आज दिनांक 4 मार्च सुबह साढ़े 10 बजे हम फिर आगे के सफ़र के लिए मुजफ्फरपुर से निकल कर हाईवे पर थे.दरभंगा पार करने के बाद कोसी का महासेतु दिखाई दिया ,इसकी सेतु की लम्बाई लगभग 2 किलोमीटर थी..वहीँ सड़क से सामानांतर चले हुए इसके तटबंध ने लगभग 10 किलोमीटर तक हमारा साथ निभाया. इसे देखते ही ये अंदाजा तो हो ही गया की क्यों इस नदी को बिहार का शोक माना गया है??????.वाकई प्रकृति के तत्व अगर संतुलित हों तो जीवनदायी अन्यथा विनाशकारी हो सकते हैं..और काफी हद तक इन प्राकृतिक त्रासदियों के जिम्मेदार हम ही हैं. इसके बाद फोर्बेसगंज ,पूर्णिया होते हुए दोपहर 2.30 पर दालकोला पहुंचे जहाँ हाइवे पर ही होटल राजदरबार में खाना खाया...अब तो शायद आपको बताने की जरूरत भी नही होगी की खाने का आर्डर देते ही हम बिटिया को दूध- टोस्ट खिलाने में जुट गए . फटाफट खाना खाकर हमने फिर गाड़ी का रुख सिलीगुड़ी की ओर किया जो की आज का हमारा संभावित गंतव्य था.तो किशनगंज होते हुए हम इस्लामपुर पहुंचे ,शहर के अन्दर से गुजरते हुए नए ई -रिक्शे भारी तादात में दिखाई दिए और इनका जुगाड़ मॉडल ;जिसमे पीछे की रिक्शे की जगह ठेलेनुमा गाड़ी जुडी थी ; भी दिखाई दिए...आखिर आवश्यकता अविष्कार की जननी है :) . इस्लामपुर के बाद बागडोगरा ( विमान पत्तन ) पहुंचे. यहाँ तक पहुँचते हुए हमारा 4 लेन हाइवे टूलेन सड़क में बदल चुका था. किन्तु सड़क की स्थिति काफी बेहतर थी..इसलिए कोई समस्या नही महसूस हुई.आगे बढ़ते हुए शाम सुनहरी चूनर बदल कर हल्के स्याह रंग में घुलने लगी...सूरज डूबा ना था..और सड़क के दोनों किनारों पर "टी -प्लांटेशन " बिना चाय पिए ही हममे ताजगी भर रहा था.. गहरी हरी रंग की ये पत्तियां भूपेन हज़ारिका जी के बोल अनायास ही दिमाग के किसी कोने में जीवंत कर रही थीं ..." एक कली दो पत्तियां.... " :) और फिर शाम साढ़े 5 बजे हम सिलीगुड़ी पहुँच चुके थे.यहाँ पर मुख्य सड़क पर ट्रैफिक बहुत ज्यादा था . किन्तु पुलिस मुस्तैदी से इसे नियंत्रित कर रही थी. आगे का सफ़र जारी रख सकते थे पर दिन ढलने के बाद रास्ते की खूबसूरती से अनजान नही रहना चाहते थे ,इसलिए थोड़ी बहुत छान बीन के बाद NH-31 पर ही होटल लेकर ठहरने पर सहमती बनी . और हम लगभग साढ़े 6 बजे होटल अपोलो में थे .
बिटिया के खिलाने -पिलाने की फिर वही कवायद शुरू हुई ,उसे दूध बोर्नविटा पिलाकर हमने भी खाने का आर्डर किया और आज बिटिया के लिए उबले आलू और आटा ज्यादा -मैदा कम वाली मठरी(पूरी के बदले ) मिला कर खाना तैयार किया गया ... रात 12 बजे हम सब नींद के आगोश में जाने की तैय्यारी में थे.
5 मार्च .....सुबह बिटिया ने ही हमको जगाया . फटाफट नित्यकर्म से निपट कर करीब 8.30 पर होटल के डाइनिंग हॉल में नाश्ते के लिए पहुंचे, अन्वेषा (बिटिया ) को हमारे नाश्ते में ना कोई रूचि थी ना ही जरूरत (क्योंकि वो पहले ही अपना दूध-बोर्नविटा पी चुकी थी ).लिफ्ट से इस हॉल तक पहुँचने में उसने पूरे होटल में ये सन्देश दे दिया की कोई बच्चा यहाँ मौजूद है :p ,दरअसल वो लिफ्ट से बहुत ज्यादा डरती है..उसने रो-रोकर अपना डर जाहिर किया. नाश्ता काफी स्वादिष्ट था. और होटल स्टाफ बेहद मिलनसार और नम्र था .हमारे अलावा वहां होटल के अन्य मेहमान भी मौजूद थे, स्टाफ सहित सबने अन्वेषा से दोस्ती करने का प्रयास किया पर शायद बिटिया रानी ने "बेबी डॉल मैं सोने दी " गाना कुछ ज्यादा गंभीरता से ले लिया था ,तो उसने पीतल की दुनिया के सभी रहवासियों को नकार दिया ;) .खैर रूम में वापस आकर हमने परिवार और आत्मीय जनों को होली की अग्रिम शुभकामना देने के लिए फ़ोन किया..क्योंकि आज हम भूटान सीमा में प्रवेश करने वाले थे ,और हमारे मोबाइल का नेटवर्क वहां काम नही करता . आज हम थोड़े सुस्त हुए क्योंकि हमें आज ज्यादा दूरी तय नही करना था . तो बिटिया को नहलाकर दाल -चावल की खिचड़ी खिलाकर पैकिंग पूरी कर हम करीब 10.45 पर भूटान की ओर बढ़े .
सिलीगुड़ी से निकलते ही रास्ता थोडा सकरा महसूस होने लगा .क्योंकि यह वाइल्डलाइफ सेंचुरी से होकर गुजरता है. सड़क के दोनों ओर लगे पेड़ ऐसे लग रहे थे जैसे आसमान को छूने की जिद में हों . हम जल्द ही सिवोक पहुंचे ;ये सिक्किम और बंगाल का बॉर्डर है और यहाँ तीस्ता नदी पर बना पुल आवागमन और सैन्य सुरक्षा के दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है ,इसे कोरोनेशन (coronation ) ब्रिज के नाम भी जाना जाता है. इस पर सेना और BSF की टुकड़ी की मुस्दैत तैनादगी से महसूस हुआ की यह क्षेत्र कितना संवेदनशील है. इस पुल के ठीक पहले काली माता का सिद्ध मंदिर भी है जहाँ श्रृद्धालुओं की काफी भीड़ भी थी. पुल से गुजरते हुए चंचलता के लिए मशहूर तीस्ता नदी की स्थिरता मन को बाँध रही थी....और नज़रों को भी स्थिर कर रही थी वो. सच में चंचलता जब गंभीरता के रूप में बदलती है तो प्रबल सम्मोहक हो जाती है...कुछ ऐसा ही यहाँ महसूस हुआ. इस पूरे क्षेत्र में लाल मुह के बंदरों का काफी जमावड़ा था . सिलीगुड़ी से ही भूटान की काफी गाड़ियाँ (फोर व्हीलर ) दिखाई देने लगती हैं.क्योंकि भूटान का ज्यादातर आयात निर्यात इन्हीं मार्गों पर निर्भर है . ब्रिज पार कर पतिदेव ने गाड़ी रोक कर कुछ तस्वीरें ली और हम आगे बढ़े. दुआर ,बन्निपारा ,हाशिमारा होते हुए जयगाँव पहुंचे . इसी रास्ते में हमें जलदापारा नेशनल पार्क भी पड़ा .पर हमारा उद्देश्य यहाँ रुकने का नही था . हाँ ये जरूर सोचा की बिटिया के बड़े होने के बाद उसे यहाँ जरूर लेकर आएँगे ताकि वो इन्हें समझ और महसूस कर सके . जयगांव भारत की सीमावर्ती शहर है ,इसके बाद ही भूटान की सीमा शुरू होती है . बेहद व्यस्ततम और भीड़ -भाड़ वाले इस शहर की सीमा भूटान के फ़ुएन्त्शोलिन्ग (Phuentsholing) में आकर मिली ,और सच कहूँ तो मैं अवाक रह गई. दो ऐसे शहर जो बस सिर्फ एक भव्य गेट की सीमा से अलग होते हैं इतने अलग कैसे हो सकते हैं!!!!!!!!!!!!!!!!!!
दोपहर 1 .45 पर हमने भूटान सीमा में प्रवेश किया. भूटान के इस शहर में प्रवेश के लिए किसी प्रकार के परमिट या अनुमति की जरूरत नही होती . हमने फ़ुएन्त्शोलिन्ग में रीजनल सिक्योरिटी एंड ट्रांसपोर्ट एथोरिटी के ऑफिस के नजदीक ही एक होटल लिया और सामन रूम में रख कर ऑफिस की ओर दौड़ लगाईं ,क्योंकि आगे जाने के लिए हमारा और गाड़ी का परमिट होना जरूरी था ,उसके बिना हमें आगे के शहरों की सीमा में प्रवेश नही मिलता .और यह काम हम आज ही निपटाना चाहते थे.
पतिदेव ने यहाँ लगने वाले सभी दस्तावेजों और एप्लीकेशन फॉर्म की कई प्रतियाँ सफ़र पर निकलने से पूर्व ही करवा कर एक फाइल तैयार कर ली थी. बिटिया का पासपोर्ट की कॉपी भी रखी थी . लिहजा इस ऑफिस में हमारा काम आसान हो गया . सुयश (पतिदेव) ने हम तीनो का एप्लीकेशन फॉर्म और सभी डॉक्यूमेंट सम्बंधित कर्मचारी को दिए. और लगभग 40-45 मिनट में ऑनलाइन वेरिफिकेशन करके हमारा परमिट दे दिया गया . इस ऑफिस में महिला कर्मचारियों की संख्या अपेक्षाकृत ज्यादा लगी. अपने परंपरागत पहनावे में विनम्रता के साथ साथ काफी कार्यकुशल लगी . साथ ही फैशनेबल भी . एक खास बात यह दिखी की यहाँ काम करने वाला पूरा युवा वर्ग पूरे समय सोशल नेटवर्किंग में सक्रिय था . सेल्फी और वोइस चैट इनके कार्यकुशलता को जरा भी प्रभावित नही कर पा रहे थे . एक और विशेषता ...पान की गिलौरी दबाए प्रौढ़ पुरुष मुझे भारत के सरकारी दफ्तरों के टिपिकल बाबुओं की याद दिला गए :) .
यहाँ से निकलने के बाद हमने कार की परमिट के लिए एडिशनल आर.टी. ओ. के ऑफिस में हाजरी दी. इसके लिए भी अनिवार्य दस्तावेज सुयश ने पहले ही जूटा रखे थे . पर दुर्भाग्यवश हमारे पहुँचने से पहले 3 बजे ही बंद हो चुका था ,जिसकी जानकारी हमें एडिशनल आर.टी. ओ. महोदय ने ही दी . उन्होंने हमारा परिचय लेते हुए काम पूरा ना हों पाने के लिए खेद व्यक्त किया और दुसरे दिन सुबह लगभग 9 बजे आने की सलाह दी .
हम वापस होटल पहुंचे और बिटिया इस दौड़ भाग में काफी थक चुकी थी तो उसे थोड़ी देर के लिए सुला दिया . और पतिदेव कैमरा लेकर थोडा घूमने-फिरने के लिए निकल गए . आज अब हमें सिर्फ आराम ही करना था तो मैंने भी बिटिया के साथ नींद लेने का मन बनाया . हालाँकि की होली (धुरेड़ी ) की पूर्व संध्या थी ,पर सीमावर्ती होने के बावजूद भी यहाँ पर इसका कोई प्रभाव नही दिखा .
हमारे पूर्वानुमान और जानकारी से अलग यहाँ अचानक थोड़ी देर के लिए हमारे मोबाइल को BSNL. का नेटवर्क भी मिला,जिसका फायदा उठा कर हमने घर पर अपनी स्थिति की जानकारी दी .
यहाँ आकर एक और खासियत ने मुझे प्रभावित किया वो है व्यवस्थित ट्रैफिक ने. भूटान की सीमा में आते ही हमने ये बात नोटिस की थी की यहाँ हॉर्न का प्रयोग लगभग ना के ही बराबर होता है..ना तो दूसरी गाड़ियों से आगे निकलने की होड़ थी. बेहद अनुशासित तरीके से गाड़ी चलाई जा रही थी यहाँ. पैदल चलने वालों की सुविधा का भी खास ध्यान और सड़क पार करने में तवज्जो दी जा रही थी. सभ्यता और संस्कृति इन्हें विशेष बना रही थी. हम दोनों ही वहां की शांति और संस्थानों की पारंपरिक सज्जा से काफी प्रभावित हुए. आधुनिक होते हुए भी वो अपनी जड़ों से जुड़े हुए हैं..ये देख कर सुकून भी मिला .
शाम को उठने के बाद मैं अलसाई हुई थी इसलिए बिटिया के साथ रूम में ही रही और पतिदेव ने फिर बाजार की ओर रुख किया . वो जल्द ही वापस आकर होटल के रेस्टोरेंट चले गए. मैंने रूम में ही अपने और बिटिया के लिए खाने का आर्डर किया . और कल सुबह जल्द उठने के लिए आज जल्द ही सोने की कोशिश की .
दुसरे दिन 6 मार्च की सुबह करीब 7.45 पर मैंने सुयश को जगाया .चूँकि टाइम जोन में भूटान हमसे लगभग 1 /2 घंटे आगे है और गाड़ी के परमिट के लिए सुबह 9 बजे ऑफिस में उपस्थित होना था इसलिए सुयश फटाफट तैयार होकर हमें तैयार रहने की हिदायत देकर रीजनल सिक्योरिटी एंड ट्रांसपोर्ट एथोरिटी के ऑफिस चले गए. तब तक हमने भी बिटिया को जगाकर रोज की तरह का उपक्रम दोहराया और उसे खाना खिलाकर तैयार किया . सुबह 10 बजे सुयश कार के परमिट के साथ वापस आ चुके थे .कहना गलत ना होगा की भूटान के सरकारी ऑफिस के कर्मचारियों का रवैय्या हमारे देश के टरकाने /लटकाने के रवैय्ये से उलट चुस्त-दुरुस्त है. परमिट देते वक़्त सम्बंधित अधिकारी महोदय ने सुयश से भारत में गाड़ियों की नंबर प्लेट पैटर्न और विशेष (यूनिफार्म ) पारम्परिक पहनावे और हमारी क्षेत्रीयता के सम्बन्ध में भी बातें की . साथ ही उन्होंने परमिट की प्रतियाँ करवाकर रखने की हिदायत भी दी ,क्योंकि आगे सफ़र में कई चेक- पोस्ट पर इनकी प्रतियाँ जमा करना होगा.
तो आज होली (6 मार्च ) को हमने सुबह 11 बजे होटल को अलविदा किया और अपने मुख्य गंतव्य "थिम्पू " की ओर रुख किया . (क्रमशः )
बिटिया के खिलाने -पिलाने की फिर वही कवायद शुरू हुई ,उसे दूध बोर्नविटा पिलाकर हमने भी खाने का आर्डर किया और आज बिटिया के लिए उबले आलू और आटा ज्यादा -मैदा कम वाली मठरी(पूरी के बदले ) मिला कर खाना तैयार किया गया ... रात 12 बजे हम सब नींद के आगोश में जाने की तैय्यारी में थे.
5 मार्च .....सुबह बिटिया ने ही हमको जगाया . फटाफट नित्यकर्म से निपट कर करीब 8.30 पर होटल के डाइनिंग हॉल में नाश्ते के लिए पहुंचे, अन्वेषा (बिटिया ) को हमारे नाश्ते में ना कोई रूचि थी ना ही जरूरत (क्योंकि वो पहले ही अपना दूध-बोर्नविटा पी चुकी थी ).लिफ्ट से इस हॉल तक पहुँचने में उसने पूरे होटल में ये सन्देश दे दिया की कोई बच्चा यहाँ मौजूद है :p ,दरअसल वो लिफ्ट से बहुत ज्यादा डरती है..उसने रो-रोकर अपना डर जाहिर किया. नाश्ता काफी स्वादिष्ट था. और होटल स्टाफ बेहद मिलनसार और नम्र था .हमारे अलावा वहां होटल के अन्य मेहमान भी मौजूद थे, स्टाफ सहित सबने अन्वेषा से दोस्ती करने का प्रयास किया पर शायद बिटिया रानी ने "बेबी डॉल मैं सोने दी " गाना कुछ ज्यादा गंभीरता से ले लिया था ,तो उसने पीतल की दुनिया के सभी रहवासियों को नकार दिया ;) .खैर रूम में वापस आकर हमने परिवार और आत्मीय जनों को होली की अग्रिम शुभकामना देने के लिए फ़ोन किया..क्योंकि आज हम भूटान सीमा में प्रवेश करने वाले थे ,और हमारे मोबाइल का नेटवर्क वहां काम नही करता . आज हम थोड़े सुस्त हुए क्योंकि हमें आज ज्यादा दूरी तय नही करना था . तो बिटिया को नहलाकर दाल -चावल की खिचड़ी खिलाकर पैकिंग पूरी कर हम करीब 10.45 पर भूटान की ओर बढ़े .
सिलीगुड़ी से निकलते ही रास्ता थोडा सकरा महसूस होने लगा .क्योंकि यह वाइल्डलाइफ सेंचुरी से होकर गुजरता है. सड़क के दोनों ओर लगे पेड़ ऐसे लग रहे थे जैसे आसमान को छूने की जिद में हों . हम जल्द ही सिवोक पहुंचे ;ये सिक्किम और बंगाल का बॉर्डर है और यहाँ तीस्ता नदी पर बना पुल आवागमन और सैन्य सुरक्षा के दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है ,इसे कोरोनेशन (coronation ) ब्रिज के नाम भी जाना जाता है. इस पर सेना और BSF की टुकड़ी की मुस्दैत तैनादगी से महसूस हुआ की यह क्षेत्र कितना संवेदनशील है. इस पुल के ठीक पहले काली माता का सिद्ध मंदिर भी है जहाँ श्रृद्धालुओं की काफी भीड़ भी थी. पुल से गुजरते हुए चंचलता के लिए मशहूर तीस्ता नदी की स्थिरता मन को बाँध रही थी....और नज़रों को भी स्थिर कर रही थी वो. सच में चंचलता जब गंभीरता के रूप में बदलती है तो प्रबल सम्मोहक हो जाती है...कुछ ऐसा ही यहाँ महसूस हुआ. इस पूरे क्षेत्र में लाल मुह के बंदरों का काफी जमावड़ा था . सिलीगुड़ी से ही भूटान की काफी गाड़ियाँ (फोर व्हीलर ) दिखाई देने लगती हैं.क्योंकि भूटान का ज्यादातर आयात निर्यात इन्हीं मार्गों पर निर्भर है . ब्रिज पार कर पतिदेव ने गाड़ी रोक कर कुछ तस्वीरें ली और हम आगे बढ़े. दुआर ,बन्निपारा ,हाशिमारा होते हुए जयगाँव पहुंचे . इसी रास्ते में हमें जलदापारा नेशनल पार्क भी पड़ा .पर हमारा उद्देश्य यहाँ रुकने का नही था . हाँ ये जरूर सोचा की बिटिया के बड़े होने के बाद उसे यहाँ जरूर लेकर आएँगे ताकि वो इन्हें समझ और महसूस कर सके . जयगांव भारत की सीमावर्ती शहर है ,इसके बाद ही भूटान की सीमा शुरू होती है . बेहद व्यस्ततम और भीड़ -भाड़ वाले इस शहर की सीमा भूटान के फ़ुएन्त्शोलिन्ग (Phuentsholing) में आकर मिली ,और सच कहूँ तो मैं अवाक रह गई. दो ऐसे शहर जो बस सिर्फ एक भव्य गेट की सीमा से अलग होते हैं इतने अलग कैसे हो सकते हैं!!!!!!!!!!!!!!!!!!
दोपहर 1 .45 पर हमने भूटान सीमा में प्रवेश किया. भूटान के इस शहर में प्रवेश के लिए किसी प्रकार के परमिट या अनुमति की जरूरत नही होती . हमने फ़ुएन्त्शोलिन्ग में रीजनल सिक्योरिटी एंड ट्रांसपोर्ट एथोरिटी के ऑफिस के नजदीक ही एक होटल लिया और सामन रूम में रख कर ऑफिस की ओर दौड़ लगाईं ,क्योंकि आगे जाने के लिए हमारा और गाड़ी का परमिट होना जरूरी था ,उसके बिना हमें आगे के शहरों की सीमा में प्रवेश नही मिलता .और यह काम हम आज ही निपटाना चाहते थे.
पतिदेव ने यहाँ लगने वाले सभी दस्तावेजों और एप्लीकेशन फॉर्म की कई प्रतियाँ सफ़र पर निकलने से पूर्व ही करवा कर एक फाइल तैयार कर ली थी. बिटिया का पासपोर्ट की कॉपी भी रखी थी . लिहजा इस ऑफिस में हमारा काम आसान हो गया . सुयश (पतिदेव) ने हम तीनो का एप्लीकेशन फॉर्म और सभी डॉक्यूमेंट सम्बंधित कर्मचारी को दिए. और लगभग 40-45 मिनट में ऑनलाइन वेरिफिकेशन करके हमारा परमिट दे दिया गया . इस ऑफिस में महिला कर्मचारियों की संख्या अपेक्षाकृत ज्यादा लगी. अपने परंपरागत पहनावे में विनम्रता के साथ साथ काफी कार्यकुशल लगी . साथ ही फैशनेबल भी . एक खास बात यह दिखी की यहाँ काम करने वाला पूरा युवा वर्ग पूरे समय सोशल नेटवर्किंग में सक्रिय था . सेल्फी और वोइस चैट इनके कार्यकुशलता को जरा भी प्रभावित नही कर पा रहे थे . एक और विशेषता ...पान की गिलौरी दबाए प्रौढ़ पुरुष मुझे भारत के सरकारी दफ्तरों के टिपिकल बाबुओं की याद दिला गए :) .
यहाँ से निकलने के बाद हमने कार की परमिट के लिए एडिशनल आर.टी. ओ. के ऑफिस में हाजरी दी. इसके लिए भी अनिवार्य दस्तावेज सुयश ने पहले ही जूटा रखे थे . पर दुर्भाग्यवश हमारे पहुँचने से पहले 3 बजे ही बंद हो चुका था ,जिसकी जानकारी हमें एडिशनल आर.टी. ओ. महोदय ने ही दी . उन्होंने हमारा परिचय लेते हुए काम पूरा ना हों पाने के लिए खेद व्यक्त किया और दुसरे दिन सुबह लगभग 9 बजे आने की सलाह दी .
हम वापस होटल पहुंचे और बिटिया इस दौड़ भाग में काफी थक चुकी थी तो उसे थोड़ी देर के लिए सुला दिया . और पतिदेव कैमरा लेकर थोडा घूमने-फिरने के लिए निकल गए . आज अब हमें सिर्फ आराम ही करना था तो मैंने भी बिटिया के साथ नींद लेने का मन बनाया . हालाँकि की होली (धुरेड़ी ) की पूर्व संध्या थी ,पर सीमावर्ती होने के बावजूद भी यहाँ पर इसका कोई प्रभाव नही दिखा .
हमारे पूर्वानुमान और जानकारी से अलग यहाँ अचानक थोड़ी देर के लिए हमारे मोबाइल को BSNL. का नेटवर्क भी मिला,जिसका फायदा उठा कर हमने घर पर अपनी स्थिति की जानकारी दी .
यहाँ आकर एक और खासियत ने मुझे प्रभावित किया वो है व्यवस्थित ट्रैफिक ने. भूटान की सीमा में आते ही हमने ये बात नोटिस की थी की यहाँ हॉर्न का प्रयोग लगभग ना के ही बराबर होता है..ना तो दूसरी गाड़ियों से आगे निकलने की होड़ थी. बेहद अनुशासित तरीके से गाड़ी चलाई जा रही थी यहाँ. पैदल चलने वालों की सुविधा का भी खास ध्यान और सड़क पार करने में तवज्जो दी जा रही थी. सभ्यता और संस्कृति इन्हें विशेष बना रही थी. हम दोनों ही वहां की शांति और संस्थानों की पारंपरिक सज्जा से काफी प्रभावित हुए. आधुनिक होते हुए भी वो अपनी जड़ों से जुड़े हुए हैं..ये देख कर सुकून भी मिला .
शाम को उठने के बाद मैं अलसाई हुई थी इसलिए बिटिया के साथ रूम में ही रही और पतिदेव ने फिर बाजार की ओर रुख किया . वो जल्द ही वापस आकर होटल के रेस्टोरेंट चले गए. मैंने रूम में ही अपने और बिटिया के लिए खाने का आर्डर किया . और कल सुबह जल्द उठने के लिए आज जल्द ही सोने की कोशिश की .
दुसरे दिन 6 मार्च की सुबह करीब 7.45 पर मैंने सुयश को जगाया .चूँकि टाइम जोन में भूटान हमसे लगभग 1 /2 घंटे आगे है और गाड़ी के परमिट के लिए सुबह 9 बजे ऑफिस में उपस्थित होना था इसलिए सुयश फटाफट तैयार होकर हमें तैयार रहने की हिदायत देकर रीजनल सिक्योरिटी एंड ट्रांसपोर्ट एथोरिटी के ऑफिस चले गए. तब तक हमने भी बिटिया को जगाकर रोज की तरह का उपक्रम दोहराया और उसे खाना खिलाकर तैयार किया . सुबह 10 बजे सुयश कार के परमिट के साथ वापस आ चुके थे .कहना गलत ना होगा की भूटान के सरकारी ऑफिस के कर्मचारियों का रवैय्या हमारे देश के टरकाने /लटकाने के रवैय्ये से उलट चुस्त-दुरुस्त है. परमिट देते वक़्त सम्बंधित अधिकारी महोदय ने सुयश से भारत में गाड़ियों की नंबर प्लेट पैटर्न और विशेष (यूनिफार्म ) पारम्परिक पहनावे और हमारी क्षेत्रीयता के सम्बन्ध में भी बातें की . साथ ही उन्होंने परमिट की प्रतियाँ करवाकर रखने की हिदायत भी दी ,क्योंकि आगे सफ़र में कई चेक- पोस्ट पर इनकी प्रतियाँ जमा करना होगा.
तो आज होली (6 मार्च ) को हमने सुबह 11 बजे होटल को अलविदा किया और अपने मुख्य गंतव्य "थिम्पू " की ओर रुख किया . (क्रमशः )
कोरोनेशन ब्रिज , सिवोक |
नेशनल पार्क स्वागत गेट |
रॉयल किंगडम ऑफ़ भूटान ,प्रवेश द्वार ,फ़ुएन्त्शोलिन्ग |
भूटान प्रवेश द्वार पूर्व दन्तक का स्वागत बोर्ड |
जलदापारा नेशनल पार्क मुख्य गेट . |
4 टिप्पणियां:
आपके शब्दों ने कल्पना के चलचित्र दिखाए। वकील साहब की योजना बद्ध यात्रा की तैयारी काबिल -ए - तारीफ़ है। ............
khoob se bhi khoobTar .. gehan chintan aur swaDhye se juDa hua Sansmraan { वाकई प्रकृति के तत्व अगर संतुलित हों तो जीवनदायी अन्यथा विनाशकारी हो सकते हैं..और काफी हद तक इन प्राकृतिक त्रासदियों के जिम्मेदार हम ही हैं.}
हार्दिक धन्यवाद.. यह सफ़र को सुविधाजनक बनाने का उनका एक प्रयास था . और हमारा प्रयास यही रहता है की मेरे शब्दों के सहारे पाठक खुद की कल्पनाओं को चित्रांकित कर सकें
साधुवाद भाई ...प्राकृतिक असंतुलन के भीषण परिणाम नित नए रूप में हमारे सामने आ रहे हैं.उसके लिए अब महज चिंतन से काम नही चलेगा.. नियंत्रण और आत्म अनुशासन के साथ उचित प्रयास करने पड़ेंगे.
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