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गुरुवार, 9 मार्च 2023

मैं वैदेही

 



मेरे अवतारी ईश्वर को समर्पित- 


सुनो मेरे मनुज तन देव् अवतारी,

यदि तुमने निश्चित किया मेरा ,

परित्याग अपरिहारी,

तो रचना होगा ,

मुझे वैदेही सा विधान ,

तुम्हारे समर्पण को देने ,

राम की मर्यादा सा प्रतिमान।।


तो सुनो मैं करती स्वाहुत यज्ञ का आह्वान ,

अपनी अभिलाषाओं का करती हूँ ,देहावसान।

त्याग कर समस्त रक्त औ विधिक सम्बन्धों का,

लेकर तुम्हारे निर्णय की समिधा का दान ।।


तब होएंगी ,कुछ निश्चित आहुतियां,

सम सम भाव कुछ तय आवृतियाँ,

तब यम को मिलेगा प्रथम दान,

हृदय स्पंदन की आहुति ,हो निष्प्राण।

दूजा मिलेगा अग्नि को स्थान,

जब तन होगा चिता पर विराजमान ,

अंतिम भाव मिलेगा जल को ,

भस्मीभूत जब अस्तित्व अवसान ।


तब तुम करना ,मेरा भावों से तर्पण,

स्मृति पिंड से करना ,पिंडदान।

मोक्ष नही मुझ दासी की कामना,

पिय संग हृदय रहे बस मेरी वांछना ,

तब होउंगी ,मैं सकल तुम्हारी,

देह से अलग ,समष्टि विस्तारी।


मैं तुममे होऊं ; तुम्हारी समभाग ,

होगा पुरुष तन ,एक स्त्री का भान ,

मैं  होऊं अद्वैत  का सूक्ष्म परिमाण,

तुम स्थूल के रहोगे अपरिमित मान,


हाँ मैं वैदेही सा प्रारब्ध रचूंगी,

"विदेह" हो तुम्हारी देह बसूंगी,

"विदेह" हो तुम्हारी देह बसूंगी।


✍️ डॉ मधूलिका मिश्रा त्रिपाठी

#ब्रह्मनाद 

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