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शनिवार, 14 जून 2025

क्षणभंगुर जीवन


 


कौन, कहाँ, कब, किस वक्त आपका साथ छोड़ दे , यह कोई नहीं जानता। यह  क्रूर सच्चाई  हम अक्सर नजरअंदाज़ कर देते है। अहमदाबाद ,गुजरात विमान हादसा  की बात करें तो उसके यात्रियों या परिवार वालों में से किसने सोचा था होगा कि बोर्डिंग से पहले का समय अंतिम विदाई साबित होगा। उस फ्लाइट के यात्री कभी अपने परिवार यार दोस्तों को अपने गंतव्य तक सुरक्षित  पहुंचने की खबर ना दे सकेंगे .....! किसने सोचा होगा कि उस फ्लाइट के यात्री जिन सपनों के साथ उड़ान भर रहे वो बस दिवा स्वप्न बन वहीं दम तोड़ जाने वाले.....?  यह दुर्घटना इस  बात को मजबूती से साबित करती है कि जीवन में अगर कुछ साथ चल रहा है तो वह है ........अनिश्चितता और अनापेक्षितता। 


हम सोचते हैं कि कल समय मिलेगा ,अपनों से मिलने का, क्षमा माँगने का, प्रेम जताने का।अपने कामों, संबंधों  और भविष्य की योजनाओं में हम इतने उलझे रहते  हैं कि यह भूल जाते हैं कि अगला क्षण भी हमारा नहीं हो सकता, जो होगा वो हमें ज्ञात नहीं होगा, और आवश्यक नहीं जो हमने सोचा  वो होने की स्थिति भी बने।


 हम जिनसे प्रेम करते हैं, जिनकी उपस्थिति हमारे जीवन को अर्थ देती है, वे भी एक झटके में हमसे छिन सकते हैं। जिन चेहरों को आज हम अपने सामने देख रहे हैं, हो सकता है वे तस्वीरों में बदल जाते हैं।  जब वे नहीं रहते, तब आँखें तड़पती हैं, दिल पछताता है और समय की अटल गति हमें हमारी असहायता का बोध कराती है।जीवन में बस एक काश शेष रह जाता है। हम छटपटाते है उन क्षणों को याद करके जब हमारे किसी अपने ने हमसे समय चाहा था, जब वो हमारे साथ और पास होना चाहते थे। पर अफसोस समय बीत जाता और जो गया वो वापस नहीं मिल पाता। 


इसलिए आज और इसी क्षण को जी लो, जी भर कर जी लो। किसी के साथ समय बिताना एक अवसर है, न कि एक अधिकार। जो प्रिय हैं, उनके साथ हँसो, रोओ, बाँटो, क्योंकि हो सकता है कि कल की सुबह तुम्हारे या उनके लिए न आए। आगे तो बस एक खालीपन और पछतावा ........इसलिए जीवन के हर क्षण को पूर्णता के साथ जियो। अपनों के साथ समय बिताने में हिचको नहीं। नफरत ,वैमनस्य को भूल कर उनके साथ रहो,  क्योंकि जब वह समय निकल जाता है, तब सिर्फ़ और सिर्फ जीवन में उनके स्थान पर निर्वात बचता। 


जीवन सच में क्षणभंगुर है। पलकों के झपकने की गति से भी पहले हम उसे खो सकते ,जो हमारा है।इसलिए....... आज जब नींद से उठें और अपनों को आप सुरक्षित पाएं तो ईश्वर को धन्यवाद दीजिए ,इन अनमोल सांसों के लिए ।इसलिए...... माफ कर दीजिए हर उस व्यक्ति को जो कभी भी आपके लिए महत्वपूर्ण रहा हो,ताकि आपके मन पर कोई बोझ ना बचे। इसलिए ..... मन में बात मत रखिए ,बोल दीजिए किसी अपने को ,ताकि मलाल ना रह जाए। इसलिए ...... माफ़ी मांग लीजिए खुद की गलतियों के लिए ,ताकि कोई शर्मिंदगी ना बच जाए। और इसी लिए .......आज इस पल जो हमारे हैं ,उनके साथ हर उस पल को जी लीजिए जो आपकी सोच या आपके अपनों की अपेक्षा.... क्या पता कल ये पल ही ना रह जाए। 


#ब्रह्मनाद

#डॉ_मधूलिका






रविवार, 1 जून 2025

सैपियोसेक्सुअलिटी: सोच से प्रेम


     ( चित्र - गूगल से साभार)



जिंदगी में कभी हम किसी ऐसे शख़्स से मिलते हैं या यूं कहें कि संपर्क में आते हैं,  जिसकी ना सूरत देखी ना ही उसके बारे में कुछ पता होता। पर जब वह हमसे बात करना शुरू करते हैं , तो हर शब्द मानो आत्मा को छूने लगता। उसने विचारों में गहराई होती है, बातों में तथ्य, और सोच में ऐसा आकर्षण, जो सीधा अंतस में उतरता चला जाता है।


वो एक चेहरा नहीं था जिसने हमें बांध लिया होता है, वो शब्द थे। वो उनकी चेतना की आवाज़ थी जो दिमाग में पैठ बना लेती है , वो  उनकी सोच थी। और ऐसे अनुभव का नाम है सैपियोसेक्सुअलिटी।


यह एक एहसास है उनके लिए जो सुंदरता को सिर्फ आंखों से नहीं, मन से देखना जानते हैं। जिनके लिए सबसे आकर्षक चीज़ होती है किसी का मस्तिष्क। उनके लिए सुंदरता कोई तस्वीर नहीं, बल्कि विचारों की एक जीवंत भावना होती है , गहराई से बढ़ती हुई।


सैपियोसेक्सुअल लोग तब प्रेम में पड़ते हैं, जब कोई किसी विषय पर इतनी बारीकी से बात करता है कि हर शब्द एक नया आयाम  खोल दे। विज्ञान, दर्शन, साहित्य, मनोविज्ञान ,प्रेम ,धर्म , इन बातों में उन्हें वही अनुभव मिलता है जो किसी और को खूबसूरत चेहरे , आँखों की चमक या मुस्कुराहट में मिलता । वे संवाद को सतही नहीं बल्कि आत्मा तक ले जाना चाहते हैं।वो सिर्फ सुनना नहीं चाहते ,वो गुनना चाहते हैं । वो अनुभूति को चेतना के स्तर पर जीना चाहते । 


उनके लिए आकर्षण तब जागता है जब उन्हें महसूस हो कि, "उसकी सोच ने मुझे बदल दिया।" ,"उसके जैसी सोच सबकी होनी चाहिए ", "आज उसके नजरिए ने मुझे सोचने का नया आयाम दिया"। वो जो दिमाग को झकझोर डाले । वो जो दिमाग की भूख भी हो ,और खुराक भी। 


वे मन को पहले पढ़ते हैं, विचारों को  महसूस करते हैं। चेहरे की बनावट उनके लिए गौण होती है, पर सोचने का तरीका उन्हें बांध लेता है। जब वे किसी ऐसे व्यक्ति से मिलते हैं जो सवाल करता है, जो नई चीज़ें सीखने को लेकर व्याकुल है, तब उनके भीतर वह स्थायी रूप से बसने लग जाता। 


उनके लिए रिश्ते सिर्फ साथ चलने का नाम नहीं, बल्कि साथ सोचने का नाम होते हैं। उनके लिए प्रेम एक ऐसी बातचीत है जो रात के सन्नाटे में भी गूंजती है। एक ऐसा मौन संवाद, जिसमें दो ज़हन एक-दूसरे को धीरे-धीरे खोलते हैं।जहां उन्हें। बोलने की आवश्यकता भी ना पड़े ....पर मानसिक तरंग एक ही आवृत्ति में हों। 


हाँ, कुछ लोग कहते हैं कि यह घमंड है ,दिखावा है..... बुद्धिमत्ता को सौंदर्य से ऊपर रखना। लेकिन शायद यह सिर्फ एक अलग दृष्टिकोण है। हर किसी की अपनी पसंद होती है। कोई बाहरी आकर्षण में डूबता है, तो कोई भीतर की रोशनी में।


सैपियोसेक्सुअल वही लोग हैं जो शब्दों से प्यार करते हैं, सोच से बंधते हैं, और विचारों में अपना घर ढूंढ़ते हैं। जिनके लिए मस्तिष्क ही सबसे सुंदर अंग होता है , क्योंकि एक दिन चेहरा बदल जाएगा, आवाज़ धीमी पड़ जाएगी, लेकिन एक जीवंत सोच..... वो हमेशा युवा रहेगी।  और शायद, यही प्रेम का सबसे स्थायी रूप है।क्योंकि शरीर मरता है, पर सोच और विचार कभी नहीं.....। 


#ब्रह्मनाद

#डॉ_मधूलिका

शुक्रवार, 30 मई 2025

कल हो ना हो




 *मैं तुमसे बाद में बात करूँगी/करूँगी। 

*कल ये काम कर लेंगे।

*कल से पक्का नया रूटीन फॉलो करूंगा /करूँगी।

*कल से जल्दी उठेंगे।

*कल पक्का तय करेंगे कि आगे क्या करना...... 


और हर आज ;वही कल होता है जिस कल की हमने कल बातें की थी। अफ़सोस हम कल में टालते जाते.... कल के आसरे में बैठे रहते ,और वो कल कभी नहीं आता। हां इस कल को पाने की जद्दोजहद में हम आज को जरूर खो देते। आज की निश्चितता को कल की आस में नजरअंदाज करते रहते। 

इस कल के चक्कर में हम बस खोते ही चले जाते....... कई अपनों को ,और सपनों के लिए हकीकत को। 

कल कभी आ ही नहीं पाता। और हम अन्तहीन दौड़ते ही चले जाते।ये कल हमसे हमारे एक कदम आगे ही रहता।जब -जब हाँथ बढते तो लगता हम इसे पकड़ लेंगे।पकड़ में आता तो सपने हकीकत बन जाते..... पर  ये एक छलावा रहता ,एक मृगतृष्णा.... हम आगे देखने के चक्कर मे अपने नीचे की जमीन भी खो देते। और फिर औंधे मुंह गिरते। निगाहें फिर भी उसी कल की ओर लगी रहती, और वो हमसे उतनी ही दूरी पर खड़ा रहता ,जितना हमारे सफर की शुरुआत में था।


जब तक आंख खुलती....... कल खो चुका होता ,बीत चुके कल में। और हम एक पेंडुलम बन चुके होते कल और कल के बीच । तब वर्तमान भी पहुंच से छूट चुका होता और हमारा आधार ......... एक ट्रेडमिल की तरह हमें ऐसी दौड़ में ले जाता ,जहाँ हम दौड़ते तो रहते अनवरत ,पर कहीं पहुंच नहीं पाते। कल ....... कभी नहीं आता ,समझ तब आता ,जब आज कल में बदल जाता और हाँथ और ऑंखे दोनों खाली ..........

और फिर एक दिन कल की ओर ताकते हुए हम आज से कल में बदल कर इस दुनिया के अस्तित्व में ही आंकड़े से गायब हो जाते।


#ब्रह्मनाद 

#डॉ_मधूलिका 

रविवार, 18 मई 2025

अंतहीन प्रतीक्षा


 

                      ( चित्र - गूगल से साभार)



प्रतीक्षा... एक ऐसा शब्द जो सुनने में सहज लगता है, पर जो इसे जीता, उसके लिए यह जीवन की सबसे कठिन परीक्षा बन जाता है। यह वह भाव है जो समय की गति को तो नहीं रोकता पर प्रतीक्षारत व्यक्ति वहीं रुका रह जाता जिस क्षण से प्रतीक्षा शुरू हुई थी। समय की गति  और हर क्षण उसे  भारी लगने लगता है।


वास्तव में प्रतीक्षा ऐसा वृक्ष है, जो ऊपर से हरा-भरा दिखाई देता है। आशा की पत्तियाँ उसे हरा-भरा दिखाते हुए लहराती रहती हैं, सपनों और आशाओं के फूल भी उसमें  खिलते  हैं, और विश्वास की कोपलें उसे सूखने नहीं देती हैं।देखने वाले को वह सुन्दर और जीवंत दिखता है, पर किसी को क्या पता कि उसका तना ,मन भीतर से  कितना खोखला हो चुका है।


 नमी तो अब केवल आंखों में बची है, आंसुओं के रूप में। जिसे  वो बाहर निकलने देता ,वो अंदर आंसू का हिम खंड बनाते हुए एक विशाल पर्वत बन चुका होता है।किंतु उस पेड़ की जड़ें इस भार को लिए हुए  सूख चुकी  होती हैं।


हर दिन, हर क्षण प्रतीक्षा उस पेड़ को थोड़ा-थोड़ा भीतर से खा जाती है। बाहर से मुस्कुराता चेहरा भी अंदर से एक लंबी चुप्पी में डूबा होता है। जैसे किसी ने आत्मा को चुपचाप को हटा दिया हो पर वह देह को किसी उम्मीदों की डोर से बंधे होने के कारण ना छोड़ पा रही हो। 


कभी किसी अपने के आने की उम्मीद, कभी उसी अपने के  उत्तर की आस, और कभी उस एक नई सुबह की चाह जो उस अपने को देखने और मिलने के लिए बची होती , सब उस वृक्ष को थोड़ा और हरा दिखाती हैं, लेकिन खोखलेपन का सच उससे छुपा नहीं रहता।


प्रतीक्षा थका देती है, पर खत्म नहीं होती। वह जीने की वजह भी बन जाती है और मुक्त होने के लिए बंधन भी। कभी - कभी कुछ प्रतीक्षाएँ अंततः पूर्ण होती हैं, और वृक्ष फिर से जड़ें पकड़ लेता है। पर कुछ प्रतीक्षाएँ केवल जेठ की एक सूनी दोपहर की तरह आती हैं, जिसमें विरह की तपन बिना किसी नमी के मन को दग्ध करती हुई ताउम्र बनी रहती है। 

कहने को प्रतीक्षा में जीवन है, पर असल में यह जीवन का सबसे मौन और सबसे कठिन रूप है।

कभी प्रतीक्षा को समझना हो तो  उस  पेड़ को भीतर से भी देखना जो बाहर से हरा भरा हो,  वह भीतर से खोखला हो हुआ हो… पर फिर भी खड़ा है, एक अंतहीन प्रतीक्षा के पूर्ण होने की आशा लिए।


#ब्रह्मनाद 

#डॉ_मधूलिका 

शनिवार, 17 मई 2025

एक कोशिश जो हर दिन दोहराई जाती है

                         ( चित्र:- गूगल से साभार ) 



वह भी हर सुबह जल्दी उठती, दैनिक नित्य कर्म पूरा करती और स्कूल की ड्रेस पहन कर, टिफिन चेक कर बैग में रखती। पूजा घर में भगवान में प्रणाम कर बोलती हे भगवान मुझे बुद्धि देना ,अगर उसके टेस्ट या  एग्जाम होते तो उस दिन का सब्जेक्ट बोलकर कहती मेरा एग्जाम अच्छा कराना। कायदे से तो उसे शक्ति मांगना चाहिए ,हर दिन उपेक्षा और अपने लिए तिरस्कृत भाव का सामने करने के लिए।

उसके बाद ..... फिर हंसते हुए आँखों में उम्मीद लिए घर से निकलती बिलकुल ठीक वैसे ही जैसे बाकी बच्चे। लेकिन स्कूल की दहलीज़ पर कदम रखते ही उसकी दुनिया थोड़ी अलग हो जाती है।

कक्षा में जब टीचर कुछ पूछते हैं, तो उसकी ओर कम ही निगाहें उठती हैं। उत्तर मालूम होने पर भी जब तक वह बोलने की कोशिश करती है, कोई और उत्तर दे चुका होता है। उसकी धीमी प्रतिक्रिया को अक्सर असमर्थता मान लिया जाता है। कुछ टीचर मुस्कुराकर देख लेते हैं, पर कुछ बिना प्रतिक्रिया आगे बढ़ जाते हैं ,मानो वह वहाँ है ही नहीं।

खेल के मैदान में उसकी जगह अक्सर किनारे होती है। जब टीमें बनती हैं, तो उसका नाम सबसे अंत में लिया जाता है या बिल्कुल नहीं। जहां  बाकी नामों को अपनी अपनी टीम में लेने की होड़ होती ,तो उसका नाम ऐसा रह जाता जो कोई अपने पक्ष में नहीं चाहता । कुछ बच्चे उसकी ओर देखकर हँसते हैं, कुछ बस उपेक्षा से नज़र फेर लेते हैं।

फिर भी वह हर दिन खुद को साबित करने की कोशिश करती है। उसकी कॉपी साफ होती है, चित्रों में उसका बचपना झलकता है, और जब उसे बोलने का मौका मिलता है, तो उसकी आँखों में एक अलग ही चमक दिखती है।जो कि किसी का उसके लिए विश्वास का प्रतिबिंब होता है। 

कभी-कभी कोई एक सहेली मिल जाता है जो उसकी बातों को सुनता है, जो उसे उसके अपने तरीके से सिखाने की कोशिश करता है। ऐसे क्षण उसके लिए अनमोल होते हैं। लेकिन वे क्षण दुर्लभ होते हैं और उंगलियों में गिने जाने लायक.....बहुत कम।

अपेक्षाएँ पूरी नहीं होतीं।जब किसी सहपाठी की तारीफ उसके सामने होती, जब किसी और को पुरस्कार मिलते हैं,किसी और के लिए तालियां बजती हैं , वह खुशी से ताली बजाती है। ईर्ष्या का लेश मात्र भी अंश उसमें नहीं होता, वह सबकी सफलताओं पर खुश होना जानती है। उसे कभी किसी से शिकायत नहीं होती। न कभी किसी के लिए ग़ुस्सा, न कोई रोष, न कोई कटुता, बस एक शांत स्वीकृति और अगली कोशिश की तैयारी।

उसे पता है कि वह अलग है, पर यह नहीं जानती कि इस "अलग" होने के कारण ही लोगों की उपेक्षा और उपहास का कारण बनती है। वह खुद के अलग होने को कमजोरी नहीं मानती ,ना बनने देना चाहती। वह हार नहीं मानना चाहती। हर दिन एक नई उम्मीद के साथ फिर खड़ी होती है क्लास में उत्तर देने के लिए, खेल में भाग लेने के लिए, सहेलियों द्वारा खुद को चुने जाने के लिए और सबसे बढ़कर "खुद के होने की स्वीकृति" पाने के लिए।

उसका संघर्ष हर दिन चलता है, समझे जाने के लिए, अपनाए जाने के लिए, खुद को सिद्ध करने के लिए। और फिर भी, उसके भीतर कोई नकारात्मकता नहीं।वह सिर्फ एक मुस्कान के बदले असीम स्नेह देने का मन रखती है।एक बार हांथ बढ़ाने पर अपने मन का सबसे कोमल स्थान देती है।सिर्फ नजर मिलाने पर निश्छल मुस्कान सौंपती है क्योंकि उसका मन निर्मल है, कोमल है ,एक पारदर्शी काँच की तरह।किसी के नकारात्मक व्यवहार का बदला भी वो अपने मासूम से सकारात्मक व्यवहार से देगी। यही उसकी सबसे बड़ी विशेषता है, और शायद यही उसकी सबसे बड़ी कमजोरी भी। 

उसका हर दिन संघर्ष है, एक मौन और गहरी दृढ़ता के साथ। हर दिन आंख खुलने से लेकर बंद होने तक एक ऐसी कई परीक्षाएं , जो अंकसूची नहीं बल्कि लोगों के व्यवहार में परिणाम देती है।जिसमें वह कई बार अनुत्तीर्ण होने को भी स्वीकार लेती ,एक बार उत्तीर्ण होने की चाह में।


#ब्रह्मनाद

#डॉ_मधूलिका मिश्रा त्रिपाठी 

 

शुक्रवार, 2 मई 2025

राइटर्स ब्लॉक


 

कभी-कभी शब्द हमसे दूर भागते हैं। हम कुछ सोचते हैं ,लगता है कि बस अभी एक खूबसूरत रचना रच डालेंगे।  हम बैठते हैं लिखने के लिए, लेकिन कागज़ खाली रह जाता है।  एक ऐसी दीवार, जो हमारे और हमारी कल्पनाओं के बीच खड़ी हो जाती है। 

दिमाग सोचना चाहता है पर उसमें होती हैं तो बस  चुप्पियाँ , जो सिर्फ चुप नहीं होतीं बल्कि एक  खालीपन उभार जाती हैं। जब लिखने की तड़प हो, लेकिन शब्द साथ छोड़ दें, तब हर साँस एक बोझ बन जाती है। पेन पकड़ते वक्त उंगलियाँ काँपती हैं, आँखें धुंधली होती हैं और कागज़ का कोरापन  भीतर तक चुभता है।

राइटर्स ब्लॉक सिर्फ न लिख पाने का नाम नहीं है — यह धीरे-धीरे टूटते जाने का अहसास है। यह देखना है कि हम जो सबसे ज़्यादा चाहते हैं, वही आपसे दूर भाग रहा है। हर अधूरा वाक्य ,हमारी हार बन जाता है, हर खाली पन्ना एक मौन चीख।

कभी-कभी ऐसा लगता है जैसे शब्द जानबूझकर छुप गए हैं, जैसे खुद अपनी आवाज खो गई हो। जैसे भीतर जो कुछ भी था जज़्बात, सपने, कहानियाँ — सब बर्फ बनकर जम गए हों।

यह दर्द सिर्फ उस पल का नहीं होता। यह धीरे-धीरे दिल के कोनों में जमा होता है, हर असफल कोशिश के साथ थोड़ा और भारी हो जाता है। ऐसे में खुद से लड़ना भी थका देता है और फिर भी, छोड़ना भी मुमकिन नहीं होता।

हम दूसरों को पढ़ते हैं ,सोचते हैं कि हम इस स्तर पर क्यों नहीं सोच पा रहे ????क्या इस विषय पर हम लिख सकते थे??? क्यों एक पंक्ति लिखने के बाद लेखनी आगे बढ़ने से इंकार कर देती है। एक अदृश्य छटपटाहट जैसे हमारा बेहद कीमती कहीं खो गया है ,कभी ना मिल पाने के लिए । 

यह बिल्कुल वैसा ही है जैसे कोई एक ऐसा कमरा जिसमें ना तो कोई दरवाजा ,ना खिड़की। हम छटपटाते रह जाते हैं एक सांस ताज़ी हवा के लिए, एक नजर धूप का कतरा देखने। पर हांथ आता है तो भयावह अकेलापन और शून्यता। 

पेपर की हर लिखावट आंसुओं के कारण अस्पष्ट सी रहती , हम उन पंक्तियों के बीच पढ़ने का एक अंतिम प्रयास करते जो अब तक लिखी भी नहीं गई हैं। हम हारने लगते हैं ,खुद से ।क्योंकि हमें लग रहा था कि अब तक हमारे लिए लिखना सांस लेने जैसे जरूरी था। हम उस व्यक्ति की तरह महसूस करने लगते जिसकी अंतिम सांस छूट रही हो ,और वो एक बार फिर जीने के लिए हर तरह का प्रयास कर रहा हो।

 पर अंततः सांस की वो डोर टूट ही जाती है। और हम कोरे पन्ने को बिसूरते उसमें आंखों के खारे पानी की आड़ी टेढ़ी लाइन बनते देखते हुए एक घने अंधकार से एक गहरी खाई में बस गिरते चले जाते.... इस आस में की शायद एक दिन फिर ये कलम कूक उठेगी बसंत के आगमन पर लेखन की प्रकृति की तरूणाई को जगाने। 

#ब्रह्मनाद 

#डॉ_मधूलिका

मंगलवार, 29 अप्रैल 2025

नृत्य:- स्पंदन की गति का उत्सव




सांसों की ताल पर जीवन का नृत्य


जीवन एक नृत्य है, और इसकी  सुंदरतम लय है हमारी सांसों । जैसे कोई कुशल नर्तक संगीत की हर धुन पर अपनी गति को ढालता है, वैसे ही हमारा जीवन हर सांस के साथ एक लयबद्ध गति में संगत करता है।


 यह नृत्य केवल शारीरिक अस्तित्व का नहीं, बल्कि चेतना, भावनाओं और आत्मा के सूक्ष्म स्तरों पर होता है। हर सांस जो हम लेते हैं, वह न केवल जीवन को बनाए रखने का कार्य करती है, बल्कि हमें ब्रह्मांड की अनवरत गति से भी जोड़ती है। जब हम शांत होकर अपनी सांसों को महसूस करते हैं, तो ऐसा लगता है मानो सृष्टि की एक अनदेखी धुन हमें छू रही हो—एक ऐसी धुन, जो न कभी रुकती है, न थकती है।यह सम की गति पर होता है। किंतु स्थिति, परिस्थिति और भाव अनुसान जीवन में आरोह और अवरोह की गति भी होती है, जैसे नृत्य में क्रमशः पठन के साथ गति तेज होती है और आरोह , अवरोह से लयकारों से बढ़ते हुए एक समय थम जाता। 


सांसों की इस दिव्य लय में एक दैवीय नृत्य ताल मिलाता है। यह केवल मनुष्यों नहीं ,बल्कि पशु पक्षी सहित हर जीव में  यह वही संगीत है जो पेड़ों की सरसराहट में, लहरों की गूंज में, और पक्षियों की चहचहाहट में गूंजता है।जीव- अजैव की संगति से भी एक नृत्य का जन्म होता है।  इसके भेद को समझने वाला व्यक्ति जीवन के हर क्षण में ब्रह्म का अनुभव करता है। हमारे भाव और अंग संचलन संयुक्त रूप से इस बात को तय करते की प्रकृति में संचालित यह नृत्य लास्य होगा अथवा तांडव। 


जब हम जीवन के इस भेद को जान जानने का प्रयास करते हैं तब यह ज्ञात होता है कि हम सृष्टि के उस महान नृत्य का हिस्सा हैं, जिसमें हर जीव, हर वृक्ष, हर पिंड सम्मिलित , हर चेतना या दूसरे शब्दों में कहूं कि संपूर्ण ब्रह्मांड नृत्यरत है। एक निश्चित और तय गति, निश्चित लय ,यही अनुभूति हमें अलौकिक से  एकत्व का बोध कराती है और जीवन को एक गहन अर्थ देती है।


अंततः,सांसों की ताल पर चलता यह जीवन-नृत्य ईश्वर  की सृष्टि की सर्वोत्तम और सर्वोत्कृष्ट उपहार है। 



#अंतर्राष्ट्रीय_नृत्य_दिवस

#ब्रह्मनाद

#डॉ_मधूलिका 


शनिवार, 26 अप्रैल 2025

मौन


 


मौन


मौन...... मतलब?? निःस्तब्धता ....जब कहने को कुछ ना हो ..या जब कुछ कहना ही ना चाहें ........नहीं ।

मौन मतलब जब आपके भाव का प्राकट्य शब्द की अनिवार्यता से ऊपर उठ जाएं। शांति की वह परम अवस्था ;जब आप मानसिक रूप से शांत हों। जब आपकी आत्मा सिर्फ आपकी #सांसों_की_लय का संगीत गुनगुना रही हो । जब #स्थूल ,#सूक्ष्म रूप में भेद ना बचे। जब मन  / विचार किसी  #विचलन की अवस्था मे ना हों। #आत्मपरिवर्तन की दिशा है मौन । 

#गीता में मौन को तपस्या कहा गया है। वास्तव में ये एक साधना ही है। सामान्यतः मौन का अर्थ हम शब्द ध्वनि पर रोक  समझते हैं । हालांकि ये स्थिति भी पालन करने में बेहद दुष्कर होती है। बाहरी वातावरण के प्रभाव से आंतरिक द्वंद की स्थिति में वाणी निषेध वाकई साधना ही है। 

 हम अक्सर ध्यान और प्रार्थना के समय शाब्दिक मौन होते हैं। इस स्थिति में स्वयं में एक प्रभा मण्डल को जागृत होता हुआ व एक शक्ति  भी महसूस करते हैं। स्वयं की आंतरिक ऊर्जा का नियमन कर एक बिंदु पर एकाग्र होना .....एकनिष्ठ भाव होते हैं ; शाब्दिक मौन के। किन्तु उससे भी श्रेष्ठ होता है ,आत्मिक / आंतरिक मौन। 

समाधि सी अवस्था ....मौन । मन की निः स्तब्धता की दशा।  कई बार हम वाणी से मौन होते ,किन्तु मन वाचाल रहता। कई तरह के विचारों ,परिस्थितियों का विश्लेषण  करते हुए और परिणाम सोचता। कई बार स्वयं में वाद - विवाद की दशा का भी जनक होता है ये मौन ( वाणी) । 

मूलतः मौन वही जब मन -मस्तिष्क #सम_की_दशा में हों। ना हर्ष - ना विषाद, ना द्वेष - ना क्लेश, ना अपमान - ना सम्मान ...शेष बचती है सिर्फ निरपेक्षता.... आत्मिक निर्लिप्तता । 

बिल्कुल वैसे जैसे अंतरिक्ष का परिमाण ,पर मान शून्य...

स्वयं में गहरे होते हुए ,अंदर से शांत ,विचार शून्य हो जाना। 

हम जब स्वयं के विचारों की लहर को शांत कर उसका नियमन और नियंत्रण सीख जाते ,जब आंतरिक उद्वेलन की स्थिति को काबू करना सीख लेते..तभी हम मौन को वास्तविक रूप में जान पाते। विचारों में शव की स्थिति को जीकर शिव हो जाना ही मौन को सही अर्थों में जी लेना। 

🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

#ब्रह्मनाद 

#डॉ_मधूलिका

शुक्रवार, 25 अप्रैल 2025

मां होना दुर्भाग्य है !


 #माँ_होना_दुर्भाग्य_है


मैं कन्या भ्रूणहत्या का समर्थन करती हूं..... क्यों कारण बहुत सारे हैं ,सिर्फ इसका एक बलात्कार कारण होता तो शायद यह मांग ही नहीं कर पाती।

 चलिए कुछ समय पीछे जाते हैं ,मेरी नन्ही बेटी मेरी गोद पर थी ।नन्हीं सी गुड़िया, प्यारी सी, नाजुक सी, ऐसा लगता था जैसे अगर ओस भी उसे छूऐगी तो उसे घाव हो जाएगा। तब मुझे एक नया नया चस्का लगा  हुआ था ,मैं इंटरनेट पर प्यारी प्यारी सी तस्वीरें सर्च करती थी ।उस हर एक तस्वीर में किड मॉडल की पहनी गई  ड्रेसेस , ऐसेसरीज के साथ अपनी बेटी की कल्पना खेलती हुई  मासूम चंचल गुड़िया  में करती।अब इन बातों में अचानक कन्या भ्रूण हत्या की बात कहां से आ गई !!!!!बताती हूं...

 वक्त के साथ मेरी बेटी बड़ी होती है ,मेरे सर्च करने का नजरिया और कन्टेन्ट चेंज हो गए। इंटरनेट पर जुड़ी हुई बहुत सी बातें ऐसी थी धीरे-धीरे मुझे रोचक कम लगती और डराती ज्यादा थी। कभी मुझे खबर आती एक 10 माह की मासूम के साथ उसके ही रिश्तेदार ने बलात्कार कर उसे मार दिया। कभी खबर आती कोई 5 साल की नन्ही सी गुड़िया की मासूमियत के साथ इस तरह खेल कर गया की गुड़िया दोबारा जुड़ नहीं पाई।

 कभी खबर आती किसी एक और नन्हीं जान की मासूमियत को कई हैवान तार तार कर उसकी जान ले लिए।

कभी खबर आती की पिता ने अपने दोस्तों के साथ मिलकर अपनी बेटी का बलात्कार किया। आए दिन ऐसी खबरों से इंटरनेट के माध्यम से मुझे कई तस्वीर भी मिलती।

 एक दौर वो था जब मैं किसी प्यारी सी तस्वीर में अपनी गुड़िया की छवि देखती थी , अपनी बेटी को उस छविमें उतार लेती थी पर जब इन खबरों की तस्वीरें सामने आती थी तो कहीं ना कहीं मैं उसमें अपनी ही बेटी को अनजाने ही इन घटनाओ में देखने लगती। मुझे महसूस होता था कि मेरी 9माह की बच्ची कितनी नाजुक थी ,उसके कपड़े से लेकर,बिस्तर और  वह हर चीज  जिससे वो सम्पर्क में थी ;उसमें  मैं कोमलता का ख्याल रखती थी कि मेरी गुड़िया को किसी भी तरीके से चोट ना लग जाए। उसका क्रीम पाउडर उसको हानि ना पहुंचाए ।

 और जब मैंने जाना कि एक 9 माह की बच्ची के साथ किसी हैवान ने इतनी हैवानियत की कि वह अपनी जान ही नहीं बचा सकी तो मैं अपनी बच्ची की मासूमियत के साथ की तुलना करने लगी ।मुझे क्यों पता नहीं क्यों मेरी बच्ची तड़पते हुए देखने लगी मेरी ममता अंदर चीत्कार कर रही थी ।हर वह छोटी बच्ची की हैवानियत की शिकार होने  की तस्वीरें मुझे अंदर तक दंश देकर चली गई।  जब जब कोई ऐसी बच्ची की तस्वीर सामने आती जो किसी की यौन उत्कंठा का शिकार होती मैं अनजाने ही उन तस्वीरों में अपनी बेटी की कल्पना करने लगती ।मैं उस उस दर्द का अंदाजा लगाने लगती जो उस बच्चे के मां और पिता को मिला होगा ,उस बच्ची की हालत को देखकर और उससे भी ज्यादा उस बच्ची की हर वक्त की तड़प जो उस दुर्दांत इंसान के शिकंजे पर आकर उसने महसूस की होगी। 

कितना सहेजते हैं हम अपने बच्चों को, उनकी एक चोट पर हमारा दिल रोता है.....एक छोटी एक छोटी सी खरोच हमें अंदर तक तड़पा जाती है ।फिर उसी स्थिति का अंदाजा लगाइए जब एक छोटी सी बच्ची यौन उत्पीड़न का शिकार होती है ।बलात्कार का शिकार होती है ....कभी सोचा है एक बार महसूस करके देखिएगा कोई जबरदस्ती सिर्फ अगर आपका हाथ ही पकड़ ले तो आपको छुड़ाने में कितनी तकलीफ होती है ....और वह बच्ची जिसे उस कुकृत्य का मतलब भी नहीं पता है वह उसे कैसे झेलती होगी?? खुद को बचाने के लिए किस हद तक जूझती होगी। कितना रोती होगी एक अमानवीयता के दर्द से। कितनी मजबूर होती होगी खुद को मसले जाने को झेलने को। और अंत मे पीड़ा को मौत से जीत कर शांत हो जाती होंगी। 

 बात सिर्फ बलात्कार की नहीं है आसपास होने वाली सारी घटनाओं से मैं अब डरने लगी हूं ।मैं सोचने लगी हूं कि मैं एक बेटी की मां क्यों बनी हूं ????

मैं अपनी बच्ची को अपने पड़ोसी के घर भेजने से डरने लगी हूं, मेरी बच्ची के सर पर पड़ने वाले नहीं कि हाथ भी मुझे संदेहास्पद   लगने लगे हैं । मैं अक्सर सोचती हूं उसका ऑटोवाला उससे किस तरीके से व्यवहार करता होगा ???क्या उसे लाड़ जताने के बहाने कहीं ऐसे स्थानों पर ना छूता हो ,जो मेरी बच्ची के लिए सहज ना हो और वह डर जाती हो ।मेरी बच्ची कहने से मतलब हजारों-लाखों छोटी मासूम कलियों से है जो आए दिन जाने-अनजाने ,प्रत्यक्ष -अप्रत्यक्ष रूप से इस तरह के हादसों के शिकार होती रहती हैं। कभी गेटकीपर,कभी लिफ्टमैन, कोई दुकान वाला न जाने किस नजरों से उन्हें देखते होंगे न जाने किस तरीके से छूते होंगे .....उनके सर को  सहलाने के बहाने वह न जाने अपनी किस कुंठा को तृप्त करते होंगे.... सोचकर कांपने लग जाती हूँ। वह जिसे हम एक मासूम से फूल की तरह समझते हैं एक कोमल कली की तरह हम उसे मान कर रखते हैं वह ना जाने इन आतंकियों के किस रूप का सामना करती होंगी ,हमसे दूर हो कर। हम कब तक उन्हें अपने पहलू में छुपा कर रखे??? हम कब तक उनके साथ हर जगह रहेंगे ?????कहीं ना कहीं तो उनको हमसे अलग होना ही होगा ।जब  वह हमसे अलग होंगी तो क्या महसूस करती होंगी हमें तो पता भी नहीं चल पाता। 

कई बार हम जैसे समझदार बुद्धिजीवी माने जाने वाली महिलाएं भी भावनात्मक तौर पर छली जाती हैं ,जो की बहुत अनुभव सम्पन्न मानी जाती हैं ।दुनियावी मामले में जब हमारी यह गति होती है इन बच्चियों का क्या होता होगा ????

हर पल ,हर लम्हा अपनी बच्ची को अपनी नजरों से दूर करते मैं मैं डरती हूं । परिवार के लोगों के बीच में छोड़ने से डरती हूं , बाहर उसे अकेले छोड़ने से डरती हूं ।

कितना अजीब वक्त आ चुका है विश्वास का कहीं नाम ही नहीं रहा कई बार ऐसी घटनाएं में पता चलता है कि पिता ही बेटी को बेच दिया पिता ने अपने दोस्तों के साथ रेप किया, घर पर किसी बुजुर्ग की उत्कंठा का शिकार हुई लड़कियां ।न जाने कितने ऐसे उदाहरण है ।

जहां हर वक्त मेरे सामने सिर्फ और सिर्फ इन बच्चियों का दर्द उभरता है , मैं उनका दर्द एक मां के तौर पर महसूस करती हूं और तब लगता है कि  मां होना दुर्भाग्य है ,क्योंकि मुझे अब अपनी बच्ची का भविष्य सुरक्षित नहीं। 

मेरी नजरों में हमेशा एक भ्रम की स्थिति बनी रहती है ,उसके भविष्य के लिए विचारशील रहती हूं पर  अब उसके लिए यह सपने नहीं देखती कि मेरी बेटी क्या बनेगी ?????

मैं अब  यह सोचती हूं मेरी बेटी सुरक्षित रहेगी  या नहीं ।

 कि अब मैं मां होना दुर्भाग्य समझती हूं ।मैं अब  बेटी को जन्म भी नहीं देना चाहती,ताकि  हर वक्त महसूस होने वाली उस पीड़ा से बच सकें ,जो कई गंदी नजरों कई गंदे पशुओं स्पर्शों  से  हमारे दिल दिमाग को छलनी कर जाता है ।

सिर्फ मैं नहीं मुझ जैसे लाखों माएँ इन घटनाओं को खुद में घटती हुई  महसूस करती होंगी ।खुद की बच्चियों की छवि में उन बच्चों की छवि देखती होंगी जिनकी तस्वीरें इंटरनेट पर इन हैवानों के  कुकृत्य की वजह से वायरल हो जाती हैं ।

हम अब किसी पर विश्वास नहीं कर पाते हमारी नजरों पर हमेशा दूसरों के कार्य और व्यवहार के लिए एक प्रश्न चिन्ह होता है ।एक अंजाना सा डर हमेशा सामने रहता है ।

जब आप किसी पर विश्वास नहीं कर पा रहे हो ऐसी स्थिति में जीना कितना मुश्किल होता है, यह समझाने की जरूरत नहीं है। सोचकर देखिएगा उस मां की पीड़ा को जो अपनी बच्ची को बाहर भेजने से डरने लगी है ,घर में भी वह उसे सुरक्षित नहीं पाती है। और जब हर वक्त यह अनिश्चितता उसके सामने होती है हर वक्त यह डर उस पर हावी होता है ,तो वह क्या बच्चे को सुरक्षित भविष्य दे पाएगी !!!!!!क्या वह बच्ची को वह मजबूत स्थिति दे पाएगी???

अब बताइए ऐसी स्थिति में क्या एक बच्ची का जन्म होना जायज है मेरे ख्याल से बिल्कुल नहीं जड़ ही खत्म कर देते हैं ....ना रहेगी बच्चियां ....ना रहेगा डर और जब डर नहीं होगा तो समाज का स्वरूप अलग हो जाएगा ।लोगों को समझ में आएगा कि एक औरत का होना , बच्ची का होना समाज में कितना जरूरी है..... तब शायद यह उत्कंठा खत्म हो पाए ।

हम आत्मरक्षा के गुर सिखाने की बात करते हैं ,इन सब घटनाओं से बचने के लिए ।पर वो मासूम बच्चियां जो अभी स्पर्श को वर्गीकरण नही जानती,अपने पराए  की सही परिभाषाएं भी नहीं जानती , वह कैसे अपनी आत्म रक्षा कर  पाएंगी???वह जो अभी अपनी भूख बताने के लिए भी सिर्फ रोकर ही जता पाती हैं, वह कैसे आत्मरक्षा कर पाएंगी ?? 

कैसे बचाएंगे हम  इन मासूमो को ।वह तो सक्षम नहीं हैं ,और हमारे पास सिर्फ एक ही तरीका है कि हम मां ही ना बने ,हम इन बच्चियों को जन्म ही ना दें ,इस घटिया मानसिकता वाले हैवानों के समाज मे। 

 इसलिए एक डरी हुई ,कुंठित माँ के रूप मैं पैरवी करती हूं ,कन्या भ्रूण हत्या ही जायज ठहरा दिया जाए ताकि बड़े होकर वह हर पल मरने से बच सकें और एक मां उस दुर्भाग्य को ना महसूस कर सके जो इन खबरों से वो अंदर तक टूट कर जीती है। 


ये लेख नहीं माँ के रूप में मेरी पीड़ा है, अगर महसूस कर सकें तो जिम्मेदारी लीजियेगा किसी माँ की अनुपस्थिति में उसके बच्चों को स्वयं के सामने सुरक्षित रखने की।  वरना आज नहीं तो कल हर औरत बेटी को जन्म  देने से मना कर देगी और प्रकृति खुद की प्रतिकृति के अभाव में अंत की ओर अग्रसर होगी। 


#ब्रह्मनाद 

#डॉ_मधूलिका

पहलगाम डायरी

 


#उसके_जाने_के_बाद 


“मुझे मेंहदी लगाना बहुत पसंद था। शादी से पहले लगाती थी तो बाबा चिल्लाते थे ,हर वक्त कोन लेकर बैठ जाती है । मां उन्हें कहती यह तो सौभाग्य चिह्न होता है, टोका मत करिए। मै मुस्कुराकर हल्की होती मेंहदी में एक अलग डिजाइन लगा लेती, दूसरे दिन रंग गाढ़ा करने के ढेर उपाय करती ,पर आज वही मेंहदी आंखों में  मुझे चिता के लाल रंग की जलन दे रही। मेरी हाथों की मेंहदी जो पिछले हफ्ते ही मेरी शादी में लगाई गई थी, मेरे सुहाग का नाम लिख कर ,आज  उन्हीं हाथों की लकीरों में मेरे सुहाग की रेखा मिट चुकी है। 


हमारी शादी को केवल 4 दिन हुए थे। अभी तो मैंने सिंदूर को अपने माथे पर सजाना शुरू किया था, हाथों में मैने पंजाबी चूड़े ,पैरों में बिछुए की आदत डाल रही थी, उसकी हथेली की गर्माहट को अपने चेहरे और हाथों में महसूस करना शुरू की थी, उसका एहसास  साँसों की लय में पिरोया था।उसकी खुश्बू धीरे धीरे मेरे बदन में घुलने लगी थी और हम निकल गए अपने सपनों में स्वर्ग कश्मीर में ... एक दूसरे को खुद से ज्यादा महसूस करने , दो जिंदगी से एक जान बनने के लिए। पहलगाम , हमारी  पहली यात्रा – हां अब इसे हनीमून कहते हैं । सहेलियों से सुनकर ,कुछ सीख मानकर ,उनकी पसंद की जगह और कुछ फैंसी कपड़े लेकर मै पहुंच गई अपने हमसफर का हांथ थामे।मेंहदी में अपना नाम ढूंढते हुए वो हमारे सपनो की डोर आपस में गूथने लगे थे। 


 उस दिन जब मैं तैयार हो रही थी ,वो पीछे बिस्तर में लेटे हुए ही आइने में मेरी छवि निहार रहे थे। मुस्कुरा रहे थे ,आंखों में हमारे सवाल जवाब शर्माना और सकुचाना चल रहा था। उन्होंने शरारत से कहा कि आज घूमने नहीं चलते ,आज बस पूरा दिन बैठ कर तुम्हें जी भर के देखना चाहता हूं । मै झूठ ही रूठते हुए बोली ,उसके लिए उम्र पड़ी है, अभी तैयार होइए और चलिए। पता है मैने कितनी चुन कर ड्रेस ली है। अपनी सहेलियों को कहा था अच्छी रील्स भी बनाऊंगी। और फिर थोड़े देर बाद हम उस हसीन वादी में थे जिसे भारत का स्विटजरलैंड कहते हैं। 

हम एक दूसरे में खोए हुए और वादी भी हममें खोई सी थी। 

अचानक कुछ अजीब से लोग बंदूक लिए वहां आए , आयतें, कलमा पढ़ने को बोलने लगे, मै कांपने लगी, उसकी गर्म हथेली मुझे सुरक्षित करने के लिए खुद के पीछे छुपाने की कोशिश कर रही थी। वो शायद उनके इरादे समझ गया था, और मै बस बदहवास सी थी। उसको डर था ,मेरे इज्जत का ,पर उन लोगों ने मेरी इज्जत के निगेबां की ही इज्जत सरे आम उतार दी। उसके अंतः वस्त्र तक उतार दिए गए । वो डरा हुआ दिखा ,उस स्थिति में भी मुझे छुपाते हुए। और अचानक ....... गोली चली, और वह मेरे सामने गिरा, मैं चीख भी नहीं सकी। उसके सीने पर खून फैलता रहा, और मैं सिर्फ उसका चेहरा देखती रही – शांत, जैसे अब कोई डर नहीं रहा उसमें। थोड़े देर पहले मुझे डर से बचाता हुआ वो मौत से खुद को नहीं बचा सका।उसकी गर्म हथेलियां मेरे हथेलियों के बीच धीरे धीरे ठंडी होती गई और जमते चले गए मेरे अंदर के कोमल ,सुखद एहसास। 


लोग उसे “शहीद” कहने लगे हैं। सोशल मीडिया , अख़बारों में मेरी तस्वीर छपी – आँसू भरी आँखें, जमी हुई देह। पर कोई नहीं जानता कि मैं न जी पा रही हूँ, न मर पा रही हूँ। मौत भी जैसे मुँह मोड़ कर चली गई है मुझसे। हां मै मौत चाहती थी ,उसके जाने के बाद ,मेरा भाग्य तो उसके साथ जोड़ा गया था ना ,पर उन निर्दयी आतंकियों ने मुझे नहीं मारा, मेरा मजाक उड़ाते छोड़ गए मुझे जीवन भर हर क्षण मरने को। मेरे जीवन की सबसे सुखद यात्रा को नर्क की यात्रा में बदल कर वो हम जैसे और जोड़ों की सहयात्रा को एकाकी बनाने के लिए। जीवन भर के साथ को अपने नापाक मंसूबों की भेंट चढ़ाते,कई औरतों की मांग उजाड़ अट्टहास करते वो राक्षस उस स्वर्ग को नर्क बना गए। 


मैं अभी भी यकीन नहीं कर पा रही हूं , आँखें बंद होते ही  मैं वही सपना देखती हूँ – वह मेरा हाथ थामे कहता है, “डरो मत, मैं हूँ न।” और अचानक .......मेरी आंख खुलती है, उसकी जगह खाली है , उसके हथेलियों की गर्माहट नहीं सिर्फ एक एहसास मुझे जकड़ लेता है। मै हर सांस खुद को कोसती हूं ,की मै आत्महत्या क्यों ना कर ली उसी वक्त..!  

कभी-कभी लगता है कि क्या सचमुच हुआ था वो हमला? या मेरे ही सपनों पर हमला हुआ था?

मैं जानती हूँ, वह अब नहीं है, पर मेरे भीतर जो बचा है – वह एक खालीपन और अकेलापन है। 


हां मैने उससे प्रेम किया है ,विवाह वेदी में हर जन्म के बंधन के लिए वचन बद्ध होकर ।उसकी चिता पर उसका भौतिक अस्तित्व राख हो गया है , पर हम दोनों का एक दूसरे के लिए प्रेम राख नहीं बना।  वह ज्वाला बनकर जल रहा  है… एक अग्निशिखा,  जो न केवल मेरी पीड़ा को, बल्कि इस देश की पीड़ा को तब तक जीवित रखेगा जब तक उन नरभक्षियों को उनके पाप का दंड नहीं मिल जाएगा। 

जब तक उनके खून से धरती का वो टुकड़ा रंजित नहीं होगा जहां कई जोड़े हाथों और सिंदूर का रंग आंसुओं में डूब गया ,तब तक मै नहीं रोऊंगी। मेरे आंसू बर्फ के पहाड़ बन चुके हैं ,आँखें उस मंजर को हर पल सामने देख रही हैं। अब इन आंसुओं को मैं तब तक  गिरने नहीं दूँगी  जब तक नहीं देख लेती उसी स्वर्ग जैसी जगह पर उन हैवानों का गिरता हुआ रक्त  । मैं इंतजार में हूं, शायद ईश्वर  के न्याय का...। मेरी उजड़ी मांग वापस नहीं सजेगी, पर वो जहां भी होगा ,अपने दोषियों को सजा मिलते देख मुक्त जरूर हो जाएगा।

#ब्रह्मनाद

#डॉ_मधूलिका 



रविवार, 20 अप्रैल 2025

कहानी तेरी मेरी


 छोटे- छोटे सूक्ष्म विचार ,जीवन का ये गूढ़ संसार ,

मानवता या अत्याचार ,हो घोर घृणा या प्रीत-प्यार ..

ये बनी कहानी तेरी- मेरी ..


घना अँधेरा ,रात अमावस ,

तारों संग घिरता ,गहन से तमस,

भूख -गरीबी घोर निराशा ,

ये बनी कहानी तेरी मेरी ...


सुबह का सूरज, भोर की लाली ,

अतिषा संग फैली खुशहाली ,

सुरभित हो जब क्यारी क्यारी ,

ये बनी कहानी तेरी मेरी ...


भोजन- भजन,धर्म और कर्म , 

शहर गाँव का कोई भी मर्म ,

हर जगह छुपी एक बात अधूरी,

जो भावों संग होती पूरी,


उज्ज्वंत शब्द के संयमित प्रान्त , 

पढ़कर भी कोई ना हो क्लांत ,

इसकी- उसकी याद की थाती , 

जग के हर अनुभव की पाती ,

बिन बोले जो सब कह जाती,

ये बनी कहानी तेरी मेरी ....

ये बनी कहानी तेरी - मेरी 

( डॉ. मधूलिका )

बुधवार, 2 अप्रैल 2025

ऑटिज्म: समझ और स्वीकार्यता



 



 माइक्रोसॉफ्ट नामक कम्पनी के सह संस्थापक तथा अध्यक्ष बिल गेट्स ने हाल ही में एक साक्षात्कार में कहा कि यदि वे आज बच्चे होते, तो संभवतः उनमें ऑटिज्म का निदान किया जाता। उन्होंने अपने सामाजिक अजीब व्यवहार ,आंखों के संपर्क में कठिनाई और किसी विषय पर गहरे ध्यान केंद्रित करने जैसी विशेषताओं का उल्लेख किया, जो ऑटिज्म के लक्षणों से मेल खाती हैं। गेट्स ने यह भी बताया कि उनकी गहरी एकाग्रता की क्षमता ने उनकी सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हालांकि इसकी पुष्टि नहीं की जा सकती कि वे ऑटिस्टिक हैं या नहीं, लेकिन उनके अनुभव साझा करने से न्यूरोडाइवर्सिटी के प्रति जागरूकता और समझ बढ़ी है।

हम 21वीं सदी में जी रहे हैं । नित नए वैज्ञानिक अनुसंधानों के साथ स्वयं को अपडेट करते हुए सुपर ह्यूमन बनने की राह में अग्रसर हैं । इस दौड़ में अग्रणी रहते हुए भी कुछ मानवीय पहलू में हम  बहुत पीछे रह गए हैं। एक तरफ कुछ मशहूर लोग खुद में विशेष आवश्यकता वाले लक्षणों को स्वीकार कर रहे हैं तो दूसरी ओर अब भी न्यूरोडवर्सिटी व अन्य अक्षमताओं के प्रति जागरूकता और स्वीकार्यता ऐसा ही एक क्षेत्र है, जहां अभी भी बहुत प्रयास करने की आवश्यकता है।इनसे प्रभावित कई व्यक्ति  व्यक्ति अभी भी समाज की स्वीकार्यता प्राप्त कर मुख्य धारा में आने  के लिए प्रयासरत हैं।


दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 (RPWD Act 2016) विकलांग लोगों के अधिकारों को सुरक्षित करने और बढ़ाने के लिए बनाया गया कानून है। इसमें 21 अक्षमताएं शामिल की गई है, जिसमें से एक ऑटिज्म है। कई लोगों के लिए यह शब्द बिल्कुल नया होगा , क्योंकि इससे पहले ऑटिज्म प्रभावित लोगों को मानसिक मंद श्रेणी में रखा जाता था । 2 अप्रैल " ऑटिज्म जागरूकता दिवस" और अप्रैल का महीना ऑटिज्म जागरूकता माह के रूप में मनाया जाता है। इसलिए इस लेख के माध्यम से यह प्रयास किया है कि इसके बारे में जानकारी दे सकें।


ऑटिज्म (Autism Spectrum Disorder - ASD) एक न्यूरोडेवलपमेंटल (मस्तिष्क के विकास से जुड़ा) विकार है, जो व्यक्ति के सामाजिक संपर्क, संचार कौशल और व्यवहार को प्रभावित करता है। इसे "स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर" कहा जाता है क्योंकि इसके लक्षण अलग-अलग व्यक्तियों में अलग-अलग स्तरों पर हो सकते हैं। कुछ लोग हल्के लक्षणों के साथ सामान्य जीवन जी सकते हैं, जबकि कुछ को विशेष सहायता की आवश्यकता होती है।

ऑटिज्म वाले व्यक्तियों की सोचने, महसूस करने और दुनिया को समझने की प्रक्रिया आम लोगों से अलग हो सकती है। हालांकि, सही सहयोग और समर्थन से वे समाज में प्रभावी रूप से योगदान कर सकते हैं।


ऑटिज्म के लक्षण बचपन में ही दिखाई देने लगते हैं, लेकिन हर व्यक्ति में ये अलग-अलग हो सकते हैं। सामान्यतः यदि अभिभावक जागरूक हों तो बच्चे की डेढ़ साल की उम्र तक इसके लक्षणों को पहचान सकते हैं। कुछ केसेज में बच्चों में रिग्रेशन भी पाया जाता है। उम्र के प्रारंभिक माइलस्टोन समय से पूर्ण करने के बाद अचानक उन्हीं माइलस्टोन में पिछड़ने लग जाते हैं। कई बार ग्रॉस मोटर एक्टिविटीज ( दौड़ना, चलना,कूदना आदि) में बच्चे अच्छे होते हैं पर फाइन मोटर एक्टिविटीज ( लिखना ,होल्डिंग , बटन लगाना आदि) में पीछे रह जाते हैं । हालांकि आवश्यक नहीं कि ऑटिज्म से जूझ रहे हर बच्चे में ये समस्या हो।

इसमें कुछ मुख्य लक्षणों या कठिनाई को हम खतरे के संकेत मान सकते हैं।


ऑटिज्म से प्रभावित बच्चा सामान्यतः 12 महीने की उम्र तक प्रतिक्रिया नहीं देता ।अपना नाम पुकारने पर भी प्रतिक्रिया नहीं देता या बेहद कम देता है।18 महीने तक इशारों या बोलचाल की शुरुआत न होती या दो साल की उम्र तक छोटे-छोटे वाक्य भी नहीं बोल पाता।कई बार अपने ही उम्र के बच्चों को तरह सामान्य कौशल भी नहीं कर पाता।


ऑटिज्म प्रभावित को सामाजिक संचार और बातचीत में कठिनाई होती है। वो आंख मिलाकर बात करने से बचते हैं और उन्हें दूसरों के हाव भाव समझने में भी समस्या होती है। उनके पास शब्द भंडार भी सीमित हो सकता है या शब्द होने पर भी स्थिति अनुसार शब्द / वाक्य चयन में कठिनाई का सामना करना पड़ता है। जिसके कारण समूह वार्तालाप ,मित्रता करना , या बनाए रखने में तथा अपनी भावनाओं को व्यक्त करने में कठिनाई का सामान करते हैं।कुछ लोग बार-बार एक ही शब्द या वाक्य दोहराते हैं।दूसरों की बातों को समझने और प्रतिक्रिया देने में कठिनाई होती है।भाषा विकास में देरी ऑटिज्म का लक्षण हो सकता है।


इसके अलावा  व्यवहार और रुचियों में विशेषता भी ऑटिज्म का मुख्य लक्षण हो सकता है।

एक ही चीज़ को बार-बार करना जैसे हाथ हिलाना,  किसी शब्द को दोहराना, लगातार ताली बजाना , कूदना , हिलना, आंखों के कोने से लोगों को देखना ,दिनचर्या में बदलाव नापसंद होना , निश्चित दिनचर्या का पालन । नई जगहों और व्यक्तियों से डर,किसी एक विषय या गतिविधि में गहन रुचि ,किसी विशेष पैटर्न के खेल ,गाड़ियों के पहियों , पंखे या किसी घूमती वस्तुओं के तरह ध्यान से और लगातार देखना, किसी भी किस्म की वस्तुओं /खेल सामग्री को सीधी रेखा में जमाना , अपने हाथों या उंगलियों से खेलते रहना ,विशेष ध्वनियों, रोशनी , स्पर्श ,गंध ,स्वाद के प्रति सामान्य से बहुत अधिक या बहुत कम संवेदनशीलता दर्शाना । अकेले रहना या खेलना। संवेदी एकीकरण में समस्या ऑटिज्म का संकेत है। 


कुछ लोग शारीरिक संपर्क  जैसे गले लगाना, छूना, यहां तक कि अलग अलग प्रकार के कपड़े ,टेक्चर या सतहों को छूना भी पसंद नहीं करते या कभी कभी सिर्फ एक खास तरह टच या गंध ही चाहते हैं। इन लक्षणों के अंतर पर हाइपो या हाइपर सेंसिटिव में बांटे जाते हैं।


लक्षणों के बाद  कारण के बारे में जिज्ञासा स्वाभाविक है। हालांकि अब तक कई रिसर्च के बाद भी ऑटिज्म के  ठोस कारण ज्ञात नहीं किए जा सके हैं। बल्कि यह कई कारकों के संयोजन का परिणाम हो सकता है।

इन कारणों में आनुवंशिक कारक, पर्यावरणीय कारक एवं अन्य अप्रत्यक्ष कारक हो सकते हैं।

परिवार में ऑटिज्म के मामले होने पर इसकी संभावना बढ़ जाती है। कुछ जीन और आनुवंशिक परिवर्तन जिसे म्यूटेशन कहा जाता है, ऑटिज्म से जुड़े हो सकते हैं। रिसर्च के परिणामों से यह भी ज्ञात हुआ है कि यदि पहली संतान ऑटिज्म से प्रभावित है तो दूसरी संतान में इसका जोखिम 10% तक बढ़ जाता है।इसी कारण पहली संतान के ऑटिज्म प्रभावित होने पर दूसरी संतान के जन्म के प्लानिंग से पहले जेनेटिक काउंसिलिंग की भी सलाह दी जाती है।


पर्यावरणीय कारण में गर्भावस्था के पूर्व ,दौरान और बाद वाले कारणों को इसके लक्षणों से जोड़कर देखा गया है। गर्भावस्था के दौरान कुछ दवाइयों का प्रभाव, भावनात्मक या शारीरिक अस्वस्थता, नशीले पदार्थों का सेवन , किसी किस्म का संक्रमण ( रुबेला ,हर्पीज आदि), बच्चे के जन्म के समय कम वजन , बच्चे का तुरंत ना रोना ,ब्रेन में ऑक्सीजन सप्लाई बाधित होना या अपगार स्कोर का कम होना ऑटिज्म के जोखिम को बढ़ा सकता है। कुछ लोगों में यह भ्रांति है कि टीकाकरण भी इसका कारण है ,लेकिन यह स्पष्ट किया जा चुका है कि टीकाकरण (Vaccination) का ऑटिज्म से कोई संबंध नहीं है।


कारणों के बाद अगर निदान की बात की जाए तो अन्य बीमारियों से अलग ऑटिज्म का कोई मेडिकल या लैब टेस्ट (जैसे रक्त परीक्षण या स्कैन) नहीं होता, ।इसके परीक्षण के लिए  डॉक्टर, मनोवैज्ञानिक और विशेषज्ञों द्वारा व्यवहारिक मूल्यांकन ,संचार और सामाजिक व्यवहार का विश्लेषण एवं  कई प्रकार चेक लिस्ट के आधार पर मूल्यांकन किया जाता है।


यह बात विशेष रूप से ध्यान रखें कि आवश्यक नहीं है कि ऑटिज्म से प्रभावित बच्चे या व्यक्ति का आई -क्यू कम हो बल्कि कई बार सामान्य या  उच्च आई क्यू पाया जाता है । विश्व के कई महान वैज्ञानिक , संगीतज्ञ,अभिनेता ,चित्रकार जिनका आईक्यू सामान्य से ज्यादा था , ऑटिज्म से प्रभावित पाए गए।


ऑटिज्म का प्रबंधन और उपचार की बात करें तो ऑटिज्म का कोई निश्चित इलाज नहीं है, क्योंकि यह कोई बीमारी नहीं है। लेकिन उचित थेरेपी और सहयोग से व्यक्ति की जीवनशैली को बेहतर बना कर ऑटिज्म से कारण होने वाली समस्याओं को काफी हद तक संयोजित किया जा सकता है।इन थेरेपी में मुख्यत: स्पीच थेरेपी; भाषा और संचार कौशल ,संवाद क्षमता सुधारने में मदद करती है।बिहेवियरल थेरेपी; बच्चों को संचार और सामाजिक कौशल सिखाने में मदद करती है।अवांछित व्यवहारों को नियंत्रित करने और सकारात्मक आदतें विकसित करने में सहायक होती है।व्यवहारिक चुनौतियों से निपटने के लिए तैयार करती है। इसके अलावा रोजमर्रा की गतिविधियों को करने में सहायता देने के लिए ऑक्यूपेशनल थेरेपी और संवेदनशीलता से जुड़ी समस्या के लिए सेंसरी इंटीग्रेशन थेरेपी मदद करती है।

ऑटिज्म एक अंब्रेला डिसऑर्डर है। इसमें कई बच्चों को नींद और भूख से संबंधित समस्या, अवसाद , चिंता , अति सक्रियता का सामना करना पड़ता है। इससे निपटने के लिए कुशल चिकित्सकों के मार्गदर्शन में दवाओं का उपयोग किया जा सकता है। यह याद रखें कि ऑटिज्म के लिए कोई भी दवा नहीं है ।दवाएं सिर्फ कुछ निश्चित लक्षणों तक ही केंद्रित हैं।

यहां यह जिक्र करना भी जरूरी है कि कुछ लोग अंधविश्वास के चलते झाड़फूंक जैसे अनुष्ठान भी करते हैं। अक्सर यह देखा गया है कि झड़फूंक और तंत्र मंत्र के नाम पर बच्चों की अतिसक्रियता को कम करने के लिए नशीले पदार्थों का सेवन भभूत आदि के रूप में कराया जाता है। जिससे बच्चे में सुधार की बजाय स्थिति और बिगड़ती चली जाती है।


सभी बिंदुओं के साथ शिक्षा के बारे में भी बात करना आवश्यक है ।व्यवहारिक शिक्षा से अलग मुख्य धारा शिक्षा में ऑटिज्म वाले बच्चों के लिए विशेष शिक्षा कार्यक्रम चलाए जाते हैं। जिनके लिए विशेष शिक्षकों और विभेदित निर्देशों की सहायता लेनी पड़ती है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति - 2020 में विशेष बच्चों की शिक्षा को सुगम बनाने के लिए समावेशी शिक्षा के अलावा भी कई प्रावधान दिए गए हैं ।


आधी जानकारी , अज्ञानता से भी ज्यादा घातक होती है और वर्तमान में हमारे समाज की यही स्थिति है। लोगों को ऑटिज्म के बारे में आधा अधूरा ज्ञान  या बिल्कुल नगण्य है । सामान्यतः यह भ्रांति होती है कि ऑटिस्टिक व्यक्ति क्षमतावान या प्रतिभावान नहीं होते, वे सामाजिक रूप से जिम्मेदार या उत्पादक नहीं है। इन्हीं  वजहों से ऑटिज्म प्रभावित लोगों का सामाजिक समावेशन अब भी एक बड़ी चुनौती बना हुआ है।


ऑटिज्म कोई बीमारी नहीं, बल्कि सोचने और महसूस करने का एक अलग तरीका है। लोगों के मन में इसके लिए जो भ्रम व भ्रांतियां हैं,उनको सही जानकारी देकर  निवारण किया जाए। यह आवश्यक है इसके लिए जागरूकता फैलाई जाए।हम सभी को चाहिए कि  ऑटिज्म के प्रभावित व्यक्तियों को  स्वीकार करें, उनकी विशेष क्षमताओं को पहचानें , उन्हें  प्रदर्शित करने और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने में सहयोग दें। स्कूलों, कार्यस्थलों और समुदायों  में ऑटिज्म के बारे में सही जानकारी दी जानी चाहिए।ऑटिज्म वाले बच्चों के माता-पिता को सही मार्गदर्शन और सामाजिक सहयोग मिलना चाहिए।


ऑटिज्म ; अक्षमता नहीं ,बल्कि यह अलग तरह की क्षमता है। प्रशिक्षण और शिक्षा से ऑटिज्म प्रभावित व्यक्ति स्वतंत्र रूप से जीवन जी सकते हैं और समाज में  उतना ही योगदान दे सकते हैं ,जितना कि एक आम नागरिक । समाज में जागरूकता और स्वीकृति बढ़ाकर हम उनके लिए एक बेहतर और समावेशी वातावरण बना सकते हैं।  प्रकृति ने बिना किसी भेदभाव के हमें मानव बनाकर भेजा है , अपने प्राकृतिक संसाधनों पर सभी को समान अधिकार दिया है ,तो हम किस वजह से भेदभाव कर स्वयं की उत्कृष्टता पर प्रश्न चिह्न लगा रहे हैं। एक मानव होने का ,समाज में स्थान पाने का अधिकार जितना हमें है, उतना ही किसी ऑटिज्म या अन्य अक्षमता से प्रभावित व्यक्तियों का। और उन्हें मुक्त मन से अपनाना , उनका साथ देना ही हमें प्रकृति के  सर्वोत्कृष्ट सृजन साबित करेगा।

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*ऑटिज्म से जुड़े रोचक तथ्य*


1. ऑटिज्म और विशेष क्षमताएँ कुछ ऑटिस्टिक लोग सावंत सिंड्रोम के तहत गणित, संगीत, कला या स्मरण शक्ति में असाधारण प्रतिभा दिखाते हैं। वे डिटेल्स पर ज्यादा ध्यान देते हैं और पैटर्न जल्दी पहचान सकते हैं। किसी पैटर्न या किताबों को शब्दशः याद कर सकते हैं।


2. ऑटिस्टिक लोगों का दिमाग औसत से बड़ा होता है, खासकर बचपन में। न्यूरॉन्स के अलग कनेक्शन के कारण वे चीजों को अलग तरह से प्रोसेस करते हैं। एमिग्डाला और सेरेबेलम की कार्यप्रणाली अलग होने से उनकी सामाजिक और संवेदी प्रतिक्रियाएँ प्रभावित होती हैं।


3.ऑटिस्टिक लोग जानवरों से बेहतर जुड़ाव महसूस कर सकते हैं।प्रसिद्ध वैज्ञानिक टेम्पल ग्रैंडिन ( ऑटिज्म प्रभावित ) ने पशु विज्ञान में नए संचार तरीके विकसित किए।


4. सिलिकॉन वैली में ऑटिस्टिक व्यक्तियों की संख्या अधिक है। कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार, न्यूटन और आइंस्टीन में भी ऑटिज्म के लक्षण थे। Microsoft, SAP और Google जैसी कंपनियाँ ऑटिस्टिक लोगों के लिए विशेष भर्ती कार्यक्रम चलाती हैं क्योंकि वे कोडिंग और डाटा एनालिसिस में माहिर हो सकते हैं।


5. कुछ ऑटिस्टिक लोग हाइपरफोकस कर सकते हैं अतः घंटों एक कम में तल्लीन रह सकते हैं और समय को तेज़ या धीमा महसूस कर सकते हैं।

ऑटिस्म से ग्रस्त लोग किसी विषय में गहरी रुचि लेते हैं, जिसे "स्पेशल इंटरेस्ट" कहते हैं, इन क्षेत्रों में शोध कर उसमें विशेषज्ञ बन सकते हैं।


6. ऑटिस्टिक लोग झूठ बोलने में कठिनाई महसूस कर सकते हैं, आमतौर पर ईमानदार और सीधा बोलने वाले होते हैं। वे सामाजिक झूठ को समझने में कठिनाई महसूस कर सकते हैं, जिससे वे कभी-कभी "रूखे" लग सकते हैं।


7. ऑटिस्टिक लोग संगीत के प्रति संवेदनशील होते हैं और परफेक्ट पिच जैसी प्रतिभा रख सकते हैं।


8. नासा के कई वैज्ञानिकों में ऑटिज्म के लक्षण पाए गए हैं, जिससे वे जटिल समस्याएँ हल करने में माहिर होते हैं।


9. ऑटिज्म दिवस और जागरूकता

2 अप्रैल को "विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस" मनाया जाता है।

ऑटिज्म को दर्शाने वाला रंग नीला (Blue) होता है।



✍️ डॉ. मधूलिका मिश्रा त्रिपाठी