यूँ तो जीवन और मृत्यु का ये पथ अनंत होता है। और हर किसी का पथ और उसका अंतिम मुकाम निर्धारित होता है। मैं भी अनंत काल के इस जन्म मृत्यु के क्रम की यात्रा में हूँ। ये यात्रा मेरे लिए सामान्य समतल पथ की गाथा नहीं है ,इस यात्रा में मैं अंतहीन अंधेरों के कई वर्तुल,तीक्ष्ण मोड़ वाले वृत्ताकार पथ पर तुम्हारे एक ऊदीप्त प्रकाश पुंज से पहचान पाकर ; तुम तक पहुंचने की राह तय कर रही हूँ।
केंद्र सदा तुम ही रहे.......जब चली थी ;तब भी , जब खत्म होउंगी; तब भी...अनन्तकाल से मैं तुमसे निकलकर ,तुम तक आने की यात्रा करती हूँ।
जब - जब तुमसे इस पथ पर दूरियां बढ़ी ,मेरा एहसास शीत के प्रभाव में सर्द होता गया, तुम्हारे नजदीक आने की निश्चित आवृतियों के दौरान मैं ऊर्जामयी हो उठती। ।मैं अपनी गति के साथ भी तुम्हारे सापेक्ष स्थिर ही रहती। ये मेरा भ्रम था कि नियति की मैं लगातार गति करती रही ,तुम तक आने के प्रयास में, पर एक निश्चित तयशुदा स्थिति से....मुझमें उद्विग्नता नहीं। डरती हूँ,मेरी तेज़ गति कहीं मुझे तुम्हारे ऊष्मीय एहसासों की परिधि से ही ना दूर कर दे। इसलिए कभी सीमा अतिक्रमण का साहस भी ना कर पाई।
मेरा तो यूँ भी मुझमे कुछ नहीं है। मेरा प्राकट्य तुम्हारे ही वैचारिक संलयन के प्रकाश में सम्भव होता। मेरा हर परिवर्तन तुम्हारे ही प्रभाव से होता। मैं खुद के केंद्र में भी सदा तुम्हें ही पाती, और मेरे आस पास के संसार का केंद्र भी तुम्ही होते।
कई बार इस परिधीय मार्ग में यह महसूस होता कि मैं तुम्हारे पूर्व से पश्चिम में आकर अस्त हो रही,किन्तु अगले ही क्षण, समय की न्यूनतम इकाई की चंचलता और तत्परता से तुम मेरे दूसरे आयाम को पुनः पूर्व बना जाते हो। पश्चिम में डूबती मैं फिर से प्रकाशवान होकर पूर्व की परिकल्पना में जीवित हो उठती।
जानती हूँ ,इस अनंत विस्तार में कोटि -कोटि जैविक पिंडों के बीच तुमने मुझे चुना वरना मेरा सामर्थ्य तो एक टूटे सितारे का भी नहीं था। कहा जाता है कि भक्त अपनी प्रकृति अनुसार भगवान चुनता। पर मेरी क्या बिसात जो मैं स्वयं की प्रकृति अनुसार तुम्हें गढूं, तुम्हें चुनूँ!!!!!! तुमने मुझे चुन कर मुझे देवत्व दे दिया।
अब बस मैं अपना अंत चाहती हूँ, तुममे उसी तरह समा कर जैसे जल के दो अणुओं में कोई भेद न मिल पाता। बिल्कुल वैसे जैसे स्थूलता सूक्ष्म रूप से मिलकर अपरिमित हो जाती। बिल्कुल वैसे जैसे जीवन के बाद आत्मा और परमात्मा में कोई अंतर ना होता।तब तक करती रहूंगी इस तय परिधि पर ,निश्चित नियति की यात्रा....जिसका आदि भी तुम थे ,अंत भी तुम होंगे.......... अंतिम सत्य भी और अनन्तिम भी।
तुम्हारी मीरा ।
#डॉ_मधूलिका
#ब्रह्मनाद