जिन्दगी अपनी कटी ,अक्सर तनावों में,
बोझ लगते हर दिन ,चुभन सी सांसों में।
आसमां मिला नहीं, ज़मीन भी तले नहीं,
ख़्वाब मुझको सालते,टूटन की आहों में।
घाव रहते हैं हरे, हर ज़ख्म बीबादी है,
ख़ामोशी चीखती रही,जिस्मों की बाज़ी में।
दामन में कांटे भरे मिले,चिथड़े अरमानों के,
रास्ते सब खो गए,खुद खड़े चौराहे में,
नजरों में सब धुंधला सा,बस आंसू है आंखों में,
कतरों में कटती जिंदगी,अब बिखरी है राखों में।
गिला किसी से है नहीं, बस एक टीस बाकी है,
क्यों मिली ये जिंदगी, जो खुशियों से बागी है।
#डॉ_मधूलिका
#ब्रह्मनाद
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