माइक्रोसॉफ्ट नामक कम्पनी के सह संस्थापक तथा अध्यक्ष बिल गेट्स ने हाल ही में एक साक्षात्कार में कहा कि यदि वे आज बच्चे होते, तो संभवतः उनमें ऑटिज्म का निदान किया जाता। उन्होंने अपने सामाजिक अजीब व्यवहार ,आंखों के संपर्क में कठिनाई और किसी विषय पर गहरे ध्यान केंद्रित करने जैसी विशेषताओं का उल्लेख किया, जो ऑटिज्म के लक्षणों से मेल खाती हैं। गेट्स ने यह भी बताया कि उनकी गहरी एकाग्रता की क्षमता ने उनकी सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हालांकि इसकी पुष्टि नहीं की जा सकती कि वे ऑटिस्टिक हैं या नहीं, लेकिन उनके अनुभव साझा करने से न्यूरोडाइवर्सिटी के प्रति जागरूकता और समझ बढ़ी है।
हम 21वीं सदी में जी रहे हैं । नित नए वैज्ञानिक अनुसंधानों के साथ स्वयं को अपडेट करते हुए सुपर ह्यूमन बनने की राह में अग्रसर हैं । इस दौड़ में अग्रणी रहते हुए भी कुछ मानवीय पहलू में हम बहुत पीछे रह गए हैं। एक तरफ कुछ मशहूर लोग खुद में विशेष आवश्यकता वाले लक्षणों को स्वीकार कर रहे हैं तो दूसरी ओर अब भी न्यूरोडवर्सिटी व अन्य अक्षमताओं के प्रति जागरूकता और स्वीकार्यता ऐसा ही एक क्षेत्र है, जहां अभी भी बहुत प्रयास करने की आवश्यकता है।इनसे प्रभावित कई व्यक्ति व्यक्ति अभी भी समाज की स्वीकार्यता प्राप्त कर मुख्य धारा में आने के लिए प्रयासरत हैं।
दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 (RPWD Act 2016) विकलांग लोगों के अधिकारों को सुरक्षित करने और बढ़ाने के लिए बनाया गया कानून है। इसमें 21 अक्षमताएं शामिल की गई है, जिसमें से एक ऑटिज्म है। कई लोगों के लिए यह शब्द बिल्कुल नया होगा , क्योंकि इससे पहले ऑटिज्म प्रभावित लोगों को मानसिक मंद श्रेणी में रखा जाता था । 2 अप्रैल " ऑटिज्म जागरूकता दिवस" और अप्रैल का महीना ऑटिज्म जागरूकता माह के रूप में मनाया जाता है। इसलिए इस लेख के माध्यम से यह प्रयास किया है कि इसके बारे में जानकारी दे सकें।
ऑटिज्म (Autism Spectrum Disorder - ASD) एक न्यूरोडेवलपमेंटल (मस्तिष्क के विकास से जुड़ा) विकार है, जो व्यक्ति के सामाजिक संपर्क, संचार कौशल और व्यवहार को प्रभावित करता है। इसे "स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर" कहा जाता है क्योंकि इसके लक्षण अलग-अलग व्यक्तियों में अलग-अलग स्तरों पर हो सकते हैं। कुछ लोग हल्के लक्षणों के साथ सामान्य जीवन जी सकते हैं, जबकि कुछ को विशेष सहायता की आवश्यकता होती है।
ऑटिज्म वाले व्यक्तियों की सोचने, महसूस करने और दुनिया को समझने की प्रक्रिया आम लोगों से अलग हो सकती है। हालांकि, सही सहयोग और समर्थन से वे समाज में प्रभावी रूप से योगदान कर सकते हैं।
ऑटिज्म के लक्षण बचपन में ही दिखाई देने लगते हैं, लेकिन हर व्यक्ति में ये अलग-अलग हो सकते हैं। सामान्यतः यदि अभिभावक जागरूक हों तो बच्चे की डेढ़ साल की उम्र तक इसके लक्षणों को पहचान सकते हैं। कुछ केसेज में बच्चों में रिग्रेशन भी पाया जाता है। उम्र के प्रारंभिक माइलस्टोन समय से पूर्ण करने के बाद अचानक उन्हीं माइलस्टोन में पिछड़ने लग जाते हैं। कई बार ग्रॉस मोटर एक्टिविटीज ( दौड़ना, चलना,कूदना आदि) में बच्चे अच्छे होते हैं पर फाइन मोटर एक्टिविटीज ( लिखना ,होल्डिंग , बटन लगाना आदि) में पीछे रह जाते हैं । हालांकि आवश्यक नहीं कि ऑटिज्म से जूझ रहे हर बच्चे में ये समस्या हो।
इसमें कुछ मुख्य लक्षणों या कठिनाई को हम खतरे के संकेत मान सकते हैं।
ऑटिज्म से प्रभावित बच्चा सामान्यतः 12 महीने की उम्र तक प्रतिक्रिया नहीं देता ।अपना नाम पुकारने पर भी प्रतिक्रिया नहीं देता या बेहद कम देता है।18 महीने तक इशारों या बोलचाल की शुरुआत न होती या दो साल की उम्र तक छोटे-छोटे वाक्य भी नहीं बोल पाता।कई बार अपने ही उम्र के बच्चों को तरह सामान्य कौशल भी नहीं कर पाता।
ऑटिज्म प्रभावित को सामाजिक संचार और बातचीत में कठिनाई होती है। वो आंख मिलाकर बात करने से बचते हैं और उन्हें दूसरों के हाव भाव समझने में भी समस्या होती है। उनके पास शब्द भंडार भी सीमित हो सकता है या शब्द होने पर भी स्थिति अनुसार शब्द / वाक्य चयन में कठिनाई का सामना करना पड़ता है। जिसके कारण समूह वार्तालाप ,मित्रता करना , या बनाए रखने में तथा अपनी भावनाओं को व्यक्त करने में कठिनाई का सामान करते हैं।कुछ लोग बार-बार एक ही शब्द या वाक्य दोहराते हैं।दूसरों की बातों को समझने और प्रतिक्रिया देने में कठिनाई होती है।भाषा विकास में देरी ऑटिज्म का लक्षण हो सकता है।
इसके अलावा व्यवहार और रुचियों में विशेषता भी ऑटिज्म का मुख्य लक्षण हो सकता है।
एक ही चीज़ को बार-बार करना जैसे हाथ हिलाना, किसी शब्द को दोहराना, लगातार ताली बजाना , कूदना , हिलना, आंखों के कोने से लोगों को देखना ,दिनचर्या में बदलाव नापसंद होना , निश्चित दिनचर्या का पालन । नई जगहों और व्यक्तियों से डर,किसी एक विषय या गतिविधि में गहन रुचि ,किसी विशेष पैटर्न के खेल ,गाड़ियों के पहियों , पंखे या किसी घूमती वस्तुओं के तरह ध्यान से और लगातार देखना, किसी भी किस्म की वस्तुओं /खेल सामग्री को सीधी रेखा में जमाना , अपने हाथों या उंगलियों से खेलते रहना ,विशेष ध्वनियों, रोशनी , स्पर्श ,गंध ,स्वाद के प्रति सामान्य से बहुत अधिक या बहुत कम संवेदनशीलता दर्शाना । अकेले रहना या खेलना। संवेदी एकीकरण में समस्या ऑटिज्म का संकेत है।
कुछ लोग शारीरिक संपर्क जैसे गले लगाना, छूना, यहां तक कि अलग अलग प्रकार के कपड़े ,टेक्चर या सतहों को छूना भी पसंद नहीं करते या कभी कभी सिर्फ एक खास तरह टच या गंध ही चाहते हैं। इन लक्षणों के अंतर पर हाइपो या हाइपर सेंसिटिव में बांटे जाते हैं।
लक्षणों के बाद कारण के बारे में जिज्ञासा स्वाभाविक है। हालांकि अब तक कई रिसर्च के बाद भी ऑटिज्म के ठोस कारण ज्ञात नहीं किए जा सके हैं। बल्कि यह कई कारकों के संयोजन का परिणाम हो सकता है।
इन कारणों में आनुवंशिक कारक, पर्यावरणीय कारक एवं अन्य अप्रत्यक्ष कारक हो सकते हैं।
परिवार में ऑटिज्म के मामले होने पर इसकी संभावना बढ़ जाती है। कुछ जीन और आनुवंशिक परिवर्तन जिसे म्यूटेशन कहा जाता है, ऑटिज्म से जुड़े हो सकते हैं। रिसर्च के परिणामों से यह भी ज्ञात हुआ है कि यदि पहली संतान ऑटिज्म से प्रभावित है तो दूसरी संतान में इसका जोखिम 10% तक बढ़ जाता है।इसी कारण पहली संतान के ऑटिज्म प्रभावित होने पर दूसरी संतान के जन्म के प्लानिंग से पहले जेनेटिक काउंसिलिंग की भी सलाह दी जाती है।
पर्यावरणीय कारण में गर्भावस्था के पूर्व ,दौरान और बाद वाले कारणों को इसके लक्षणों से जोड़कर देखा गया है। गर्भावस्था के दौरान कुछ दवाइयों का प्रभाव, भावनात्मक या शारीरिक अस्वस्थता, नशीले पदार्थों का सेवन , किसी किस्म का संक्रमण ( रुबेला ,हर्पीज आदि), बच्चे के जन्म के समय कम वजन , बच्चे का तुरंत ना रोना ,ब्रेन में ऑक्सीजन सप्लाई बाधित होना या अपगार स्कोर का कम होना ऑटिज्म के जोखिम को बढ़ा सकता है। कुछ लोगों में यह भ्रांति है कि टीकाकरण भी इसका कारण है ,लेकिन यह स्पष्ट किया जा चुका है कि टीकाकरण (Vaccination) का ऑटिज्म से कोई संबंध नहीं है।
कारणों के बाद अगर निदान की बात की जाए तो अन्य बीमारियों से अलग ऑटिज्म का कोई मेडिकल या लैब टेस्ट (जैसे रक्त परीक्षण या स्कैन) नहीं होता, ।इसके परीक्षण के लिए डॉक्टर, मनोवैज्ञानिक और विशेषज्ञों द्वारा व्यवहारिक मूल्यांकन ,संचार और सामाजिक व्यवहार का विश्लेषण एवं कई प्रकार चेक लिस्ट के आधार पर मूल्यांकन किया जाता है।
यह बात विशेष रूप से ध्यान रखें कि आवश्यक नहीं है कि ऑटिज्म से प्रभावित बच्चे या व्यक्ति का आई -क्यू कम हो बल्कि कई बार सामान्य या उच्च आई क्यू पाया जाता है । विश्व के कई महान वैज्ञानिक , संगीतज्ञ,अभिनेता ,चित्रकार जिनका आईक्यू सामान्य से ज्यादा था , ऑटिज्म से प्रभावित पाए गए।
ऑटिज्म का प्रबंधन और उपचार की बात करें तो ऑटिज्म का कोई निश्चित इलाज नहीं है, क्योंकि यह कोई बीमारी नहीं है। लेकिन उचित थेरेपी और सहयोग से व्यक्ति की जीवनशैली को बेहतर बना कर ऑटिज्म से कारण होने वाली समस्याओं को काफी हद तक संयोजित किया जा सकता है।इन थेरेपी में मुख्यत: स्पीच थेरेपी; भाषा और संचार कौशल ,संवाद क्षमता सुधारने में मदद करती है।बिहेवियरल थेरेपी; बच्चों को संचार और सामाजिक कौशल सिखाने में मदद करती है।अवांछित व्यवहारों को नियंत्रित करने और सकारात्मक आदतें विकसित करने में सहायक होती है।व्यवहारिक चुनौतियों से निपटने के लिए तैयार करती है। इसके अलावा रोजमर्रा की गतिविधियों को करने में सहायता देने के लिए ऑक्यूपेशनल थेरेपी और संवेदनशीलता से जुड़ी समस्या के लिए सेंसरी इंटीग्रेशन थेरेपी मदद करती है।
ऑटिज्म एक अंब्रेला डिसऑर्डर है। इसमें कई बच्चों को नींद और भूख से संबंधित समस्या, अवसाद , चिंता , अति सक्रियता का सामना करना पड़ता है। इससे निपटने के लिए कुशल चिकित्सकों के मार्गदर्शन में दवाओं का उपयोग किया जा सकता है। यह याद रखें कि ऑटिज्म के लिए कोई भी दवा नहीं है ।दवाएं सिर्फ कुछ निश्चित लक्षणों तक ही केंद्रित हैं।
यहां यह जिक्र करना भी जरूरी है कि कुछ लोग अंधविश्वास के चलते झाड़फूंक जैसे अनुष्ठान भी करते हैं। अक्सर यह देखा गया है कि झड़फूंक और तंत्र मंत्र के नाम पर बच्चों की अतिसक्रियता को कम करने के लिए नशीले पदार्थों का सेवन भभूत आदि के रूप में कराया जाता है। जिससे बच्चे में सुधार की बजाय स्थिति और बिगड़ती चली जाती है।
सभी बिंदुओं के साथ शिक्षा के बारे में भी बात करना आवश्यक है ।व्यवहारिक शिक्षा से अलग मुख्य धारा शिक्षा में ऑटिज्म वाले बच्चों के लिए विशेष शिक्षा कार्यक्रम चलाए जाते हैं। जिनके लिए विशेष शिक्षकों और विभेदित निर्देशों की सहायता लेनी पड़ती है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति - 2020 में विशेष बच्चों की शिक्षा को सुगम बनाने के लिए समावेशी शिक्षा के अलावा भी कई प्रावधान दिए गए हैं ।
आधी जानकारी , अज्ञानता से भी ज्यादा घातक होती है और वर्तमान में हमारे समाज की यही स्थिति है। लोगों को ऑटिज्म के बारे में आधा अधूरा ज्ञान या बिल्कुल नगण्य है । सामान्यतः यह भ्रांति होती है कि ऑटिस्टिक व्यक्ति क्षमतावान या प्रतिभावान नहीं होते, वे सामाजिक रूप से जिम्मेदार या उत्पादक नहीं है। इन्हीं वजहों से ऑटिज्म प्रभावित लोगों का सामाजिक समावेशन अब भी एक बड़ी चुनौती बना हुआ है।
ऑटिज्म कोई बीमारी नहीं, बल्कि सोचने और महसूस करने का एक अलग तरीका है। लोगों के मन में इसके लिए जो भ्रम व भ्रांतियां हैं,उनको सही जानकारी देकर निवारण किया जाए। यह आवश्यक है इसके लिए जागरूकता फैलाई जाए।हम सभी को चाहिए कि ऑटिज्म के प्रभावित व्यक्तियों को स्वीकार करें, उनकी विशेष क्षमताओं को पहचानें , उन्हें प्रदर्शित करने और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने में सहयोग दें। स्कूलों, कार्यस्थलों और समुदायों में ऑटिज्म के बारे में सही जानकारी दी जानी चाहिए।ऑटिज्म वाले बच्चों के माता-पिता को सही मार्गदर्शन और सामाजिक सहयोग मिलना चाहिए।
ऑटिज्म ; अक्षमता नहीं ,बल्कि यह अलग तरह की क्षमता है। प्रशिक्षण और शिक्षा से ऑटिज्म प्रभावित व्यक्ति स्वतंत्र रूप से जीवन जी सकते हैं और समाज में उतना ही योगदान दे सकते हैं ,जितना कि एक आम नागरिक । समाज में जागरूकता और स्वीकृति बढ़ाकर हम उनके लिए एक बेहतर और समावेशी वातावरण बना सकते हैं। प्रकृति ने बिना किसी भेदभाव के हमें मानव बनाकर भेजा है , अपने प्राकृतिक संसाधनों पर सभी को समान अधिकार दिया है ,तो हम किस वजह से भेदभाव कर स्वयं की उत्कृष्टता पर प्रश्न चिह्न लगा रहे हैं। एक मानव होने का ,समाज में स्थान पाने का अधिकार जितना हमें है, उतना ही किसी ऑटिज्म या अन्य अक्षमता से प्रभावित व्यक्तियों का। और उन्हें मुक्त मन से अपनाना , उनका साथ देना ही हमें प्रकृति के सर्वोत्कृष्ट सृजन साबित करेगा।
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*ऑटिज्म से जुड़े रोचक तथ्य*
1. ऑटिज्म और विशेष क्षमताएँ कुछ ऑटिस्टिक लोग सावंत सिंड्रोम के तहत गणित, संगीत, कला या स्मरण शक्ति में असाधारण प्रतिभा दिखाते हैं। वे डिटेल्स पर ज्यादा ध्यान देते हैं और पैटर्न जल्दी पहचान सकते हैं। किसी पैटर्न या किताबों को शब्दशः याद कर सकते हैं।
2. ऑटिस्टिक लोगों का दिमाग औसत से बड़ा होता है, खासकर बचपन में। न्यूरॉन्स के अलग कनेक्शन के कारण वे चीजों को अलग तरह से प्रोसेस करते हैं। एमिग्डाला और सेरेबेलम की कार्यप्रणाली अलग होने से उनकी सामाजिक और संवेदी प्रतिक्रियाएँ प्रभावित होती हैं।
3.ऑटिस्टिक लोग जानवरों से बेहतर जुड़ाव महसूस कर सकते हैं।प्रसिद्ध वैज्ञानिक टेम्पल ग्रैंडिन ( ऑटिज्म प्रभावित ) ने पशु विज्ञान में नए संचार तरीके विकसित किए।
4. सिलिकॉन वैली में ऑटिस्टिक व्यक्तियों की संख्या अधिक है। कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार, न्यूटन और आइंस्टीन में भी ऑटिज्म के लक्षण थे। Microsoft, SAP और Google जैसी कंपनियाँ ऑटिस्टिक लोगों के लिए विशेष भर्ती कार्यक्रम चलाती हैं क्योंकि वे कोडिंग और डाटा एनालिसिस में माहिर हो सकते हैं।
5. कुछ ऑटिस्टिक लोग हाइपरफोकस कर सकते हैं अतः घंटों एक कम में तल्लीन रह सकते हैं और समय को तेज़ या धीमा महसूस कर सकते हैं।
ऑटिस्म से ग्रस्त लोग किसी विषय में गहरी रुचि लेते हैं, जिसे "स्पेशल इंटरेस्ट" कहते हैं, इन क्षेत्रों में शोध कर उसमें विशेषज्ञ बन सकते हैं।
6. ऑटिस्टिक लोग झूठ बोलने में कठिनाई महसूस कर सकते हैं, आमतौर पर ईमानदार और सीधा बोलने वाले होते हैं। वे सामाजिक झूठ को समझने में कठिनाई महसूस कर सकते हैं, जिससे वे कभी-कभी "रूखे" लग सकते हैं।
7. ऑटिस्टिक लोग संगीत के प्रति संवेदनशील होते हैं और परफेक्ट पिच जैसी प्रतिभा रख सकते हैं।
8. नासा के कई वैज्ञानिकों में ऑटिज्म के लक्षण पाए गए हैं, जिससे वे जटिल समस्याएँ हल करने में माहिर होते हैं।
9. ऑटिज्म दिवस और जागरूकता
2 अप्रैल को "विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस" मनाया जाता है।
ऑटिज्म को दर्शाने वाला रंग नीला (Blue) होता है।
✍️ डॉ. मधूलिका मिश्रा त्रिपाठी