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गुरुवार, 12 जुलाई 2012

मैं मन ना रंग पाऊंगी ...

मुझसे ना खेलो होली सखी री,मैं मन ना रंग पाऊंगी .... 
होली के रंगों से अब बस ,इस तन को ही रंग पाओगी ...
मेरे गोरे तन की आभा ,अब कृष्णमय हो जाएगी...
श्याम रंग में रंगा है ये मन,उसी के संग हो जाऊंगी ...
खुद को खो कर अब मैं जानी,खुद में उसको पाऊंगी ...
दर्पण मेरा श्याम बना है ,मैं प्रतिबिम्ब बन जाऊंगी...
इस होली में श्याम बिना अब ,कोई रंग ना चाहूंगी ...
मुझसे ना खेलो होली सखी री,मैं मन ना रंग पाऊंगी ..
..
 
(मधूलिका )

10 टिप्‍पणियां:

Dipanshu Ranjan ने कहा…

एक ही दिन इतने पोस्ट......:):)

सावन भी कही ना कही से होली की सी ही खूसबू बिखेरती है....:):)

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

बहुत सुन्दर मधुलिका जी....
अनु

Dr.Madhoolika Tripathi ने कहा…

हा हा हा हा सावन के रंग होली की यादें भी ताज़ा कर देते हैं :-)

Dr.Madhoolika Tripathi ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद

बेनामी ने कहा…

Bahaut Sunder..kya baat hai..Madhulika ji..
दर्पण मेरा श्याम बना है ,मैं प्रतिबिम्ब बन जाऊंगी...
इस होली में श्याम बिना अब ,कोई रंग ना चाहूंगी ..

Fims ke leye bhi likhein.
Dr Ajay bKumar Sharma

Dr.Madhoolika Tripathi ने कहा…

बहुत आभारी हूँ अजय जी..आप लोगों की प्रतिक्रिया मेरे लिए अमूल्य एवं उत्साहवर्धक हैं

बेनामी ने कहा…

आख़िरकार होली के रंग में सराबोर होने के लिये सावन के पानी की ही ज़रूरत होती है...बहरहाल श्याम के रंग में डूबे शब्द निहायत ही मीठे लगे...साधूवाद आपको....
कभी मेरे ब्लॉग http://www.shoaib999.blogspot.in/ पर भी पधारें....

Dr.Madhoolika Tripathi ने कहा…

जी बिलकुल सही कहा आपने..हर अवसर या पर्व दूसरे आने वाले अवसर की कड़ी होता है...
अहोभाग्य ,हम आपके विचारों से अवश्य ब्लॉग के माध्यम से परिचित होना चाहेंगे

अनुराग त्रिवेदी ने कहा…

विराह से भरा श्रिंगार रस .. ना जाने कैसे सोचा रस से नही रंगेगा .. अत्यंत मर्म से जुडी रचना .. बेहद सरसता के साथ आपने शब्दों मे गुत्थ दिया ..

" ,मैं मन ना रंग पाऊंगी .!!! "

Dr.Madhoolika Tripathi ने कहा…

संयोग के साथ विरह भी श्रृंगार का दूसरा पहलू है...दोनों से मिलकर ही ये भाव सम्पूर्ण होता है...
मधुर शब्दों के लिए आभार