पटाखों पर प्रतिबंध से देश के एक बड़ा तबका नाराज होकर अपना प्रतिरोध प्रदर्शित करता रहा। इस वर्ष सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर बदलाव हुआ। नतीजा.... दिल्ली सहित कई बड़े शहरों की एयर क्वालिटी हानिकारक स्तर पर भी ऊपर की ओर बढ़ गई है। सोशल मीडिया पर पटाखों को ना जलाने की हिदायत पर बहुत सारे मीम शेयर हुए। अब मेरा उन मीम शेयर करने वालों से पूछने का मन हो रहा है, सांस में दिक्कत, दमा की समस्या, आंखों में जलन की समस्या भी क्या आपके मीम से हल हो जाएगी..? अब आप शांत क्यों है???
मैं दूसरों की बात नहीं करती , जबलपुर जैसे द्वितीय स्तर के शहर में कल पटाखों के धुएं के कारण कल अचानक बात करते हुए मेरा गला चोक होने लगा। मुझे डस्ट और धुएं से एलर्जी है। अतः यह समस्या कल होना स्वाभाविक था।और ये समस्या एक बार शुरू तो महीनों डॉक्टर के चक्कर और दवाइयों का खर्च सो अलग...। हालांकि ईश्वर की कृपा कल यहां बारिश के रूप में बरसी और एयर क्वालिटी में उसके कारण कुछ सुधार है। वैसे सच यही की पटाखे हमारी ओजोन परत को भले उतना नुकसान नहीं पहुंचा रहे, जितना युद्ध....। पर मूर्खता पूर्ण कारनामों में यह होड़ करना कि युद्ध जितना नुकसान नहीं होगा..... हमें कम मूर्ख साबित नहीं कर देता। हां, मैं इस बात में जरूर सहमति जताती हूँ कि पटाखों पर प्रतिबंध सिर्फ दीवाली नहीं, बल्कि अन्य अवसरों जैसे न्यू ईयर सेलिब्रेशन, विवाह समारोहों, खेल में जीत आदि के समय भी होना चाहिए। अवसर कोई भी हो,किसी का भी हो, ऐसे रिवाज हमारे वातावरण को नुकसान पहुंचा रहे हैं।
भारत में तेजी से बढ़ रही जनसंख्या और सिमटते प्राकृतिक संसाधनों के साथ त्योहारों की आड़ में जानबूझकर प्रदूषण बढ़ाना हमारे लिए ही घातक है। अगर अपने बचपन से लेकर अब तक हम मौसम की स्थिति का विश्लेषण करें तो नकारात्मक प्रभाव और अंतर साफ समझ आता है। बेमौसम बारिश, घटता हुआ ठंड का मौसम, बढ़ती गर्मी ..... सिमटते ग्लेशियर ...।
हम सब अपने बच्चों के लिए बेहतरीन भविष्य चाहते हैं। उनकी पढ़ाई, कैरियर, संपत्ति के लिए अपने ओर से अच्छी व्यवस्था करने का प्रयास करते हैं। पर कभी सोचा ही कि क्या हमारे बच्चे या उनके बाद की पीढ़ियां उन संसाधनों के उपभोग के लिए सक्षम रह भी पाएंगे या नहीं। हम उन्हें एक ऐसा विषैला वातावरण देकर जाएंगे जहां उन्हें साफ हवा लेने के लिए भी शायद पैसे देने होंगे... हालांकि हम अब भी पर्यटन के नाम पर पैसा खर्च कर स्वच्छ हवा में सांस लेने कम आबादी वाली खुली जगहों की ओर रुख करते हैं। और जाकर उस जगह को भी अपनी हरकतों से गंदगी का ढेर बना आते हैं।
खैर मुद्दे पर आते हैं, इसे पढ़कर कई लोग ये प्रश्न जरूर करेंगे कि एक हमारे पटाखे ना जलाने से क्या हो जाएगा.. तो याद रखें मीलों की यात्राएं एक कदम से शुरू होती है। हर व्यक्ति यदि सिर्फ स्वयं की जिम्मेदारी ले ले तो कोई भी कार्य, विचार पूरा होना असंभव नहीं रहेगा। अगली बार जब आप पटाखों को हांथ लगाएं तो जरूर अपने बच्चे के भविष्य को जरूर सोच लें। जानती हूं बदलाव इतनी जल्दी नहीं आएगा, कुछ लोग परम्पराओं का भी ज्ञान देंगे.... पर शुरुआत कहीं से , किसी से तो करनी होगी। दिल्ली के कार पूल की तरह पटाखा पूल कर लीजिए।एक कॉलोनी या सोसायटी एक साथ इकट्ठे होकर कम से कम पटाखे एक साथ ही जलाएं, रोशनी और आवाज सबको दिखाई और सुनाई देगी, और एक सी ही होगी। और हां ये भी जरूर ध्यान दें कि आपके आस पास कोई बुजुर्ग, कोई छोटा बच्चा, कोई बीमार या कोई हॉस्पिटल ना हो।क्योंकि आपके लिए मजा , किसी की जिंदगी पर सजा बन सकता है।
बाकी मर्जी आपकी.... क्योंकि भविष्य और उसके परिणाम भी आपके ही होंगे।
#ब्रह्मनाद #डॉ_मधूलिका
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