3 मार्च ,सुबह 10 बजे ; और हम इलाहाबाद के व्यस्ततम मार्ग में आगे बढ़ रहे थे . दिशा...... अरे यह तो हम आपको बताना ही भूल गए की किसी भी यात्रा में निकलने के पूर्व पतिदेव मेन रूट प्लान (वैकल्पिक भी ), संभावित समय,उस दिन के संभावित अंतिम गंतव्य ,स्थान विशेष में होटल के नाम आदि का पूरा पेपर वर्क करते (होम वर्क कहना उचित ही होगा )हैं. सभी यात्राओं में यह काफी उपयोगी /सहायक सिद्ध होता है; अरे हाँ तो हम यात्रा की दिशा पर बात कर रहे थे . पूर्व निर्धारित कार्यक्रम और समय के अनुसार हमारा उस दिन का पड़ाव पूर्णिया या दरभंगा होना था .
तो इलाहाबाद से निकलकर गंगा पुल पार करते हुए हम फाफामऊ पहुंचे .तब तक रोड की ज्ञात स्थिति और बदहाल ट्रैफिक ने हमारा सारा उत्साह ठंडा कर दिया था. प्रतापगढ़ पहुँचते पहुँचते ही हमें दोपहर के 12 बज चुके थे. हमने इलाहाबाद से चलते वक़्त यह तय किया था की 12-1 के आस पास हम फ़ैजाबाद में होंगे तो बिटिया और स्वयं के खाने का कार्यक्रम यू. पी. पर्यटन विभाग के होटल में होगा ,जो की रास्ते में ही पड़ता. पर खस्ताहाल सडकों ने हमारे पूरे प्लान पर पानी फेर दिया :( , सच कहूं तो मुझे लगभग 13 साल पहले की मध्यप्रदेश के कांग्रेस शासनकाल की सड़कें याद आ गईं, जब सड़के सड़क ना होकर "जल संग्रहण की सामूहिक टंकी" नज़र आती थी. इस फेर में फंस कर बिटिया भूखी ही गोद में सो गई . जैसे तैसे सड़कों से संघर्ष करते हमारी गाड़ी दोपहर 2.15 पर राजा राम की नगरी अयोध्या / फ़ैजाबाद पहुंची ,हमने राहत की साँस ली और पूर्व निर्धारित होटल में पहुंचकर खाने का आर्डर दिया ,तब तक मैंने बिटिया को " खिचड़ी " खिलने की कसरत शुरू की, पर ये क्या ....उसने अपने शास्त्रीय संगीत ( रोने ) से पूरा होटल गूंजा दिया . डांट -डर -मान मनौअल कुछ काम नही आया ,उसको नहीं खाना था तो नहीं खाई :( , दरअसल वो अपने खाने पीने में समय की काफी पाबंद है ;और आज तो लगभग 2-3 घंटे की देर हो चुकी थी. होटल में खाने का आर्डर काफी देर से पूरा हुआ ;वो भी अधूरा .बेहद व्यस्ततम और शायद लोकप्रिय होटल लगा. खाने का स्वाद अच्छा था ,पर मेरे गले से निवाला नही उतर रहा था ,बिटिया के भूखे रहने का दुःख और उसके असहयोग ने मुझे काफी खीज दिला दी थी. जैसे तैसे थोडा बहुत खाकर हमने सफ़र में आगे की ओर रुख किया . बिटिया के खाने की वैकल्पिक व्यवस्था के तौर पर हम पिछली सीट पर शिफ्ट हुए और उसे उसके पसंदीदा लेज के चिप्स पकडाए ,पर आज वो विद्रोह में उतारू थी. ना मतलब ना हुआ ... मेरा पारा सातवें आसमान में था...और मैंने ऐलान किया की अब इसे लेकर किसी भी लम्बे सफ़र पर नहीं जाऊंगी (इस सफ़र में यह जुमला पतिदेव को कई बार सुनने को मिला :p ) .
आख़िरकार मैंने हथियार डाल दिए और उसे कुछ भी खिलाने की कोशिश बंद कर चुपचाप बैठ गई.थोड़ी देर तो बिटिया ने मोबाइल पर अपनी " राइम" देख कर मन बहलाया फिर उसने मेरी चुप्पी को नोटिस किया ,मुझे मानाने के प्रयास में कई बार अपने गाल पर मेरा हाँथ लगाने की कोशिश की और मैंने छुड़ा लिया. असफल होते ही उसने रोकर ब्रम्हास्त्र चलाया और हम ढेर. खैर इस पूरी जद्दोजहद के बाद उसने दूध टोस्ट ( रोज की निर्धारित मात्रा से कुछ ज्यादा ) आराम से खा लिया ,शायद उसे मुझे पर दया आ गई थी :D.
फ़ैजाबाद से आगे पवित्र सरयू नदी पार की, जो ब्राह्मणों में विशेष विभाजन या सरयूपारीय विभाग के उद्गम के लिए प्रमुख कारण बनी थी.इसके बाद बस्ती ,गोरखपुर ,कुशीनगर शहरों को बाइपास से ही हाय- बाय किया, पर पिक्चर अभी बाकी है......इन सब शहरों की बाइपास सुविधा से बचा वक़्त गोपालगंज ( यू. पी. - बिहार बॉर्डर ) ने डकार लिया...लगभग 20 किलोमीटर का ये रास्ता दुर्दान्त साबित हुआ . ढलता हुआ सूरज भी अनजाने रास्तों में एक मुसीबत ही लगता है..क्योंकि गाड़ी चलने वाले के लिए- द्रश्यता सीमा /visibility बहुत कम हो जाती है . इस दौरान ये समझ आ गया की आज के निर्धारित गंतव्य तक पहुंचना असंभव है . शाम गहराते हुए रात में बदलने लगी ,मेरे सर पर फिर बिटिया के खाने की चिंता सवार होने लगी. सुबह ना सही ,रात को तो उसका पसंदीदा खाना सही समय पर मिलना चाहिए . इसी दौरान पतिदेव ने डीज़ल लेते वक़्त फ्यूल स्टेशन के कर्मचारियों से नजदीक में होटल की सुविधा के बारे में जानकारी ली,पता चला चकिया नाम की जगह में खाने और रुकने की व्यवस्था हो जाएगी.
थोडा तसल्ली हुई पर ज्यादा देर मैं खुश ना रह सकी .चकिया के होटल पहुँचते ही सबसे पहले मैंने बिटिया की आटा मैगी घर से लाए गए भगौने में पानी डालकर पकाने के लिए होटल की रसोई में पतिदेव के हाथ पहुंचवाया . उसके बाद कमरा देखने की बारी आई..... उफ़ ये क्या !!!!!!!!!!!!!!!!! यहाँ तो मैं अपनी बेटी को पैर भी ना रखने दूं ;कहकर मैं सीधे गाड़ी में आकर बैठ गई..बेहद तंग गलियारे से निकलने के बाद वो कमरा तो हवाप्रद लगा पर साफ सफाई का आलम देख कर मेरी नाक सिकुड़ चुकी थी. तब तक पतिदेव तैयार मैगी लेकर आए... ओह... ये क्या लगा की अपना सर पकड़ कर रो लूं.. तेज़ आंच में पकाई हुई कड़ी कड़ी मैगी ..बिटिया को नहीं खाना था..तो वो नहीं खाई.अब मेरा गुस्सा दुःख और करुणा में बदल चूका था . हमारे सफ़र में हमारी संतुष्टि में बिटिया तकलीफ झेले,इससे बुरा कुछ ना था . :'(
आख़िरकार पतिदेव और हमने बाकी खाने का आर्डर कैंसिल कर फटाफट कार रास्ते में आगे बढाई . आगे हम कहाँ जाने वाले थे यह समय ही निश्चित करने वाला था .रात का 8 बज चूका था और हमने रुख किया मुजफ्फरपुर की ओर . अपनी बिटिया को लेकर मैं चिंतित थी और पतिदेव हम दोनों को लेकर. रास्ते में होलिका दहन के पूर्व के कार्यक्रम चल रहे the. एक थ्री व्हीलर में पटिये बिहारी गाने पर नाचती हुई बिहार की"टिपिकल नचनिया " और नीचे मस्ती कर रहे होलियारों ने हमारी कल्पना को रंग दे दिया . उस टेंशन के समय में भी इस दृश्य ने मेरे और पतिदेव के होंठों पर मुस्कान ला दी. थोड़ी आगे बढ़े तो एक बारात ...वाह जी वाह ..घोड़े, हांथी ,ऊँट से सजी बारात ,बैंड में -"आज मेरे यार की शादी है " गा ता हुआ एक गायक ...ऐसा लगा की कोई शाही बारात है ,पूछने पर पता चला की नहीं ये आम आदमी (केजरीवाल की पार्टी वाला नही ) की ही बारात है. खैर हमारे सफ़र का तनाव कुछ कम हो चूका था. हाँ इस दौरान हम इन पलों को कैमरे में नही कैद कर पाए ...क्योंकि बिटिया हमारी गोद में पॉवर नैप ले रही थी..और वकील साहब मतलब पतिदेव गाड़ी ड्राइव कर रहे थे .
रात करीब 10.15 पर हमने मुजफ्फरपुर बाइपास पर गाड़ी रोकी ,और पतिदेव ने उतर कर होटल के बारे में पता किया . एक सज्जन ने बताया की "गोलाम्भर " के पास पूछने से आपको सही जानकारी मिल जाएगी . चौराहे के लिए ये स्थानीय शब्द हमें बहुत भाया ,पूरे सफ़र में अक्सर हम इसे प्रयोग करते रहे . होटल ढूँढने के प्रयास में एक कूल dude टाइप के बन्दे ने पतिदेव को "इमली चट्टी " नाम की जगह बताई ,जहाँ पहुँचते ही हमारी आज की यात्रा को विराम मिला ..लगभग एक साल पहले खुले एक होटल पर हमारी सहमती बनी ,कमरे में पहुँचते ही बिटिया की ख़ुशी ने हमारी सारी थकान उतार दी बेहद साफ-सुथरा ,अत्याधुनिक सज्जा और सुविधाओं से सज्जित उस हालनुमा कमरे में बिटिया ने दौड़ भाग कर हमें निश्चिंत कर दिया. मैंने फटाफट उस कड़ी मैगी को इलेक्ट्रिक केटल (ये भी घर से ही ले जाई गई थी )में मक्खन और पानी दल कर उबाल दिलाई और फटाफट बिटिया को खिलाया .खुद भी खाने का आर्डर दे नेट सर्फिंग करने लग गए. लगभग 11 .30 पर खाना ख़त्म कर आरामदायक और साफ़ बिस्तर की गोद में समा गए...हाँ सोने से पहले पतिदेव ने हिदायत दी की कल कोई जल्दी नही करना और बिटिया को खाना खिला कर ही सफ़र पर निकलेंगे . पूरे दिन की दिमागी और शारीरिक थकान के कारण बिटिया को सुलाने बाद नींद ने मुझे कब आगोश में लिया पता ही ना चला ...दुसरे दिन सुबह सीधे 6.30 पर ही नींद खुली . बिटिया गहरी नींद में सोई हुई थी..अरे हाँ ये तो बताना भूल ही गई की यहाँ पर मच्छरों की फौज इतनी ज्यादा है की अगर आपने सिर्फ एक आल आउट या मोर्टिन लगाया तो शायद आप पूरी रात कव्वाली ही गाएँगे :) आज भी वही दैनिक क्रम....निपटते हुए बिटिया जाग गई थी...लगभग सवा आठ पर. हमने खुद के लिए आलू पराठे और बिटिया के लिए सादा दाल चावल आर्डर कर फटाफट बिटिया को नहलाने और सामान समेटने का काम शुरू किया.बिटिया को खिलाने के बाद मैं निश्चिंत हुई,और रास्ते के लिए दूध थर्मस में पैक कराया . 10.15 पर हमने होटल को बाय किया ,पर निकलते ही मोड़ पर पुलिस ने रोक लिया ...क्यों....?रास्ता -एकतरफा /oneway था... तो उसने हमें घूम कर जाने की सलाह डी..हालांकि वहां पर कोई बोर्ड नही था. सड़क कल रात को जितनी सुगम लगी आज भीड़ ने हमारा रास्ता थोडा मुश्किल कर दिया,खैर ज्यादा संघर्ष नहीं करना पड़ा और हम 10.30 पर वापस बाइपास पर थे ....तो आज 4 मार्च का हमारा सफ़र शुरू हो चूका था.... ये कैसा रहा....अगली कड़ी में पढ़िए :)
तो इलाहाबाद से निकलकर गंगा पुल पार करते हुए हम फाफामऊ पहुंचे .तब तक रोड की ज्ञात स्थिति और बदहाल ट्रैफिक ने हमारा सारा उत्साह ठंडा कर दिया था. प्रतापगढ़ पहुँचते पहुँचते ही हमें दोपहर के 12 बज चुके थे. हमने इलाहाबाद से चलते वक़्त यह तय किया था की 12-1 के आस पास हम फ़ैजाबाद में होंगे तो बिटिया और स्वयं के खाने का कार्यक्रम यू. पी. पर्यटन विभाग के होटल में होगा ,जो की रास्ते में ही पड़ता. पर खस्ताहाल सडकों ने हमारे पूरे प्लान पर पानी फेर दिया :( , सच कहूं तो मुझे लगभग 13 साल पहले की मध्यप्रदेश के कांग्रेस शासनकाल की सड़कें याद आ गईं, जब सड़के सड़क ना होकर "जल संग्रहण की सामूहिक टंकी" नज़र आती थी. इस फेर में फंस कर बिटिया भूखी ही गोद में सो गई . जैसे तैसे सड़कों से संघर्ष करते हमारी गाड़ी दोपहर 2.15 पर राजा राम की नगरी अयोध्या / फ़ैजाबाद पहुंची ,हमने राहत की साँस ली और पूर्व निर्धारित होटल में पहुंचकर खाने का आर्डर दिया ,तब तक मैंने बिटिया को " खिचड़ी " खिलने की कसरत शुरू की, पर ये क्या ....उसने अपने शास्त्रीय संगीत ( रोने ) से पूरा होटल गूंजा दिया . डांट -डर -मान मनौअल कुछ काम नही आया ,उसको नहीं खाना था तो नहीं खाई :( , दरअसल वो अपने खाने पीने में समय की काफी पाबंद है ;और आज तो लगभग 2-3 घंटे की देर हो चुकी थी. होटल में खाने का आर्डर काफी देर से पूरा हुआ ;वो भी अधूरा .बेहद व्यस्ततम और शायद लोकप्रिय होटल लगा. खाने का स्वाद अच्छा था ,पर मेरे गले से निवाला नही उतर रहा था ,बिटिया के भूखे रहने का दुःख और उसके असहयोग ने मुझे काफी खीज दिला दी थी. जैसे तैसे थोडा बहुत खाकर हमने सफ़र में आगे की ओर रुख किया . बिटिया के खाने की वैकल्पिक व्यवस्था के तौर पर हम पिछली सीट पर शिफ्ट हुए और उसे उसके पसंदीदा लेज के चिप्स पकडाए ,पर आज वो विद्रोह में उतारू थी. ना मतलब ना हुआ ... मेरा पारा सातवें आसमान में था...और मैंने ऐलान किया की अब इसे लेकर किसी भी लम्बे सफ़र पर नहीं जाऊंगी (इस सफ़र में यह जुमला पतिदेव को कई बार सुनने को मिला :p ) .
आख़िरकार मैंने हथियार डाल दिए और उसे कुछ भी खिलाने की कोशिश बंद कर चुपचाप बैठ गई.थोड़ी देर तो बिटिया ने मोबाइल पर अपनी " राइम" देख कर मन बहलाया फिर उसने मेरी चुप्पी को नोटिस किया ,मुझे मानाने के प्रयास में कई बार अपने गाल पर मेरा हाँथ लगाने की कोशिश की और मैंने छुड़ा लिया. असफल होते ही उसने रोकर ब्रम्हास्त्र चलाया और हम ढेर. खैर इस पूरी जद्दोजहद के बाद उसने दूध टोस्ट ( रोज की निर्धारित मात्रा से कुछ ज्यादा ) आराम से खा लिया ,शायद उसे मुझे पर दया आ गई थी :D.
फ़ैजाबाद से आगे पवित्र सरयू नदी पार की, जो ब्राह्मणों में विशेष विभाजन या सरयूपारीय विभाग के उद्गम के लिए प्रमुख कारण बनी थी.इसके बाद बस्ती ,गोरखपुर ,कुशीनगर शहरों को बाइपास से ही हाय- बाय किया, पर पिक्चर अभी बाकी है......इन सब शहरों की बाइपास सुविधा से बचा वक़्त गोपालगंज ( यू. पी. - बिहार बॉर्डर ) ने डकार लिया...लगभग 20 किलोमीटर का ये रास्ता दुर्दान्त साबित हुआ . ढलता हुआ सूरज भी अनजाने रास्तों में एक मुसीबत ही लगता है..क्योंकि गाड़ी चलने वाले के लिए- द्रश्यता सीमा /visibility बहुत कम हो जाती है . इस दौरान ये समझ आ गया की आज के निर्धारित गंतव्य तक पहुंचना असंभव है . शाम गहराते हुए रात में बदलने लगी ,मेरे सर पर फिर बिटिया के खाने की चिंता सवार होने लगी. सुबह ना सही ,रात को तो उसका पसंदीदा खाना सही समय पर मिलना चाहिए . इसी दौरान पतिदेव ने डीज़ल लेते वक़्त फ्यूल स्टेशन के कर्मचारियों से नजदीक में होटल की सुविधा के बारे में जानकारी ली,पता चला चकिया नाम की जगह में खाने और रुकने की व्यवस्था हो जाएगी.
थोडा तसल्ली हुई पर ज्यादा देर मैं खुश ना रह सकी .चकिया के होटल पहुँचते ही सबसे पहले मैंने बिटिया की आटा मैगी घर से लाए गए भगौने में पानी डालकर पकाने के लिए होटल की रसोई में पतिदेव के हाथ पहुंचवाया . उसके बाद कमरा देखने की बारी आई..... उफ़ ये क्या !!!!!!!!!!!!!!!!! यहाँ तो मैं अपनी बेटी को पैर भी ना रखने दूं ;कहकर मैं सीधे गाड़ी में आकर बैठ गई..बेहद तंग गलियारे से निकलने के बाद वो कमरा तो हवाप्रद लगा पर साफ सफाई का आलम देख कर मेरी नाक सिकुड़ चुकी थी. तब तक पतिदेव तैयार मैगी लेकर आए... ओह... ये क्या लगा की अपना सर पकड़ कर रो लूं.. तेज़ आंच में पकाई हुई कड़ी कड़ी मैगी ..बिटिया को नहीं खाना था..तो वो नहीं खाई.अब मेरा गुस्सा दुःख और करुणा में बदल चूका था . हमारे सफ़र में हमारी संतुष्टि में बिटिया तकलीफ झेले,इससे बुरा कुछ ना था . :'(
आख़िरकार पतिदेव और हमने बाकी खाने का आर्डर कैंसिल कर फटाफट कार रास्ते में आगे बढाई . आगे हम कहाँ जाने वाले थे यह समय ही निश्चित करने वाला था .रात का 8 बज चूका था और हमने रुख किया मुजफ्फरपुर की ओर . अपनी बिटिया को लेकर मैं चिंतित थी और पतिदेव हम दोनों को लेकर. रास्ते में होलिका दहन के पूर्व के कार्यक्रम चल रहे the. एक थ्री व्हीलर में पटिये बिहारी गाने पर नाचती हुई बिहार की"टिपिकल नचनिया " और नीचे मस्ती कर रहे होलियारों ने हमारी कल्पना को रंग दे दिया . उस टेंशन के समय में भी इस दृश्य ने मेरे और पतिदेव के होंठों पर मुस्कान ला दी. थोड़ी आगे बढ़े तो एक बारात ...वाह जी वाह ..घोड़े, हांथी ,ऊँट से सजी बारात ,बैंड में -"आज मेरे यार की शादी है " गा ता हुआ एक गायक ...ऐसा लगा की कोई शाही बारात है ,पूछने पर पता चला की नहीं ये आम आदमी (केजरीवाल की पार्टी वाला नही ) की ही बारात है. खैर हमारे सफ़र का तनाव कुछ कम हो चूका था. हाँ इस दौरान हम इन पलों को कैमरे में नही कैद कर पाए ...क्योंकि बिटिया हमारी गोद में पॉवर नैप ले रही थी..और वकील साहब मतलब पतिदेव गाड़ी ड्राइव कर रहे थे .
रात करीब 10.15 पर हमने मुजफ्फरपुर बाइपास पर गाड़ी रोकी ,और पतिदेव ने उतर कर होटल के बारे में पता किया . एक सज्जन ने बताया की "गोलाम्भर " के पास पूछने से आपको सही जानकारी मिल जाएगी . चौराहे के लिए ये स्थानीय शब्द हमें बहुत भाया ,पूरे सफ़र में अक्सर हम इसे प्रयोग करते रहे . होटल ढूँढने के प्रयास में एक कूल dude टाइप के बन्दे ने पतिदेव को "इमली चट्टी " नाम की जगह बताई ,जहाँ पहुँचते ही हमारी आज की यात्रा को विराम मिला ..लगभग एक साल पहले खुले एक होटल पर हमारी सहमती बनी ,कमरे में पहुँचते ही बिटिया की ख़ुशी ने हमारी सारी थकान उतार दी बेहद साफ-सुथरा ,अत्याधुनिक सज्जा और सुविधाओं से सज्जित उस हालनुमा कमरे में बिटिया ने दौड़ भाग कर हमें निश्चिंत कर दिया. मैंने फटाफट उस कड़ी मैगी को इलेक्ट्रिक केटल (ये भी घर से ही ले जाई गई थी )में मक्खन और पानी दल कर उबाल दिलाई और फटाफट बिटिया को खिलाया .खुद भी खाने का आर्डर दे नेट सर्फिंग करने लग गए. लगभग 11 .30 पर खाना ख़त्म कर आरामदायक और साफ़ बिस्तर की गोद में समा गए...हाँ सोने से पहले पतिदेव ने हिदायत दी की कल कोई जल्दी नही करना और बिटिया को खाना खिला कर ही सफ़र पर निकलेंगे . पूरे दिन की दिमागी और शारीरिक थकान के कारण बिटिया को सुलाने बाद नींद ने मुझे कब आगोश में लिया पता ही ना चला ...दुसरे दिन सुबह सीधे 6.30 पर ही नींद खुली . बिटिया गहरी नींद में सोई हुई थी..अरे हाँ ये तो बताना भूल ही गई की यहाँ पर मच्छरों की फौज इतनी ज्यादा है की अगर आपने सिर्फ एक आल आउट या मोर्टिन लगाया तो शायद आप पूरी रात कव्वाली ही गाएँगे :) आज भी वही दैनिक क्रम....निपटते हुए बिटिया जाग गई थी...लगभग सवा आठ पर. हमने खुद के लिए आलू पराठे और बिटिया के लिए सादा दाल चावल आर्डर कर फटाफट बिटिया को नहलाने और सामान समेटने का काम शुरू किया.बिटिया को खिलाने के बाद मैं निश्चिंत हुई,और रास्ते के लिए दूध थर्मस में पैक कराया . 10.15 पर हमने होटल को बाय किया ,पर निकलते ही मोड़ पर पुलिस ने रोक लिया ...क्यों....?रास्ता -एकतरफा /oneway था... तो उसने हमें घूम कर जाने की सलाह डी..हालांकि वहां पर कोई बोर्ड नही था. सड़क कल रात को जितनी सुगम लगी आज भीड़ ने हमारा रास्ता थोडा मुश्किल कर दिया,खैर ज्यादा संघर्ष नहीं करना पड़ा और हम 10.30 पर वापस बाइपास पर थे ....तो आज 4 मार्च का हमारा सफ़र शुरू हो चूका था.... ये कैसा रहा....अगली कड़ी में पढ़िए :)
शानदार सवारी ...जानदार सवारी ................बिहार में :) |
क्षेत्रीयता का असर- डाईभर्सन :) |
गोपालगंज में सड़क की स्थिति |
गोपालगंज में सड़क की स्थिति |
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