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रविवार, 12 जून 2022


 #चुम्बन 


हां ,कह सकते हैं इसे दैहिक अनुरक्तियाँ,

एक जोड़ी रक्ताभ मृदुल पंखुड़ी....

और कोमल भावों से सजी, 

कुछ स्वैच्छिक अभिव्यक्तियाँ।।


ना ही भौतिक सीमाओं के अतिक्रमण के उपालम्भ,

ना ही वांछना, ना ही अनिवार्यता के निर्मम दम्भ,

ना अनुस्वारों के प्रयोग  ,ना ही कोई अभिव्यंजना,

बस भाव प्रवणता और  प्रबल आवेगों की व्यंजना,

हृदय के अवगुंठनों को प्रकट करती वैचारिक गतियां।।


हां, नहीं आवश्यक होती इसमें कई मर्तबा, 

भाव अनुसार देह की संकल्पना ,

पर सम्मिलित रहती हैं.. 

हृदय के रक्त के नियमित घुलती ,

श्वासों के  आरोह- अवरोह की विलम्बित गतियां।।


एक जोड़ी अनिमेष दृगों से भी,प्रकट हो जाती है ,

चुम्बन की  आनुषंगिक,

 व्यवहारिक विभक्तियाँ,

आत्मिक सहजता से ही गढ़ पाते हैं,

ये अलौकिक भावनात्मक कृतियाँ।।


किसी नैसर्गिक ,किसी मान्य,

और किसी आत्मिक सम्बन्ध के ,

क्रमशः मस्तक ,कपोल,और स्मित पर,

प्रारब्ध के अमिट लेख की तरह दर्ज होते,

बिना स्पर्श की चुंबन सदृश्य ,

स्नेहिल अनिमेष दृष्टियां।।


भावों में कई दफा गुथी,

कई अवलंबित सम्बन्धों की,

कुछ अनगढ़ भ्रांतियां,

चुंबन सदा नहीं करता व्यक्त ,

कुछ सीमित दैहिक अभिव्यक्तियाँ,

देह के पार भी जब ,

आत्मा में  अंकित करता,

नेह ,एक समर्पित सर्जना,

तब इसे मिल ही जाती,

देव् निर्माल्य की सी अनुरक्तियाँ।।


#ब्रह्मनाद 

#डॉ. मधूलिका 

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