*मैं तुमसे बाद में बात करूँगी/करूँगी।
*कल ये काम कर लेंगे।
*कल से पक्का नया रूटीन फॉलो करूंगा /करूँगी।
*कल से जल्दी उठेंगे।
*कल पक्का तय करेंगे कि आगे क्या करना......
और हर आज ;वही कल होता है जिस कल की हमने कल बातें की थी। अफ़सोस हम कल में टालते जाते.... कल के आसरे में बैठे रहते ,और वो कल कभी नहीं आता। हां इस कल को पाने की जद्दोजहद में हम आज को जरूर खो देते। आज की निश्चितता को कल की आस में नजरअंदाज करते रहते।
इस कल के चक्कर में हम बस खोते ही चले जाते....... कई अपनों को ,और सपनों के लिए हकीकत को।
कल कभी आ ही नहीं पाता। और हम अन्तहीन दौड़ते ही चले जाते।ये कल हमसे हमारे एक कदम आगे ही रहता।जब -जब हाँथ बढते तो लगता हम इसे पकड़ लेंगे।पकड़ में आता तो सपने हकीकत बन जाते..... पर ये एक छलावा रहता ,एक मृगतृष्णा.... हम आगे देखने के चक्कर मे अपने नीचे की जमीन भी खो देते। और फिर औंधे मुंह गिरते। निगाहें फिर भी उसी कल की ओर लगी रहती, और वो हमसे उतनी ही दूरी पर खड़ा रहता ,जितना हमारे सफर की शुरुआत में था।
जब तक आंख खुलती....... कल खो चुका होता ,बीत चुके कल में। और हम एक पेंडुलम बन चुके होते कल और कल के बीच । तब वर्तमान भी पहुंच से छूट चुका होता और हमारा आधार ......... एक ट्रेडमिल की तरह हमें ऐसी दौड़ में ले जाता ,जहाँ हम दौड़ते तो रहते अनवरत ,पर कहीं पहुंच नहीं पाते। कल ....... कभी नहीं आता ,समझ तब आता ,जब आज कल में बदल जाता और हाँथ और आँखें दोनों खाली ..........
और फिर एक दिन कल की ओर ताकते हुए हम आज से कल में बदल कर इस दुनिया के अस्तित्व में ही आंकड़े से गायब हो जाते।
#डॉ_मधूलिका
#ब्रह्मनाद
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