मेरे लिए अक्षय तृतीया या अख्ति का बचपन से बस एक अर्थ था.. मिट्टी के बने गुड्डे -गुड़िया का एक खूबसूरत जोड़ा लेकर आना ,उनकी ख़ूबसूरत सी ड्रेस बनवाना और कुछ पकवान बनाकर मंडप सजाकर उनकी शादी करवाना । बरा बरसात के दिन उनकी गांठ खोली जाती और वो दिन भी मौहल्ले की सखियों या अपनी चचेरी -ममेरी बहनों के साथ उत्सव सा लगने लगता।
साल भर बाद उन्हें पूजा के साथ विसर्जित कर फिर दूसरे जोड़े को लाकर उनकी पूजा और विवाह। कितना प्यारा बचपन था ,जब माटी के ये खिलौने ,कुछ जरी लगी उनकी पोशाकें, बरा ,पुआ , गुलगुला इतनी खुशी और उत्साह दे जाते थे जो बड़े बड़े होते होते किसी भी उत्सव किसी भी पोशाक,किसी भी खिलौने से नहीं मिल सके।
इस विशेष दिन से जुड़ी एक खास याद नानी की है,जिन्हें मैं और सारे बच्चे बाई बोलते थे। बचपना जाते हुए इन गुड्डे गुड़ियों के त्यौहार से दूर करता गया ,पर नानी.... मेरे लिए हर साल गुड़िया -गुड्डा का जोड़ा लाकर शादी कराके पूजा करना न भूलती। चूंकि ये दिन गर्मी की छुट्टियों की दौरान आता था इसलिए अक्सर हमें ये नानी के घर मे ही मिलता।
वक़्त के साथ जब हम अपनी दुनिया में व्यस्त होते गए...हर गर्मी की छुट्टी अब नानी के यहाँ भी नहीं जा पाते थे... पर नानी अब भी मेरे लिए वो रीत निभाती जा रहीं थी। मैं जब नानी के यहाँ जाती वो उस सजे हुए गुड्डा -गुड़िया को मेरे सामने कर देतीं। और मैं नानी से कहती कि अब मैं बड़ी हो गई हूं इससे नही खेलती।और वो हंसती की जब तक जिंदा हूँ मेरे लिए तुम खिलौने से खेलने वाली गुड़िया ही रहोगी। जब नहीं रहूँगी तभी बन्द होगा ये रिवाज। याद है मुझे ,जब छोटी थी तो कई बार साल भर उस गुड्डे -गुड़िया की कभी नाक ,कभी मुकुट, कभी हाँथ का हिस्सा खेलते हुए टूट ही जाता था। पर मन उस टूटे हुए खिलौने से कभी न उकताता। बड़े होने पर वो एक कोने में पड़े -पड़े मुझे चुपचाप ताकते रहते।
आज अखबारों में ,बाजारों में ये गुड्डे -गुड़िया के जोड़े देख कर नानी की याद आ रही। उनके जाने के बाद से किसी ने मेरे लिए अख्ति पूजन नहीं किया।किसी ने मेरे लिए मिट्टी के उस जोड़े का पूजन कर मुझे सौंपने के लिए नही सहेजा। एक मिट्टी की बनी स्नेह से डूबी काया ,आज बहुत याद आ रही है।क्योंकि वो मेरे बचपन से जुड़ा सबसे खूबसूरत रिश्ता और एहसास था।
बाई आप ,उस मिट्टी के जोड़े से जुड़ी जो खुशी आपने मेरे लिए अपने जीवन रहने तक सहेजा अब उसके लिए तरसती हूँ। न अब खुश होना इतना आसान है न ही कोई मेरे लिए सहेज कर रखने वाली आप रही।
बाई आप ,आपके दहबरा और गुलगुला ,और वो गुड्डे -गुड़िया....मेरे जीवन मे एक बड़ी रिक्तता बन गए हैं।जो अब मेरे जीवन के अंत तक रिक्त ही रहेंगे। आज आप बहुत याद आ रही हो.......😓
#डॉ_मधूलिका
#ब्रह्मनाद
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