पेज

गुरुवार, 14 जुलाई 2022

नीलकण्ठ


 #तुम्हारे_लिए - #नीलकंठ


पूर्ण मौन को समझना सरल है। क्योंकि तब हमें शब्दों के अर्थों को समझने का प्रयास नहीं कर पड़ता। पर जब शब्दों के बीच मौन जगह बनाए,तो मस्तिष्क अक्सर उलझ कर रह जाता। कहे गए शब्द को सही माने...... या उसके बीच जो अनकहा रह गए ,उसके अर्थ निकाले। 

कठिन होता है ना जब उजाला दिखे,पर प्रकाश की अनुभूति न महसूस कर पाएं। दुष्कर होता है.... फूल में ख़ुशबू न महसूस कर पाना। कठिन होता है.....  इंद्रधनुष के रंगों के मध्य उस रंगहीन अंतर को नकारना..... । 

हाँ ,जीवन में होते हुए भी ,जिंदगी की अनुभूति को तरसना। कभी- कभी कह जाना उतना कष्टप्रद नहीं बचता,जितना कुछ बोल कर चुप सा होना। जैसे शिव ने विष धारण किया... न उगल सकते,न पी सकते। एक सन्तुलन की स्थिति पर जीवन सरल नहीं.... हर वक़्त दोहरे आयामों के मध्य और दोनों ओर बराबर रहना...... । 

वही स्थिति जैसे बोल कर भी चुप रह जाना, हाँ किसी का शब्द के मध्य मौन धारण करना.....नीलकंठ हो जाना है।

#डॉ_मधूलिका

#ब्रह्मनाद

कोई टिप्पणी नहीं: