लीजिये 2 मार्च आ पहुंचा.यात्रा के उत्साह और डर और कुछ चिंताओं ने पूरी रात मेरी आँखों से नींद उड़ा रखी थी . हम दोनों ने तय किया था की प्रातः यथासंभव जल्द निकलने की कोशिश की जाएगी..जैसे ही घडी ने 5.30 बजाए मैंने बिस्तर को अलविदा कहा और नित्य कर्म के बाद सुबह 7 बजे तक पूजा सहित घर के अन्य काम निपटा लिए.पतिदेव तब तक सामान की अंतिम पैकिंग का जायजा लेकर सामान हमारी कार में जमा चुके थे. थोडा बहुत सामान अभी भी बाकी था क्योंकि बिटिया रानी ने उस दिन जोरदार नींद लेने का मन बना लिया था.सामान्यत : वो मेरे बिस्तर छोड़ने के 15 -20 मिनट ही उठ जाती है..किन्तु पतिदेव की हिदायत थी की उसे बिलकुल परेशान ना किया जाए .पर मेरा सब्र जवाब दे गया और साढ़े आठ बजे मैंने उसे उठा दिया .बोर्नविटा -दूध पिला कर उसे नहला कर तैयार कर दिया .खाने के मामले में अभी वो थोड़ी choosy ( नकचढ़ी :p ) है ,इसलिए उसके लिए सुबह ही मैंने खिचड़ी बना कर केसरोल में रख लिया था ताकि उसके निर्धारित समय पर उसे खिलाया जा सके .कुछ छोटे किन्तु आवश्यक सामान हेंडी बैग में रख ; घर पर ससुर जी के लिए आवश्यक व्यवस्थाएं कर और अपनी पड़ोस में रहने वाली आंटी को घर की एक एक्स्ट्रा चाबी पकड़ा कर अंततः 10 बजे हमने गंतव्य की ओर प्रस्थान किया. अन्वेषा के दद्दू (दादा जी ) ने उत्साह किन्तु अनवू को इतने दिन के लिए खुद से दूर होने पर दुखी होकर हमें विदा किया .
हमारा यात्रा की दिशा कटनी -रीवा -इलाहाबाद की ओर थी.12 बजे के आस पास कटनी बाई पास पर थे , भूख ने अभी लाल झंडी नही दी थी और बिटिया भी गोद में आराम से नींद ले रही थी तो हमने भोजन के लिए मैहर(माँ शारदा का भव्य -सिद्ध मंदिर ) का इंतज़ार किया , दोपहर एक के बाद मैहर फ्लाईओवर पर करते ही एक फैमिली रेस्टोरेंट पर हमने खाने का आर्डर किया और मैंने उसी दौरान बिटिया को खाना खिलाने की कसरत की :D , खाना खाने के बाद जल्द ही हमने रीवा की ओर रुख किया .3 बजे हमने रीवा बाईपास पर गाड़ी रोककर पिछली सीट का सामान आगे की सीट पर रख बिटिया का बिस्तर लगाया और उसके खिलौने भी निकाल कर हम दोनों शिफ्ट हो गए. इस पूरे सफ़र में मोबाइल ने हमारा बड़ा साथ दिया ,क्योंकि बिटिया उसमे अपनी राइम देखने में व्यस्त हो जाती तो चलती गाड़ी में खड़े होना और मचलना जैसे कई खतरनाक स्टंट भूल जाती :) . वैसे वो मेरी गोद में 8 से 10 घंटे तक आराम से बैठ कर सफ़र करती है..पर बच्चे को बांध कर रखना उस पर एक अन्याय ही है.
रीवा से इलाहाबाद रोड पर कुछ आगे बढ़ते ही हमारी "स्मूथ राइड " में एक बड़ा सा स्पीड ब्रेकर लगा . मनगवां पार करते ही चाक घाट के काफी पहले ट्रक ,बस और गाड़ियों की कतार दिखाई दी .धीरे धीरे आगे सरकता हुआ कारवां अचानक एक जगह पर रुक गया .काफी देर खड़े रहने के बाद एक स्थानीय ग्रामीण ने बताया की कल से जाम लगा है ,एक भी ट्रक या बस नही बढ़ सके ,आगे रस्ते में एक ट्रक के फंसने के कारन ये समस्या उत्पन्न हुई. दरअसल रीवा - इलाहाबाद रोड पर फोरलेन का काम चल रहा है,जिसके कारण किनारों पर पड़ी मिटटी पर पिछली रात को हुई बारिश के चलते ट्रक फंस गया . बाकी के भारी वाहन उस मिटटी में अपने वाहन उतारकर नयी मुसीबत मोल नहीं लेना चाहते थे . उनके लिए जाम साफ़ होने का इंतज़ार करने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नही था..
ये सब सुन कर मैंने फिर भाग्य को दोष देना शुरू कर दिया. जब आपके साथ बच्चे होते हैं तो उनकी सुविधा का ख्याल आते ही छोटी -साधारण समस्या भी विकराल लगती है....और यहाँ पर तो कई किलोमीटर का जाम था .जहाँ तक नज़रें जा रही थी सिर्फ और सिर्फ ट्रक बसों की कतार . मेरा दिल चिंता से बैठा जा रहा था.दिन डूबने के साथ समस्या और बढ़ जाती ,क्योंकि तब हमनें आस पास की सड़क की वास्तविक स्थिति का अनुमान लेना और मुश्किल होता . तभी किसी ने पतिदेव को कहा किनारे से निकल रही टैक्सी और लोकल गाड़ियों के साथ आगे बढ़े ,पतिदेव ने गाड़ी से उतर कर कुछ दूर तक जाकर स्थिति का जायजा लिया और धीरे धीरे जगह बनाती हुई लोकल टैक्सी का अनुसरण कर कुछ अन्दर के गाँव से होते हुए रास्तों पर चलते हुए जाम के लगभग दुसरे सिरे पर निकले . इस दौरान जाम में फंसे हुए ट्रक वालों और स्थानीय लोगों ने निजी वाहनों और टैक्सी के लिए जगह बनाने में पूरा सहयोग दिया. इन् गाँवों से सूरज की रोशनी में ही गुजरना ठीक था ,क्योंकि प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना ने इन्हें सुगम तो बना दिया था किन्तु दिशा सूचक ,निर्देशों और सामान्य सुविधाओं का नितांत अभाव था.....
खैर दुसरे सिरे पर निकलने के बाद भी इस छोर के जाम से हम लगभग सरकते हुए बाहर निकले . गाड़ी की अत्यन्त धीमी गति होने के कारण मैंने बिटिया को निर्धारित समय कार की पिछली सीट पर दूध और टोस्ट (घर से ही चूरा कर एक बड़े डिब्बे में रखा गया ) खिला दिया ;और कुछ समय के लिए निश्चिंत हुई... जैसे ही हम जाम से बाहर आए हमने मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद दिया ,और प्रशासन को इस अव्यवस्था के लिए जी भर कर कोसा . क्योंकि उस जाम में कई वहां पिछले दिन से यथास्थिति में फंसे थे. चाक घाट पार करते ही हमने चैन की सांस ली और पतिदेव ने गाड़ी की स्पीड थोड़ी बढाई.सामान्यत : वो दिन ढलने के बाद गाड़ी चलाना पसंद नहीं करते .किन्तु सुविधासंपन्न स्थान तक पहुंचना भी अनिवार्य था. इस जाम की खबर इलाहाबाद के भी निजी वहां यात्रियों को लग चुकी थी ,बीच रास्ते में एक सज्जन ने गाड़ी रोककर हमसे स्थिति का जायजा लिया,हमने उनके साथ महिलाओं और बच्चों को देखकर वही किसी अच्छे होटल में रुकने की सलाह डी..किन्तु उनका जवाब आया की आप लोग निकल आए ना....हम भी निकल जाएँगे :O , वो अपने पैरों में कुल्हाड़ी मारने को तैयार थे ,क्योंकि जिन आंतरिक मार्गों से हम सूरज की रोशनी में होकर आए थे ,अँधेरे में वो किसी भूल भुलैय्या से कम ना थे .खैर सलाह हमारा काम था...अमल करना ना करना उनका विवेक . हम अपने आज के अंतिम गंतव्य इलाहाबाद की ओर बढ़े .रात्रि 8 बजे हम वहां पहुँच गए .सौभाग्य से गंगा नदी पर बने हन्डाई पुल पर कोई जाम नही मिला (वर्ष २०११ में आगरा भ्रमण के लिए जाने के दौरान इस पुल पर हम घंटों जाम में फंसे रहे ). कार का रुख सिविल लाइन एरिया की ओर किया और वहां पर पूर्वनिर्धारित होटलों को पतिदेव ने संपर्क किया , हमारी प्राथमिकता का होटल खली नही मिला .अन्य विकल्प में से हमने एक होटल चुना और वहां ठहरे .क्योंकि बिटिया भी थक चुकी थी और उसके भोजन का समय भी हो चूका था. होटल चेक इन करते ही उसका दूध -बोर्नविटा पिलाया और घर से ले जय गई इलेक्ट्रिक केटल में आटा नूडल बना कर उसे खिलाया . रात साढ़े 10 बजे हमने भी खाने का आर्डर कर खाना खाया और दुसरे दिन जल्दी उठने की कोशिश में 12 बजे खुद को बिस्तर पर ढेर कर दिया. नींद अच्छी नही रही पर शरीर कुछ स्वस्थ महसूस हुआ. अगली सुबह 6.30 पर पतिदेव और मैं उठ गए . होटल के माहौल और कई अपरिचित चेहरों को देख कर रात को बिटिया का रोना गाना उसे थका गया था ,इसलिए वो अभी नींद में थी. हमारे नित्यकर्म से निवृत होते ही वो भी उठ गई हमने चाय -दूध और बिटिया को रास्ते में खिलाने के लिए खिचड़ी का आर्डर देकर सभी तैयार हुए .बिटिया को नहला कर तैयार करने में लगभग 10 बज गए ,और फिर हमने इलाहाबाद को विदा डी और चल पड़े आज 3 मार्च ;के अपने सफ़र पर ... (क्रमश :)
रीवा -इलाहाबाद जाम के दौरान लिया गया आंतरिक सड़क मार्ग
हमारा यात्रा की दिशा कटनी -रीवा -इलाहाबाद की ओर थी.12 बजे के आस पास कटनी बाई पास पर थे , भूख ने अभी लाल झंडी नही दी थी और बिटिया भी गोद में आराम से नींद ले रही थी तो हमने भोजन के लिए मैहर(माँ शारदा का भव्य -सिद्ध मंदिर ) का इंतज़ार किया , दोपहर एक के बाद मैहर फ्लाईओवर पर करते ही एक फैमिली रेस्टोरेंट पर हमने खाने का आर्डर किया और मैंने उसी दौरान बिटिया को खाना खिलाने की कसरत की :D , खाना खाने के बाद जल्द ही हमने रीवा की ओर रुख किया .3 बजे हमने रीवा बाईपास पर गाड़ी रोककर पिछली सीट का सामान आगे की सीट पर रख बिटिया का बिस्तर लगाया और उसके खिलौने भी निकाल कर हम दोनों शिफ्ट हो गए. इस पूरे सफ़र में मोबाइल ने हमारा बड़ा साथ दिया ,क्योंकि बिटिया उसमे अपनी राइम देखने में व्यस्त हो जाती तो चलती गाड़ी में खड़े होना और मचलना जैसे कई खतरनाक स्टंट भूल जाती :) . वैसे वो मेरी गोद में 8 से 10 घंटे तक आराम से बैठ कर सफ़र करती है..पर बच्चे को बांध कर रखना उस पर एक अन्याय ही है.
रीवा से इलाहाबाद रोड पर कुछ आगे बढ़ते ही हमारी "स्मूथ राइड " में एक बड़ा सा स्पीड ब्रेकर लगा . मनगवां पार करते ही चाक घाट के काफी पहले ट्रक ,बस और गाड़ियों की कतार दिखाई दी .धीरे धीरे आगे सरकता हुआ कारवां अचानक एक जगह पर रुक गया .काफी देर खड़े रहने के बाद एक स्थानीय ग्रामीण ने बताया की कल से जाम लगा है ,एक भी ट्रक या बस नही बढ़ सके ,आगे रस्ते में एक ट्रक के फंसने के कारन ये समस्या उत्पन्न हुई. दरअसल रीवा - इलाहाबाद रोड पर फोरलेन का काम चल रहा है,जिसके कारण किनारों पर पड़ी मिटटी पर पिछली रात को हुई बारिश के चलते ट्रक फंस गया . बाकी के भारी वाहन उस मिटटी में अपने वाहन उतारकर नयी मुसीबत मोल नहीं लेना चाहते थे . उनके लिए जाम साफ़ होने का इंतज़ार करने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नही था..
ये सब सुन कर मैंने फिर भाग्य को दोष देना शुरू कर दिया. जब आपके साथ बच्चे होते हैं तो उनकी सुविधा का ख्याल आते ही छोटी -साधारण समस्या भी विकराल लगती है....और यहाँ पर तो कई किलोमीटर का जाम था .जहाँ तक नज़रें जा रही थी सिर्फ और सिर्फ ट्रक बसों की कतार . मेरा दिल चिंता से बैठा जा रहा था.दिन डूबने के साथ समस्या और बढ़ जाती ,क्योंकि तब हमनें आस पास की सड़क की वास्तविक स्थिति का अनुमान लेना और मुश्किल होता . तभी किसी ने पतिदेव को कहा किनारे से निकल रही टैक्सी और लोकल गाड़ियों के साथ आगे बढ़े ,पतिदेव ने गाड़ी से उतर कर कुछ दूर तक जाकर स्थिति का जायजा लिया और धीरे धीरे जगह बनाती हुई लोकल टैक्सी का अनुसरण कर कुछ अन्दर के गाँव से होते हुए रास्तों पर चलते हुए जाम के लगभग दुसरे सिरे पर निकले . इस दौरान जाम में फंसे हुए ट्रक वालों और स्थानीय लोगों ने निजी वाहनों और टैक्सी के लिए जगह बनाने में पूरा सहयोग दिया. इन् गाँवों से सूरज की रोशनी में ही गुजरना ठीक था ,क्योंकि प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना ने इन्हें सुगम तो बना दिया था किन्तु दिशा सूचक ,निर्देशों और सामान्य सुविधाओं का नितांत अभाव था.....
खैर दुसरे सिरे पर निकलने के बाद भी इस छोर के जाम से हम लगभग सरकते हुए बाहर निकले . गाड़ी की अत्यन्त धीमी गति होने के कारण मैंने बिटिया को निर्धारित समय कार की पिछली सीट पर दूध और टोस्ट (घर से ही चूरा कर एक बड़े डिब्बे में रखा गया ) खिला दिया ;और कुछ समय के लिए निश्चिंत हुई... जैसे ही हम जाम से बाहर आए हमने मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद दिया ,और प्रशासन को इस अव्यवस्था के लिए जी भर कर कोसा . क्योंकि उस जाम में कई वहां पिछले दिन से यथास्थिति में फंसे थे. चाक घाट पार करते ही हमने चैन की सांस ली और पतिदेव ने गाड़ी की स्पीड थोड़ी बढाई.सामान्यत : वो दिन ढलने के बाद गाड़ी चलाना पसंद नहीं करते .किन्तु सुविधासंपन्न स्थान तक पहुंचना भी अनिवार्य था. इस जाम की खबर इलाहाबाद के भी निजी वहां यात्रियों को लग चुकी थी ,बीच रास्ते में एक सज्जन ने गाड़ी रोककर हमसे स्थिति का जायजा लिया,हमने उनके साथ महिलाओं और बच्चों को देखकर वही किसी अच्छे होटल में रुकने की सलाह डी..किन्तु उनका जवाब आया की आप लोग निकल आए ना....हम भी निकल जाएँगे :O , वो अपने पैरों में कुल्हाड़ी मारने को तैयार थे ,क्योंकि जिन आंतरिक मार्गों से हम सूरज की रोशनी में होकर आए थे ,अँधेरे में वो किसी भूल भुलैय्या से कम ना थे .खैर सलाह हमारा काम था...अमल करना ना करना उनका विवेक . हम अपने आज के अंतिम गंतव्य इलाहाबाद की ओर बढ़े .रात्रि 8 बजे हम वहां पहुँच गए .सौभाग्य से गंगा नदी पर बने हन्डाई पुल पर कोई जाम नही मिला (वर्ष २०११ में आगरा भ्रमण के लिए जाने के दौरान इस पुल पर हम घंटों जाम में फंसे रहे ). कार का रुख सिविल लाइन एरिया की ओर किया और वहां पर पूर्वनिर्धारित होटलों को पतिदेव ने संपर्क किया , हमारी प्राथमिकता का होटल खली नही मिला .अन्य विकल्प में से हमने एक होटल चुना और वहां ठहरे .क्योंकि बिटिया भी थक चुकी थी और उसके भोजन का समय भी हो चूका था. होटल चेक इन करते ही उसका दूध -बोर्नविटा पिलाया और घर से ले जय गई इलेक्ट्रिक केटल में आटा नूडल बना कर उसे खिलाया . रात साढ़े 10 बजे हमने भी खाने का आर्डर कर खाना खाया और दुसरे दिन जल्दी उठने की कोशिश में 12 बजे खुद को बिस्तर पर ढेर कर दिया. नींद अच्छी नही रही पर शरीर कुछ स्वस्थ महसूस हुआ. अगली सुबह 6.30 पर पतिदेव और मैं उठ गए . होटल के माहौल और कई अपरिचित चेहरों को देख कर रात को बिटिया का रोना गाना उसे थका गया था ,इसलिए वो अभी नींद में थी. हमारे नित्यकर्म से निवृत होते ही वो भी उठ गई हमने चाय -दूध और बिटिया को रास्ते में खिलाने के लिए खिचड़ी का आर्डर देकर सभी तैयार हुए .बिटिया को नहला कर तैयार करने में लगभग 10 बज गए ,और फिर हमने इलाहाबाद को विदा डी और चल पड़े आज 3 मार्च ;के अपने सफ़र पर ... (क्रमश :)
रीवा -इलाहाबाद रोड पर जाम का एक दृश्य |
रीवा -इलाहाबाद रोड पर जाम का एक दृश्य (हमारे सीमित नज़रिए से ) |
जाम में वाहनों की कतार के बीच से निकलती छोटी -निजी गाड़ियाँ |
2 टिप्पणियां:
Superb mam. Padhte hue aisa lag rha k ham b usi road pe safar kr rae hai. Aur last wali tasveer ne mere gaav ki yaad dila di. (Main Rewa se hu na :P)
Agli kadi k injaar me.
हम सबमे कहीं ना कहीं एक गाँव अब भी जीवित है ,जो हमको जड़ों से जोड़ता है.वैसे हम भी रिमहा ही है :)
अगले दिन का सफ़र ....जल्द ही जारी होगा ..
एक टिप्पणी भेजें