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रविवार, 2 अप्रैल 2023

लड्डू के डैडा और मम्मा की कहानी : ऑटिज्म अवेयरनेस डे विशेष

 




डैडा

हां मेरी डॉल

डैडा हगी हगी कर लो।

आ जाओ डॉल।

डैडा की डॉल उन्हें जोर से hug करके गोद मे बैठ जाती है।


लड्डू- डैडा ,रात नहीं आएगी। वो अपनी आदत अनुसार ये बात लगातार दोहराते हुए रोती रहती है।


लड्डू की मम्मा आकर उसे आंख दिखाते हुए शांत रहने को बोलती है ,और कहती है तुम्हारे कहने से रात होना बंद नहीं होगी। और लड्डू पर आंखें तरेरती है। डॉल के डैडा को मम्मा का रवैय्या नहीं पसन्द आता और वो लड्डू की मम्मा को अंदर जाकर अपना काम करने कहते हैं। लड्डू और तेज़ रो रोकर डैडा के सर पर बैंड बजा रही होती है। डैडा उसे चुप कराते हुए रात नहीं होने का कारण पूछते हैं। लड्डू जवाब न देकर कहती है ,मुझे मॉल जाना है। डैडा गुड्डा को बोलते हैं बस इतनी सी बात हम तो रात में भी मॉल चल सकते। डैडा उसे उन्ही कपड़ों में गाड़ी में बिठाते और लेकर निकल जाते।घर के ही आस पास चक्कर लगा कर वो उसे गार्डन में ले आते। उनके पास कुछ चॉकलेट्स और चिप्स के पैकेट भी होते। जिसे वो गार्डन के एक प्लेटफॉर्म में रख देते। लड्डू को कहते चलो अब यहाँ हम मॉल बनाएंगे। और लड्डू को स्लाइड पर खिलाते। और लड्डू सब भूल कर मजे से खेलने लगती। थोड़े देर में डैडा उस प्लेटफॉर्म पर बैठ कर शॉपकीपर बन जाते। लड्डू उनसे खेल खेल में चिप्स और चॉकलेट खरीदती ,बदले में नोट नहीं ,बल्कि जामुन और आम के कुछ पत्ते देती। जिसे डैडा बहुत सम्हाल कर अपने पास रख लेते। फिर वो लड्डू से कहते अब घर चलना ,डिनर टाइम।चलो गाड़ी में बैठो,लड्डू थोड़े नाटक के साथ गाड़ी में बैठ जाती। डैडा फिर एक चक्कर लगा कर वापस घर आ जाते और मम्मा को बोलते, हम लोग तो मॉल घूमकर आए। डिनर टेबल पर भी मम्मा मुँह फुलाए खाना परोसती। लड्डू डैड से बिल्कुल चिपक कर खाना खाती। और फिर कुछ पज़ल खेलने के बाद उनकी ही गोदी में दुबक कर सो जाती। उसे बेड पर लिटाने के बाद उसके दिए हुए पत्ते अलमारी में एक डब्बे में सहेज कर रखते। लड्डू की मम्मा का गुस्सा फिर उबल पड़ता- आप अब ये कचड़ा भी इतना सम्हाल कर रखेंगे। लड्डू के डैडा लड्डू की मम्मा जो बेड पर किनारे अपने गोद में बिठाते हुए कहते। आपको ये कचड़ा लगता। ये मेरे लिए दुनिया की सबसे महंगी करेंसी है,जो मेरी प्रिंसेस ने मुझे दी। इससे मुकाबले पूरी दुनिया सस्ती। और आप अब इतना गुस्सा करना छोड़ दीजिए। लड्डू को आप हम नहीं समझेंगे तो दुनिया कैसे समझ पाएगी। आपको पता कि लड्डू के सोचने ,दर्शाने का तरीका अलग। लड्डू अगर आम जिंदगी जीती तो क्या इतनी परेशानियों को जानबूझकर अपने ऊपर हावी होने देती? क्या आपकी एक डांट से सब सही नहीं बोलती या करती? क्या आपको लगता उसे जो आता वो जानबूझकर नहीं करती,या हम उसे समझा नहीं पा रहे जो उसे जानना चाहिए। लड्डू की क्या गलती जो उसे ये सब झेलना पड़ता। वो चाह कर भी एक आवरण नहीं बना सकती।वो जैसी है ,वो वैसी ही दिखती।उसे फर्क नहीं पड़ता लोग उसके लिए कैसा सोचते।वो खुद में सच्ची है। और जानती हो न आप इस दुनिया में खुद से सच्चे रहना ,सबका मुश्किल । 

मैं जानता हूँ ,आप उसे मेरे से थोड़ा कम चाहते (ये बोलते हुए लड्डू के डैडा ,उसकी माँ की ओर तिरछी नजरों से देखकर हंसते हैं) और अगर मेरे बाद कोई उसकी भलाई सोचता तो वो आप हो,फिर अपना संघर्ष उस पर नाराजगी बना कर क्यों निकालते। आपको तो लड्डू के लिए वहाँ भी एडवोकेट बनना चाहिए जहां आपको लगे वो नही कर सकती,या नहीं समझ सकती।उसे आपके साथ कि जरूरत ,आपके गुस्से से वो डर और सहम जाती। और मैं नहीं चाहता कि लड्डू अपनी माँ का संघर्ष गुस्से से भरा देखे। उसे कभी ये न लगे वो आपकी जिंदगी में मुसीबत बढा रही।उसे ये लगना चाहिए कि उसकी मां हर स्थिति में उसे प्यार करेगी,भले ही वो सामाजिक रूप से सफल हो या असफल। आप हमेशा उस पर गर्व करोगे। 

लड्डू की माँ लड्डू के डैडा के सीने पर सर रखकर फूट फूट कर रो पड़ती। ये रुलाई लड्डू की समस्या नहीं बल्कि एक माँ के रूप में उसकी कमजोरी के लिए थी। लड्डू के डैडा का सीना बिल्कुल भीग गया। वो उसे और जोर से भींच लेते हैं। उनकी आंख भी साथ ही बह रही होती। वो 2 जोड़ी आंखे एक कहानी के किरदार नहीं ,बल्कि माँ -बाप के अलावा एक दूसरे के हिस्से के रूप में उस वक़्त साझा भाव जी रहे होते।


#डॉ मधूलिका मिश्रा त्रिपाठी

#ब्रह्मनाद 


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