छोटे- छोटे सूक्ष्म विचार ,जीवन का ये गूढ़ संसार ,
मानवता या अत्याचार ,हो घोर घृणा या प्रीत-प्यार ..
ये बनी कहानी तेरी- मेरी ..
घना अँधेरा ,रात अमावस ,
तारों संग घिरता ,गहन से तमस,
भूख -गरीबी घोर निराशा ,
ये बनी कहानी तेरी मेरी ...
सुबह का सूरज, भोर की लाली ,
अतिषा संग फैली खुशहाली ,
सुरभित हो जब क्यारी क्यारी ,
ये बनी कहानी तेरी मेरी ...
भोजन- भजन,धर्म और कर्म ,
शहर गाँव का कोई भी मर्म ,
हर जगह छुपी एक बात अधूरी,
जो भावों संग होती पूरी,
उज्ज्वंत शब्द के संयमित प्रान्त ,
पढ़कर भी कोई ना हो क्लांत ,
इसकी- उसकी याद की थाती ,
जग के हर अनुभव की पाती ,
बिन बोले जो सब कह जाती,
ये बनी कहानी तेरी मेरी ....
ये बनी कहानी तेरी - मेरी
( डॉ. मधूलिका )
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