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गुरुवार, 7 अप्रैल 2022

ब्रह्मचर्य : #एक_वैचारिक_विश्लेषण

 #ब्रह्मचर्य : #एक_वैचारिक_विश्लेषण


नवरात्र का द्वितीय दिन ,माता ब्रह्चारिणी का है। मुख्यतः ध्वनित शब्द है #ब्रम्हचर्य । वास्तव में ब्रम्हचर्य क्या है ,इसको लेकर हम तरह तरह के विचार रखते। खासकर देह से जुड़े नियम ।

#ब्रह्म जो सृष्टि की शुरुआत करते ,जो कण कण  में व्याप्त हैं। मतलब भौतिक में व्याप्त ,वो  ब्रह्म है। तो जो निर्वात है ,वहाँ क्या है , कौन है??? दो भौतिक अणुओं के मध्य रिक्तता में क्या ,क्या वो वाकई रिक्त है??? जो उसके मध्य बसता वो #शिव है। 


सम्भवतः हम ब्रह्मचर्य का अर्थ काम  सम्बंधित क्रियाओं पर नियंत्रण से या उन्हें  सीमा में बांध लेना समझते। पर क्या ब्रह्मचर्य का अर्थ इतना संकुचित हो सकता है...!!!!  जो स्त्री की योनि ,और पुरुष के लिंग की प्राकृतिक क्रियाओं के नियंत्रण से समझा जा सके। 


 ब्रह्म का मतलब है ,"सृष्टि "....।सामान्यतः  ब्रह्म और शिव को हम धार्मिक शब्दावली से जोड़ कर देखते हैं। किंतु ये सिर्फ हमारी भाषायी बाध्यता है। जो मानसिकता को शिव / ब्रह्म होने से रोकती है। दरअसल शिव वो जो #अजन्मा है । और जो अजन्मा है ;उसकी मृत्यु भी नहीं होना। जो अरचित है, असीमित है, आयाम रहित है । तो ब्रह्मचर्य का मतलब सीमित भौतिक परिमाणों से परे हो जाना । सृष्टि में शिव हो जाना। 

सृष्टि में जो रिक्तता वही शिव है,और वही आत्मनियंत्रण का स्रोत और निरन्तरता का कारण भी है। 

प्रसंगवश आपको बताते हैं ब्रह्मचर्य को सामान्य तरीके से समझने के लिए एक घटना-

पर्वतराज की पुत्री पार्वती ने जब शिव का मानसिक वरण किया तो विवाह हेतु उन्हें पाने के लिए तप करना शुरू किया। शिव को साधन नही मोह सकते थे तो राजकुमारी ने राजसी वैभव ,वस्त्र ,आभूषणों,व्यंजनों  का त्याग कर तप करना शुरू किया। पहले देह को पत्तियों से ढकना शुरू किया और 2 पत्ती भोजन के रूप में ग्रहण की। तब उन्हें पुकारा गया #द्विपर्णा ।

महादेव नहीं मिले .......।

अब उन्होंने 1 पत्ती से तन ढकना और 1 का भोजन लिया ,वो #एकपर्णा हुईं। शिव नहीं आए........।

अंत मे देह की सुध त्यागकर ,1 पत्ती का भोजन भी छोड़ दिया, लोक आचरण ,मान , प्रश्न की सीमाओं से परे, अपेक्षाओं से ऊपर उठीं, लौकिक रूप में अलौकिक हो गईं....तब #अपर्णा को #शिव की प्राप्ति   हुई। शिव की शक्ति हुई,ब्रह्मचर्य से गृहस्थ का पालन किया। यही था *ब्रह्मचर्य* जब सारे भौतिक आचरण की सीमाओं का त्याग हुआ ,वो शिव हो  गईं। 


**ब्रह्मचर्य** का वास्तविक अर्थ है ,चक्रीय गतियों और संसार के परे हो जाना। भौतिक मान्यताओं से #निरपेक्ष , #मानसिक_वेदना का भाव ना हो, #आकारिकी के असामान्य बातें आपको असहज ना कर सकें, जब कोई सांसारिक भाव आपको अपने भौतिक प्रभाव में न ले सके। 


आप सीमित नहीं, #असीमित हो जाएं। वर्जनाओं से मानसिक #अप्रभावी हों । जब आप #अनन्त, #आयामरहित ,#अपरिमित ,#अतुल्य,#अहर्निश गतिकारी, #अनिमेष किन्तु वैयक्तिक मुक्त ,#अनिकेत किन्तु औदार्य प्रश्रय युक्त हो तो आप शिव होंगे ... वही वास्तविक ब्रह्मचर्य होगा. ...... आत्मानुशासन .... आत्मनियमन ,आत्मनियंत्रण ।

2 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

kya bat hai

Yogesh Jangir ने कहा…

😊😊💐