भगवान बुद्ध के अनुसार धम्म यानी धर्म वही है जो सबके लिए ज्ञान के द्वार खोल दे और ज्ञानी वही है जो अपने ज्ञान की रोशनी से सबको रोशन करे।
जब बुद्ध से उनके शिष्य आनन्द ने पूछा कि जब जब आप या कोई आप जैसा पृथ्वी पर नहीं होगा तब हम कैसे अपने जीवन को दिशा दे सकेंगे ....कैसे सत्य की ओर बढ़ेंगे?
भगवान बुद्ध ने असीम शांति समेटे हुए जवाब दिया – “अप्प दीपो भव” अर्थात अपना दीपक स्वयं बनो खुद भी प्रकाशवान हों और , दूसरों को भी उस प्रकाश में सच दिखाएं।
परन्तु क्या दीपक बनना सरल है? स्वयं को हर पल मिटाते हुए अंधेरे से लड़ते रहने को कृतसंकल्पित .....अधिकांशतः लोग सूरज को नमन करते... परन्तु बिरले होते जो सूरज के सामने भी दीपक जलाकर श्रद्धा दिखाते ।इसलिए नहीं कि सूरज के सामने दिए को कमतर साबित करें....बल्कि इस लिए की दोनों खुद में सुलगते हुए दूसरे को प्रकाशित करते... और दीपक जला कर हम सूर्य और दीप दोनों को यह जताते की सूर्य हमने अंधेरे से लड़ने के लिए तुम तो नहीं पर तुम्हारे प्रेरक भाव से एक दीपक बना लिया ।जब तुम हमारे पक्ष में नहीं होते, यही दीपक हमें सहारा देता अंधेरे के खिलाफ । सूर्य एक ही होता....पर दीपक हर वो इंसान हो सकता जिसने ज्ञान को आत्मसात कर लिया। खुद को स्थिति के अनुसार तान कर ,समस्त अशुद्धताओं से संयत बाती बना लिया।
आत्मा को निचोड़ कर स्व और जन कल्याण के तेल में खुद को भिगो लिया।फिर वो स्थिति और कुप्रथाओं ,से संघर्ष करता । अंधेरे में दृष्टि की जद तक प्रकाश देने की जद्दोजहद में आशाओं को बनाए रखने टिमटिमाता रहता।
झंझावातों में कभी बुझते बुझते और तेज़ी से प्रकाशित होने लगना।वास्तव में ये अब बहुत प्रासंगिक हो रहा।
फेक स्माइल, फ़िल्टर और सेल्फी की दुनिया मे सिमटे लोग अब सिर्फ तस्वीरों में मुस्कुराते दिखते।
उन्हें सीखना चाहिए इस दिए से वास्तविक संघर्ष । लाख आंधी हों, बारिश हो ,अंधेरा हो,वो स्वयं के प्रकाश को बनाए रखने के लिए संकल्प ले रखता। जब तक सांस है तब तक आस है .....जैसा हर पल खुद के अस्तित्व को बाती की अंतिम बिंदु और तेल की अंतिम बूंद तक पूर्ण करने की जिद......।स्वयं के जीवन में दूसरों को निराशा ,क्षोभ ,स्वप्रवंचना के अंधियारे से बाहर निकालने के लिए तत्पर एक छोटा सा दीपक। जिसे पता वो बस कुछ क्षण ही अपनी महत्ता साबित कर पाएगा...बावजूद उसके वो अपना कर्म नहीं छोड़ता। उसे पता वो जाएगा पर एक नई लौ सौंप कर।याद है ना दीवाली में हम कैसे एक लौ से दूसरे को जलाते ,भले हवा उन्हें बुझाने की कोशिश करती....एक दीपक दूसरे को प्रकाशित कर जाता।
इन महान सीखों के बाद तकलीफ इस बात की बचती की सनातनी बुद्ध ने बौद्ध बनाया ,दीपक बनने का संदेश दिया।खुद को माध्यम बनाकर दूसरों के लिए मार्ग प्रकाशित करने का संदेश दिया.... पर उनके अनुयायी ही ये दीपक दूसरों के जीवन ,शान्ति को ध्वस्त करने के उपयोग में ला रहे। सम्प्रदाय का ये जहर क्या रंग लेगा अगर बुद्ध को इसका जरा भी अंदाज़ हुआ होता,तो निश्चित रूप से वो यही कहते कि जो दीपक बन तुम खुद तक ही सीमित रखना। दूसरों को प्रकाशित करना तुम्हारे बस का नहीं,बस खुद के अंधेरे को ही खत्म करने का प्रयास करना।बुद्ध सम्भवतः भूल गए थे....चिराग तले अंधेरा.... वो प्रकाश देकर गए....हमने उसके तले अंधेरा चुना।
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#डॉ मधूलिका मिश्रा त्रिपाठी
#ब्रह्मनाद