दिनांक 7 मार्च सुबह दैनिक क्रम से निवृत होकर हम खाना खाने की तैय्यारी में थे . बिटिया के लिए खाना जुटाना यहाँ सबसे दुष्कर काम था. सुयश ने किसी होटल से सुबह सुबह दाल -चावल की व्यवस्था की ,पर पहाड़ों पर दाल गलना आसान नहीं होता और फिर बच्चे को वो खिलाना भी कम कठिन ना था :p .सारे कठिन कामों को अंजाम देकर हम सुबह 10.30 बजे दोचुला ( दोछुला ) पास के लिए निकल चुके थे. रूट चार्ट साथ में होते हुए भी मुख्य मार्ग ढूंढना मुश्किल ही लगा .शहर के अन्दर से कई मार्ग भटकाव वाले थे .अंततः एक सज्जन जिन्हें अंग्रेजी आती थी;ने सही रास्ता बताया और जल्द ही हम अपनी मंजिल की ओर थे .ये पास थिम्पू से पुनाखा के रास्ते में स्थित है ,पहुँच मार्ग में सिम्तोका मुख्य स्थान है , यही पर एक पुलिस चौकी भी है. चूँकि हमने सिर्फ थिम्पू के लिए परमिट लिया था इसलिए यहाँ पर रुक कर अपने सभी कागजात /परमिट सिक्युरिटी के तौर पर जमा कराना पड़ा. सफ़र सिर्फ 27 किलोमीटर का था ,पर सर्पिलाकार मार्ग इसे थोडा लम्बा महसूस कराता है. पर उबाऊ कतई नही. रास्ते में छुपा छुपी खेलते से बर्फ के पहाड़ बरबस ही अपनी ओर ध्यान खीच लेते हैं. 1 घंटे बाद हम दोछुला पास में थे . बिलकुल निर्जन एकांत .....ऐसा की खुद की सांसों की आवाज़ भी सुन सकें. पर प्राकृतिक सौन्दर्य अतुलनीय सम्मोहक था . इस जगह से मौसम साफ़ होने पर 360 डिग्री में हिमालय पर्वत श्रृंखला का भव्य नज़ारा दिखता है ,साथ ही यहाँ पर 108 स्तूप नुमा संरचनाएं एक घेरे के अन्दर बनी हुई हैं ये Druk Wangyal Chortens कहलाती हैं , ये राजशाही और जांबाज़ सैनिको की याद में बने पवित्र स्थल के रूप में मान्य है .इसका स्वरुप प्रकृति के मूल तत्वों को प्रदर्शित करता है.
खैर हमारा भाग्य उस दिन साथ ना था और इस जगह पर बादलों ने डेरा डाला हुआ था ,जिस वजह से 360 डिग्री का सम्मोहक नज़ारा देखने से हम वंचित रह गए :( ,इसके बावजूद इस जगह की शांति और सुरम्यता ने हमारे मन को बाँध सा लिया था. वहां से हटने के लिए खुद को मज़बूत करना पड़ा. एक और बात तो हम बताना ही भूल गए की अब इस जगह में पेट-पूजा के लिए एक कैफेटेरिया भी खोल दिया गया है. निर्जन -शांत -सम्मोहक और भूख का इन्तेजाम ...वाकई स्वर्ग यही था :D .
खैर कुछ देर ठहरने के बाद हमने वापस थिम्पू की ओर रुख किया , क्योंकि आज हमको बुद्धा व्यू पॉइंट भी जाना था . लौटते वक़्त अपेक्षकृत गति तेज़ थी. पुलिस चौकी से अपने मुख्य मूल कागजात ले हम थिम्पू पहुंचे.
बुद्धा व्यू पॉइंट का रास्ता शहर के भीतर से ही था...सौभाग्य से एक सज्जन मिले जो की टीचर थे और उनका स्कूल उसी रास्ते पर था जहाँ से हमें बुद्धा व्यू पॉइंट के लिए मुख्य मार्ग लेना था. उन्होंने हमें उस जगह तक पहुँचाया जहाँ से बिलकुल सीधा मार्ग था. जल्द ही हम मंजिल के पास थे . दूर से ही स्वर्णिम आभा युक्त भगवान् बुद्ध की विशाल प्रतिमा अपनी ओर ध्यान केन्द्रित कर रही थी. थिम्पू पहुँच मार्ग और शहर से भी कई जगहों से ये विशाल प्रतिमा दिखाई देती है. चारों ओर सघन वन क्षेत्र और उनके बीच वो प्रतिमा ,,,ऐसा लगा जैसे सम्पूर्ण प्रकृति ही शांति की गोद में समाधी लेने को अग्रसर है. बुद्ध के सानिध्य में शांति की समाधी ......
इस जगह पर आकर तो उत्साह दोगुना हो गया ,,,बिटिया तो जैसे अपने उत्साह की पराकास्ठा पर थी...बुद्ध प्रतिमा के सामने विशाल समतल ....एक ओर हिमाच्छादित उत्तंग पर्वत माला दूसरी ओर सघन वन... और हिमकण समाहित हवाएं तो मानो जैसे आपको खुद की सवारी कराने की जिद में हों...महसूस हुआ की प्राकृतिक तत्वों के उन्मुक्त रूप के प्रतिरोध की क्षमता व्यक्ति मात्र की हो ही नही सकती...आत्मा तक को ठंडा करने की क्षमा वाली तीव्र गति की हवाएं ...खुद को एक जगह पर रोक पाना बहुत मुश्किल लगा...और अन्वेषा ...ऐसा लग रहा था की इन सबको अपने हांथों में समेट लेना चाह रही थी...दोनों बाहें और मुंह खोल कर शायद वो प्रकृति की उन्मुक्तता को खुद में भर लेना चाह रही थी....इस ठण्ड से बचाने के लिए मैंने उसे अपना जैकेट पहना कर उसके कानों को ढकना चाहा पर वो तो वाकई उड़ना चाह रही थी..अपनी नयी सीमाहीन सखी के साथ :) सूरज बिलकुल सर पर था और बुद्ध प्रतिमा के प्रत्यक्ष दर्शन को असहज बना रहा था ....कुछ यूँ अनुभूति हुई की जैसे भगवन बुद्ध ये बोल रहे हैं की मेरे स्वरुप की आभा को तुम खुली आँखों से सांसारिक चमक में ना महसूस कर पाओगे... आँखें बंद करो....शांत मन से मैं तुम्हें मिलूंगा....दिखूंगा... शायद ये मेरी सोच थी..पर उस सत्ता के प्रभाव को नकारना मेरे बस में ना था...बिटिया को लगभग खीचते हुए , क्योंकि वो उस जगह से वापस आने को तैयार ना थी , हम शहर की ओर रवाना हुए...
बुद्धा व्यू पॉइंट से बिलकुल लगा हुआ नेचर पार्क भी है..पर प्रवेश के लिए निर्धारित समय बीतने के कारण हमें बाहर से ही लौटना पड़ा.
शहर वापस आते ही हमने अपने होटल के सामने ही स्विस बेकरी से वेज बर्गर और सेंडविच लिए....उदरस्थ कर अपने कमरे की ओर चले...अब बिटिया को कुछ खिलाकर कुछ देर आराम करने का समय था...शाम को बाकि जगहों का भी दौरा करना था और कुछ शोपिंग भी :) ...खैर हम जो सोए तो सोते ही रह गए ..और नींद खुली 7 बजे... तब तक पतिदेव कई जगहों का भ्रमण कर वापस आ चुके थे . खैर हम और बिटिया जल्द ही तैयार हुए और बाज़ार की ओर रुख किया... आत्मीयजनो के लिए प्रतीकात्मक तोहफे ले क्राफ्ट बाज़ार देखा...साथ ही विंडो शोपिंग :p ...
यहाँ बाज़ार जल्द ही बंद होता है और ये वक़्त नाईट लाइफ को जीने वाले युवाओं का था..जो सडको पर काफी चहल पहल और रौनक ला रहे थे. लेटेस्ट फैशन से सजे ये युवा किसी बड़े देश के युवाओं से तनिक भी कमतर ना लगे. खैर मुझे यहीं घूम कर समझौता करना पड़ा क्योंकि म्यूजियम और अन्य जगह ऑफिस टाइम के अनुसार ही बंद हो जाते हैं.
हम पास ही एक रेस्टोरेंट में खाना खाए और वापस होटल गए...क्योंकि अगली सुबह पारो होते हुए वापस अपने घर की ओर रुख करना था .पता नहीं क्यों लौटने में उत्साह नही महसूस हो रहा था...हमारे रुकने का वक़्त बीत गया था पर मन थम गया था.... कभी ना रीतने वाली यादें देकर .. (क्रमशः )
खैर हमारा भाग्य उस दिन साथ ना था और इस जगह पर बादलों ने डेरा डाला हुआ था ,जिस वजह से 360 डिग्री का सम्मोहक नज़ारा देखने से हम वंचित रह गए :( ,इसके बावजूद इस जगह की शांति और सुरम्यता ने हमारे मन को बाँध सा लिया था. वहां से हटने के लिए खुद को मज़बूत करना पड़ा. एक और बात तो हम बताना ही भूल गए की अब इस जगह में पेट-पूजा के लिए एक कैफेटेरिया भी खोल दिया गया है. निर्जन -शांत -सम्मोहक और भूख का इन्तेजाम ...वाकई स्वर्ग यही था :D .
खैर कुछ देर ठहरने के बाद हमने वापस थिम्पू की ओर रुख किया , क्योंकि आज हमको बुद्धा व्यू पॉइंट भी जाना था . लौटते वक़्त अपेक्षकृत गति तेज़ थी. पुलिस चौकी से अपने मुख्य मूल कागजात ले हम थिम्पू पहुंचे.
बुद्धा व्यू पॉइंट का रास्ता शहर के भीतर से ही था...सौभाग्य से एक सज्जन मिले जो की टीचर थे और उनका स्कूल उसी रास्ते पर था जहाँ से हमें बुद्धा व्यू पॉइंट के लिए मुख्य मार्ग लेना था. उन्होंने हमें उस जगह तक पहुँचाया जहाँ से बिलकुल सीधा मार्ग था. जल्द ही हम मंजिल के पास थे . दूर से ही स्वर्णिम आभा युक्त भगवान् बुद्ध की विशाल प्रतिमा अपनी ओर ध्यान केन्द्रित कर रही थी. थिम्पू पहुँच मार्ग और शहर से भी कई जगहों से ये विशाल प्रतिमा दिखाई देती है. चारों ओर सघन वन क्षेत्र और उनके बीच वो प्रतिमा ,,,ऐसा लगा जैसे सम्पूर्ण प्रकृति ही शांति की गोद में समाधी लेने को अग्रसर है. बुद्ध के सानिध्य में शांति की समाधी ......
इस जगह पर आकर तो उत्साह दोगुना हो गया ,,,बिटिया तो जैसे अपने उत्साह की पराकास्ठा पर थी...बुद्ध प्रतिमा के सामने विशाल समतल ....एक ओर हिमाच्छादित उत्तंग पर्वत माला दूसरी ओर सघन वन... और हिमकण समाहित हवाएं तो मानो जैसे आपको खुद की सवारी कराने की जिद में हों...महसूस हुआ की प्राकृतिक तत्वों के उन्मुक्त रूप के प्रतिरोध की क्षमता व्यक्ति मात्र की हो ही नही सकती...आत्मा तक को ठंडा करने की क्षमा वाली तीव्र गति की हवाएं ...खुद को एक जगह पर रोक पाना बहुत मुश्किल लगा...और अन्वेषा ...ऐसा लग रहा था की इन सबको अपने हांथों में समेट लेना चाह रही थी...दोनों बाहें और मुंह खोल कर शायद वो प्रकृति की उन्मुक्तता को खुद में भर लेना चाह रही थी....इस ठण्ड से बचाने के लिए मैंने उसे अपना जैकेट पहना कर उसके कानों को ढकना चाहा पर वो तो वाकई उड़ना चाह रही थी..अपनी नयी सीमाहीन सखी के साथ :) सूरज बिलकुल सर पर था और बुद्ध प्रतिमा के प्रत्यक्ष दर्शन को असहज बना रहा था ....कुछ यूँ अनुभूति हुई की जैसे भगवन बुद्ध ये बोल रहे हैं की मेरे स्वरुप की आभा को तुम खुली आँखों से सांसारिक चमक में ना महसूस कर पाओगे... आँखें बंद करो....शांत मन से मैं तुम्हें मिलूंगा....दिखूंगा... शायद ये मेरी सोच थी..पर उस सत्ता के प्रभाव को नकारना मेरे बस में ना था...बिटिया को लगभग खीचते हुए , क्योंकि वो उस जगह से वापस आने को तैयार ना थी , हम शहर की ओर रवाना हुए...
बुद्धा व्यू पॉइंट से बिलकुल लगा हुआ नेचर पार्क भी है..पर प्रवेश के लिए निर्धारित समय बीतने के कारण हमें बाहर से ही लौटना पड़ा.
शहर वापस आते ही हमने अपने होटल के सामने ही स्विस बेकरी से वेज बर्गर और सेंडविच लिए....उदरस्थ कर अपने कमरे की ओर चले...अब बिटिया को कुछ खिलाकर कुछ देर आराम करने का समय था...शाम को बाकि जगहों का भी दौरा करना था और कुछ शोपिंग भी :) ...खैर हम जो सोए तो सोते ही रह गए ..और नींद खुली 7 बजे... तब तक पतिदेव कई जगहों का भ्रमण कर वापस आ चुके थे . खैर हम और बिटिया जल्द ही तैयार हुए और बाज़ार की ओर रुख किया... आत्मीयजनो के लिए प्रतीकात्मक तोहफे ले क्राफ्ट बाज़ार देखा...साथ ही विंडो शोपिंग :p ...
यहाँ बाज़ार जल्द ही बंद होता है और ये वक़्त नाईट लाइफ को जीने वाले युवाओं का था..जो सडको पर काफी चहल पहल और रौनक ला रहे थे. लेटेस्ट फैशन से सजे ये युवा किसी बड़े देश के युवाओं से तनिक भी कमतर ना लगे. खैर मुझे यहीं घूम कर समझौता करना पड़ा क्योंकि म्यूजियम और अन्य जगह ऑफिस टाइम के अनुसार ही बंद हो जाते हैं.
हम पास ही एक रेस्टोरेंट में खाना खाए और वापस होटल गए...क्योंकि अगली सुबह पारो होते हुए वापस अपने घर की ओर रुख करना था .पता नहीं क्यों लौटने में उत्साह नही महसूस हो रहा था...हमारे रुकने का वक़्त बीत गया था पर मन थम गया था.... कभी ना रीतने वाली यादें देकर .. (क्रमशः )
दोछुला पास पर स्थित 108 समाधी |
दोछुला पास -कैफेटेरिया |
दोछुला पास -एक दृश्य |
एक समाधी का नजदीकी दृश्य (chorten) |
दोछुला पास |
दोछुला पास- chortens |
विदेशी सैलानी |
कैफेटेरिआ - दोछुला पास |
दोछुला पास स्वागत द्वार |
दोछुला पास में मंत्रमुग्ध से सुयश |
बुद्धा व्यू पॉइंट का पहुँच मार्ग |
बुद्धा व्यू पॉइंट मार्ग से एक झलक |
बुद्धा व्यू पॉइंट |
बुद्धा व्यू पॉइंट से शहर का नज़ारा |
भगवान् बुद्ध की विशाल प्रतिमा -बुद्धा व्यू पॉइंट |
बुद्ध प्रतिमा |
हिमाच्छादित पर्वत शिखर |
बड़े घेरे में स्थित समाधियाँ -दोछुला पास |
बुद्धा व्यू पॉइंट के नज़दीक स्थित नेचर पार्क -थिम्पू |
बुद्धा पॉइंट पर अन्वेषा और सुयश |
अतिउत्साहित अन्वेषा अपने पापा सुयश की गोद में :) |
8 टिप्पणियां:
बढ़िया संस्मरण :)
Just get it published soon! i m also having d feeling that why it all had to end!
Content quality consistency lane me hame jra kathinaai hoti hai, par bdi shajta se umda likhti ja rahi hai :)
Kafi intjaar k bad pdhne mila, aur tasveeren to mantramugdh kr rai hai :)
हार्दिक आभार :) ख़ुशी हुई आपकी टिप्पड़ी देखकर .
नए अनुभव और फिर उन्हें यादें बनाने का सतत क्रम.....जारी तो रखना होगा ...
आपकी प्रतिक्रिया मुझे ऊर्जा से भर जाती है :)
क्या करूँ अपने शिष्य के मान का ध्यान रखने का भार है ना मेरी कलम को :)
स्नेहिल धन्यवाद :)
शुक्रिया इतने अच्छे सफ़र की यादें बाँटने का
यहाँ की यादें तो हवा की तरह लगती है....जिसकी खुशबू सबको मिलनी चाहिए... सादर आभार :)
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