दुनिया के सबसे खूबसूरत प्रेम पत्रों में एक वो होता जो कभी पूरे तरह से लिखा ही न जा सका। ना वो उनको मिले ,जिनके लिए लिखे गए। मिले भी तो बिना इबारत के ......कुछ लिख कर मिटाई गई पंक्तियां , कुछ आसुओं से गीले हुए कागज के उभार..... और अन्य में सिर्फ तुम्हारी।
नाम लिखने की भी कोशिश न की गई। क्योंकि जिसके लिए लिखा गया वो समझ जाता होगा कि ये सिर्फ तुम्हारी कौन है,जिसे अपने बारे में कुछ बोलने की भी जरूरत न पड़ी।
लिखने वाली ने बहुत कोशिश की होगी ,बहुत कुछ लिखने की....बहुत कुछ बताने की.... बहुत कुछ पूछने की। पर अंत मे कुछ भी उसे ऐसा न लगा जो उसके मन को उस कागज में उतार सके। बहुत कुछ लिख कर सब कुछ मिटा दिया उसने और प्रेम के बस कुछ बेबस सी होकर आंसू की एक धार उस कागज तक पहुंच गई। हाँथ और अपने आँचल से पोछकर सुखाने पर भी अपने निशान उसी तरह छोड़ गई जैसे नदी के सूखने पर भी उसके होने के निशान बाकी रह जाते।
कितना कुछ समाए रहते हैं ये बिना शब्दों के पत्र। जैसे सामने बैठ कर किसी को किताब की तरह पढ़ लेना।ऐसे ही अपने प्रिय के लिए उस पत्र में असीम भावनाएं सिमट जाती, बहुत सा अबोला......जो सामने वाला मन से पढ़ लेता।आंखों को बन्द करके उसकी एक एक इबारत को आत्मा में उतारते चला जाता।उस आसूं के सूखे निशान को अपनी उंगली के पोरों से सहलाकर जैसे अपनी प्रियतमा के आंसुओं को पोंछकर छूकर उन्हें मोती से भी कीमती बना देना..... और कुछ चंचलता महसूस कर कागज के मुडे किनारे को छूकर मुस्कुरा देना। सीने में रखा वो कोरा सा कागज जाने क्या कुछ न बयां कर जाता जो असीम प्रेम करने वाले जोड़े एक दूसरे से सुनना -बोलना चाहते। अकसर जब ये सामने होते तब भी इन्हें बोलने सुनने की जरूरत नहीं पड़ती।एक बंद होंठों से बोलता ,दूसरा उन होंठों की थिरकन और उन आंखों से मूक संवाद में रत रहता।
कभी कभी सोचती इन पत्र से मिटाए गए शब्द कहाँ गए होंगे.....? सम्भवतः वो तारे बन गए होंगे जो रात के मौन में अपने साथी की बातें नीरवता में भी सुनाने के लिए लगातार टिमटिमाते रहते..... जितना गहरा अंधकार , ये तारे रूपी शब्द उतनी ही चमक से बिखरने लगते आकाश के विस्तृत पट में।
वास्तव में प्रेम में मौन ही मुखर होता..... बस समझे जाने की प्रत्याशा में।
#डॉ_मधूलिका_मिश्रा_त्रिपाठी
#ब्रह्मनाद
2 टिप्पणियां:
बेहद खूबसूरत
धन्यवाद
एक टिप्पणी भेजें