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मंगलवार, 29 अप्रैल 2025

नृत्य:- स्पंदन की गति का उत्सव




सांसों की ताल पर जीवन का नृत्य


जीवन एक नृत्य है, और इसकी  सुंदरतम लय है हमारी सांसों । जैसे कोई कुशल नर्तक संगीत की हर धुन पर अपनी गति को ढालता है, वैसे ही हमारा जीवन हर सांस के साथ एक लयबद्ध गति में संगत करता है।


 यह नृत्य केवल शारीरिक अस्तित्व का नहीं, बल्कि चेतना, भावनाओं और आत्मा के सूक्ष्म स्तरों पर होता है। हर सांस जो हम लेते हैं, वह न केवल जीवन को बनाए रखने का कार्य करती है, बल्कि हमें ब्रह्मांड की अनवरत गति से भी जोड़ती है। जब हम शांत होकर अपनी सांसों को महसूस करते हैं, तो ऐसा लगता है मानो सृष्टि की एक अनदेखी धुन हमें छू रही हो—एक ऐसी धुन, जो न कभी रुकती है, न थकती है।यह सम की गति पर होता है। किंतु स्थिति, परिस्थिति और भाव अनुसान जीवन में आरोह और अवरोह की गति भी होती है, जैसे नृत्य में क्रमशः पठन के साथ गति तेज होती है और आरोह , अवरोह से लयकारों से बढ़ते हुए एक समय थम जाता। 


सांसों की इस दिव्य लय में एक दैवीय नृत्य ताल मिलाता है। यह केवल मनुष्यों नहीं ,बल्कि पशु पक्षी सहित हर जीव में  यह वही संगीत है जो पेड़ों की सरसराहट में, लहरों की गूंज में, और पक्षियों की चहचहाहट में गूंजता है।जीव- अजैव की संगति से भी एक नृत्य का जन्म होता है।  इसके भेद को समझने वाला व्यक्ति जीवन के हर क्षण में ब्रह्म का अनुभव करता है। हमारे भाव और अंग संचलन संयुक्त रूप से इस बात को तय करते की प्रकृति में संचालित यह नृत्य लास्य होगा अथवा तांडव। 


जब हम जीवन के इस भेद को जान जानने का प्रयास करते हैं तब यह ज्ञात होता है कि हम सृष्टि के उस महान नृत्य का हिस्सा हैं, जिसमें हर जीव, हर वृक्ष, हर पिंड सम्मिलित , हर चेतना या दूसरे शब्दों में कहूं कि संपूर्ण ब्रह्मांड नृत्यरत है। एक निश्चित और तय गति, निश्चित लय ,यही अनुभूति हमें अलौकिक से  एकत्व का बोध कराती है और जीवन को एक गहन अर्थ देती है।


अंततः,सांसों की ताल पर चलता यह जीवन-नृत्य ईश्वर  की सृष्टि की सर्वोत्तम और सर्वोत्कृष्ट उपहार है। 



#अंतर्राष्ट्रीय_नृत्य_दिवस

#ब्रह्मनाद

#डॉ_मधूलिका 


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