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शुक्रवार, 27 जनवरी 2023

एकांतिक प्रतीक्षा






 मन की गहराइयों के,

गह्वर और झंझावातों में,

स्पष्ट होकर भी,

कुछ भी दृष्टव्य नहीं।


मेरे अनन्त अथक,

 प्रयासों के मध्य,

कुछ निर्दिष्ट भावों के,

अनुप्रासों के मध्य,

कभी -कभी सब ,

सहज और सरल सा,

प्रतीत होने ही लगता।


मैं तुम्हारे निर्धारित पथ पर,

मूर्तिवत खड़ी होती,

अनिमेष दृष्टि और 

युगों की प्रतीक्षा लिए।

कभी इस निम्लित दृष्टि को,

सहसा यूँ बोध होने लगता,

कि एक बंकिम मुस्कान सहेजे,

तुम मेरी ओर ,

अविराम  चले आ रहे हो।


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