पेज

गुरुवार, 12 जुलाई 2012

बादल


आज तेरे नाम से अपनी सांसें महका तो दूं,

एक ख़्वाब तेरा,अपनी आँख में सज़ा तो दूं..

पर डरती हूँ ,पर डरती हूँ ,

की तू बादल आवारा है...

आज यहाँ ,कल वहां तेरा ठिकाना है..



मैं तरसूंगी हर पल,पलकों में तुझे छुपाने के लिए,

तू आँखों से बरसेगा भी, तो मुझसे दूर जाने के लिए.




मैं दुआ करून तू फिर आए...ह्रदय विस्तार पर घिर जाए ,

मैं धरती बन कर राह तकूंगी,तू आकाश सा विस्तृत छा जाए ,

उस दिन सफल ये जीवन होगा...


जब दूर क्षितिज में मेरा तुझसे ,

अंत - हीन मधुर मिलन होगा ...

(मधुलिका )

2 टिप्‍पणियां:

Sanjay Mishra Bhilai ने कहा…

एक हसीन कल्पना है आकाश व वसुधा का मिलन
ठीक वैसे ही जिस प्रकार "गोधूलि " व "दीपशिखा " का साथ होता है

भावों को संजोये एक उत्कृष्ट रचना । ...

Dr.Madhoolika Tripathi ने कहा…

हाँ जो प्राकृतिक रूप से संभव ना हो..वो कल्पना में तो साकार हो ही सकता है...हार्दिक आभार :)