

ये क्या हम सब चुपचाप ,एकटक मुग्ध से उनके वाद्य यंत्र के स्वर और नाद को सुनने लगे।

लय बढते हुए "जादूगर सैंया,छोड़ मोरी बैय्यां" ,

"ओ बसंती पवन पागल"  जैसे कई गीतों की स्वर लहरी से होते हुए सफर थमा 

" वंदे मातरम " पर।

बिना बोले हम सब अपनी सीट छोड़ खड़े हो गए। 

पता नही क्यों मेरे सहित बहुत सी लड़कियां भाव विभोर थी। भावातिरेक में मेरे रोंगटे खड़े हो गए थे ,और आंखों की दृष्टि आसुओं की वजह से धुंधली हो गई थी। 

आते वक्त जिन पर हमारा गुस्सा अप्रत्यक्ष रूप से बरस रहा था ,जाते वक्त हम सब नत थे उनकी प्रतिभा के सम्मुख। 

कहाँ हम सोच कर आए थे कि ये संगीत हम सबके  पल्ले नही पड़ने वाला ,कहाँउस रात से लेकर कई दिन तक वो हमारे दिमाग मे गूंजता रहा। आज भी जादूगर सैंया ,और वन्दे मातरम मुझे कानों में बजता सा सुनाई दे रहा।

सच में संगीत वो नहीं जो आपको किसी विशेष ज्ञान से ही महसूस हो,,, संगीत तो वो जो सहज ही आपकी आत्मा,हृदय और जेहन में प्रवेश कर जाए। वो आपको यूँ आत्मसात कर ले,जैसे जीवन आपको महसूस होता। 

वाकई जीवन भी एक संगीत है ,आत्मा का ,सांसों को ,उसको समझने के लिए दिमाग मत लगाइए,मन को मुक्त कर दीजिए उसे ग्रहण करने के लिए।

ये बात मैंने उस दिन महसूस की, आप आज महसूस करिये। 

सुनिए सासों के मधुरतम संगीत को ........

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