मुक्तक ,क्षणिकाएँ )
1# .देवताओं का भोग,
इंसान की भोग्या,
प्रारब्ध तेरा ,
देवदासी सा।।
2#.ससुराल की मर्यादा,
मायके का मान,
फिर भी बनी रही,
तू सजावटी सामान।
3#.सरस्वती की पुत्री,
और दुर्गा का भान,
बलात तुझे जुटाना ही होगा,
लक्ष्मी का सम्मान।।
4#.वस्त्र विन्यास तेरा ,
बस होगी तेरी पहचान,
6 गजी साड़ी में,छुपा रखेगी ,
समाज के दोहरे आयाम।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें