पेज

शुक्रवार, 21 अक्तूबर 2022

तेरा तुझको अर्पण


 कितनी व्याकुल हूँ , क्या आप अनुभव कर पाए हो। संभवत: हां, तब भी इतनी निःशब्दता ???? 

जानती हूँ ; बहुत मज़बूत हो । यूँ ही कृष्ण नहीं बोलती आपको। वो छलिया जो सबमें मोह जगाकर खुद योगीश्वर हो गया। 

पर उनका क्या दोष ना जो उससे प्रेम किये, उसके नेह बन्धन में रहे। उन्हें क्यों रुलाया ,खुद का समीप्य देकर।  यही सत्य है की ईश्वर सदा ईश्वर ही होता। वो मानवीय भाव जगाता ,ताकि मानव ;मानव रह सके, पर उन्हें योगी होना नहीं सिखाता ,ताकि वो बंधे रहें संसार से। 

प्रेम मार्ग कठिन है ,शायद इसीलिए कोई स्री राधा नहीं होना चाहती। सब खुद को मीरा बनाती ,क्योंकि मीरा बस बिना अपेक्षा के समर्पण का नाम है। मीरा तो मूर्ति में कृष्ण को जी ली। राधा साथ होकर तड़पी। 

अच्छा तो हम  उपालंभ क्यों दे रहे । अगर अपेक्षा हीन हुए तो ,तो निःशब्द सब क्यों नहीं देखते और स्वीकार करते।

क्योंकि भक्ति एकतरफा मार्ग है , एकात्म कर्म। भगवान भक्त की सुध रखे न रखे ,भक्त तो अपनी साधना करता। ठीक वैसे ही जैसे घर के मंदिर में रखी बाल गोपाल की मूर्ति की भूख , शयन ,शीत की फिक्र एक मातृभाव से करते हैं भक्त । जबकि ये भी ज्ञात कि अगर वो ईश्वर तो इनकी फिकर करने की जरूरत हम क्षुद्र मानवों के बस की बात नहीं। पर भक्ति ऐसी ही होगी ।

स्वयं की अनुभूति और विवेक अनुसार।

 प्रभु आप ईश्वर रहें। मैं मीरा का प्रारब्ध जी लूंगी। अपेक्षा रहित भक्ति कर सकूंगी तो सम्भवत: आपका देवत्व भी संतुष्ट रहेगा और उसकी सीमाओं का अतिक्रमण भी बच जाएगा। पर अपनी भक्ति से मुझे रोकने का प्रयास ना करियेगा। क्योंकि ये मेरी आत्मिक कमज़ोरी पर ,मेरी क्षुद्र अपेक्षाओं पर, मेरे जीर्ण इंसानी भाव पर मुझे विजय दिलाती है , भगवान के प्रति मेरा समर्पण ,और समरूप संघर्ष । जिसके साक्षी सिर्फ आप हो मेरे कृष्ण ।

क्षमा करना ,ये अपेक्षा नहीं ,बस समर्पित भाव था। जो आपको मानव रूप में बांध रहा था। मेरी सोच का स्तर संकीर्ण ही सही पर उसमे सिर्फ आपके ही भाव प्रवाह में होते। 

बोलना जरूरी था क्योंकि भाव ही तो निर्माल्य है और निर्मल भी।

तेरा तुझको अर्पण।

कोई टिप्पणी नहीं: