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गुरुवार, 27 अप्रैल 2023

एक प्रेयसी का रूपांतरण

 वो सुबह जागने से लेकर ,सोने के बाद तक मेरे साथ रहते हैं। सुबह का पहला ख्याल रात्रि के अंतिम पहर का स्वप्न भी है। सुबह नींद खुलते ही एक टीस सी उठती, खुद में एक ख़लिश सी महसूस होती लगती। हर वक़्त उन्हें अपने पास चाहती ,एक साये की तरह साथ रहना चाहती जो अंधेरे में उनमें ही समा जाती। तकिए की बजाय उनके हांथों का सिरहाना हो, कभी वो मेरे सीने पर सर रखकर इतनी निश्चिन्त नींद लें कि सुबह उठने पर उनके चेहरे  और कनपटी का वो तरफ पसीने से तर मिले जो मुझे स्पर्श कर रहा था । 


दोनों में से किसी एक कि नींद खुले तो दूसरे को खुद की ओर हल्की मुस्कान और ढेर स्नेह से तकते हुए पाए। सुबह अपना अक्स आईने से पहले उनकी आंखों में देखूं। कभी उनके कांधों पर अपने हाँथ रख उनकी बलिष्ठ भुजाओं में बेफिक्र झूल सी जाऊं,इस भरोसे से साथ कि वो ताउम्र मुझे कभी गिरने न देंगे।  उनके थकान से चूर पसीने से तर बदन की खुशबू अपने बदन में समेट कर उन सी महकती रहूं। मैं अपना हर दिन आभाष नहीं बल्कि स्पर्श कर अनुभव में बिताना चाहती हूं। जीना चाहती हूं उन्हें अपनी हर सांस ,हर चितवन ,हर मुस्कान , हर छुअन में। 


न जाने कबसे  यही  सब ख्वाब संजोए वक़्त को उसकी गति से दौड़ने से रोक नहीं पा रही हूँ। जितना शिद्दत से पकड़ना चाहती उतनी तेज़ी से फिसल जाता है।वो जब आए थे तब उम्र और उसके निखार का ओज चरम पर था। जब मुस्कान आकर्षण के दायरे को समेट कर होठों में सिमट जाती थी। हर तकलीफ को परे रख मुस्कुराते रहने की जिद थी। शायद एक अल्हड़ता थी जो उस वक़्त जीवित थी। अब परिपक्वता से आगे बढ़ती हुई एक प्रौढ़ स्त्री हो चुकी हूं। जिसकी मुस्कान अब मोहक नहीं डरावनी दिखती। क्योंकि अब उम्र की रेखाएं कई तिर्यक काट के रूप में उभरने लगती। बहुत कुछ उम्र के साथ खोती सी जा रही। बाहरी और भीतरी परिवर्तनों का दौर जैसे बीत सा गया अपनी अंतिम परिणीति पाने के लिए। अब ठहरी हुई गम्भीरता कहीं गहरे घर कर रही। सेल्फी में अब दंतपंक्ति भी नहीं दिखती।याद करके मुस्कुराना पड़ता। अब दिखती है तो एक गम्भीर , निरुत्साही ,जीवन को बस काटने की सोच लिए हुए  एक औरत ,जो अब प्रेयसी होने की सोच से कहीं अंदर धंसी सोच में जीने लगी। प्रेयसी होती तो लड़ती, हक मांगती, रूठती ,मनाए जाने को आतुर रहती, नखरे दिखाती। पर अब प्रेयसी नहीं बची। बदल चुकी हूँ उस औरत में आकाश की तरह अपने प्रिय के लिए छा जाना चाहती ताकि उसे जीवन की चुभती धूप से बचा सके,और धरती की तरह थाम लेना चाहती रुकने के लिए एक मजबूत आधार देकर ,उसे ठौर बना देने के लिए। जो मेरा मालिक ...उसके लिए अब प्रेयसी नहीं ...... माँ का वात्सल्य समेट कर ,दोस्त का धैर्य समेट कर, बहन सी चंचल और विनोदिनी और अंत मे अपना सब कुछ उनके लिए समर्पण और विसर्जन कर देने वाली अर्धांगिनी होने   वांछना शेष। 


एक आस अब तक शेष है ..... क्योंकि अब तक सांस शेष है.... मैं बसूं उसमें उसकी रूह की तरह, और रहूं उसके सीने में उसकी धड़कन की तरह। ❤️

#डॉ_मधूलिका मिश्रा त्रिपाठी

#ब्रह्मनाद 


सोमवार, 24 अप्रैल 2023

#विश्व_पुस्तक_दिवस




किताबें और मैं:)

मैं अक्सर किताबें पढ़ते हुए कहीं खो जाती हूँ। दरअसल मैं पढ़ती नही हूँ , मैं किताबों को जीने लगती हूँ। उनके किरदारों में ढल जाती हूँ।मैं #पीताम्बरा पढ़ती ,तो मीरा हो जाती, मैं खो देती खुद को आराध्य कृष्ण में। मुझे संसार बेमानी लगने लगता। उस पीड़ा को जीती जो मीरा ने जी थी, उतनी उदात्त और उदारमना भी हो उठती। 

मैं #कृष्ण_की_आत्मकथा पढ़ती तो कृष्ण हो उठती। ईश्वर नहीं ,महामानव जिसकी सहायता कई साधारण मानवों और कई नाटकीय घटनाक्रम सहित प्रकृति भी करती,ईश्वरत्व पाने को। 

#सोमनाथ में कभी अभिजात्य जीती ,कभी पीड़ा । मैंने उस महान काल को खुद में गुजरता महसूस किया। सोमनाथ के गर्भगृह पर पाया खुद को, तो  शिव के सम्मुख  ,पूरे नगर के सामने कला प्रदर्शन को प्रस्तुत ;एक देवदासी की किंचित निराश किन्तु उद्दीप्त आभा की प्रतिदीप्ति खुद में महसूस की,अंत मे मातृभूमि छोड़ने की व्यथा भी। 

#शेखर पढ़ते हुए मैं विद्रोही हो उठी, व्यवस्था और आडम्बर से दूर , रूढ़ियों को खुद में गलाती हुई ,मैं विद्रोही हो गई। 


कभी मैं द्रौपदी का द्वंद जी, कभी कर्ण का त्याग,कभी उर्मिला सी जड़ हो गई।  मैंने आदिवासियों का सहज जीवन जिया, कभी उनमे ढल कर जंगल मे खो गई। कभी शरदचन्द्र की रचनाओं की  सदहृदयी बड़ी कोठी की मालकिन हुई,कभी किसी मुनीम की मासूम सी बेटी जो कौतूहल से हवेली में कदम रखते हुए किसी लक्ष्मी पुत्र की नज़र में आ जाती। आगे उसकी जिंदगी सिर्फ भूल भुलैया बन जाती। 


मधुशाला के रहस्य को छायावादी बना कर उसका खुद में प्रकृतिकरण किया। हर नायक का संघर्ष , हर नायिका का त्याग, अंतर्द्वंद्व ,ना जाने कितने भाव मुझे खुद में जगह देते हैं। खुद में खोकर नायकत्व पाने को। 


कभी भुवाली के सेनिटोरियम की मरीज की सेविका होती, कभी डॉ । शिवानी के रूप में प्रस्तावना लिखती ,तो उसकी काली मोटी पर अल्हड़, जिंदादिल  नायिका भी  । उसकी सद्यस्नाता नायिका तो सदा मुझमे ही रहती है। 

मैंने जापान की दुर्दशा देखी। मैंने यूरेनियम खदानों की विकिरण की मार झेली। मैं कभी मूक पर आंखों से बोलने वाली पात्र हुई, कभी अपने चुके अभिजात्य को याद करती और उसके दम्भ को अब तक अपनी अकड़ में जीती बुढ़िया भी।

ना जाने कितना कुछ जीती हूँ इन किताबों में। जितनी किताबे पढ़ती गई,उतने ही किरदार में ढलती गई। कभी राष्ट्रवादी,कभी आक्रांता . ..कभी पतित ,कभी पावन ,कभी सन्यासी हुई ,कभी संसारी। सारे रस खुद में पाई। कवित्त की प्रेरणा बनी तो कभी लेखक हुई। कितने भूखंडों का विस्तार मुझमे हुआ,कितने फूलों की खुशबू मुझमे समाई। 

दुनिया मे रहकर भी ,एक अलग दुनिया मुझमे बसने लगती। जो लोगों के लिए अनदेखी होती ,पर मेरी आत्मिक अनुभूति होती।


उस वक़्त तुम मुझे नहीं ढूंढ सकते। मैं #मैं नही बचती।।मैं किताब जीती हुई किरदार हो जाती हूँ।


हां मैं किताबे पढ़ती नहीं, #मैं_किताबें_जीती_हूँ। 


©®डॉ. मधूलिका मिश्रा त्रिपाठी

गुरुवार, 20 अप्रैल 2023

अपने अपने युद्ध



कोई बाह्य युद्ध मे रत तो कोई आंतरिक से जूझ रहा है। घरों में रहने वालों के चारदीवारियों के भीतर का युद्ध,एक कमरे में रहते हुए अलग-अलग लोगों का भी युद्ध एक तरह का नहीं होता है। 


कुछ अपनी परिस्थितियों से युद्ध कर रहे होते हैं। तो कुछ अपने ही मन में एक युद्ध निरंतर जी रहे होते। कुछ भाग्य से लड़ रहे होते, कुछ ईश्वर से युद्ध मे होते...... उनकी लिखी नियति को अस्वीकार कर अपने ध्येय को पूर्ण करने के लिए। जितने लोग, उतनी ही सपने और उतने ही युद्ध। कोई किसी से दूर जाने का युद्ध लड़ रहा तो कोई किसी को पास लाने के लिए अपने आस पास के लोगों से....कोई त्रिशंकु सा अपनी ही मनोस्थिति के बीच युद्धरत। कोई पहचान का युद्ध कर रहा ,कोई अधिकार का ,कोई अस्तित्व का । 


हथियार सबके भिन्न होते हैं... कुछ के इतने मारक के एक जीव समूह का विनाश करते ,कुछ परिवेश का और कुछ खुद के लिए भी घाती। घृणा ,क्रोध , प्रेम , सामंजस्य , अभद्रता और न जाने कैसे -कैसे हथियार ।


 अंदर युद्ध ,बाहर युद्ध ,जीवन वास्तव में सरल नहीं बल्कि एक रनक्षेत्र है। बाहर होने वाले युद्ध की भर्त्सना होती ,शान्ति के प्रयास होते। कुछ पक्ष ,कुछ विपक्ष में होते। किंतु अंदर के युद्ध ......उसका क्या ???

 

 क्या यह सम्भव नहीं कि अंदर के युद्ध जीत कर हम बाहर युद्ध की स्थिती ही न बनने दें । सम्भव क्या?????? असम्भव है....। जीवन एक समर है ,जहां धरती पर पहली सांस लेते ही शुरू हो जाते अंतहीन युद्ध.... जब तक आस है ,जब तक सांस है।

रविवार, 2 अप्रैल 2023

लड्डू के डैडा और मम्मा की कहानी : ऑटिज्म अवेयरनेस डे विशेष

 




डैडा

हां मेरी डॉल

डैडा हगी हगी कर लो।

आ जाओ डॉल।

डैडा की डॉल उन्हें जोर से hug करके गोद मे बैठ जाती है।


लड्डू- डैडा ,रात नहीं आएगी। वो अपनी आदत अनुसार ये बात लगातार दोहराते हुए रोती रहती है।


लड्डू की मम्मा आकर उसे आंख दिखाते हुए शांत रहने को बोलती है ,और कहती है तुम्हारे कहने से रात होना बंद नहीं होगी। और लड्डू पर आंखें तरेरती है। डॉल के डैडा को मम्मा का रवैय्या नहीं पसन्द आता और वो लड्डू की मम्मा को अंदर जाकर अपना काम करने कहते हैं। लड्डू और तेज़ रो रोकर डैडा के सर पर बैंड बजा रही होती है। डैडा उसे चुप कराते हुए रात नहीं होने का कारण पूछते हैं। लड्डू जवाब न देकर कहती है ,मुझे मॉल जाना है। डैडा गुड्डा को बोलते हैं बस इतनी सी बात हम तो रात में भी मॉल चल सकते। डैडा उसे उन्ही कपड़ों में गाड़ी में बिठाते और लेकर निकल जाते।घर के ही आस पास चक्कर लगा कर वो उसे गार्डन में ले आते। उनके पास कुछ चॉकलेट्स और चिप्स के पैकेट भी होते। जिसे वो गार्डन के एक प्लेटफॉर्म में रख देते। लड्डू को कहते चलो अब यहाँ हम मॉल बनाएंगे। और लड्डू को स्लाइड पर खिलाते। और लड्डू सब भूल कर मजे से खेलने लगती। थोड़े देर में डैडा उस प्लेटफॉर्म पर बैठ कर शॉपकीपर बन जाते। लड्डू उनसे खेल खेल में चिप्स और चॉकलेट खरीदती ,बदले में नोट नहीं ,बल्कि जामुन और आम के कुछ पत्ते देती। जिसे डैडा बहुत सम्हाल कर अपने पास रख लेते। फिर वो लड्डू से कहते अब घर चलना ,डिनर टाइम।चलो गाड़ी में बैठो,लड्डू थोड़े नाटक के साथ गाड़ी में बैठ जाती। डैडा फिर एक चक्कर लगा कर वापस घर आ जाते और मम्मा को बोलते, हम लोग तो मॉल घूमकर आए। डिनर टेबल पर भी मम्मा मुँह फुलाए खाना परोसती। लड्डू डैड से बिल्कुल चिपक कर खाना खाती। और फिर कुछ पज़ल खेलने के बाद उनकी ही गोदी में दुबक कर सो जाती। उसे बेड पर लिटाने के बाद उसके दिए हुए पत्ते अलमारी में एक डब्बे में सहेज कर रखते। लड्डू की मम्मा का गुस्सा फिर उबल पड़ता- आप अब ये कचड़ा भी इतना सम्हाल कर रखेंगे। लड्डू के डैडा लड्डू की मम्मा जो बेड पर किनारे अपने गोद में बिठाते हुए कहते। आपको ये कचड़ा लगता। ये मेरे लिए दुनिया की सबसे महंगी करेंसी है,जो मेरी प्रिंसेस ने मुझे दी। इससे मुकाबले पूरी दुनिया सस्ती। और आप अब इतना गुस्सा करना छोड़ दीजिए। लड्डू को आप हम नहीं समझेंगे तो दुनिया कैसे समझ पाएगी। आपको पता कि लड्डू के सोचने ,दर्शाने का तरीका अलग। लड्डू अगर आम जिंदगी जीती तो क्या इतनी परेशानियों को जानबूझकर अपने ऊपर हावी होने देती? क्या आपकी एक डांट से सब सही नहीं बोलती या करती? क्या आपको लगता उसे जो आता वो जानबूझकर नहीं करती,या हम उसे समझा नहीं पा रहे जो उसे जानना चाहिए। लड्डू की क्या गलती जो उसे ये सब झेलना पड़ता। वो चाह कर भी एक आवरण नहीं बना सकती।वो जैसी है ,वो वैसी ही दिखती।उसे फर्क नहीं पड़ता लोग उसके लिए कैसा सोचते।वो खुद में सच्ची है। और जानती हो न आप इस दुनिया में खुद से सच्चे रहना ,सबका मुश्किल । 

मैं जानता हूँ ,आप उसे मेरे से थोड़ा कम चाहते (ये बोलते हुए लड्डू के डैडा ,उसकी माँ की ओर तिरछी नजरों से देखकर हंसते हैं) और अगर मेरे बाद कोई उसकी भलाई सोचता तो वो आप हो,फिर अपना संघर्ष उस पर नाराजगी बना कर क्यों निकालते। आपको तो लड्डू के लिए वहाँ भी एडवोकेट बनना चाहिए जहां आपको लगे वो नही कर सकती,या नहीं समझ सकती।उसे आपके साथ कि जरूरत ,आपके गुस्से से वो डर और सहम जाती। और मैं नहीं चाहता कि लड्डू अपनी माँ का संघर्ष गुस्से से भरा देखे। उसे कभी ये न लगे वो आपकी जिंदगी में मुसीबत बढा रही।उसे ये लगना चाहिए कि उसकी मां हर स्थिति में उसे प्यार करेगी,भले ही वो सामाजिक रूप से सफल हो या असफल। आप हमेशा उस पर गर्व करोगे। 

लड्डू की माँ लड्डू के डैडा के सीने पर सर रखकर फूट फूट कर रो पड़ती। ये रुलाई लड्डू की समस्या नहीं बल्कि एक माँ के रूप में उसकी कमजोरी के लिए थी। लड्डू के डैडा का सीना बिल्कुल भीग गया। वो उसे और जोर से भींच लेते हैं। उनकी आंख भी साथ ही बह रही होती। वो 2 जोड़ी आंखे एक कहानी के किरदार नहीं ,बल्कि माँ -बाप के अलावा एक दूसरे के हिस्से के रूप में उस वक़्त साझा भाव जी रहे होते।


#डॉ मधूलिका मिश्रा त्रिपाठी

#ब्रह्मनाद 


ऑटिज्म अवेयरनेस डे विशेष


 मैंने कई साल पहले एक मूवी देखी थी, "अंजली" ... उस वक़्त उस मूवी की लीड एक्ट्रेस जो कि एक बच्ची थी उसकी क्यूटनेस में ही खोई रही, मुझे उसकी स्टोरी उस वक़्त नही समझ आई थी। कुछ साल पहले कुछ और मूवी मुझे अंजली की याद दिला गई।"तारे ज़मीन पर", " माय नेम इज खान", "कोई मिल गया" और बर्फी ।

इनके किरदारों में एक समानता मिली ,सामाजिक व्यवहार और संवाद में दक्ष नही दिखे। इन मूवी के  किरदारों  बारे में खोज करने पर एक विशेष शब्द सामने आया "AUTISM" ( ऑटिज़्म) ..........


संवाद जीवन में बहुत विशेष भूमिका अदा करता है। ये ऐसा जरिया जिसके माध्यम से हम दूसरों से जुड़ते,अपनी इच्छाएँ, अपेक्षाएं सामने रखते ,और एहसास भी प्रकट करते।


ऑटिज़्म / ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम डिसॉर्डर एक ऐसा शब्द या शब्दावली  है ;जो क्षेत्रगत  व्यवसायिक दक्ष लोगों के द्वारा उन बच्चों के लक्षणों के लिए प्रयोग में लाया जाता जिन्हें सामाजिक व्यवहार ,खेलने, संवाद में समस्याएं होती। जो अपनी भावनाओं को प्रदर्शित करने में भी सक्षम नही होते। 

इसमे विभिन्न लक्षणों को भिन्नत करने के लिए S.P.D., A .S.D.  ,ADHD, P.D.D. ,Asperger syndrome, Hyperlexia, और Semantic pragmatic disorder  जैसे टर्म प्रयुक्त होते। 


आज वर्ल्ड ऑटिज्म अवेयरनेस डे है। मैं अभिभावकों से इन लक्षणों पर ध्यान देने के लिए अनुरोध  करती हूँ। खासकर #18 महीने से  3वर्ष तक की आयु के बच्चों में। यह समस्या समय पर उचित समाधान न मिलने पर गम्भीर रूप धारण कर सकती है। इसकी सचेत रहिए । इसलिए इन लक्षण पर बच्चे को परखें: - 


- अर्थपूर्ण वाक्य बनाने में काफ़ी कठिनाई ,

- दूसरों द्वारा बोले गए वाक्यों को दोहराने की प्रवृत्ति,

- अपनी बात समझने के लिए  संकेतों का ज्यादातर इस्तेमाल करना

- संचार के लिए भाषा ज्ञान कम या बिल्कुल न सीख पाना। 

- अपनी ज़रूरतों, भावनाओं को समझा न पाना या प्रकट न कर पाना। 


- प्रश्न को दोहराना ,कई बार सही उत्तर न दे पाना।


-अकेले खेलने की प्रवृत्ति , गोल गोल घूमने वाली वस्तुओं की ओर ज्यादा ध्यान देना।

-दिनचर्या में अचानक हुए बदलावों में स्वीकारता नहीं।

-अपने शरीर को आपके शरीर से या बेड या कोई भी दो वस्तुओं के बीच दबाव देने का प्रयास। 

- अपने नाम को पुकारे जाने पर प्रतिक्रिया न देना।

- ध्वनि, गंध, स्वाद, देखना और सुनने जैसे सम्वेदी व्यवहार में असामान्य प्रतिक्रिया।  

- अपने ही हांथों से खेलते रहना- पक्षी की तरह फड़फड़ाते रहना , ताली बजाना ।

- उनसे संवाद करते समय आखों के कोने से किसी अन्य ओर देखने।

 आप जिसे गम्भीर समझें, ज़रूरी नहीं  वो गम्भीर हो और आप जिसे मामूली समझे वो सामान्य ही हों।इसके लिए जरूरी है पूर्ण चिकित्सकीय परीक्षण । ताकि अगर वाकई समस्या है तो समय पर निदान और समाधान मिले।


पहली बार सन् 1938 में वियना युनिवर्सिटी के हास्पिटल में कार्यरत हैंस एस्परजर ने आटिज्म शब्द का इस्तेमाल किया था । एस्परजर उन दिनों आटिज्म स्प्रेक्ट्रम (ए.एस.डी.) के एक प्रकार पर खोज कर रहे थे । बाद में 1943 में जॉन हापकिन हास्पिटल के कॉनर लियो ने सर्वप्रथम ‘आटिज्म ‘ को अपनी रिपोर्ट में वर्णित किया था कॉनर ने ग्यारह बच्चों में पाई गई एक जैसी व्यवहारिक समानताओं पर आधारित रिर्पोट तैयार की थी। और ये लाईलाज बीमारी तीसरी सबसे आमफ़हम शारीरिक और मानसिक विकलांगता है।


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■ #ऑटिज़्म तंत्रिका संबंधी विकलांगता है जो दिमाग के सामान्य विकास में बाधा पहुँचाती है। इससे संचार, सामाजिक अंतःक्रिया, संज्ञान और व्यवहार पर असर पड़ता है। ऑटिज़्म को एक स्प्रेक्ट्रम विकार माना जाता है क्योंकि इसके लक्षण और विशेषताएँ कई मिलेजुले तरीक़ों से प्रकट होते हैं जो बच्चों को अलग अलग ढंग से प्रभावित करते हैं। कुछ बच्चों में गंभीर समस्या आ सकती है और उन्हें मदद की ज़रूरत रहती है जबकि कुछ ऐसे होते हैं जो हल्कीफुल्की मदद के साथ स्वतंत्र रूप से अपना कामकाज स्वयं ही कर पाते है।


ऑटिज़्म की सही सही वजह तो अब तक पता नहीं चली है लेकिन शोध बताते हैं कि ये आनुवंशिक और परिस्थितिजन्य या पर्यावरणजनित कारकों की मिलीजुली वजह से हो सकता है। पर्यावरणीय या परिस्थिति से जुड़ी वे विभिन्न स्थितियाँ हैं जो मस्तिष्क के विकास पर असर डालती है। ये जन्म के पहले या जन्म के फ़ौरन बाद उत्पन्न हो सकती हैं। ये भी देखा गया है कि बच्चे के केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को नवजात दिनों में कोई नुकसान पहुँचने से भी ऑटिज़्म हो सकता है।


ऑटिज़्म एक जीवनपर्यंत की स्थिति है और इसका कोई इलाज नहीं है। लेकिन सही थेरेपी और सही इंटरवेंशन से बच्चे को ज़रूरी कौशल सीखने में मदद मिल सकती है जिनसे वे अपनी ज़िंदगी को बेहतर बना सकते हैं। चूंकि 18 महीने की उम्र या उससे पहले ही बच्चे में ऑटिज़्म का पता चल सकता है लिहाज़ा बच्चे के बेहतर विकास के लिए काफ़ी पहले से मदद मुहैया कराई जा सकती है।

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■ मातापिता के लिए महत्त्वपूर्ण नोटः- 


"" ऐहतियाती क़दम के तौर पर, माता पिता बाल रोग विशेषज्ञों को ऐसे रूटीन विकास संबंधी टेस्ट करने के लिए कह सकते हैं जिनसे ये पता चल सके कि बच्चे का शारीरिक मानसिक और भाषाई विकास ठीक से हो रहा है या नहीं. ""


ऑटिज़्म की पहचान का कोई एक मेडिकल टेस्ट उपलब्ध नहीं है लेकिन कुछ विशिष्ट आकलन और जाँच, इस विकार के होने की पुष्टि कर सकती हैं ऐसी ही कुछ जाँचों में शामिल हैं -


• शारीरिक और तंत्रिका तंत्र के परीक्षण

• ऑटिज़्म डायगनोस्टिक इंटरव्यू- रिवाइज़्ड (एडीआई-आर)

• ऑटिज़्म डायगनोस्टिक ऑबज़र्वेशन शेड्यूल (एडीओएस)

• चाइल्डहुड ऑटिज़्म रेटिंग स्केल (सीएआरएस)

• जिलियम ऑटिज़्म रेटिंग स्केल

• परवेसिव डेवलेपमेंटल डिसऑर्डर स्क्रीनिंग टेस्ट

•COMM DEAll असेसमेंट 

•इंडियन स्केल फॉर असेसमेंट ऑफ ऑटिज्म


• क्रोमोसोम असमान्यता को चेक करने के लिए जेनेटिक परीक्षण

• संचार, भाषा, बोलचाल, संचालन, पढ़ाई लिखाई में प्रदर्शन, संज्ञानात्मक कौशल से जुड़े टेस्ट

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किसी बच्चे में ऑटिज्म  का पता चलता है कि तो उसके अभिभावकों को स्वयं के लिए यह दुनिया खत्म सी महसूस होने लगती है। भावनात्मक और मानसिक यंत्रणा का दौर होता है ये। फिर शुरू होता है इलाज , इंटरवेंशन और थेरेपी के लिए लगभग अंतहीन लगने वाले चक्कर। घर पर ढेर सारे समझौते ,अपने व्यक्तिगत उद्देश्यों की बलि देते हुए कई अभिभावक इससे सामंजस्य बनाने की कोशिश करते हैं।पारिवारिक सदस्यों ,आदतों को भी बच्चे के हिसाब से बदला जाता है। अलग दिनचर्या अलग योजनाएं बनती है। इस तरह से एक अन्य बच्चे के मुकाबले ऑटिज़्म वाले बच्चे को पालना कहीं अधिक चुनौतीपूर्ण होता है।  

लेकिन अगर सही समय पर इसके बारे में जानकारी मिल सके तो इस स्थिति से निपटना अपेक्षाकृत सरल होगा।


इन हालात में, अभिभावक या देखरेख करने वाले व्यक्ति के तौर पर आप :-


*ऑटिज़्म के बारे में पढ़े और जानें पर ध्यान रखें हर बच्चा अलग है तो जरूरी नहीं कि नेट पर किसी अन्य के बारे में दी गई जानकारी और टिप्पणी आपके बच्चे पर भी लागू हों। नकारात्मक साहित्य से बचें। आप रेमेडीज/ समाधान की तरफ ध्यान दें। 


* बच्चे सहित परिवार में सभी दिनचर्या निश्चित करें ताकि बच्चे को अनावश्यक तनाव न हो ।उसे पूर्व आभास रहे कि आपका अलग कदम क्या होगा। 


*बच्चे ,परिवार के सदस्यों और जरूरत पड़े तो स्वयं के लिए भी मनोचिकित्सक से  काउंसलिंग लें। आप भी इंसान हैं ,भावनाओं का ज्वार आपको भी परेशान कर सकता है। 


*एक विशेष जरूरत वाले बच्चे के लिए आपको भी भावनात्मक रूप से मदद और साझा करने की आवश्यकता होती है। ऐसे समूहों से जुड़े जिनमें इस स्थिति से गुजर रहे माता पिता शामिल हों। सब आपस मे जानकारी साझा करें, एक - दूसरे की मदद करें। 


*आपके स्थान अपर थेरेपी की व्यवस्था न हो तो  प्रशिक्षण कार्यक्रमों में हिस्सा लेकर गतिविधियोंके बारे में सीख सकते हैं जिससे बच्चे के साथ काम करने में आपको मदद और मार्गदर्शन मिले। 


* ये न सोचें कि बच्चा आपको सुन नहीं रहा और उससे बात करना बंद न करें।बल्कि लगातार उससे हर चीज ,हर घटना के बारे में बताएं। रास्ते से गुजरते समय भी आप लगभग कॉमेंट्री जैसी करते रहें। ये उसे दिमाग मे नए शब्द और घटनाओं के तारतम्य को सिखाएगा।


*प्रिटेंड प्ले, इमेजनरी प्ले भी सिखाए। एक ही खिलौने से अलग अलग तरह से खेलना सिखाएं। अलग अलग कॉन्सेप्ट 

दीजिये।


* शुरुआत में बच्चे की रुचि अनुसार सोलो गेम से शुरू करके धीरे धीरे समूह में खेलने वाले गेम की तरफ लाइये। इससे बच्चे अपनी बारी का इंतज़ार करने के अलावा नियम भी सीखने लगेंगे। 


*बातचीत में  वाक्य छोटे और सरल निर्देशों वाले रखें।ताकि बच्चे को समझना आसान हो।


*शुरुआत में वो बच्चे जिन्हें भाषा या संवाद में कठिनाई हो ,उनके लिए कम्युनिकेशन कार्ड बना कर रखें। इसके माध्यम से उन्हें अपनी बातें ,जरूरत साझा करना सिखाइये।


*बच्चों को मदद  माँगने के तरीके सिखाइये।


*पहले बच्चे को समझाए फिर बोलने का प्रयास कराएँ। ताकि सही शब्द प्रयोग करना आए।


*छोटे से छोटे सफल प्रयास पर भेज बच्चे को बहुत उत्साहित कर उसे इनाम भी देना है। याद रखें ये इनाम हमेशा कोई भौतिक वस्तु न हो, बल्कि कई बार उसकी पसंदीदा गतिविधि या भाव भी हो।


*बच्चे को आप हमेशा #स्पून_फीडिंग( जरूरत से पहले ही पूर्ति) न कराएं। उसे प्रोत्साहित करिये अपनी जरूरत को प्रकट करने के लिए उसके बाद उसकी मदद करें। याद रखें आपको बच्चे को एक स्वतंत्र व्यक्तित्व बनाना है न की निर्भर ।


*आपका शारीरिक मानसिक  बेहतर होना स्वास्थ बच्चे के लिए भी जरूरी है ,इसलिए खुद पर भी ध्यान दें। 


#सामाजिक व्यवहार के लिए :- 

 1 बच्चे को घर व बाहर के लोगों से मिलाएं ।


2.  बच्चे को पार्क  या किसी हॉबी क्लास में ले जाएं।


3. दूसरों से संवाद के लिए प्रेरित करें। प्रॉम्प्टिंग कि स्थिति को हटाते जाएं। इसे फेडिंग कहते हैं। 


4.बच्चे के ऐसे व्यवहार जो बार बार दोहरा रहा हो,उसे नजरअंदाज न करें और उसे किसी भी प्रकार से व्यस्त करें ताकि उसका ध्यान उस एक गतिविधि से हटे।बच्चे को अकेलेपन की स्थिति में न छोड़े।


5.बच्चे के गलत व्यवहार को नजरअंदाज न करें। आप उसे विभिन्न तरीकों से समझाने का प्रयास करें कि उसके द्वारा की गई  गतिविधि ने आपको /अन्य को नुकसान पहुंचाया।गुस्से और दुख को दिखाने के लिए शारीरिक हावभाव के अलावा विजूअल कार्ड का इस्तेमाल करें।बच्चे की वीडियो या फ़ोटो( अवांछित व्यवहार के दौरान) लेकर रखें और समझाते समय इसे दिखाएं। 


 6.बच्चे के साथ  नज़र मिला कर बात करने की कोशिश करे,उसका ध्यान आकर्षित करने के लिए उसके रुचि की वस्तु अपने चेहरे के पास रख बात करें। 


7. हर सही प्रयास के लिए प्रोत्साहित करना कभी न भूलें ।


8. बच्चे का  अधिक गुस्सा या अधिक चंचलता दिखे तो उसे शारीरिक व्यायाम ,खेल सम्बन्धी गतिविधि में लगाएं। इससे अलावा यदि उसकी गतिविधि स्वयं या अन्य को शारीरिक क्षति पहुंचाने के स्तर पर हों तो मनोचिकित्सक से सम्पर्क करें।


👉 ऑटिज़्म को अभिशाप के रूप में न लें। हर बात के दो पहलू होते हैं। इससे ग्रस्त व्यक्ति  विशेष विधा ,क्षेत्र में ध्यान केंद्रित करने की अनूठी क्षमता रखते हैं।उन्हें कुछ विशेष प्रशिक्षण के माध्यम से खुद को अद्वितीय साबित करने का अवसर दे सकते हैं। कोई भी सम्पूर्ण नहीं होता , इस डिसॉर्डर के साथ जीने वालों में कई मशहूर हस्तियां जुड़ी हुई , निकोल टेस्ला, अमेडस मोजार्ट,  आइंस्टीन , हमारे भूतपूर्व राष्ट्रपति महामहिम कलाम साहब , प्रियंका चोपड़ा, ह्रितिक रोशन ,अभिषेक बच्चन जैसे लोगों ने इस अक्षमता को हरा कर खुद को  अपनी क्षणताओं के अग्रणी स्थान पर काबिज किया। 


प्रकृति ने जब कोई भेदभाव नहीं रखा तो कहीं न कहीं हमारा भेदभाव पूर्ण व्यवहार प्रकृति की व्यवस्था के खिलाफ ही जाएगा।और प्रकृति जब विरोध करती है तो त्रासदियों को जन्म देती है। सम्हलकर... सोचकर ..... अपना कर .... अनुकूल व्यवहार करें।


*समस्या होना जीवन का अंत नहीं होता, बल्कि समस्या होना जीवित होने का संकेत है*..........*समाधान से उसे जीतना ही जीवन है।*


#डॉ मधूलिका मिश्रा त्रिपाठी

#ब्रह्मनाद