अंतिम सत्य
जिंदगी के बाजार में बैठे हैं...
मौत का सामान सजा कर ...
ये पहली बार ही था ...(?)
जब मुफ्त का सामां उठाया न गया ....
सच को टालना ..मुमकिन न था
मोल लेना भी ...तो मुश्किल न था
तब भी हमने भ्रम को गहराया..
सत्य पर डाला असत्य का साया...
दिवा स्वप्न से यथार्थ को भुलाया ..
अंतिम सत्य ..... हमने झुठलाया.. ..
पर जिंदगी ने ... क्या कभी मौत को झुठलाया ....?
पर जिंदगी ने ... क्या कभी मौत को झुठलाया ....?
जिंदगी के बाजार में बैठे हैं...
मौत का सामान सजा कर ...
ये पहली बार ही था ...(?)
जब मुफ्त का सामां उठाया न गया ....
सच को टालना ..मुमकिन न था
मोल लेना भी ...तो मुश्किल न था
तब भी हमने भ्रम को गहराया..
सत्य पर डाला असत्य का साया...
दिवा स्वप्न से यथार्थ को भुलाया ..
अंतिम सत्य ..... हमने झुठलाया.. ..
पर जिंदगी ने ... क्या कभी मौत को झुठलाया ....?
पर जिंदगी ने ... क्या कभी मौत को झुठलाया ....?
1 टिप्पणी:
मृत्यु क्या जीवन से कम है ?
जीवन मृत्यु दोनों सम हैं
इन प्रश्नो का हल तू दे दे
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