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मंगलवार, 4 नवंबर 2025

शिव और एकत्व

 




(छायाचित्र:गूगल से साभार)

शिव और एकत्व

क्या शिव होने का भाव एकाकी है? क्या यही एकत्व ही उनकी पूर्णता का प्रमाण है…?

कैलाश की सबसे ऊंची चोटी पर सुनहरी संध्या में जब हिमशिखर मौन होते हैं और शीतल वायु डमरु से टकराकर एक कंपन की ध्वनि को जन्म देती है, तब एक मौन संवाद जन्म लेता है शिव और शक्ति के बीच। सती की जिज्ञासा के माध्यम से उभरती है एक रहस्यपूर्ण अनुभूति ..... क्या वह जो सबका है, वह भी कभी एकाकी हो सकता है?

शिव कैसे परिवार होते हुए भी वैरागी भी बने रहते ????? तांडव से संसार का विनाश कर सकने वाले कैसे मौन समाधिस्थ हो जाते हैं...??? 

शक्ति के मन में कई प्रश्न ,कई जिज्ञासा पर शिव मौन होकर मुस्कुरा कर शक्ति की ओर स्नेह से देखते .. शक्ति उन नेत्रों में सम्मोहित सी स्वयं को नहीं संपूर्ण सृष्टि देख रही हैं... कालातीत, समय से मुक्त , अविनाशी , अनंत सत्य...।उसमें वह सब देखती हैं ,जो अस्तित्व में थे, हैं या कभी होंगे... वह भी जो अदृश्य है... वह जो भौतिक जगह से परे है। वह भी जो प्रश्न थे ,वह भी जो उत्तर हैं।उसमें वो स्वयं है ,सिर्फ वर्तमान स्वरूप में नहीं, बल्कि प्रत्येक जन्म की प्रामाणिक रूप में । वो भी उन्हें दिखा जो उन्हें स्वयं के लिए भी ज्ञात नहीं था..। 

 शक्ति को तब भान होता है कि शिव का मौन केवल वैराग्य नहीं है, बल्कि वह विस्तार है जिसमें सृष्टि की प्रत्येक गति समाहित है। उनके भीतर जो शून्य है, वही तो सृजन का बीज है।

तब भी शक्ति अबोधपन से पूछती हैं कि क्या वह एकाकी हैं??? तब शिव मुस्कुराकर बताते हैं कि उन्होंने स्वयं को विभाजित किया था, एक इच्छा से, एक कंपन से, एक अनुभूति से। और उसी विभाजन से शक्ति प्रकट हुई। तब से लेकर हर युग तक, वह अधूरापन जो शिव में है, वही उन्हें पूर्णता की ओर ले जाता है।

अर्धनारीश्वर रूप में जब शिव और शक्ति एक होते हैं, तब पूर्णता की एक झलक मिलती है , पर वह ठहराव नहीं लाता। वह गति को जन्म देता है, लास्य नृत्य को जन्म देता है। शिव शक्ति के सम्मुख स्वीकार करते हैं कि उनके के बिना वे शव हैं .... निस्पंद, निष्क्रिय। परंतु यह भी सत्य है कि जब शक्ति उनसे विलग हो जाती है, तब वे एक अलग स्वरूप के एकाकीपन में डूब जाते हैं ....... वह जो खाली है...... वह जो सृजनहीन है।

शिव का एकाकीपन निर्विकार नहीं है, वह प्रतीक्षा है। और प्रतीक्षा केवल उसी के लिए होती है, जो भीतर कहीं बहुत गहरा जुड़ा हो। जब शक्ति पुनः पार्वती बनकर लौटती हैं, तब शिव फिर से सजीव होते हैं ... पर अधूरापन अब भी बना रहता है, क्योंकि यही अधूरापन उन्हें नटराज बनाता है, उन्हें लय में रखता है। पूर्णता ठहराव है ...... और शिव ठहरते नहीं।

शिव कहते हैं कि वे काल हैं, स्मृति से परे हैं, फिर भी उन्हें सब याद रहता है। यही तो प्रेम है जो संपूर्ण होकर भी सदा नया है, जो स्मृति बनकर भी वर्तमान में धड़कता है। 

शक्ति की जिज्ञासा .... क्या वे कभी पूर्ण होंगे??? शिव उन्हें पूर्णता की माया से परिचित कराते हैं। वे बताते हैं कि अधूरा रहना ही सृष्टि को गतिशील बनाए रखता है, वही रचना का रहस्य है।

शिव का मौन उनके भीतर की गहराइयों से आता है, जहां कोई शब्द नहीं पहुंचता। पर वही मौन जब नृत्य में बदलता है, तो सम्पूर्ण ब्रह्मांड को आंदोलित कर देता है। यही विरोधाभास उन्हें शिव बनाता है ...... न तो पूरी तरह एकाकी, न पूरी तरह संग-साथ में , बल्कि उस रहस्य की तरह, जो समझने पर और अधिक गहराता जाता है।

शिव अकेले हैं, क्योंकि वे सबमें समाए हैं। वे पूर्ण हैं, क्योंकि वे स्वयं से जुड़े हैं। और जब शक्ति साथ होती हैं, तब वह अकेलापन भी एक सौंदर्य बन जाता है .... एक मौन सृजन, जो शब्दों से परे है। और यही शिव है,जो विरोधाभाषी गुणों को स्वयं में संतुलित कर सृष्टि को गति देते हैं। 


#ब्रह्मनाद 

#डॉ_मधूलिका 

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