#उसके_जाने_के_बाद
“मुझे मेंहदी लगाना बहुत पसंद था। शादी से पहले लगाती थी तो बाबा चिल्लाते थे ,हर वक्त कोन लेकर बैठ जाती है । मां उन्हें कहती यह तो सौभाग्य चिह्न होता है, टोका मत करिए। मै मुस्कुराकर हल्की होती मेंहदी में एक अलग डिजाइन लगा लेती, दूसरे दिन रंग गाढ़ा करने के ढेर उपाय करती ,पर आज वही मेंहदी आंखों में मुझे चिता के लाल रंग की जलन दे रही। मेरी हाथों की मेंहदी जो पिछले हफ्ते ही मेरी शादी में लगाई गई थी, मेरे सुहाग का नाम लिख कर ,आज उन्हीं हाथों की लकीरों में मेरे सुहाग की रेखा मिट चुकी है।
हमारी शादी को केवल 4 दिन हुए थे। अभी तो मैंने सिंदूर को अपने माथे पर सजाना शुरू किया था, हाथों में मैने पंजाबी चूड़े ,पैरों में बिछुए की आदत डाल रही थी, उसकी हथेली की गर्माहट को अपने चेहरे और हाथों में महसूस करना शुरू की थी, उसका एहसास साँसों की लय में पिरोया था।उसकी खुश्बू धीरे धीरे मेरे बदन में घुलने लगी थी और हम निकल गए अपने सपनों में स्वर्ग कश्मीर में ... एक दूसरे को खुद से ज्यादा महसूस करने , दो जिंदगी से एक जान बनने के लिए। पहलगाम , हमारी पहली यात्रा – हां अब इसे हनीमून कहते हैं । सहेलियों से सुनकर ,कुछ सीख मानकर ,उनकी पसंद की जगह और कुछ फैंसी कपड़े लेकर मै पहुंच गई अपने हमसफर का हांथ थामे।मेंहदी में अपना नाम ढूंढते हुए वो हमारे सपनो की डोर आपस में गूथने लगे थे।
उस दिन जब मैं तैयार हो रही थी ,वो पीछे बिस्तर में लेटे हुए ही आइने में मेरी छवि निहार रहे थे। मुस्कुरा रहे थे ,आंखों में हमारे सवाल जवाब शर्माना और सकुचाना चल रहा था। उन्होंने शरारत से कहा कि आज घूमने नहीं चलते ,आज बस पूरा दिन बैठ कर तुम्हें जी भर के देखना चाहता हूं । मै झूठ ही रूठते हुए बोली ,उसके लिए उम्र पड़ी है, अभी तैयार होइए और चलिए। पता है मैने कितनी चुन कर ड्रेस ली है। अपनी सहेलियों को कहा था अच्छी रील्स भी बनाऊंगी। और फिर थोड़े देर बाद हम उस हसीन वादी में थे जिसे भारत का स्विटजरलैंड कहते हैं।
हम एक दूसरे में खोए हुए और वादी भी हममें खोई सी थी।
अचानक कुछ अजीब से लोग बंदूक लिए वहां आए , आयतें, कलमा पढ़ने को बोलने लगे, मै कांपने लगी, उसकी गर्म हथेली मुझे सुरक्षित करने के लिए खुद के पीछे छुपाने की कोशिश कर रही थी। वो शायद उनके इरादे समझ गया था, और मै बस बदहवास सी थी। उसको डर था ,मेरे इज्जत का ,पर उन लोगों ने मेरी इज्जत के निगेबां की ही इज्जत सरे आम उतार दी। उसके अंतः वस्त्र तक उतार दिए गए । वो डरा हुआ दिखा ,उस स्थिति में भी मुझे छुपाते हुए। और अचानक ....... गोली चली, और वह मेरे सामने गिरा, मैं चीख भी नहीं सकी। उसके सीने पर खून फैलता रहा, और मैं सिर्फ उसका चेहरा देखती रही – शांत, जैसे अब कोई डर नहीं रहा उसमें। थोड़े देर पहले मुझे डर से बचाता हुआ वो मौत से खुद को नहीं बचा सका।उसकी गर्म हथेलियां मेरे हथेलियों के बीच धीरे धीरे ठंडी होती गई और जमते चले गए मेरे अंदर के कोमल ,सुखद एहसास।
लोग उसे “शहीद” कहने लगे हैं। सोशल मीडिया , अख़बारों में मेरी तस्वीर छपी – आँसू भरी आँखें, जमी हुई देह। पर कोई नहीं जानता कि मैं न जी पा रही हूँ, न मर पा रही हूँ। मौत भी जैसे मुँह मोड़ कर चली गई है मुझसे। हां मै मौत चाहती थी ,उसके जाने के बाद ,मेरा भाग्य तो उसके साथ जोड़ा गया था ना ,पर उन निर्दयी आतंकियों ने मुझे नहीं मारा, मेरा मजाक उड़ाते छोड़ गए मुझे जीवन भर हर क्षण मरने को। मेरे जीवन की सबसे सुखद यात्रा को नर्क की यात्रा में बदल कर वो हम जैसे और जोड़ों की सहयात्रा को एकाकी बनाने के लिए। जीवन भर के साथ को अपने नापाक मंसूबों की भेंट चढ़ाते,कई औरतों की मांग उजाड़ अट्टहास करते वो राक्षस उस स्वर्ग को नर्क बना गए।
मैं अभी भी यकीन नहीं कर पा रही हूं , आँखें बंद होते ही मैं वही सपना देखती हूँ – वह मेरा हाथ थामे कहता है, “डरो मत, मैं हूँ न।” और अचानक .......मेरी आंख खुलती है, उसकी जगह खाली है , उसके हथेलियों की गर्माहट नहीं सिर्फ एक एहसास मुझे जकड़ लेता है। मै हर सांस खुद को कोसती हूं ,की मै आत्महत्या क्यों ना कर ली उसी वक्त..!
कभी-कभी लगता है कि क्या सचमुच हुआ था वो हमला? या मेरे ही सपनों पर हमला हुआ था?
मैं जानती हूँ, वह अब नहीं है, पर मेरे भीतर जो बचा है – वह एक खालीपन और अकेलापन है।
हां मैने उससे प्रेम किया है ,विवाह वेदी में हर जन्म के बंधन के लिए वचन बद्ध होकर ।उसकी चिता पर उसका भौतिक अस्तित्व राख हो गया है , पर हम दोनों का एक दूसरे के लिए प्रेम राख नहीं बना। वह ज्वाला बनकर जल रहा है… एक अग्निशिखा, जो न केवल मेरी पीड़ा को, बल्कि इस देश की पीड़ा को तब तक जीवित रखेगा जब तक उन नरभक्षियों को उनके पाप का दंड नहीं मिल जाएगा।
जब तक उनके खून से धरती का वो टुकड़ा रंजित नहीं होगा जहां कई जोड़े हाथों और सिंदूर का रंग आंसुओं में डूब गया ,तब तक मै नहीं रोऊंगी। मेरे आंसू बर्फ के पहाड़ बन चुके हैं ,आँखें उस मंजर को हर पल सामने देख रही हैं। अब इन आंसुओं को मैं तब तक गिरने नहीं दूँगी जब तक नहीं देख लेती उसी स्वर्ग जैसी जगह पर उन हैवानों का गिरता हुआ रक्त । मैं इंतजार में हूं, शायद ईश्वर के न्याय का...। मेरी उजड़ी मांग वापस नहीं सजेगी, पर वो जहां भी होगा ,अपने दोषियों को सजा मिलते देख मुक्त जरूर हो जाएगा।
#ब्रह्मनाद
#डॉ_मधूलिका
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