पेज

सोमवार, 9 अगस्त 2021

बचपन को सच दिखाइए

 कहते हैं ,जीवन की नींव बचपन में ही पड़ जाती।हमें  बच्चे के व्यक्तित्व को किस रूप में ढालना ये उस पर निर्भर करता कि हम उसे क्या सिखाते। हम बच्चों के लिए उस पड़ाव में हद से ज्यादा रक्षात्मक हो जाते। कोई भी नकारात्मक विचार से उसे दूर रखने का प्रयास करते। कोई भी घटना जो हमें लगता कि  बच्चों के मन में प्रश्न जगा सकती,उससे दूर रखने का प्रयास करते। शारीरिक रूप से भी उसे कोई चोट न पहुंचे इसके लिए हम जरूरत से पहले ही मौजूद रहते। भूख -प्यास महसूस न हो इसका इंतज़ाम भी यथासंभव करते। परी कथाओं को सुनाकर उसे सुनहरे सपने और एक खूबसूरत दुनिया दिखाते। अक्सर  सफलता की होड़ में अग्रणी होने पर सफल बताते,और ये प्रयास भविष्य में भी उसे आगे और सफल रखेंगे ,ये समझाते रहते। 

कुल मिलाकर एक सुनहरा सा दायरा बना देते हैं जिसमें सच्चाई कम ,अपेक्षा ज्यादा होती। पर आज अगर मैं आपको कहूँ कि आप ऐसा करके एक इंसान को कमज़ोर बना रहे तो शायद आपको मुझ पर ही हंसी आएगी। 


फर्ज़ करिये एक बच्ची थी,बेहद कुशाग्र ,हर दिल अजीज़, हर काम में बेहतरीन, हँसमुख ,हर जगह महत्व पाने वाली। उसे सिखाया गया कि जीवन ऐसा ही होगा।तुम्हारी शर्तों पर जी सकोगी। हमेशा इन खूबियों के साथ वो छाई रहेगी,अपने सुनहरे दायरों में। एक वक्त तक उसे सब सच लगा। अपनी खूबियों ,सपनों से उसे प्यार था। उसका होना उसे कुदरत का उपहार लगता। को बड़ी हुई ,उसका विवाह हो गया।  सुनहरी दुनिया रंग बदलने लगी थी। उसकी खूबियों में पहले जहां उसकी वाहवाही होती थी,अब वो दम तोड़ने लगी थी। उनके लिए ही उसे ताने मिलते, जो उसे उसकी ताकत लगते थे।उसके सपनों को समर्पण का जामा पहनाने की अपेक्षा और कवायद हुई। उसके होने का मतलब ,सिर्फ दूसरों की इच्छा अनुसार ढलना। उसे समझ आया कि कल जिन बातों को लेकर उसे बताया गया कि ये तुम्हें सफलता की सीढ़ी है,वो अर्थहीन है। उसके सपने ,उसकी महत्वाकांक्षा ही आज उसका दम घोंट रहे थे। उसे अब लगने लगा कि काश उसकी आँखों में इतने बड़े सपने न डाले जाते,उसे ये न बताया जाता कि वो विशेष है। काश उसे बेहद आम बताया जाता ,उसे बोला जाता कि जीवन संघर्षों के नाम है।उसे  बताया जाता,की कर्म नहीं ,भाग्य ही प्रबल होता। जो उसकी विशेषता ,वो कोई गुण नहीं ,बल्कि सिर्फ विधा है। उसे ये ना बताया जाता कि तुम्हें कुछ विशेष करना है… काश उसे बताया जाता कि आम सा जीवन होना ही सच है। जिसमें कोई उद्देश्य नहीं हो सिर्फ एक नियमित दिनचर्या के अलावा। ऐसी स्थिति में वो ऐसी टूटी कि जिंदगी से ही उसका मोह भंग हो गया। 

वास्तव में जीवन का सच हमें बचपन से ही बताना चाहिए। बताना चाहिए कि हर कदम श्रेष्ठ होने पर भी जीवन मे सफल हो जाओ ये जरूरी नहीं। कोई लूज़र माना जाने वाला इंसान भी तुमसे बेहतर जिंदगी जी या साबित  हो सकता। बताना चाहिए कि तुम इतने भी विशेष नहीं ,तुम आम से इंसान हो ,जो कई अरबों में एक हो। हमेशा सपनों में मत रहो, एक आम सी दिनचर्या भी जिंदगी होती। हर वक़्त मत हाज़िर कर दीजिये उनके पंसद का खाना,तेज़ भूख महसूस होने दीजिए,प्यास महसूस होने दीजिए। उनकी मर्ज़ी मत चलने दीजिये,उन्हें  समझौते सिखाइये। रोने पर हमेशा अपना कंधा मत दीजिये ,बताइये की खुद चुप होना सीखना होगा। कहीं चोट लगने की स्थिति में आप आगे मत आइये, लगने दीजिये उसे चोट,ताकि कल वो किसी के भरोसे खुद को सम्हालने की कोशिश न करें। उसे परियों की कथाएं नहीं,असली जिंदगी की कहानियां बताइये। जिसमें दुःख हों,तकलीफ हों,बीमारी हो ,भूख हो। समाज से मिले तिरस्कार हो,जिनमें मृत्यु का भी जिक्र हो। ताकि कल जब उसे अपेक्षित कल न मिल पाए तो वो टूटे नहीं। बल्कि सहज ही असफलता को भी स्वीकार कर जीता रहे। उसे बताइये की हर कहानी का अंत सुखद नहीं होता,कुछ में त्रासदी भी होती। जिस दिन ये सब सीख लेंगे,जान जाएंगे यकीन मानिए,आतमघात की प्रवृत्ति खत्म हो जाएगी। 

क्योंकि तब उन्हें पता होगा #life_is_not_a_bed_of_roses…. तब कांटे उन्हें जीवन का अंग लगेगें। आखिर सुख से ज्यादा जीवन दुख ही देता। 

✍️डॉ. मधूलिका मिश्रा त्रिपाठी

#ब्रम्हनाद

कोई टिप्पणी नहीं: