6 मार्च सुबह 11 बजे हम फ़ुएन्त्शोलिन्ग से रवाना हो चुके थे.थिम्पू की ठण्ड के बारे में होटल स्टाफ हमें पहले ही आगाह कर चुका था ,तो हमने गर्म-ऊनी कपड़ों का बैग सुविधाजनक तरीके से गाड़ी में व्यवस्थित कर लिया था ताकि जरूरत पड़ने पर तुरंत निकाल सकें. यहाँ से निकलते ही अगले 5 किलोमीटर पर चेक पोस्ट पर परमिट चेक किया गया.अब हम छोटे छोटे पहाड़ों के सर्पिलाकार रास्तों से आगे बढ़ रहे थे. "बॉर्डर रोड आर्गेनाईजेशन " निश्चित ही इसके लिए बधाई का पात्र है की उसने इन दुर्गम पहाड़ों पर आवागमन को बेहद सुगम /सहज बना दिया है.धीरे -धीरे पहाड़ों की ऊँचाई बढ़ रही थी.और वनस्पति का घनत्व बढ़ता ही चला जा रहा था .पेड़ तो आसमान छूने की जिद में दिख रहे थे.सड़क के एक ओर सर उठाए पहाड़ और दूसरी ओर पाताल सा आभास देती हुई खाई . ये देखकर मैं सोच में थी की पहाड़ों के रहवासी वाकई बहुत मेहनती और साहसी होते हैं....जो इन दुर्गम और बेहद ठन्डे स्थानों में जीवनयापन करते हैं.
फ़ुएन्त्शोलिन्ग के बाद पसाखा होते हुए हम गेडू की ओर बढ़ रहे थे.मैं मंत्रमुग्ध सी इन पहाड़ों में ही खोई हुई थी पहाड़ों को काफी हद तक बादलों ने ढका हुआ था, ऐसा लग रहा था .. सूरज की आमद को अनदेखा कर कुहासे की रजाई ओढ़; रात भर की जगी उनीदी सी नायिका की तरह बादलों में अटखेलियाँ करते हुए क्षण भर को सजग और अचानक फिर आलस में डूब जा रहे हैं. ठण्ड ने भी अपना असर दिखाना शुरू कर दिया था . हमने कार रोक कर गर्म कपडे पहने और आगे चले ..पर अचानक ये क्या हुआ..... हमारा रास्ता किसने रोक दिया.. ओह ये पहाड़ों पर उतरे बादल ही हैं... खास प्राकृतिक भू भाग पर बादलों को निकलने का उचित स्थान नही मिला था ..परिणामत : " zero visibility" ... हमें अपनी गाड़ी के शीशे के आगे कुछ भी नज़र नही आ रहा था . बादलों ने हमारी नज़रों और रास्ते की बीच एक पर्दा बना दिया था . आगे हमें रास्ते में घुमावदार मोड़ों के बारे में कोई जानकारी नहीं थी ,इस स्थिति में सिर्फ अनुमान से आगे बढ़ना किसी खतरे को दावत देने जैसा था..बिटिया आराम से गोद में नींद ले रही थी...इसलिए मैं चाह कर भी इस धुंध में खुद को खोकर ढूँढने से वंचित रह गई. खैर सुयश ने किसी लोकल गाड़ी को फॉलो करते हुए आगे बढ़ना उचित समझा ,क्योंकि उन्हें रास्ते की स्थिति की ताज़ा जानकारी होती है.हमने इंतज़ार किया और फिर एक ट्रक के सहारे उस महीन किन्तु द्रष्टि के लिए अभेद्य बादल वाले रास्ते को पार किया . डर के साथ पहली बार उत्साह का रोमांच भी महसूस हुआ . ऐसा लगा शायद स्वर्ग यहीं है.. और हम उस तक पहुँचने के लिए कठिनतम मार्ग से आगे बढ़ रहे हैं .... ठण्ड और रोमांच ने शरीर और दिमाग में एक सिहरन सी पैदा कर दी थी.
इस सफ़र पर अब गेडू होते हुए हम "दन्तक" कैंटीन पहुंचे जो की खाने के लिए हमारा पड़ाव था ,इसे "बॉर्डर रोड आर्गेनाईजेशन " ही संचालित करता है . वहां पर कुछ भारतीय कर्मचारियों ने बेहद गर्मजोशी से हमारा स्वागत किया .शायद हमारे चेहरे और बोली उन्हें अपने देश की मिटटी से जोड़ रहे थे. परदेश में अपने देश का कोई भी इन्सान कितना अपना लगता है उनके व्यवहार से साफ़ झलक रहा था. उन्होंने हमारे मूल स्थान के बारे में पुछा और स्नेह वश बिटिया को चोकलेट दी . जो की बाद में हमने उदरस्थ की :) , यहाँ हमने मेदुवडा और डोसा खाया . और बिटिया...दूध -टोस्ट :D.
यहाँ से आगे बढ़ते हुए चुक्का घाटी के पुल के पास से ही चुक्का पॉवर हाउस की झलक भी देखने को मिली , साथ ही डैम व्यू पॉइंट से आप खूबसूरत नज़ारा ले सकते हैं.यहाँ हर पहाड़ दुसरे पहाड़ से ऊँचाई और वनस्पति घनत्व में होड़ लगाते हुए से प्रतीत होते हैं .एक की चोटी से तलहट तक पहुंचना..फिर तलहट से दुसरे की चोटी तक..अनवरत क्रम .. आगे फिर एक ऊंचा पहाड़ हमारे रास्ते में था जिससे होते हुए चापचा पहुंचे . यहाँ भी चेक पोस्ट पर परमिट दिखाया . पहाड़ की तली पर बने इस चेक-पोस्ट पर एक अद्भुत सी शांति और सुकून था ,जैसा एक माँ की गोद में छुपे हुए बच्चे को महसूस होता है..कुछ वैसा ही. हरियाली और छोटे छोटे झरने ..प्रकृति ने मुक्त हस्त से इस क्षेत्र को संवारा है . इसके लिए तो मुझे सिर्फ एक ही शब्द सटीक लगा " RAW AND UNTOUCHED BEAUTY " .
चापचा चेक पोस्ट से आगे पहाड़ की ऊँचाई पर बढ़ते ही स्वर्णिम आभा से युक्त हिम आच्छादित पहाड़ की हलकी सी झलक मिली . घुमावदार रास्ते पर वो दृश्य छुपा-छिपी के खेल की तरह आ और जा रहे थे. मैंने जिंदगी में पहली बार अपनी आँखों से बर्फ से ढके पहाड़ों को देखा; जादुई और सम्मोहक एहसास . बीच बीच में छुपना और फिर नज़र आना ऐसा एहसास दे रहे थे, जैसे कोई नई -नवेली कमसिन सी दुल्हन कौतूहल से घूंघट उठा कर देखती हो...और फिर संकोच-लज्जा से वापस घूंघट खीच लेती हो. और मैं उसी नई नवेली दुलहन की झलक पाने के लिए बाल -सुलभ उत्साह से लबरेज ... यह बर्फ से आच्छादित पहाड़ों से मेरा पहला साक्षात्कार था . मेरे लिए यह अविस्मरनीय था ..ताउम्र इस एहसास को याद करना मुझे पहाड़ों की ताजगी और हिम की शीतलता से सराबोर कर देगा .
इन मनोहारी दृश्यों को कैमरे और स्मृतियों में संजोते हुए देवदार /पाइनस के वृक्षों की छाँव में हम आगे बढ़ रहे थे. हिमाच्छादित पहाड़ अब हमारे हमसफ़र बन चुके थे .किन्तु रास्ता अब अपेक्षाकृत संकरा हो चला था और सड़क से जुडी खाई भी गहरी होती चली जा रही थीं , किन्तु इस दुर्गम रास्ते में भी वहां के वहां चालकों का धैर्य और आपसी सामंजस्य तारीफ के काबिल था....ना ही हॉर्न का शोर ,ना ही आगे निकलने की होड़. चढ़ाई पर जा रही गाड़ियों के लिए रुक कर रास्ता देना ..वाकई सभ्यता और असीम धैर्य का परिचय दिया वहां के वहां चालकों ने .
चापचा के बाद दामछु होते हुए हम चुज़ोम चेक पोस्ट पहुंचे . इसके बाद रास्ता अपेक्षाकृत चौड़ा हो गया था ..साथ ही रास्ते के साथ चलती हुई नदी की चपलता हममे भी उत्साह भर रही थी . पानी बिलकुल साफ़ दिख रहा था .जिसके कारण नदी की तलहटी के पत्थरों का रंग स्पष्ट देख जा सकता था .नदी के छिछले किनारों पर फैले पठार बेहद आकर्षक लग रहे थे . जो उस पानी पर अटखेलियाँ करने के लिए ललचा रहे थे. चुजोम पर ही पारो और थिम्पू नदी का संगम होता है और यही से बाईं ओर एक अलग रास्ता पारो शहर की ओर जाता है ..दाहिने ओर के रास्ते पर हम थिम्पू की ओर चले . ठण्ड का असर और पहाड़ों की सघनता अब कुछ कम हो रही थी . और शाम 4 बजे थिम्पू सिटी के वेलकम गेट ने हमारा स्वागत किया . आज का हमारा गंतव्य ...... हम आगे बढ़े और पहले से जानकारी प्राप्त होटल के साथ अन्य होटल और शहर का जायजा लेने के लिए कुछ देर गाड़ी में ही चक्कर लगते रहे.. यहाँ पार्किंग स्थल की थोड़ी तंगी है .रास्ते अधिकांशत : वन- वे हैं. शहर में संभावित होटल पर नज़र डाल हमने मुख्य मार्ग में hotel Le Meridien के ही समीप होटल GALINGKHA को अपना पड़ाव बनाया . होटल के कमरे की खूबसूरती पर इस बात ने चार चाँद लगा दिए की सामने की ओर खुलने वाली विशाल खिड़की से पर्दा हटते ही सोने से चमकते हिम युक्त शिखर वाले पहाड़ मुस्कुरा रहे थे. सच कहूं तो सदा- शिव के निवास की कल्पना वाकई में इन्हें देख कर साकार हो उठी थी. अब आज का सफ़र ख़त्म हो चूका था. अरे हाँ यह बताना तो भूल ही गई की बिना लिफ्ट के तीसरी मंजिल तक सामान और बिटिया के साथ चढ़ना बेहद दुष्कर लग रहा था. मुझे तो होटल स्टाफ की ये बात काबिलेतारीफ लगी की वो इस मंजिल और इससे ऊपर भी बने तल तक भारी भरकम सामान पहुंचाते हैं :) .शाम होते ही कतारबद्ध -अनुशासित ट्रैफिक कमरे से ही नज़र आ रहा था ,साथ ही मुख्य बाज़ार की चहल -पहल भी . आज की शाम आस पास घूमने,खाने पीने और आराम में गुजरी .कल थिम्पू के आस पास के व्यू पॉइंट जाने की तैय्यारी है.
(क्रमशः )
फ़ुएन्त्शोलिन्ग के बाद पसाखा होते हुए हम गेडू की ओर बढ़ रहे थे.मैं मंत्रमुग्ध सी इन पहाड़ों में ही खोई हुई थी पहाड़ों को काफी हद तक बादलों ने ढका हुआ था, ऐसा लग रहा था .. सूरज की आमद को अनदेखा कर कुहासे की रजाई ओढ़; रात भर की जगी उनीदी सी नायिका की तरह बादलों में अटखेलियाँ करते हुए क्षण भर को सजग और अचानक फिर आलस में डूब जा रहे हैं. ठण्ड ने भी अपना असर दिखाना शुरू कर दिया था . हमने कार रोक कर गर्म कपडे पहने और आगे चले ..पर अचानक ये क्या हुआ..... हमारा रास्ता किसने रोक दिया.. ओह ये पहाड़ों पर उतरे बादल ही हैं... खास प्राकृतिक भू भाग पर बादलों को निकलने का उचित स्थान नही मिला था ..परिणामत : " zero visibility" ... हमें अपनी गाड़ी के शीशे के आगे कुछ भी नज़र नही आ रहा था . बादलों ने हमारी नज़रों और रास्ते की बीच एक पर्दा बना दिया था . आगे हमें रास्ते में घुमावदार मोड़ों के बारे में कोई जानकारी नहीं थी ,इस स्थिति में सिर्फ अनुमान से आगे बढ़ना किसी खतरे को दावत देने जैसा था..बिटिया आराम से गोद में नींद ले रही थी...इसलिए मैं चाह कर भी इस धुंध में खुद को खोकर ढूँढने से वंचित रह गई. खैर सुयश ने किसी लोकल गाड़ी को फॉलो करते हुए आगे बढ़ना उचित समझा ,क्योंकि उन्हें रास्ते की स्थिति की ताज़ा जानकारी होती है.हमने इंतज़ार किया और फिर एक ट्रक के सहारे उस महीन किन्तु द्रष्टि के लिए अभेद्य बादल वाले रास्ते को पार किया . डर के साथ पहली बार उत्साह का रोमांच भी महसूस हुआ . ऐसा लगा शायद स्वर्ग यहीं है.. और हम उस तक पहुँचने के लिए कठिनतम मार्ग से आगे बढ़ रहे हैं .... ठण्ड और रोमांच ने शरीर और दिमाग में एक सिहरन सी पैदा कर दी थी.
इस सफ़र पर अब गेडू होते हुए हम "दन्तक" कैंटीन पहुंचे जो की खाने के लिए हमारा पड़ाव था ,इसे "बॉर्डर रोड आर्गेनाईजेशन " ही संचालित करता है . वहां पर कुछ भारतीय कर्मचारियों ने बेहद गर्मजोशी से हमारा स्वागत किया .शायद हमारे चेहरे और बोली उन्हें अपने देश की मिटटी से जोड़ रहे थे. परदेश में अपने देश का कोई भी इन्सान कितना अपना लगता है उनके व्यवहार से साफ़ झलक रहा था. उन्होंने हमारे मूल स्थान के बारे में पुछा और स्नेह वश बिटिया को चोकलेट दी . जो की बाद में हमने उदरस्थ की :) , यहाँ हमने मेदुवडा और डोसा खाया . और बिटिया...दूध -टोस्ट :D.
यहाँ से आगे बढ़ते हुए चुक्का घाटी के पुल के पास से ही चुक्का पॉवर हाउस की झलक भी देखने को मिली , साथ ही डैम व्यू पॉइंट से आप खूबसूरत नज़ारा ले सकते हैं.यहाँ हर पहाड़ दुसरे पहाड़ से ऊँचाई और वनस्पति घनत्व में होड़ लगाते हुए से प्रतीत होते हैं .एक की चोटी से तलहट तक पहुंचना..फिर तलहट से दुसरे की चोटी तक..अनवरत क्रम .. आगे फिर एक ऊंचा पहाड़ हमारे रास्ते में था जिससे होते हुए चापचा पहुंचे . यहाँ भी चेक पोस्ट पर परमिट दिखाया . पहाड़ की तली पर बने इस चेक-पोस्ट पर एक अद्भुत सी शांति और सुकून था ,जैसा एक माँ की गोद में छुपे हुए बच्चे को महसूस होता है..कुछ वैसा ही. हरियाली और छोटे छोटे झरने ..प्रकृति ने मुक्त हस्त से इस क्षेत्र को संवारा है . इसके लिए तो मुझे सिर्फ एक ही शब्द सटीक लगा " RAW AND UNTOUCHED BEAUTY " .
चापचा चेक पोस्ट से आगे पहाड़ की ऊँचाई पर बढ़ते ही स्वर्णिम आभा से युक्त हिम आच्छादित पहाड़ की हलकी सी झलक मिली . घुमावदार रास्ते पर वो दृश्य छुपा-छिपी के खेल की तरह आ और जा रहे थे. मैंने जिंदगी में पहली बार अपनी आँखों से बर्फ से ढके पहाड़ों को देखा; जादुई और सम्मोहक एहसास . बीच बीच में छुपना और फिर नज़र आना ऐसा एहसास दे रहे थे, जैसे कोई नई -नवेली कमसिन सी दुल्हन कौतूहल से घूंघट उठा कर देखती हो...और फिर संकोच-लज्जा से वापस घूंघट खीच लेती हो. और मैं उसी नई नवेली दुलहन की झलक पाने के लिए बाल -सुलभ उत्साह से लबरेज ... यह बर्फ से आच्छादित पहाड़ों से मेरा पहला साक्षात्कार था . मेरे लिए यह अविस्मरनीय था ..ताउम्र इस एहसास को याद करना मुझे पहाड़ों की ताजगी और हिम की शीतलता से सराबोर कर देगा .
इन मनोहारी दृश्यों को कैमरे और स्मृतियों में संजोते हुए देवदार /पाइनस के वृक्षों की छाँव में हम आगे बढ़ रहे थे. हिमाच्छादित पहाड़ अब हमारे हमसफ़र बन चुके थे .किन्तु रास्ता अब अपेक्षाकृत संकरा हो चला था और सड़क से जुडी खाई भी गहरी होती चली जा रही थीं , किन्तु इस दुर्गम रास्ते में भी वहां के वहां चालकों का धैर्य और आपसी सामंजस्य तारीफ के काबिल था....ना ही हॉर्न का शोर ,ना ही आगे निकलने की होड़. चढ़ाई पर जा रही गाड़ियों के लिए रुक कर रास्ता देना ..वाकई सभ्यता और असीम धैर्य का परिचय दिया वहां के वहां चालकों ने .
चापचा के बाद दामछु होते हुए हम चुज़ोम चेक पोस्ट पहुंचे . इसके बाद रास्ता अपेक्षाकृत चौड़ा हो गया था ..साथ ही रास्ते के साथ चलती हुई नदी की चपलता हममे भी उत्साह भर रही थी . पानी बिलकुल साफ़ दिख रहा था .जिसके कारण नदी की तलहटी के पत्थरों का रंग स्पष्ट देख जा सकता था .नदी के छिछले किनारों पर फैले पठार बेहद आकर्षक लग रहे थे . जो उस पानी पर अटखेलियाँ करने के लिए ललचा रहे थे. चुजोम पर ही पारो और थिम्पू नदी का संगम होता है और यही से बाईं ओर एक अलग रास्ता पारो शहर की ओर जाता है ..दाहिने ओर के रास्ते पर हम थिम्पू की ओर चले . ठण्ड का असर और पहाड़ों की सघनता अब कुछ कम हो रही थी . और शाम 4 बजे थिम्पू सिटी के वेलकम गेट ने हमारा स्वागत किया . आज का हमारा गंतव्य ...... हम आगे बढ़े और पहले से जानकारी प्राप्त होटल के साथ अन्य होटल और शहर का जायजा लेने के लिए कुछ देर गाड़ी में ही चक्कर लगते रहे.. यहाँ पार्किंग स्थल की थोड़ी तंगी है .रास्ते अधिकांशत : वन- वे हैं. शहर में संभावित होटल पर नज़र डाल हमने मुख्य मार्ग में hotel Le Meridien के ही समीप होटल GALINGKHA को अपना पड़ाव बनाया . होटल के कमरे की खूबसूरती पर इस बात ने चार चाँद लगा दिए की सामने की ओर खुलने वाली विशाल खिड़की से पर्दा हटते ही सोने से चमकते हिम युक्त शिखर वाले पहाड़ मुस्कुरा रहे थे. सच कहूं तो सदा- शिव के निवास की कल्पना वाकई में इन्हें देख कर साकार हो उठी थी. अब आज का सफ़र ख़त्म हो चूका था. अरे हाँ यह बताना तो भूल ही गई की बिना लिफ्ट के तीसरी मंजिल तक सामान और बिटिया के साथ चढ़ना बेहद दुष्कर लग रहा था. मुझे तो होटल स्टाफ की ये बात काबिलेतारीफ लगी की वो इस मंजिल और इससे ऊपर भी बने तल तक भारी भरकम सामान पहुंचाते हैं :) .शाम होते ही कतारबद्ध -अनुशासित ट्रैफिक कमरे से ही नज़र आ रहा था ,साथ ही मुख्य बाज़ार की चहल -पहल भी . आज की शाम आस पास घूमने,खाने पीने और आराम में गुजरी .कल थिम्पू के आस पास के व्यू पॉइंट जाने की तैय्यारी है.
(क्रमशः )
थिम्पू शहर का वेलकम गेट |
बादलों से घिरे पहाड़ पर "zero visibility" |
चापचा में हिमाच्छादित पर्वत शिखर का एक दृश्य |
हिमाच्छादित पर्वत शिखर का एक अन्य दृश्य |
बॉर्डर रोड आर्गेनाईजेशन द्वारा संचालित दन्तक कैन्टीन |
सर्पिलाकार रास्ते की एक झलक |
हिमाच्छादित पर्वत शिखर पर छाए मेघ |
हिमाच्छादित पर्वत शिखर |
पाइनस वृक्ष से घिरे मार्ग |
स्थानीय विद्यालय के समीप गणवेश में घूमते बच्चे |
मेघाच्छादित पर्वत मार्ग |
मेघाच्छादित पर्वत मार्ग |
मेघाच्छादित पर्वत मार्ग "zero visibility" |
ट्रक का अनुसरण कर आगे बढ़ते हुए |
पर्वतीय मार्ग-एक दृश्य |
चापचा चेक पोस्ट |
पर्वत श्रृंखलाएं |
पर्वत श्रृंखलाएं |
थिम्पू पूर्व पहुँच मार्ग |
7 टिप्पणियां:
अति सुन्दर लेखन , पढ़कर बहुत आनंद आया। ........
Beautiful picturesque disruption.. Loved it. I wish u had written something about ur vehicle too.. Because it plays an important role in long by road journey.
Bhut bdhiya description hai..aisa lga ham b unhi phaadon me hain. Aur tasveeren to mashaallah. The one with pine trees feels like..like peace. :)
Aur Anvesha bdi ho k apna chocolate vapas magegi apse :P
आपको आनंद आया...यही मेरा पुरुष्कार है. :)
वाह आपने आपने बहुत अच्छा सुझाव दिया है..इस पर जरूर अमल करूंगी. एक बुद्धिजीवी की पहचान यही है की वो सिर्फ मनोरंजन के उद्देश्य से नही पढ़ते ,अपितु मनन कर लेखन को उत्कृष्ट बनाने के लिए सुझाव भी देते हैं. साधुवाद आपको
अब शिष्य का मान रखने के लिए अच्छा लिखने की कोशिश तो करना ही पड़ता है :p
और हाँ अन्वेषा को इमोशनल ब्लैकमेल कर लूंगी की देखो माँ बच्चे की लिए इतना त्याग करती है तो क्या बच्चे एक चोकलेट नही दे सकते :D
अदभुत संस्मरण, बोलते से शब्द और बेशकीमती प्राकृतिक छटाएं
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