#आदी_से_अनंत
अनकही पर कई बार सुनी हुई है ,
मेरी कहानी प्रेम की....
वो शुरू तो होती है अक्सर,
सप्त स्वरों के लयकारे सी,
कई रागों और रागनियों से सजी,
जिसका मुझे कोई ज्ञान भी नहीं,
कई आरोह - अवरोह से गुंजायमान ,
किसी वीणा के तारों से उठते,
मृदुल टँकार से झंकृत,
निनाद में परिवर्तित आरोह में....
एक गूंज में बदलकर ..
जो स्थायी का परावर्तन है...
जैसे किसी मंदिर के घण्टे की ध्वनि,
गूंजती रहती है ,
उसके दोलन के खत्म होने के बाद भी।
गूंज वो जो अनन्त का हिस्सा है।
जो निरन्तर समाती रहती ,
कानों, हृदय और मस्तिष्क के,
कृष्ण विवर में,
वो खोती नहीं ,
समा जाती है,
मेरे सर्वांग कण -कण में,
मैं चलायमान भी ,
और स्थायी भी हूँ,
उस प्रेम के ज्ञात ,
हर भाव मे हूँ।
ये प्रेम पैदा नहीं किया,
इसे तो तुमने ही जगाया है,
चिरकाल,चिरनिद्रा में लीन,
योगनिद्रा और समाधिस्थ की दशा से।
तुमने प्रवाहित किया एक अनन्त सा,
जीवन स्रोत...
जिसका आदि तो है...किन्तु अंत अज्ञात।
हां तुमने ही गढ़ी,
मेरे प्रेम घट की अनन्त गहराइयाँ।
जिसमें देव-सरिता ,
प्रवाहित हुई,लेकर सहस्त्र धाराएं,
समाहित हुई ,
कई महाकाव्यों की,
लिखित गद्य रचनाएं,
कोटि-कोटि यज्ञों की,
संचित पुण्य सर्जनाएँ।
जिसमे कई बार समा चुका ,
अनन्त गीताओं का सार,
असंख्य क्षीरसागरों की ,
नील आद्रताऐं,
अंतरिक्ष के तारों की ,
अनगिनत संख्याएँ,
उपनिषद के मूल भाव की,
तत्व सहित व्याख्याएं,
ज्ञात - अज्ञात जीवन की,
सत्य या सोची गई अभिकल्पनाएँ।
हाँ मेरे प्रेम को तुमने विस्तार दे दिया,
कई कल्पों में भी जो ना लिखा जा पाए,
एक ऐसा विचार दे दिया।
मेरा प्रेम सिर्फ प्रेम नहीं,
प्रकृति का अपररूप है,
जब जब जीवन हंसेगा इसमें,
प्रेम की ही स्वर लहरी होगा।
हमारा प्रेम शिव का,
शाश्वत अवतार है.
समय से परे,
और तम के पार है,
जिसका प्रारम्भ तो ज्ञात ..
किन्तु अन्त नहीं,
जो भी उसकी सीमाएं हैं,
वो बस अनन्त रही.....
बस अनंत रही..।
#ब्रह्मनाद
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