मैंने कई साल पहले एक मूवी देखी थी, "अंजली" ... उस वक़्त उस मूवी की लीड एक्ट्रेस जो कि एक बच्ची थी उसकी क्यूटनेस में ही खोई रही, मुझे उसकी स्टोरी उस वक़्त नही समझ आई थी। कुछ साल पहले कुछ और मूवी मुझे अंजली की याद दिला गई।"तारे ज़मीन पर", " माय नेम इज खान", "कोई मिल गया" और बर्फी ।
इनके किरदारों में एक समानता मिली ,सामाजिक व्यवहार और संवाद में दक्ष नही दिखे। इन मूवी के किरदारों बारे में खोज करने पर एक विशेष शब्द सामने आया "AUTISM" ( ऑटिज़्म) ..........
संवाद जीवन में बहुत विशेष भूमिका अदा करता है। ये ऐसा जरिया जिसके माध्यम से हम दूसरों से जुड़ते,अपनी इच्छाएँ, अपेक्षाएं सामने रखते ,और एहसास भी प्रकट करते।
ऑटिज़्म / ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम डिसॉर्डर एक ऐसा शब्द या शब्दावली है ;जो क्षेत्रगत व्यवसायिक दक्ष लोगों के द्वारा उन बच्चों के लक्षणों के लिए प्रयोग में लाया जाता जिन्हें सामाजिक व्यवहार ,खेलने, संवाद में समस्याएं होती। जो अपनी भावनाओं को प्रदर्शित करने में भी सक्षम नही होते।
इसमे विभिन्न लक्षणों को भिन्नत करने के लिए S.P.D., A .S.D. ,ADHD, P.D.D. ,Asperger syndrome, Hyperlexia, और Semantic pragmatic disorder जैसे टर्म प्रयुक्त होते।
आज वर्ल्ड ऑटिज्म अवेयरनेस डे है। मैं अभिभावकों से इन लक्षणों पर ध्यान देने के लिए अनुरोध करती हूँ। खासकर #18 महीने से 3वर्ष तक की आयु के बच्चों में। यह समस्या समय पर उचित समाधान न मिलने पर गम्भीर रूप धारण कर सकती है। इसकी सचेत रहिए । इसलिए इन लक्षण पर बच्चे को परखें: -
- अर्थपूर्ण वाक्य बनाने में काफ़ी कठिनाई ,
- दूसरों द्वारा बोले गए वाक्यों को दोहराने की प्रवृत्ति,
- अपनी बात समझने के लिए संकेतों का ज्यादातर इस्तेमाल करना
- संचार के लिए भाषा ज्ञान कम या बिल्कुल न सीख पाना।
- अपनी ज़रूरतों, भावनाओं को समझा न पाना या प्रकट न कर पाना।
- प्रश्न को दोहराना ,कई बार सही उत्तर न दे पाना।
-अकेले खेलने की प्रवृत्ति , गोल गोल घूमने वाली वस्तुओं की ओर ज्यादा ध्यान देना।
-दिनचर्या में अचानक हुए बदलावों में स्वीकारता नहीं।
-अपने शरीर को आपके शरीर से या बेड या कोई भी दो वस्तुओं के बीच दबाव देने का प्रयास।
- अपने नाम को पुकारे जाने पर प्रतिक्रिया न देना।
- ध्वनि, गंध, स्वाद, देखना और सुनने जैसे सम्वेदी व्यवहार में असामान्य प्रतिक्रिया।
- अपने ही हांथों से खेलते रहना- पक्षी की तरह फड़फड़ाते रहना , ताली बजाना ।
- उनसे संवाद करते समय आखों के कोने से किसी अन्य ओर देखने।
आप जिसे गम्भीर समझें, ज़रूरी नहीं वो गम्भीर हो और आप जिसे मामूली समझे वो सामान्य ही हों।इसके लिए जरूरी है पूर्ण चिकित्सकीय परीक्षण । ताकि अगर वाकई समस्या है तो समय पर निदान और समाधान मिले।
पहली बार सन् 1938 में वियना युनिवर्सिटी के हास्पिटल में कार्यरत हैंस एस्परजर ने आटिज्म शब्द का इस्तेमाल किया था । एस्परजर उन दिनों आटिज्म स्प्रेक्ट्रम (ए.एस.डी.) के एक प्रकार पर खोज कर रहे थे । बाद में 1943 में जॉन हापकिन हास्पिटल के कॉनर लियो ने सर्वप्रथम ‘आटिज्म ‘ को अपनी रिपोर्ट में वर्णित किया था कॉनर ने ग्यारह बच्चों में पाई गई एक जैसी व्यवहारिक समानताओं पर आधारित रिर्पोट तैयार की थी। और ये लाईलाज बीमारी तीसरी सबसे आमफ़हम शारीरिक और मानसिक विकलांगता है।
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■ #ऑटिज़्म तंत्रिका संबंधी विकलांगता है जो दिमाग के सामान्य विकास में बाधा पहुँचाती है। इससे संचार, सामाजिक अंतःक्रिया, संज्ञान और व्यवहार पर असर पड़ता है। ऑटिज़्म को एक स्प्रेक्ट्रम विकार माना जाता है क्योंकि इसके लक्षण और विशेषताएँ कई मिलेजुले तरीक़ों से प्रकट होते हैं जो बच्चों को अलग अलग ढंग से प्रभावित करते हैं। कुछ बच्चों में गंभीर समस्या आ सकती है और उन्हें मदद की ज़रूरत रहती है जबकि कुछ ऐसे होते हैं जो हल्कीफुल्की मदद के साथ स्वतंत्र रूप से अपना कामकाज स्वयं ही कर पाते है।
ऑटिज़्म की सही सही वजह तो अब तक पता नहीं चली है लेकिन शोध बताते हैं कि ये आनुवंशिक और परिस्थितिजन्य या पर्यावरणजनित कारकों की मिलीजुली वजह से हो सकता है। पर्यावरणीय या परिस्थिति से जुड़ी वे विभिन्न स्थितियाँ हैं जो मस्तिष्क के विकास पर असर डालती है। ये जन्म के पहले या जन्म के फ़ौरन बाद उत्पन्न हो सकती हैं। ये भी देखा गया है कि बच्चे के केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को नवजात दिनों में कोई नुकसान पहुँचने से भी ऑटिज़्म हो सकता है।
ऑटिज़्म एक जीवनपर्यंत की स्थिति है और इसका कोई इलाज नहीं है। लेकिन सही थेरेपी और सही इंटरवेंशन से बच्चे को ज़रूरी कौशल सीखने में मदद मिल सकती है जिनसे वे अपनी ज़िंदगी को बेहतर बना सकते हैं। चूंकि 18 महीने की उम्र या उससे पहले ही बच्चे में ऑटिज़्म का पता चल सकता है लिहाज़ा बच्चे के बेहतर विकास के लिए काफ़ी पहले से मदद मुहैया कराई जा सकती है।
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■ मातापिता के लिए महत्त्वपूर्ण नोटः-
"" ऐहतियाती क़दम के तौर पर, माता पिता बाल रोग विशेषज्ञों को ऐसे रूटीन विकास संबंधी टेस्ट करने के लिए कह सकते हैं जिनसे ये पता चल सके कि बच्चे का शारीरिक मानसिक और भाषाई विकास ठीक से हो रहा है या नहीं. ""
ऑटिज़्म की पहचान का कोई एक मेडिकल टेस्ट उपलब्ध नहीं है लेकिन कुछ विशिष्ट आकलन और जाँच, इस विकार के होने की पुष्टि कर सकती हैं ऐसी ही कुछ जाँचों में शामिल हैं -
• शारीरिक और तंत्रिका तंत्र के परीक्षण
• ऑटिज़्म डायगनोस्टिक इंटरव्यू- रिवाइज़्ड (एडीआई-आर)
• ऑटिज़्म डायगनोस्टिक ऑबज़र्वेशन शेड्यूल (एडीओएस)
• चाइल्डहुड ऑटिज़्म रेटिंग स्केल (सीएआरएस)
• जिलियम ऑटिज़्म रेटिंग स्केल
• परवेसिव डेवलेपमेंटल डिसऑर्डर स्क्रीनिंग टेस्ट
•COMM DEAll असेसमेंट
•इंडियन स्केल फॉर असेसमेंट ऑफ ऑटिज्म
• क्रोमोसोम असमान्यता को चेक करने के लिए जेनेटिक परीक्षण
• संचार, भाषा, बोलचाल, संचालन, पढ़ाई लिखाई में प्रदर्शन, संज्ञानात्मक कौशल से जुड़े टेस्ट
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किसी बच्चे में ऑटिज्म का पता चलता है कि तो उसके अभिभावकों को स्वयं के लिए यह दुनिया खत्म सी महसूस होने लगती है। भावनात्मक और मानसिक यंत्रणा का दौर होता है ये। फिर शुरू होता है इलाज , इंटरवेंशन और थेरेपी के लिए लगभग अंतहीन लगने वाले चक्कर। घर पर ढेर सारे समझौते ,अपने व्यक्तिगत उद्देश्यों की बलि देते हुए कई अभिभावक इससे सामंजस्य बनाने की कोशिश करते हैं।पारिवारिक सदस्यों ,आदतों को भी बच्चे के हिसाब से बदला जाता है। अलग दिनचर्या अलग योजनाएं बनती है। इस तरह से एक अन्य बच्चे के मुकाबले ऑटिज़्म वाले बच्चे को पालना कहीं अधिक चुनौतीपूर्ण होता है।
लेकिन अगर सही समय पर इसके बारे में जानकारी मिल सके तो इस स्थिति से निपटना अपेक्षाकृत सरल होगा।
इन हालात में, अभिभावक या देखरेख करने वाले व्यक्ति के तौर पर आप :-
*ऑटिज़्म के बारे में पढ़े और जानें पर ध्यान रखें हर बच्चा अलग है तो जरूरी नहीं कि नेट पर किसी अन्य के बारे में दी गई जानकारी और टिप्पणी आपके बच्चे पर भी लागू हों। नकारात्मक साहित्य से बचें। आप रेमेडीज/ समाधान की तरफ ध्यान दें।
* बच्चे सहित परिवार में सभी दिनचर्या निश्चित करें ताकि बच्चे को अनावश्यक तनाव न हो ।उसे पूर्व आभास रहे कि आपका अलग कदम क्या होगा।
*बच्चे ,परिवार के सदस्यों और जरूरत पड़े तो स्वयं के लिए भी मनोचिकित्सक से काउंसलिंग लें। आप भी इंसान हैं ,भावनाओं का ज्वार आपको भी परेशान कर सकता है।
*एक विशेष जरूरत वाले बच्चे के लिए आपको भी भावनात्मक रूप से मदद और साझा करने की आवश्यकता होती है। ऐसे समूहों से जुड़े जिनमें इस स्थिति से गुजर रहे माता पिता शामिल हों। सब आपस मे जानकारी साझा करें, एक - दूसरे की मदद करें।
*आपके स्थान अपर थेरेपी की व्यवस्था न हो तो प्रशिक्षण कार्यक्रमों में हिस्सा लेकर गतिविधियोंके बारे में सीख सकते हैं जिससे बच्चे के साथ काम करने में आपको मदद और मार्गदर्शन मिले।
* ये न सोचें कि बच्चा आपको सुन नहीं रहा और उससे बात करना बंद न करें।बल्कि लगातार उससे हर चीज ,हर घटना के बारे में बताएं। रास्ते से गुजरते समय भी आप लगभग कॉमेंट्री जैसी करते रहें। ये उसे दिमाग मे नए शब्द और घटनाओं के तारतम्य को सिखाएगा।
*प्रिटेंड प्ले, इमेजनरी प्ले भी सिखाए। एक ही खिलौने से अलग अलग तरह से खेलना सिखाएं। अलग अलग कॉन्सेप्ट
दीजिये।
* शुरुआत में बच्चे की रुचि अनुसार सोलो गेम से शुरू करके धीरे धीरे समूह में खेलने वाले गेम की तरफ लाइये। इससे बच्चे अपनी बारी का इंतज़ार करने के अलावा नियम भी सीखने लगेंगे।
*बातचीत में वाक्य छोटे और सरल निर्देशों वाले रखें।ताकि बच्चे को समझना आसान हो।
*शुरुआत में वो बच्चे जिन्हें भाषा या संवाद में कठिनाई हो ,उनके लिए कम्युनिकेशन कार्ड बना कर रखें। इसके माध्यम से उन्हें अपनी बातें ,जरूरत साझा करना सिखाइये।
*बच्चों को मदद माँगने के तरीके सिखाइये।
*पहले बच्चे को समझाए फिर बोलने का प्रयास कराएँ। ताकि सही शब्द प्रयोग करना आए।
*छोटे से छोटे सफल प्रयास पर भेज बच्चे को बहुत उत्साहित कर उसे इनाम भी देना है। याद रखें ये इनाम हमेशा कोई भौतिक वस्तु न हो, बल्कि कई बार उसकी पसंदीदा गतिविधि या भाव भी हो।
*बच्चे को आप हमेशा #स्पून_फीडिंग( जरूरत से पहले ही पूर्ति) न कराएं। उसे प्रोत्साहित करिये अपनी जरूरत को प्रकट करने के लिए उसके बाद उसकी मदद करें। याद रखें आपको बच्चे को एक स्वतंत्र व्यक्तित्व बनाना है न की निर्भर ।
*आपका शारीरिक मानसिक बेहतर होना स्वास्थ बच्चे के लिए भी जरूरी है ,इसलिए खुद पर भी ध्यान दें।
#सामाजिक व्यवहार के लिए :-
1 बच्चे को घर व बाहर के लोगों से मिलाएं ।
2. बच्चे को पार्क या किसी हॉबी क्लास में ले जाएं।
3. दूसरों से संवाद के लिए प्रेरित करें। प्रॉम्प्टिंग कि स्थिति को हटाते जाएं। इसे फेडिंग कहते हैं।
4.बच्चे के ऐसे व्यवहार जो बार बार दोहरा रहा हो,उसे नजरअंदाज न करें और उसे किसी भी प्रकार से व्यस्त करें ताकि उसका ध्यान उस एक गतिविधि से हटे।बच्चे को अकेलेपन की स्थिति में न छोड़े।
5.बच्चे के गलत व्यवहार को नजरअंदाज न करें। आप उसे विभिन्न तरीकों से समझाने का प्रयास करें कि उसके द्वारा की गई गतिविधि ने आपको /अन्य को नुकसान पहुंचाया।गुस्से और दुख को दिखाने के लिए शारीरिक हावभाव के अलावा विजूअल कार्ड का इस्तेमाल करें।बच्चे की वीडियो या फ़ोटो( अवांछित व्यवहार के दौरान) लेकर रखें और समझाते समय इसे दिखाएं।
6.बच्चे के साथ नज़र मिला कर बात करने की कोशिश करे,उसका ध्यान आकर्षित करने के लिए उसके रुचि की वस्तु अपने चेहरे के पास रख बात करें।
7. हर सही प्रयास के लिए प्रोत्साहित करना कभी न भूलें ।
8. बच्चे का अधिक गुस्सा या अधिक चंचलता दिखे तो उसे शारीरिक व्यायाम ,खेल सम्बन्धी गतिविधि में लगाएं। इससे अलावा यदि उसकी गतिविधि स्वयं या अन्य को शारीरिक क्षति पहुंचाने के स्तर पर हों तो मनोचिकित्सक से सम्पर्क करें।
👉 ऑटिज़्म को अभिशाप के रूप में न लें। हर बात के दो पहलू होते हैं। इससे ग्रस्त व्यक्ति विशेष विधा ,क्षेत्र में ध्यान केंद्रित करने की अनूठी क्षमता रखते हैं।उन्हें कुछ विशेष प्रशिक्षण के माध्यम से खुद को अद्वितीय साबित करने का अवसर दे सकते हैं। कोई भी सम्पूर्ण नहीं होता , इस डिसॉर्डर के साथ जीने वालों में कई मशहूर हस्तियां जुड़ी हुई , निकोल टेस्ला, अमेडस मोजार्ट, आइंस्टीन , हमारे भूतपूर्व राष्ट्रपति महामहिम कलाम साहब , प्रियंका चोपड़ा, ह्रितिक रोशन ,अभिषेक बच्चन जैसे लोगों ने इस अक्षमता को हरा कर खुद को अपनी क्षणताओं के अग्रणी स्थान पर काबिज किया।
प्रकृति ने जब कोई भेदभाव नहीं रखा तो कहीं न कहीं हमारा भेदभाव पूर्ण व्यवहार प्रकृति की व्यवस्था के खिलाफ ही जाएगा।और प्रकृति जब विरोध करती है तो त्रासदियों को जन्म देती है। सम्हलकर... सोचकर ..... अपना कर .... अनुकूल व्यवहार करें।
*समस्या होना जीवन का अंत नहीं होता, बल्कि समस्या होना जीवित होने का संकेत है*..........*समाधान से उसे जीतना ही जीवन है।*
#डॉ मधूलिका मिश्रा त्रिपाठी
#ब्रह्मनाद
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