घनीभूत पीड़ाओं के विषम ज्वार.....
नहीं होते नियंत्रित ,चांद की कलाओं से।
जीवन के उतार-चढ़ाव,
अक्सर दोहराए जाते,
शापित हो अनुप्रासों में।
अनचाहे ही अक्सर ये डुबो जाते,
काली पुतलियों से सजे ,
एक जोड़ी सफेद कटोरों को,
एक नमक से भरे ,खारे एहसासों में।।
कई अनमनी अभिव्यक्तियां सहसा,
रोक ली जाती हैं ,होंठों के कोरो पर आकर,
बहुत कुछ छुपा कर ,
दर्द झलक ही जाता,बदनुमा से दागों में।।
चीत्कार कर उठती जब आत्मा,
कई मूक यंत्रणाओं में,छलक ही उठता प्रमाद,
लाल डोरों से चमकती ,
आंखों की चिंगारियों में।।
संघनित, ऊष्मित ...
आत्मिक घावों से रिसती मवाद,
थिरने लगी है अब ,कही गहरे ,
किसी तलहटी को तलाशते ,
जहां ना शेष हो कोई अवसाद,
बैचेनियों को मिले,
सासों का अंतिम ग्रास ,
क्या सांसों संग ही अब पूरा होगा,
जीवन के खुशियों का खग्रास ।
#डॉ_मधूलिका
#ब्रह्मनाद
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