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सोमवार, 16 मई 2022

#अप्प_दीपो_भव


 

भगवान बुद्ध के अनुसार धम्म यानी धर्म वही है जो सबके लिए ज्ञान के द्वार खोल दे और ज्ञानी वही है जो अपने ज्ञान की रोशनी से सबको रोशन करे। 

जब बुद्ध से उनके  शिष्य आनन्द ने पूछा कि जब  जब आप या कोई आप जैसा पृथ्वी पर नहीं होगा तब हम कैसे अपने जीवन को दिशा दे सकेंगे ....कैसे सत्य की ओर बढ़ेंगे? 


भगवान बुद्ध ने असीम शांति समेटे हुए जवाब दिया – “अप्प दीपो भव” अर्थात अपना दीपक स्वयं बनो खुद भी प्रकाशवान हों और , दूसरों को भी उस प्रकाश में सच दिखाएं। 


परन्तु क्या दीपक बनना सरल  है? स्वयं को हर पल मिटाते हुए अंधेरे से लड़ते रहने को कृतसंकल्पित .....अधिकांशतः  लोग सूरज को नमन करते... परन्तु बिरले होते जो सूरज के सामने भी दीपक जलाकर श्रद्धा दिखाते ।इसलिए नहीं कि सूरज के सामने दिए को कमतर साबित करें....बल्कि इस लिए की दोनों खुद में सुलगते हुए दूसरे को प्रकाशित करते... और दीपक जला कर हम सूर्य और दीप दोनों को यह जताते की सूर्य हमने अंधेरे से लड़ने के लिए तुम तो नहीं पर तुम्हारे प्रेरक भाव से एक दीपक बना लिया ।जब तुम हमारे पक्ष में नहीं होते, यही दीपक हमें सहारा देता अंधेरे के खिलाफ । सूर्य एक ही होता....पर दीपक हर वो इंसान हो सकता जिसने ज्ञान को आत्मसात कर लिया। खुद को स्थिति के अनुसार तान कर ,समस्त अशुद्धताओं से संयत बाती बना लिया।

आत्मा को निचोड़ कर स्व और जन कल्याण के तेल में खुद को भिगो लिया।फिर वो स्थिति और कुप्रथाओं ,से संघर्ष करता । अंधेरे में दृष्टि की जद तक प्रकाश देने की जद्दोजहद में आशाओं को बनाए रखने टिमटिमाता रहता।

झंझावातों में कभी बुझते बुझते और तेज़ी से प्रकाशित होने लगना।वास्तव में ये अब बहुत प्रासंगिक हो रहा।

फेक स्माइल, फ़िल्टर और सेल्फी की दुनिया मे सिमटे लोग अब सिर्फ तस्वीरों में मुस्कुराते दिखते।

उन्हें  सीखना चाहिए इस दिए से वास्तविक संघर्ष । लाख आंधी हों, बारिश हो ,अंधेरा हो,वो स्वयं के प्रकाश को बनाए रखने के लिए संकल्प ले रखता। जब तक सांस है तब तक आस है .....जैसा हर पल खुद के अस्तित्व को बाती की अंतिम बिंदु और तेल की अंतिम बूंद तक पूर्ण करने की जिद......।स्वयं के जीवन में दूसरों को निराशा ,क्षोभ ,स्वप्रवंचना के अंधियारे से बाहर निकालने के लिए तत्पर एक छोटा सा दीपक। जिसे पता वो बस कुछ क्षण ही अपनी महत्ता साबित कर पाएगा...बावजूद उसके वो अपना कर्म नहीं छोड़ता। उसे पता वो जाएगा पर एक नई लौ सौंप कर।याद है ना दीवाली में हम कैसे एक लौ से दूसरे को जलाते ,भले  हवा उन्हें बुझाने की कोशिश करती....एक दीपक दूसरे को प्रकाशित कर जाता।


 इन महान सीखों के बाद तकलीफ इस बात की बचती की सनातनी बुद्ध ने बौद्ध बनाया ,दीपक बनने का संदेश दिया।खुद को माध्यम बनाकर दूसरों के लिए मार्ग प्रकाशित करने का संदेश दिया.... पर उनके अनुयायी ही ये दीपक दूसरों के जीवन ,शान्ति को ध्वस्त करने के उपयोग में ला रहे। सम्प्रदाय का ये जहर क्या रंग लेगा अगर बुद्ध को इसका जरा भी अंदाज़ हुआ होता,तो निश्चित रूप से वो यही कहते कि जो दीपक बन तुम खुद तक ही सीमित रखना। दूसरों को प्रकाशित करना तुम्हारे बस का नहीं,बस खुद के अंधेरे को ही खत्म करने का प्रयास करना।बुद्ध सम्भवतः भूल गए थे....चिराग तले अंधेरा.... वो प्रकाश देकर गए....हमने उसके तले अंधेरा चुना। 

🙏

#डॉ मधूलिका मिश्रा त्रिपाठी

#ब्रह्मनाद

सोमवार, 9 मई 2022

#संस्मरण #किस्सा_नवमीं_के_परीक्षा_परिणाम_का

 #संस्मरण

#किस्सा_नवमीं_के_परीक्षा_परिणाम_का


बात तब की है जब हम 9th का एग्जाम दिए। KG1 से क्लास 8th तक जब जब रिजल्ट आता था हम घोषणा से पहले ही हाँथ में मिठाई का डिब्बा लिए स्कूल पहुंचते थे। पहला स्थान हमारा ही था। 

पर ये साल मेरे लिए कुछ नया लेकर आने वाला था। सुबह सुबह तैयार होकर एक नई ड्रेस पहनी। हालांकि मेरा मानना था वो ड्रेस मेरे लिए मनहूस है,उसमे कभी अच्छी खबर नहीं मिलती थी,पर माता राम ने गुस्से में मुझे वही पहनने को दी। 

खैर हम आनन फानन स्कूल पहुंचे ,उत्साह में लबरेज। सहेलियां ,सीनियर, जूनियर सब पहले ही बधाई देने लगी। मैं भी हांथो में मिठाई का डब्बा लिए उत्साह में उस हॉल में पहुंच गई जहाँ रिजल्ट बताते हैं।

6th क्लास से रिजल्ट की घोषणा शुरू हुई। जैसे ही हमारी क्लास का no आया मैं लगभग उठ के खड़ी ही हो रही थी कि मेरा नाम पुकारा जाएगा। चेहरे पर मुस्कान थी ,और मिठाई के डब्बे की पैकिंग खोल ली थी। और घोषणा हुआ 9th में प्रथम स्थान कीर्ति गुप्ता..द्वितीय पर हमारा नाम था। तीसरे में अपर्णा श्रीवास्तव।

मुझे तो पहले नाम की घोषणा के बाद जैसे सुनाई देना ही बंद हो गया। लगा चक्कर आ जाएगा। मिठाई का डब्बा दुख में नीचे गिर गया। पूरी मिठाई फर्श पर फैल है ,जो स्कूल की आया आंटी जल्द समेटने लगी। 2 सहेलियों ने पकड़ कर स्टेज में पहुंचाया ,और मैं अपनी एक स्नेही मैडम को पकड़ कर जोर जोर से रो रही थी। 

सब मुझे समझाए जा रहे थे कि सिर्फ 1 no का फर्क है।।वो भी प्रेक्टिकल मार्क्स के कारण । इतने दुख की बात नहीं ये। थ्योरी में तुम भी आगे हो। पर मेरे मन मे तो ये ही था कि पहले स्थान पर मेरा नाम ना पुकारा गया। कमज़ोर दिल की होती तो पक्का मुझे हार्ट अटैक ही आना था उस दिन। (जीवन की पहली हार सी महसूस हुई वो) 

     क्लास में 2nd पोजिशन के बावजूद लग रहा था सब मुझ पर हंस रहे हैं। मेरे मज़ाक उड़ा रहे। मैं किसी से आंखें नहीं मिला पा रही थी। चलते चलते एक मैडम जो प्रेक्टिकल इंचार्ज थी उन्होंने कहा ,इस बार मिठाई का डब्बा कहाँ है ,मैंने रोते रोते ही उन्हें  जवाब दिया आपकी चहेती से मंगाइये मैडम जिसने टॉप किया। उन मैडम को मुझसे पता नही क्या खुन्नस थी ,चूंकि मैं 5th तक प्राइवेट स्कूल में पढ़ी थी ,और उन मैडम को लगता था कि ऐसे स्कूल में पढ़े बच्चे घमंडी होते। (हालांकि बाद में मैं उनकी सबसे फेवरेट हो गई थी)।

स्कूल से मेरे घर के बीच मे सिर्फ एक सड़क का फासला था। तब हम किराए के एक घर मे रहते थे। मैं लगभग #दहाड़ें_मारकर रोए जा रही थी। और घर तक उसी स्थिति में पहुंची। नाक से भी रोने के कारण बुलबुले निकल रहे थे,आंखे लाल और सूज गई थी। घर के नीचे जो शॉप्स थी,उनके मालिक जिन्होंने मुझे बचपन से गोद मे खिलाया था ,सब मेरी हालत देखकर डर गए थे ,सब मेरे पीछे पीछे घर आ गए, सब पूछ रहे गुड़िया क्या हुआ और मैं बस ऐसे रोए जा रही जैसे सब बर्बाद हो गया। माँ घर से मेरा रोना सुनकर बदहवास बाहर आई। मेरी स्थिति देखकर सबको लगा मैं शायद #सप्लीमेंट्री या #फेल हुई 🤣🤣🤣

जब असलियत पता चली तो सब ठहाका मार के हंस पड़े। मैं अब भी हिचकी ले लेकर रो रही थी। मेरे एक फेवरेट वाले अंकल ने खुद से सबके लिए मिठाई मंगाई और सबको खिलाया पर मुझे तो वो विष ही लग रही थी। 

अंततः माँ ने समझाया कि अगर इसे असफलता मान रही हो तो समझो कि तुम्हारी मेहनत कम थी। पर चूंकि वो प्रेक्टिकल में आगे गई तो तुम कहीं पीछे नहीं हो। माँ ने उस दिन एक बात और कही की #अपने_दोस्तों_की_सफलता_को_पचाना_सीखो। 


उन लड़कियों का भी सोचो जो हर बार आकर तुम्हें खुशी से बधाई देती हैं। अगर सब तुम्हारे जैसे हो जाएं तो कोई अच्छा दोस्त ही ना रहे । पढ़ाई में प्रतिस्पर्धा अच्छी पर प्रतिद्वंद्विता होना गलत है। तुमने अपनी सहेलियों को भी बधाई नहीं दी होगी। और जीवन मे हमेशा आप सबसे ऊंचे रहो, ये जरूरी नहीं ।इसलिए कभी- कभी कमतरी को भी अपनाना जरूरी। माँ ने काफी देर तक कई पहलू मुझे समझाए। हालांकि इस बात ने मुझे काफी तोड़ दिया था। पर मेरे और बड़े होते तक इस बात को खुद में ढाल चुकी थी,की अपनी सफलता से पहले दूसरों की सफलता की खुशी मन से मानो तभी आप लोगों के लिए अच्छे दोस्त साबित हो सकते। दोस्तों की खुशियां भी अब अपनी महसूस होने लगी। ये मेरी एक असफलता से मिली सीख थी।