( चित्र:- गूगल से साभार )
वह भी हर सुबह जल्दी उठती, दैनिक नित्य कर्म पूरा करती और स्कूल की ड्रेस पहन कर, टिफिन चेक कर बैग में रखती। पूजा घर में भगवान में प्रणाम कर बोलती हे भगवान मुझे बुद्धि देना ,अगर उसके टेस्ट या एग्जाम होते तो उस दिन का सब्जेक्ट बोलकर कहती मेरा एग्जाम अच्छा कराना। कायदे से तो उसे शक्ति मांगना चाहिए ,हर दिन उपेक्षा और अपने लिए तिरस्कृत भाव का सामने करने के लिए।
उसके बाद ..... फिर हंसते हुए आँखों में उम्मीद लिए घर से निकलती बिलकुल ठीक वैसे ही जैसे बाकी बच्चे। लेकिन स्कूल की दहलीज़ पर कदम रखते ही उसकी दुनिया थोड़ी अलग हो जाती है।
कक्षा में जब टीचर कुछ पूछते हैं, तो उसकी ओर कम ही निगाहें उठती हैं। उत्तर मालूम होने पर भी जब तक वह बोलने की कोशिश करती है, कोई और उत्तर दे चुका होता है। उसकी धीमी प्रतिक्रिया को अक्सर असमर्थता मान लिया जाता है। कुछ टीचर मुस्कुराकर देख लेते हैं, पर कुछ बिना प्रतिक्रिया आगे बढ़ जाते हैं ,मानो वह वहाँ है ही नहीं।
खेल के मैदान में उसकी जगह अक्सर किनारे होती है। जब टीमें बनती हैं, तो उसका नाम सबसे अंत में लिया जाता है या बिल्कुल नहीं। जहां बाकी नामों को अपनी अपनी टीम में लेने की होड़ होती ,तो उसका नाम ऐसा रह जाता जो कोई अपने पक्ष में नहीं चाहता । कुछ बच्चे उसकी ओर देखकर हँसते हैं, कुछ बस उपेक्षा से नज़र फेर लेते हैं।
फिर भी वह हर दिन खुद को साबित करने की कोशिश करती है। उसकी कॉपी साफ होती है, चित्रों में उसका बचपना झलकता है, और जब उसे बोलने का मौका मिलता है, तो उसकी आँखों में एक अलग ही चमक दिखती है।जो कि किसी का उसके लिए विश्वास का प्रतिबिंब होता है।
कभी-कभी कोई एक सहेली मिल जाता है जो उसकी बातों को सुनता है, जो उसे उसके अपने तरीके से सिखाने की कोशिश करता है। ऐसे क्षण उसके लिए अनमोल होते हैं। लेकिन वे क्षण दुर्लभ होते हैं और उंगलियों में गिने जाने लायक.....बहुत कम।
अपेक्षाएँ पूरी नहीं होतीं।जब किसी सहपाठी की तारीफ उसके सामने होती, जब किसी और को पुरस्कार मिलते हैं,किसी और के लिए तालियां बजती हैं , वह खुशी से ताली बजाती है। ईर्ष्या का लेश मात्र भी अंश उसमें नहीं होता, वह सबकी सफलताओं पर खुश होना जानती है। उसे कभी किसी से शिकायत नहीं होती। न कभी किसी के लिए ग़ुस्सा, न कोई रोष, न कोई कटुता, बस एक शांत स्वीकृति और अगली कोशिश की तैयारी।
उसे पता है कि वह अलग है, पर यह नहीं जानती कि इस "अलग" होने के कारण ही लोगों की उपेक्षा और उपहास का कारण बनती है। वह खुद के अलग होने को कमजोरी नहीं मानती ,ना बनने देना चाहती। वह हार नहीं मानना चाहती। हर दिन एक नई उम्मीद के साथ फिर खड़ी होती है क्लास में उत्तर देने के लिए, खेल में भाग लेने के लिए, सहेलियों द्वारा खुद को चुने जाने के लिए और सबसे बढ़कर "खुद के होने की स्वीकृति" पाने के लिए।
उसका संघर्ष हर दिन चलता है, समझे जाने के लिए, अपनाए जाने के लिए, खुद को सिद्ध करने के लिए। और फिर भी, उसके भीतर कोई नकारात्मकता नहीं।वह सिर्फ एक मुस्कान के बदले असीम स्नेह देने का मन रखती है।एक बार हांथ बढ़ाने पर अपने मन का सबसे कोमल स्थान देती है।सिर्फ नजर मिलाने पर निश्छल मुस्कान सौंपती है क्योंकि उसका मन निर्मल है, कोमल है ,एक पारदर्शी काँच की तरह।किसी के नकारात्मक व्यवहार का बदला भी वो अपने मासूम से सकारात्मक व्यवहार से देगी। यही उसकी सबसे बड़ी विशेषता है, और शायद यही उसकी सबसे बड़ी कमजोरी भी।
उसका हर दिन संघर्ष है, एक मौन और गहरी दृढ़ता के साथ। हर दिन आंख खुलने से लेकर बंद होने तक एक ऐसी कई परीक्षाएं , जो अंकसूची नहीं बल्कि लोगों के व्यवहार में परिणाम देती है।जिसमें वह कई बार अनुत्तीर्ण होने को भी स्वीकार लेती ,एक बार उत्तीर्ण होने की चाह में।
#ब्रह्मनाद
#डॉ_मधूलिका मिश्रा त्रिपाठी