बूढ़े होते शरीर की ख़्वाहिशें बूढ़ी नहीं होती, उनमें और रवानी आ जाती है। उन तरसती चाहतों को जीने की एक ऐसी चाह ,जैसे सागर में उठती ऊंची लहर। उम्र का हवाला देकर शांत करने की कोशिश उसे स्प्रिंग जैसे उछाल देती। और वो फिर एक जिद्दी बच्चे सी आंख में आंख डाल उन्हें पूरा करने की चुनौती देने लगती।
इन्हें उम्र समझ नहीं आती, इसने तो जैसे अब तक हुई सभी क्रांतियों का झंडा मिलाकर अपना नया झंडा बना लिया ,और उसे आसमान की ऊंचाई में खड़ा करा दिया।ताकि मैं देखना भी चाहूं तो धूप से मेरी आँखें बन्द ही रहें और ये अपनी मनमानियों को शरारत में बदलती रहे।
रोकने पर .... एक रटा रटाया फिल्मी डायलॉग चिपका देती मुझे ही..... उम्र महज एक आंकड़ा है। जब तक दिल से महसूस न हो ,बुढापा नहीं आता। अब इसे कौन समझाए ,की दिल लाख जवान रहे ,शरीर अपना होना जता जाता है।
आंखों के नीचे आते गहरी लकीरें, बालों में झांकती सफेदी, दौड़ने पर हांफ जाना , देर तक हील में चलने से पैरों का सूज जाना, सुई में धागा डालने के लिए देर तक प्रयास करना, अनियमित होती महावारी, यदा -कदा या अक्सर होने वाला मूड स्विंग , लड़कियों जैसे कपड़े पहनने पर बेडौल होकर उभरने वाले शरीर के हिस्से ,पीठ के ऊपरी हिस्से में आने वाली मोटी सलवटें, और अंत मे परिस्थितियों से हार मान कर उदासी में सिमट जाने वाला एक मन.....।
ख़्वाहिशें कभी नहीं समझ पाती एक 40 पार की औरत को। एक रस्साकसी सी चलती । शरारतों और समझदारी के बीच। एक बचपना जो सदा बंधन में रहा ,वो आवाज़ देता रहता को तू बड़ी है अब अपने लिए फैसले ले........ एक उम्र जो कहती है सुन बचपना मत करना कोई वरना लोग तुझ पर हंसेंगे।
इस बीच ये बेपरवाह ,जिद्दी ख़्वाहिशें फिर जोर लेती ,छिप कर ही जी लेने को ढकेलती ये मनमर्जियां।
मेरे कान में धीरे से फुसफुसाती हैं-------- #सुनो_दिया_बुझने_से_पहले एक बार जरूर शबाब में आकर जलता है।बुझने से पहले जी ले जरा......
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