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गुरुवार, 1 जून 2023

नदी और जीवन का मौन


 धीरे-धीरे चुप हो चली हूँ। अगर काम और बच्ची के लिए बात करना मजबूरी न हो तो शायद दिन भर में 1 वाक्य भी ना बोलूं। शुक्र है कि इस दौर की सुविधाओं में मोबाइल के जरिये सन्देश भेज कर बात कह देने का विकल्प आ गया,वरना मन मार कर बोलना पड़ता ही। 


कभी हमेशा हंसती थी। शायद ही कभी चेहरे की मुस्कान वाली मांसपेशियों को राहत मिलती रही हो। तकलीफ भी रहे तो पता नहीं क्यों ये मुस्कान अपना ठिकाना नहीं छोड़ती थी। ढीठ किरायेदार की तरह मकान खाली करने को ही तैयार न होती थी।साथ ही ये संक्रामक भी हुआ करती थी....दूसरों को भी मुस्कुराते रहने की बीमारी लगा ही देती थी।

पता नहीं कब अचानक अंदर से जीवंत सी नदी गायब ही हो गई। नदी जीवंतता की निशानी होती हैं।उछलती ,मचलती ,कभी पूरे पाट पर फैली,कभी एक छोटे से जगह से भी रास्ता तलाश लेती। पत्थर रास्ते मे हों तो उससे भिड़ती नहीं,किसी न किसी तरह पार कर ही लेती। विपरीत स्थिति में सिकुड़ जाती तो वक़्त आते ही वापस अपना यौवन पा कर वर्जनाएं तोड़ कर बढ़ जाती।अब वो जीवंत भाव खुद में सागर में बदलता महसूस हो रहा।जैसे कहीं गहरी खोती चली जा रही हूँ।कभी ज्वार भाटा की तरह भावना उमड़ भी जाती तो ऊंचाई से उठने वाली लहरों की तरह वापस बहुत गहराई में चली जाती। सागर जैसे सब कुछ समा कर शांत बना रहता ,अपनी गहराई में न जाने कितना कुछ समेटे,अब धीरे धीरे मैं भी वही बन रही। 

कहते हैं कि अधजल गघरी छलकती है....सम्भवतः मैं ऐसी ही थी।जब मैं का भाव प्रबल था ,अपनी जानकारी का दर्प था .....तब मैं वाचाल और बेवजह हंसने वाली थी।

किनारों पर उथली हूँ पर जितना गहरी जाती जा रही, सब कुछ ऊपर से थमता सा जा रहा, ज्ञात होती जा रही अपनी अज्ञानता ,कमियां ,थोथापन ।सम्भवतः  कोई बदलाव अब न बहुत उत्साह देता न ही कोई दुख ;कोई गहरी चोट। और आसूं..... उसी के खारेपन का सागर बना हुआ। कई मीठे पानी की नदियों की मौत और अंत ऐसे ही हुआ है। गहराई में घुलती हुई ,अपने ही सभी दुखो से जन्मे आसुओं के साथ शांत होती हुई .... अथाह सागर में बदल जाती। और फिर उनका पुर्नजन्म कभी नही होगा।उनकी जीवंतता फिर कभी नही वापस आती। उसकी कल -कल गति एक गहरी चुप्पी में बदल जाती। और वो चुप्पी हमें चीखती हुई लगती।कई भावानाओं की धारा की शांत करने सागर में बदलने की दशा..... ऊपर हलचल भीतर बस थमी हुई गहराई और शांति। 

 तब वो अनन्त में शून्य हो जाती और फिर खुद की ही गहराई में खोती चली जाती। विलीन हो जाती कोलाहल से गुजर कर .......नाद में । 


#डॉ_मधूलिका 

#ब्रह्मनाद

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