जन्म के बाद भी मैं अस्तित्वहीन हूँ.. बचपन में मैं दीवार पर मारी जाती हूँ..थोड़ी बड़ी हुई तो लाख पाबंदियां..जवानी में कदम रखा ..तो किसी और की हुकूमत सहने के लिए विदा किया जाता है..दहेज़ नही मिला तो जिन्दा जलाई जाती हूँ मैं, बिटिया जनी तो फिर कुचली जाती हूँ. प्रकृति की प्रतिकृति हूँ पर अपनी ही तरह की कृति के नवसृजन करने पर दफनाई जाती हूँ .पुरुषों के अहंकार का बदला मेरी अस्मत से चुकाती हूँ मैं ...बुढ़ापा हुआ तो फिर ठुकराई जाती हूँ...घर से बाहर वृद्धाश्रम में पाई जाती हूँ....
जन्म से मृत्यु तक सिर्फ अपने अस्तित्व को सार्थक करने के प्रयास में प्रश्नचिन्ह बन कर रह जाती हूँ. ...क्योंकि मैं औरत हूँ..मानव जन्म पाने के बाद भी मानव बन कर जीने के अधिकार को तरसती -औरत
जन्म से मृत्यु तक सिर्फ अपने अस्तित्व को सार्थक करने के प्रयास में प्रश्नचिन्ह बन कर रह जाती हूँ. ...क्योंकि मैं औरत हूँ..मानव जन्म पाने के बाद भी मानव बन कर जीने के अधिकार को तरसती -औरत
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4 टिप्पणियां:
excellent piece of writing madhulika jee.
i'm touched...
regards
anu
है जहां शूल का अस्तित्व,फूल वहीं मुस्काता है
हैं जहां अंधेरे की सत्ता,जुगनू वहीं चमक पाता है॥
विचारणीय लेखन के लिये साधूवाद.....
ये तो सिर्फ एक औरत होने के भावों का सम्प्रेषण है...पर आपको ये पसंद आया ये हमारी खुशनसीबी है
आपकी टिप्पड़ी ने तो पोस्ट की शोभा बढ़ा दी...आभार
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