पेज

मंगलवार, 29 अगस्त 2023

रक्षाबंधन विशेष अगस्त २०२३


 

होssssss
कभी भैया ये बहना ना पास होगी,
कहीं परदेश बैठी उदास होगी।

बचपन में इस गीत को सुनकर मैं और छोटा भाई  आंसू बहाकर इमोशनल दिखाने का नाटक करते फिर दोनों ही बहुत हंसते थे। उस दिन हमारी लड़ाई होना भी तय  होता था। एक दूसरे से मुंह फुलाए राखी नहीं बांधने - बंधाने की धमकी और अंत में मेरे भैया लिखी हुई बड़ी सी चमकीली फोम वाली राखी बांधने की धमकियास्त्र से राखी की शुरुआत होती। तब दिन अलग थे, हम साथ थे ,एक जगह ,एक छत के नीचे। जीवन में संघर्ष के नाम पर बस पढ़ाई में अच्छा प्रदर्शन करना और सबसे आगे रहना ही पता था। राखी गीत ;तब हम दोनों को एक दूसरे को खिजाने का साधन थे। ना तब उन गानों की गहराई समझते ना ,ना ही उसके शब्दों से ज्यादा भाव ग्रहण करने की स्थिति।
खूब मार कुटाई करते एक दूसरे के साथ।कहने को भाई मुझसे छोटा पर लड़ते हुए दोनों बराबर के बन जाते। मां से सजा मिलने पर भी ढीठ जैसे एक दूसरे को चिढ़ाते और सजा की तीव्रता और पीड़ा को कम करने का उपाय भी ढूंढ कर एक दूसरे को बताते। जैसे की गर्मी की तपती छत पर बिना स्लीपर के खड़ा करने की सजा मिलने पर छत पर गिरे पत्तों को इकट्ठा कर पैरों के नीचे रखकर राहत पाना......... और भी बहुत कुछ यादें इस राखी के त्यौहार के आते ही महकने लगती । तपती धरती पर गिरी पहली बारिश के बाद की सौंधी सी खुशबू जैसी। जो बेचैन भी करती ,सुखद भी लगती।
समय के पहिए की बदली चाल से आज राखी के दिन भी  अपनी- अपनी जिम्मेदारियों के चलते हम दोनों बहुत दूर हैं। रास्ते में गुजरते हुए या नेपथ्य में चलती TV में राखी गीत बरबस ही आंख नम कर जाते । कभी भैया ये बहना ना पास होगी, कहीं परदेश बैठी उदास होगी, अब बस गाना नहीं बचा ,बल्कि वो भाव बन गया जो सबकी नजरों से बचाते हुए नम आंखों की कोरों से चुपके से ढलक कर गालों  तक अनायास ही चला आता। अब उन गानों को सुनकर हंसी नहीं आती, टीस उठती है ,की जिम्मेदारियां कितनी बड़ी हो जाती कि एक रिश्ते की डोर के दो सिरों पर जुड़े दो लोग चाह कर भी नहीं मिल पाते।
सच में कई राखियां अब इन गीतों को सुनकर बस गालों पर बनी आंसुओं के चिन्हों के साफ करने पर गुजर जाती।
बचपन की लड़ाइयां अब नाजुक एहसास का खजाना लगते। राखी से जुड़ी यादें ,वो उत्साह..... सपने होकर भी सबसे कीमती दौलत लगते। अब अगर किसी राखी में भाई पूछेगा की क्या चाहिए तुम्हें तो बोलूंगी एक बार ही सही वो बचपन की राखी का एहसास वापस ले आओ।

सच में राखी बचपन की मासूमियत समेटे ,सबसे खूबसूरत वक्त की थाती जैसे सुरक्षित रखने वाला त्योहार है।जिसके रेशमी धागों के स्नेह और शीतल स्पर्श को लाखों  शुभकामनाओं और आशीर्वाद के साथ अपने भाई की कलाई में हर साल खुद सजाना हर बहन की चाहत होती है।
खैर आज भाई से दूर बैठी हर बहन की तरफ से यह कामना करूंगी कि बहन की राखी; भाई की याद में नहीं ,बल्कि भाई के साथ में ही बीते । गानों के अर्थ भी समझे जाए पर भाई और बहन के साझे स्नेह के सानिध्य में। जिसमें अपने भाइयों की अपनी  नजरों से बलाऐं उतारते हुई बहने लाड़ ने भरकर शगुन के लिए लड़ें ,मनुहार करें , और भाई को राखी से लिपटे ढेरों सद्भावी कामनाओं और रिश्ते की मिठास से हमेशा परिपूर्ण रखें।
मेरे भाई सहित सभी बहनों के भाईयों की खुशियों और सफलता की कामना करती हूं और सभी के लिए  इस पर्व की निरंतरता अक्षुण्य रखने के लिए ईश्वर से प्रार्थना करती हूं.....
गुनगुनाते हुए........
चंदा रे ,मेरे भैया से कहना .....
बहना याद करे। 🙂

तुम्हारी बहन
#गुड़िया
#ब्रह्मनाद
#डॉ_मधूलिका