#माँ_होना_दुर्भाग्य_है
मैं कन्या भ्रूणहत्या का समर्थन करती हूं..... क्यों कारण बहुत सारे हैं ,सिर्फ इसका एक बलात्कार कारण होता तो शायद यह मांग ही नहीं कर पाती।
चलिए कुछ समय पीछे जाते हैं ,मेरी नन्ही बेटी मेरी गोद पर थी ।नन्हीं सी गुड़िया, प्यारी सी, नाजुक सी, ऐसा लगता था जैसे अगर ओस भी उसे छूऐगी तो उसे घाव हो जाएगा। तब मुझे एक नया नया चस्का लगा हुआ था ,मैं इंटरनेट पर प्यारी प्यारी सी तस्वीरें सर्च करती थी ।उस हर एक तस्वीर में किड मॉडल की पहनी गई ड्रेसेस , ऐसेसरीज के साथ अपनी बेटी की कल्पना खेलती हुई मासूम चंचल गुड़िया में करती।अब इन बातों में अचानक कन्या भ्रूण हत्या की बात कहां से आ गई !!!!!बताती हूं...
वक्त के साथ मेरी बेटी बड़ी होती है ,मेरे सर्च करने का नजरिया और कन्टेन्ट चेंज हो गए। इंटरनेट पर जुड़ी हुई बहुत सी बातें ऐसी थी धीरे-धीरे मुझे रोचक कम लगती और डराती ज्यादा थी। कभी मुझे खबर आती एक 10 माह की मासूम के साथ उसके ही रिश्तेदार ने बलात्कार कर उसे मार दिया। कभी खबर आती कोई 5 साल की नन्ही सी गुड़िया की मासूमियत के साथ इस तरह खेल कर गया की गुड़िया दोबारा जुड़ नहीं पाई।
कभी खबर आती किसी एक और नन्हीं जान की मासूमियत को कई हैवान तार तार कर उसकी जान ले लिए।
कभी खबर आती की पिता ने अपने दोस्तों के साथ मिलकर अपनी बेटी का बलात्कार किया। आए दिन ऐसी खबरों से इंटरनेट के माध्यम से मुझे कई तस्वीर भी मिलती।
एक दौर वो था जब मैं किसी प्यारी सी तस्वीर में अपनी गुड़िया की छवि देखती थी , अपनी बेटी को उस छविमें उतार लेती थी पर जब इन खबरों की तस्वीरें सामने आती थी तो कहीं ना कहीं मैं उसमें अपनी ही बेटी को अनजाने ही इन घटनाओ में देखने लगती। मुझे महसूस होता था कि मेरी 9माह की बच्ची कितनी नाजुक थी ,उसके कपड़े से लेकर,बिस्तर और वह हर चीज जिससे वो सम्पर्क में थी ;उसमें मैं कोमलता का ख्याल रखती थी कि मेरी गुड़िया को किसी भी तरीके से चोट ना लग जाए। उसका क्रीम पाउडर उसको हानि ना पहुंचाए ।
और जब मैंने जाना कि एक 9 माह की बच्ची के साथ किसी हैवान ने इतनी हैवानियत की कि वह अपनी जान ही नहीं बचा सकी तो मैं अपनी बच्ची की मासूमियत के साथ की तुलना करने लगी ।मुझे क्यों पता नहीं क्यों मेरी बच्ची तड़पते हुए देखने लगी मेरी ममता अंदर चीत्कार कर रही थी ।हर वह छोटी बच्ची की हैवानियत की शिकार होने की तस्वीरें मुझे अंदर तक दंश देकर चली गई। जब जब कोई ऐसी बच्ची की तस्वीर सामने आती जो किसी की यौन उत्कंठा का शिकार होती मैं अनजाने ही उन तस्वीरों में अपनी बेटी की कल्पना करने लगती ।मैं उस उस दर्द का अंदाजा लगाने लगती जो उस बच्चे के मां और पिता को मिला होगा ,उस बच्ची की हालत को देखकर और उससे भी ज्यादा उस बच्ची की हर वक्त की तड़प जो उस दुर्दांत इंसान के शिकंजे पर आकर उसने महसूस की होगी।
कितना सहेजते हैं हम अपने बच्चों को, उनकी एक चोट पर हमारा दिल रोता है.....एक छोटी एक छोटी सी खरोच हमें अंदर तक तड़पा जाती है ।फिर उसी स्थिति का अंदाजा लगाइए जब एक छोटी सी बच्ची यौन उत्पीड़न का शिकार होती है ।बलात्कार का शिकार होती है ....कभी सोचा है एक बार महसूस करके देखिएगा कोई जबरदस्ती सिर्फ अगर आपका हाथ ही पकड़ ले तो आपको छुड़ाने में कितनी तकलीफ होती है ....और वह बच्ची जिसे उस कुकृत्य का मतलब भी नहीं पता है वह उसे कैसे झेलती होगी?? खुद को बचाने के लिए किस हद तक जूझती होगी। कितना रोती होगी एक अमानवीयता के दर्द से। कितनी मजबूर होती होगी खुद को मसले जाने को झेलने को। और अंत मे पीड़ा को मौत से जीत कर शांत हो जाती होंगी।
बात सिर्फ बलात्कार की नहीं है आसपास होने वाली सारी घटनाओं से मैं अब डरने लगी हूं ।मैं सोचने लगी हूं कि मैं एक बेटी की मां क्यों बनी हूं ????
मैं अपनी बच्ची को अपने पड़ोसी के घर भेजने से डरने लगी हूं, मेरी बच्ची के सर पर पड़ने वाले नहीं कि हाथ भी मुझे संदेहास्पद लगने लगे हैं । मैं अक्सर सोचती हूं उसका ऑटोवाला उससे किस तरीके से व्यवहार करता होगा ???क्या उसे लाड़ जताने के बहाने कहीं ऐसे स्थानों पर ना छूता हो ,जो मेरी बच्ची के लिए सहज ना हो और वह डर जाती हो ।मेरी बच्ची कहने से मतलब हजारों-लाखों छोटी मासूम कलियों से है जो आए दिन जाने-अनजाने ,प्रत्यक्ष -अप्रत्यक्ष रूप से इस तरह के हादसों के शिकार होती रहती हैं। कभी गेटकीपर,कभी लिफ्टमैन, कोई दुकान वाला न जाने किस नजरों से उन्हें देखते होंगे न जाने किस तरीके से छूते होंगे .....उनके सर को सहलाने के बहाने वह न जाने अपनी किस कुंठा को तृप्त करते होंगे.... सोचकर कांपने लग जाती हूँ। वह जिसे हम एक मासूम से फूल की तरह समझते हैं एक कोमल कली की तरह हम उसे मान कर रखते हैं वह ना जाने इन आतंकियों के किस रूप का सामना करती होंगी ,हमसे दूर हो कर। हम कब तक उन्हें अपने पहलू में छुपा कर रखे??? हम कब तक उनके साथ हर जगह रहेंगे ?????कहीं ना कहीं तो उनको हमसे अलग होना ही होगा ।जब वह हमसे अलग होंगी तो क्या महसूस करती होंगी हमें तो पता भी नहीं चल पाता।
कई बार हम जैसे समझदार बुद्धिजीवी माने जाने वाली महिलाएं भी भावनात्मक तौर पर छली जाती हैं ,जो की बहुत अनुभव सम्पन्न मानी जाती हैं ।दुनियावी मामले में जब हमारी यह गति होती है इन बच्चियों का क्या होता होगा ????
हर पल ,हर लम्हा अपनी बच्ची को अपनी नजरों से दूर करते मैं मैं डरती हूं । परिवार के लोगों के बीच में छोड़ने से डरती हूं , बाहर उसे अकेले छोड़ने से डरती हूं ।
कितना अजीब वक्त आ चुका है विश्वास का कहीं नाम ही नहीं रहा कई बार ऐसी घटनाएं में पता चलता है कि पिता ही बेटी को बेच दिया पिता ने अपने दोस्तों के साथ रेप किया, घर पर किसी बुजुर्ग की उत्कंठा का शिकार हुई लड़कियां ।न जाने कितने ऐसे उदाहरण है ।
जहां हर वक्त मेरे सामने सिर्फ और सिर्फ इन बच्चियों का दर्द उभरता है , मैं उनका दर्द एक मां के तौर पर महसूस करती हूं और तब लगता है कि मां होना दुर्भाग्य है ,क्योंकि मुझे अब अपनी बच्ची का भविष्य सुरक्षित नहीं।
मेरी नजरों में हमेशा एक भ्रम की स्थिति बनी रहती है ,उसके भविष्य के लिए विचारशील रहती हूं पर अब उसके लिए यह सपने नहीं देखती कि मेरी बेटी क्या बनेगी ?????
मैं अब यह सोचती हूं मेरी बेटी सुरक्षित रहेगी या नहीं ।
कि अब मैं मां होना दुर्भाग्य समझती हूं ।मैं अब बेटी को जन्म भी नहीं देना चाहती,ताकि हर वक्त महसूस होने वाली उस पीड़ा से बच सकें ,जो कई गंदी नजरों कई गंदे पशुओं स्पर्शों से हमारे दिल दिमाग को छलनी कर जाता है ।
सिर्फ मैं नहीं मुझ जैसे लाखों माएँ इन घटनाओं को खुद में घटती हुई महसूस करती होंगी ।खुद की बच्चियों की छवि में उन बच्चों की छवि देखती होंगी जिनकी तस्वीरें इंटरनेट पर इन हैवानों के कुकृत्य की वजह से वायरल हो जाती हैं ।
हम अब किसी पर विश्वास नहीं कर पाते हमारी नजरों पर हमेशा दूसरों के कार्य और व्यवहार के लिए एक प्रश्न चिन्ह होता है ।एक अंजाना सा डर हमेशा सामने रहता है ।
जब आप किसी पर विश्वास नहीं कर पा रहे हो ऐसी स्थिति में जीना कितना मुश्किल होता है, यह समझाने की जरूरत नहीं है। सोचकर देखिएगा उस मां की पीड़ा को जो अपनी बच्ची को बाहर भेजने से डरने लगी है ,घर में भी वह उसे सुरक्षित नहीं पाती है। और जब हर वक्त यह अनिश्चितता उसके सामने होती है हर वक्त यह डर उस पर हावी होता है ,तो वह क्या बच्चे को सुरक्षित भविष्य दे पाएगी !!!!!!क्या वह बच्ची को वह मजबूत स्थिति दे पाएगी???
अब बताइए ऐसी स्थिति में क्या एक बच्ची का जन्म होना जायज है मेरे ख्याल से बिल्कुल नहीं जड़ ही खत्म कर देते हैं ....ना रहेगी बच्चियां ....ना रहेगा डर और जब डर नहीं होगा तो समाज का स्वरूप अलग हो जाएगा ।लोगों को समझ में आएगा कि एक औरत का होना , बच्ची का होना समाज में कितना जरूरी है..... तब शायद यह उत्कंठा खत्म हो पाए ।
हम आत्मरक्षा के गुर सिखाने की बात करते हैं ,इन सब घटनाओं से बचने के लिए ।पर वो मासूम बच्चियां जो अभी स्पर्श को वर्गीकरण नही जानती,अपने पराए की सही परिभाषाएं भी नहीं जानती , वह कैसे अपनी आत्म रक्षा कर पाएंगी???वह जो अभी अपनी भूख बताने के लिए भी सिर्फ रोकर ही जता पाती हैं, वह कैसे आत्मरक्षा कर पाएंगी ??
कैसे बचाएंगे हम इन मासूमो को ।वह तो सक्षम नहीं हैं ,और हमारे पास सिर्फ एक ही तरीका है कि हम मां ही ना बने ,हम इन बच्चियों को जन्म ही ना दें ,इस घटिया मानसिकता वाले हैवानों के समाज मे।
इसलिए एक डरी हुई ,कुंठित माँ के रूप मैं पैरवी करती हूं ,कन्या भ्रूण हत्या ही जायज ठहरा दिया जाए ताकि बड़े होकर वह हर पल मरने से बच सकें और एक मां उस दुर्भाग्य को ना महसूस कर सके जो इन खबरों से वो अंदर तक टूट कर जीती है।
ये लेख नहीं माँ के रूप में मेरी पीड़ा है, अगर महसूस कर सकें तो जिम्मेदारी लीजियेगा किसी माँ की अनुपस्थिति में उसके बच्चों को स्वयं के सामने सुरक्षित रखने की। वरना आज नहीं तो कल हर औरत बेटी को जन्म देने से मना कर देगी और प्रकृति खुद की प्रतिकृति के अभाव में अंत की ओर अग्रसर होगी।
#ब्रह्मनाद
#डॉ_मधूलिका
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