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रविवार, 12 मई 2024

हमारा मदर्स डे


 


सच कहूं तो मुझे अंग्रेजी वाला मदर डे कभी समझ ना आया।जब तक खुद मां नहीं बनी, उसके बाद समझ आया की इस दुनिया में बीज के रूप में आने के बाद से बच्चे का हर दिन मदर्स डे ही होता है। अगर रिश्तों को सैलरी देने का रिवाज होता तो "मां" जितनी सैलरी इस दुनिया में किसी को नहीं मिलती।ना जाने कितनी भूमिकाएं एक साथ निभाती, बिना जताए की वो खुद को ही हमारे लिए भूल सी जाती। 

साहब हम उस जमाने की पौध हैं ,जिन्हें मां ने जी भर के डंडों और झाड़ू से भी कूटा है 🤭 और बिना दिन विशेष सेलिब्रेशन के  मां का महत्व जिया है। खास बात  ये कि मां के द्वारा पीटे जाने पर  हमें चुप नहीं कराया जाता था , बल्कि ना चुप होने पर फिर से कूटा जाता था। उस समय  PTM में टीचर से शिकायत नहीं होती थी, बल्कि टीचर घर आ कर शिकायत करके फिर मां के हांथ तबियत से पिटवाते थे। 


#हम तब ग्रीटिंग, गिफ्ट और केक देकर ,

एक दिन को मां को समर्पित नहीं कर पाते थे, 

पर हां जिस दिन मां उदास हो  उस दिन ,

हम बिन बोले सारे काम समय से निपटाते थे,

अपने कपड़े - किताबें बिना टोके,

सही जगह जमा जाते थे। 


घर पर जिस दिन मां की डांट नहीं खाते थे,

उस दिन की शांति हमें अन्दर से डराती थी।

उस दिन खाना मां बिना कुछ पूछे ही बनाती थी।

दिन भर छोटी बातों पर भिड़ते हम बच्चे भी,

उस दिन कुछ ज्यादा ही अनुशासित बन जाते थे। 

मां गुस्सा है या दुखी है ,

कुछ समझ नहीं पाते थे।

मां से जाकर पूछ पाएं उनकी तकलीफ,

कभी भी वो हिम्मत जुटा नहीं पाते थे,

पर चुपचाप काम में लगी मां की आंखें देख,

हम बच्चे सब समझ ही जाते थे।

दिन भर कई बड़ों के ताने  सुनकर भी, 

पीड़ाएं चुप से आसुओं में बहा जाती थी।


कभी - कभी पापा को वो भी,

साड़ी ना दिलाने का ताना  दे जाती थी, 

पर जब हांथ में पैसे आए तो ,

कई जगह उन्हें छुपाती थी।


लाख हसरतें उसकी भी थी लेकिन,

पर अपने लिए कहां कुछ ले आती थी। 


चुपके से जोड़ के जमा किए पैसों से,

कभी हम बच्चों की यूं ही की फरमाइश , 

कभी राशन, कभी बिजली का बिल ,

कभी मेहमानो के खर्चों की ,

छोटी बड़ी कीमतें चुकाती थी, 

हां पर कभी पड़ोसन की नई साड़ी देख ,

थोड़ी सी ललचाती  भी थी। 

पर बच्ची की नई फ्रॉक या,

 बेटे की वो चमचम साइकिल ,

 वो साड़ी भी ज्यादा सुख पाती थी। 


हां सच है ,

कि जिस दिन हम उससे पीटे जाते थे ,

वो हमसे ज्यादा आंसू बहाती थी।

 रात को फिर हमारी पसंद का कुछ,

 विशेष व्यंजन बना आवाज लगाती थी।


हां ये सच है कि,

मेरी मां  टेक्नोलॉजी में थी थोड़ी अनाड़ी, 

स्मार्ट फोन और कंप्यूटर की नहीं थी उनको जानकारी।


एक छोटी सी मोटे गत्ते वाली डायरी में,

कुछ खास अवसरों की तारीखें लिखी जाती थी, 

फिर उन तारीखों में सुबह सुबह से,

वो बस  रसोई में पाई जाती थी।


तब सेल्फी में मुस्कुराने के जमाने नहीं थे ,

वो सबकी खुशियां ही अपने चेहरे में सजाती थी।

सबको भरपेट खिला और पड़ोस में भिजवा कर ही

मां के मन को एक विशेष तृप्ति आती थी।


हां ये सच है की ,

हमने मदर डे एक दिन में पहले कभी मनाया नहीं था,

क्योंकि मां हमारी हर दिन को त्यौहार बनाया था।


#ब्रह्मनाद

#डॉ_मधूलिका

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