अचानक मोबाइल पर रिंग आई, हमने जैसे ही हैलो कहा ; दूसरी तरफ से माँ की आवाज़ आई " गुड़िया तुमने कॉल किया था ?" दिमाग में तो तुरंत उत्तर दिया- नही. पर दिल ने कहा हाँ ।
तो हमने उत्तर दिया ,नही । दरअसल अक्सर हम अपने घर ( मायके) पर फ़ोन पर मिस कॉल देते हैं, वहां से हमारे नेटवर्क में फ्री कॉल की सुविधा के कारण माँ या पापा बेक कॉल कर लेते हैं ।और आज मेरे बिना मिस कॉल के ही कॉल आ गया था।
मेरी आवाज़ सुनते ही माँ ने दूसरा प्रश्न दागा; "तुम्हारी तबियत ख़राब है क्या?" मैं अवाक रह गई, माँ को कैसे पता चल गया ! दरअसल 8 दिन पूर्व फर्श पर पानी के कारण मैं फिसल गई थी, पहले दर्द कम था पर नजरन्दाज़ी के कारन गुरूवार से तकलीफ काफी बढ़ गई थी,और मैं बस डॉ के पास से दिखा कर वापस आई ही थी की माँ ने कॉल किया ।
रुलाई को भरसक रोकते हुए मैंने जवाब दिया हाँ ,घुटने के पास लिगामेंट रप्चर हैं, और सब बाईयां सामूहिक अवकाश पर चली गईं। आराम की बजाय काम और बढ़ गया।
माँ ने बेहद संयत स्वर में बोला की औरतों के साथ यही होता है। कोई नई बात नही ,और फिर उन्होंने ये बताया की उनके पैर की उँगलियाँ शून्य हो रही हैं। मेरी तकलीफ का सुनते ही बोलीं की मैं समझ सकती हूँ की तुम्हें क्या महसूस हो रहा होगा।
पर मैं जानती हूँ माँ की ये आप "समझ" नही बल्कि "महसूस" कर रही होगी । मेरी तकलीफ को मुझसे भी ज्यादा । और एक मैं जिसे ये पता भी नही की माँ किस तकलीफ में है। कितनी स्वार्थी संतान निकली मैं।उनकी महीनों से चली आ रही तकलीफ की मुझे कोई जानकारी नही। और मेरी 2 दिन पुरानी तकलीफ उन्हें समझ आ गई। बस माँ से ढेरो अपेक्षा, बदले में सिर्फ अपनी तकलीफें ही देती हूँ उन्हें ,मानसिक रूप से झेलने को।
तो हमने उत्तर दिया ,नही । दरअसल अक्सर हम अपने घर ( मायके) पर फ़ोन पर मिस कॉल देते हैं, वहां से हमारे नेटवर्क में फ्री कॉल की सुविधा के कारण माँ या पापा बेक कॉल कर लेते हैं ।और आज मेरे बिना मिस कॉल के ही कॉल आ गया था।
मेरी आवाज़ सुनते ही माँ ने दूसरा प्रश्न दागा; "तुम्हारी तबियत ख़राब है क्या?" मैं अवाक रह गई, माँ को कैसे पता चल गया ! दरअसल 8 दिन पूर्व फर्श पर पानी के कारण मैं फिसल गई थी, पहले दर्द कम था पर नजरन्दाज़ी के कारन गुरूवार से तकलीफ काफी बढ़ गई थी,और मैं बस डॉ के पास से दिखा कर वापस आई ही थी की माँ ने कॉल किया ।
रुलाई को भरसक रोकते हुए मैंने जवाब दिया हाँ ,घुटने के पास लिगामेंट रप्चर हैं, और सब बाईयां सामूहिक अवकाश पर चली गईं। आराम की बजाय काम और बढ़ गया।
माँ ने बेहद संयत स्वर में बोला की औरतों के साथ यही होता है। कोई नई बात नही ,और फिर उन्होंने ये बताया की उनके पैर की उँगलियाँ शून्य हो रही हैं। मेरी तकलीफ का सुनते ही बोलीं की मैं समझ सकती हूँ की तुम्हें क्या महसूस हो रहा होगा।
पर मैं जानती हूँ माँ की ये आप "समझ" नही बल्कि "महसूस" कर रही होगी । मेरी तकलीफ को मुझसे भी ज्यादा । और एक मैं जिसे ये पता भी नही की माँ किस तकलीफ में है। कितनी स्वार्थी संतान निकली मैं।उनकी महीनों से चली आ रही तकलीफ की मुझे कोई जानकारी नही। और मेरी 2 दिन पुरानी तकलीफ उन्हें समझ आ गई। बस माँ से ढेरो अपेक्षा, बदले में सिर्फ अपनी तकलीफें ही देती हूँ उन्हें ,मानसिक रूप से झेलने को।
सिर्फ माँ ही है वो जो अपनी सारी तकलीफ भुला कर आपके गम / तकलीफ जीना चाहती है। सिर्फ वही है जिसके पहलू में रोकर हमको शांति मिल सकती है। सिर्फ वही है ,जो कोरी सांत्वना नही देती ,बल्कि आपकी तकलीफ को ख़त्म करने का हर प्रयास करती है।
सच में माँ से बढ़कर कोई नही। ईश्वर भी नही।
माँ वाकई तुम महान हो, दुनिया में ईश्वर के अस्तित्व पर मुझे सदा सदेह रहता है। पर तुम मेरी ईश्वर हो ,इसका प्रमाण जुटाने के लिए मुझे प्रयास भी नही करना पड़ता। तुम ही मेरी ईश्वर।
मेरी पूजा की पहली अधिकारी "सिर्फ तुम हो माँ"
सच में माँ से बढ़कर कोई नही। ईश्वर भी नही।
माँ वाकई तुम महान हो, दुनिया में ईश्वर के अस्तित्व पर मुझे सदा सदेह रहता है। पर तुम मेरी ईश्वर हो ,इसका प्रमाण जुटाने के लिए मुझे प्रयास भी नही करना पड़ता। तुम ही मेरी ईश्वर।
मेरी पूजा की पहली अधिकारी "सिर्फ तुम हो माँ"
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